भूजल में बढ़ रहा है सिलेनियम और यूरेनियम जैसे हानिकारक तत्वों का स्तर (High level of harmful sillenium and uranium found to be in ground water)


पहली बार जल रासायनिक आंकड़ों को भीतरी चट्टानों की संरचना से संबंधित आंकड़ों के साथ जोड़कर पता लगाया गया है कि लगातार दोहन से भूजल का स्तर गिरने से उथले एक्विफ़रों की खाली जगह में हवा भरने से ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है। इस प्रकार बने ऑक्सिक भूजल के कारण नाइट्रेट या नाइट्राइट का गैसीय नाइट्रोजन में परिवर्तन सीमित हो जाता है। इससे उथले भूजल में सिलेनियम और यूरेनियम जैसे तत्वों की गतिशीलता बढ़ जाती है।

वास्को-द-गामा (गोवा) : भूमिगत जलस्तर में गिरावट के खतरों के बारे में तो हम जानते ही हैं और अब पता चला है कि नाइट्रेट, क्लोराइड, फ्लोराइड, आर्सेनिक, सीसा, सिलेनियम और यूरेनियम जैसे हानिकारक तत्व भूजल को प्रदूषित कर रहे हैं। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किए एक अध्ययन में यह बात उभरकर आई है। अध्ययन में भूजल में विद्युत चालकता और लवणता का स्तर भी अधिक पाया गया है। जबकि सिलेनियम की मात्रा सर्वाधिक 10-40 माइक्रोग्राम प्रति लीटर पाई गई है। इसके अलावा भूजल में 10-20 माइक्रोग्राम प्रति लीटर मालिब्डेनम और यूरेनियम की सांद्रता लगभग 0.9 और 70 माइक्रोग्राम प्रति लीटर पाई गई है। वैज्ञानिकों ने इस बात के स्पष्ट प्रमाण दिए हैं कि मानव-जनित और भू-जनित हानिकारक तत्व तलछटीय एक्विफर तंत्र से होकर गहरे एक्विफरों में पहुँच रहे हैं और भूजल को प्रदूषित कर रहे हैं।

रुड़की स्थित राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों और ब्रिटिश भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा पंजाब में सतलुज एवं ब्यास नदी और शिवालिक पहाड़ियों के बीच स्थित नौ हजार वर्ग किलोमीटर में फैले बिस्त-दोआब क्षेत्र में भूजल में प्रदूषण के स्तर का परीक्षण करने के बाद ये तथ्य सामने आए।

अध्ययन में मानव-जनित और प्राकृतिक कारकों को केंद्र में रखकर जलभृत (एक्विफर) के ऊपरी 160 मीटर हिस्से में मौजूद तत्वों का रासायनिक विश्लेषण किया गया है। अध्ययन क्षेत्र को कृषि, शहरी एवं ग्रामीण भूमि उपयोग, पारंपरिक रिचार्ज क्षेत्र, मध्य मैदानों के साथ-साथ सतलुज और ब्यास के संगम के आस-पास के इलाकों समेत कुल 19 हिस्सों में बाँटा गया था। इन भागों में उथले (0-50 मीटर) और गहरे (60-160 मीटर) एक्विफरों से जल के नमूने एकत्र करके भूजल प्रदूषण का अध्ययन किया गया है। भूजल में रासायनिक प्रदूषण बढ़ने का कारण भूमिगत जल के अंधाधुंध दोहन, रासायनिक उर्वरकों के उपयोग और सतह पर औद्योगिक अपशिष्टों का बहाया जाना माना जा रहा है।

पृथ्वी की सतह के भीतर स्थित उस संरचना को एक्विफर कहते हैं, जिसमें मुलायम चट्टानों, छोटे-छोटे पत्थरों, चिकनी मिट्टी और गाद के भीतर सूक्ष्म कणों के रूप में भारी मात्रा में जल भरा रहता है। एक्विफर की सबसे ऊपरी परत को वाटर-टेबल कहते हैं। सामान्यतः स्वच्छ भूजल वाटर टेबल के नीचे स्थित एक्विफर में ही पाया जाता है।भूजल में सिलेनियम, मालिब्डेनम और यूरेनियम जैसे खतरनाक तत्वों का अधिक मात्रा में मिलना चिंताजनक माना जा रहा है क्योंकि गहरे एक्विफरों के संदूषित होने पर भूजल की गुणवत्ता सुधरने में बहुत समय लग जाता है।

पहली बार जल रासायनिक आंकड़ों को भीतरी चट्टानों की संरचना से संबंधित आंकड़ों के साथ जोड़कर पता लगाया गया है कि लगातार दोहन से भूजल का स्तर गिरने से उथले एक्विफ़रों की खाली जगह में हवा भरने से ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है। इस प्रकार बने ऑक्सिक भूजल के कारण नाइट्रेट या नाइट्राइट का गैसीय नाइट्रोजन में परिवर्तन सीमित हो जाता है। इससे उथले भूजल में सिलेनियम और यूरेनियम जैसे तत्वों की गतिशीलता बढ़ जाती है। वहीं, गहरे एक्विफ़रों तथा शहरी क्षेत्र के उथले एक्विफ़रों में मिलने वाली यूरेनियम की अधिक सांद्रता का संबंध उच्च बाइकार्बोनेट युक्त जल से पाया गया है।

अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि शोध से प्राप्त परिणाम उत्तर-पश्चिम भारत में भूजल के प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। अध्ययनकर्ताओं की टीम में जी. कृष्ण एवं एम.एस.राव के अलावा ब्रिटिश भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के डी.जे. लैपवर्थ और ए.एम. मैकडोनाल्ड शामिल थे।

Twiterhandle : @shubhrataravi


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