भूमिका - नरक जीते देवसर

नरक जीते देवसर
नरक जीते देवसर

पौराणिक ग्रंथों में प्राकृतिक सन्तुलन पर बहुत चिन्तन-मंथन हुआ है। मत्स्य पुराण में तालाबों, कुओं और बावड़ियों के महत्त्व पर कहा गया है

दश कूप समा वापी, दशवापी समोह्नद्रः।
दशह्नद समः पुत्रों, दशपुत्रो समो द्रमुः।


अर्थात दस कुओं के बराबर एक बावड़ी होती है, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है। तालाबों के निर्माण से होने वाली फल प्राप्ति के बारे में कहा गया है-

यस्ताडागं नवं कुर्पात् पुल्णं वापि खानयेत्।
स सर्वं कुलमुद्धृत्य स्वर्ग लोके महीयते।


यानी जो मनुष्य नए तालाबों का निर्माण करवाता है या पुराने तालाबों को खुदवाता/सफाई करवाता है। उसके सम्पूर्ण कुल का उद्धार होता है और वह स्वर्ग लोक में पूजित होता है। एक और श्लोक में इसी तरह की बात आती है

वापी कूप तडागनि, उद्यानोपवनानि च।
पुनः संस्कार कर्ता च लभते मौक्तिकं फलम्।


इसका अर्थ है, जो मनुष्य पुरानी बावड़ी को तालाब और बागों को खुदवाता है या नए सिरे से बनवाता है उसे नए जलाशय बनवाने तथा नए बाग लगाने का फल मिलता है। इसी पुराण में एक और श्लोक आता है-

दीपालोक प्रदानेन वपुष्पान् स भवेन्नरः।
प्रेक्षणीय प्रदानेन स्मृतिं मेधां च विंदति।


अर्थात दीप दान करने से मनुष्य का शरीर उत्तम होता है और जल दान करने से उसकी स्मृति और मेधा बढ़ती है। इसी प्रकार से अपने सनातन और वैदिक शास्त्रों में तालाबों व कुओं को भरने या पाट देने पर भी टिप्पणियाँ की गई हैं। एक श्लोक के मुताबिक :-

वापी कूप तडागानामारामस्य सरः सु च।
निःशंकं रोधकश्चैव स विप्रो म्लेक्ष्छ उच्यते।


इसका अर्थ है- जो ब्राह्मण धर्म-अधर्म का विचार किये बिना, पाप की चिन्ता किये बिना किसी वापी कुएँ तालाब को अवरोधित या दूषित करता है, जो किसी बाग को नष्ट करता है वह मलेच्छ के समान हैं। अत्रि स्मृति में कहा गया है :-

पूरणे कूप वापीनां वृक्षच्छेदन पातने।
विक्रीणीत गजं चाश्वं गोवधं तस्य निर्द्दिशेत।


यानी जो मनुष्य कुएँ या बावड़ी को पाट देता है, वृक्ष को काट कर गिरा देता है, हाथी या अश्व बेच देता है, वह गऊ हत्यारे के समान दंड का भागी है।

अग्नि पुराण में भी कहा गया है कि जो व्यक्ति किसी तालाब को नष्ट कर देता है तो राजा को उसे मृत्यु दण्ड देना चाहिए।

हरियाणा में जिस तरह से हमारे पूर्वजों ने एक-से-एक बेशकीमती और बहुउपयोगी तालाबों का निर्माण करवाया था, सम्भवतः उन्होंने अपनी सनातन, वैदिक और पौराणिक परम्परा को जरूर ध्यान में रखा होगा। लेकिन आज जिस प्रकार से दादरी, बेरी, गुड़गाँव और राज्य के बाकी इलाकों में तालाबों की हत्या की जा रही है उससे यही लगता है कि आज के लोगों ने अपने प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन भले ही किया हो लेकिन वे इसे चरितार्थ बिल्कुल नहीं कर रहे हैं। आज राजा (न्याय व्यवस्था) उन्हें मृत्यु दंड दे ना दे लेकिन तालाबों के पाटे जाने से उनका ही नहीं उनकी अगली पीढ़ियों का क्या अहित होगा इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है।

लोक कवि हरभगवान चावला ने तालाबों पर अपनी पीड़ा कुछ इस तरह व्यक्त की थी

जोहड़ों के पानी में मजे से सुस्साती रहती हैं भैंसें
ऊँघते रहते हैं जोहड़ के किनारे भैंसों की निगरानी में बैठे बूढ़े
जोहड़ के किनारे
अलग-अलग जगहों पर अकेले-अकेले बैठे रहते हैं बूढ़े
अपनी-अपनी भैसों से न्यूनतम दूरी बनाकर
कभी-कभी कोई बूढ़ा अपनी भैंसों की तरफ से निश्चिन्त होता है
तो चला जाता है दूसरे बूढ़े के पास
तब दोनों अच्छे जमाने की बात करते हैं
और इस बात पर अफसोस करते हैं किजोहड़ के किनारे नहीं हैं दो चार पेड़ भी।


लोककवि (जनता के कवि) हरभगवान चावला ने कुछ बरस पहले अपनी एक कविता में बूढ़ों के दुखः सुख के साथ जोहड़ों के किनारों पर पेड़ न होने पर चिन्ता प्रकट की थी, लेकिन अब तो हरियाणा से धीरे-धीरे जोहड़ ही गायब हो रहे हैं। तालाब संस्कृति खत्म हो रही है। कई गाँवों से तो तालाब खत्म ही हो गए हैं। ऐसे गाँवों की भी कमी नहीं है जिनमें जलाशय अपने दिन गिन रहे हैं या उनका जीवन खतरनाक रसायनों, पॉलीथीनों, इलेक्ट्रॉनिक और सेनेटरी कचरे से सड़ान्ध मार रहा है। इनकी उपयोगिता केवल डस्टबिन की सी ही रह गई है। पहले इन्हें कचराघर बनाया जाता है और फिर धीरे-धीरे दबंग इन पर कब्जा करते हैं। तालाब पर कब्जे का विरोध गाँव में बहुत कम होता है। कारण, जब भी जिसका भी मौका या दाँव लगता है, वह तालाब पर छोटा-बड़ा कब्जा कर लेता है।

हरियाणा के प्रत्येक गाँव, कस्बे और शहर में तालाबों की भरमार है, लेकिन इनमें से बहुत सारे अतिक्रमण के शिकार हो गए हैं। इनकी सब जगह जरूरत है। और हमारी परम्परा में सबसे मजबूत कोई चीज थी तो वह तालाब थी। तालाब और समाज का एक जीवन्त रिश्ता था। यह रिश्ता बहुत जगह टूटा है तो बहुत जगह क्षीण हुआ है। आधुनिकता के पागलपन के सामने उभरकर आ रही विकास की दलीलों ने तालाब और तालाब के प्रति समाज के रिश्तों से जुड़े सवालों को गौण कर दिया है। पानी के दूसरे स्रोत झील-तलैया आदि खत्म हो गए हैं।

मेरे अपने गाँव में कई बड़े तालाब थे। इनमें से फिलहाल तीन नहीं हैं। हर तालाब का अपना अलग महत्त्व था, अपनी पहचान थी। खुदाना बहुत खुदा हुआ और गहरा तालाब है। इस तालाब की मिट्टी चिकनी और पीली है। ग्रामीण इसके गारे में थोड़ी मिट्टी और गोबर मिलाकर अपने घरों की दीवारों, घर के फर्श की लिपाई करते थे। शिवाई आला में छोटा सा शिवमन्दिर बना था तो सिसमवाला में सिसम के पेड़ों की भरमार थी। छाप्पड़, कैंदू आली, गुहली, बड़ा जोहड़, ओहद अब सिकुड़ गए हैं। गाँव के चारों ओर के तालाब कुओं का जलस्तर और गुणवत्ता बनाए रखते थे। वैसे भाईसाहब ओमप्रकाश पंवार ने गाँवों के तालाबों पर बड़ी संख्या में छायादार पेड़ भी लगवा दिये थे। बड्डे जोहड़ के साथ स्थित गढ़ का कुआँ अकेला ही गाँव की तीन-चौथाई आबादी की प्यास बुझाता था। गाँव की महिलाओं का शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य ठीक रखता था। पानी लाने और खींचने की प्रक्रिया से उनका शरीर स्वस्थ रहता था तो सास-बहू की चुगली का यह केन्द्र उनका मानसिक स्वास्थ्य ठीक रखता था। उन्हें शृंगार करने का अवसर देता था। पूरा समाजशास्त्र अर्थशास्त्र था गाँव के तालाबों का, कुओं का। पूरे गाँव और आस-पास के खेतों का भूजल-स्तर ठीक रहता था। मुझे अच्छे से याद है भाई इन्द्रसिंह राठी, सतेंद्र राठी के गाँव भापड़ौदा के गागड़ों के परिवार की यह कहानी-एक बार 80 सदस्यों के गागड़ परिवार के गेहूँ की फसल सिंचाई के पानी के अभाव में सूख गई। गाँव के किसी व्यक्ति ने परिवार की महिला मुखिया पर फसल सूखने का व्यंग्य कस दिया। बस क्या था-सारा गागड़ परिवार जुट गया और मटकों से ही पूरे खेत की सिंचाई कर दी और फसल को सूखने से बचा लिया।

राजकुमार भारद्वाज द्वारा लिखी गई किताब 'नरक जीते देवसर'वर्ष 2002 में सोनीपत जिले के गोहाना रोड स्थित मोहाना गाँव में गया। इस गाँव के एक बड़े तालाब का नाम दूधा तालाब था। हालांकि जब मैं गया, तो तालाब का पानी बहुत गन्दा था। मैंने गाँव के बुजुर्ग सुमेर से पूछा कि इस तालाब का नाम दूधा तालाब क्यों है, तो उन्होंने बताया कि इस तालाब का पानी अत्यन्त स्वच्छ, खनिजों से भरा दूध जैसा निर्मल था। जब भी गाँव की कोई भैंस या गाय दूध दुहने में तंग करती थी, अपने स्तनों को हाथ नहीं लगाने देती थी तो उस गाय या भैंस को दूधा तालाब के किनारे लाकर स्तनों पर पानी के छींटे दिये जाते थे और पशु दूध देना शुरू कर देते थे।

तालाब और समाज का रिश्ता आपस में अत्यधिक गुँथा हुआ था। जब भी किसी गाँव का ग्रामीण शौच धोने के लिये निश्चित जलाशय से इतर शौच धोता था, तो ग्रामीण इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज करते थे। तालाबों का पानी गन्दा न हो, यह समाज की सामूहिक जिम्मेवारी होती थी और सारा गाँव मिलकर इसका ध्यान रखता था। जोहड़ में जब गाद अधिक जमा हो जाती थी तो पूरा गाँव मिलकर इसकी सफाई करता था। महिलाएँ गीत गाते हुए जाती थीं, तालाब से गाद निकालती थीं। तालाब की सफाई के दिन और तारीख की मुनादी होती थी। बस फिर क्या था-हर घर से एक आदमी एक तसला, एक कस्सी लेकर तालाब पहुँच जाता था। जिनके घरों में पशु नहीं होते थे, उनके घर से भी एक आदमी इस अनुष्ठान में शामिल होता था। नौकरीपेशा ग्रामीण इस काम के लिये बाकायदा छुट्टी लेते थे। कई जगह ग्रामीण इस अवसर पर लोहे के बड़े कढ़ाओं में पीले रंग के चावल का सामूहिक भोज करते थे। गाँव के कुओं की सफाई भी ऐसे ही होती थी। क्या भाव था?

अफसोस है कि अब वह भाव मानो समाज से पूरी तरह खत्म सा हो गया है। तालाबों को लेकर सरकार भी गम्भीर नहीं है। पर्यावरणविदों के बार-बार यह चेतावनी दिये जाने के बावजूद कि यदि तालाबों की सार-सम्भाल नहीं की और इन पर कब्जे का सिलसिला यूँ ही जारी रहा तो इससे न केवल पारिस्थितिक सन्तुलन गड़बड़ा जाएगा बल्कि गाँव-समाज का सामाजिक ढाँचा भी चरमरा जाएगा। लेकिन बार-बार की चेतावनी के बावजूद न तो केन्द्र और राज्यों की सरकारें इस गम्भीर विषय को लेकर आज तक चिन्तित दिखाई दीं और न ही अपना समाज, वह समाज, जिसका तालाब के साथ जीवन-मरण का रिश्ता है। इससे भी अधिक चिन्ता की बात यह है कि समाज और सरकार ने तालाबों को गन्दी राजनीति और भष्टाचार की दलदल में धकेल दिया है। तालाबों की सफाई और खुदाई के नाम पर नरेगा के झूठे बिल बनाए जाते हैं। जलाशयों पर कब्जे और इनकी सफाई को लेकर गाँव में लाठियाँ और तलवारें चलती हैं। विरोधी गुट के पंच-सरपंचों की हत्या कर दी जाती है।

आश्चर्यजनक रूप से वर्ष 2002 में इस देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा दिल्ली में पानी के संकट से निपटने के लिये दिए गए निर्देशों में 1000 तालाबों की पहचान कर उन्हें पुनर्जीवित करने के निर्देश दिये थे। केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने जलाशयों को पुनर्जीवित करने के लिये बाकायदा एक समिति का गठन किया है, लेकिन तालाबों को लेकर कहीं भी गम्भीरता दिखाई नहीं पड़ी। पिछले दिनों में कोसली गया, वहाँ के चारों जोहड़ गोसाईं वाला, हृदय वाला, देवी वाला और मरोड़ा वाला, ये सारे जोहड़ बेहद खस्ताहाल हैं।

जरूरत पड़ने पर ये जोहड़ कोसली की पानी की समस्या का समाधान कर सकते हैं, लेकिन किसी को इनकी बदहाली की कोई परवाह नहीं-समाज, प्रशासन या फिर सरकार, किसी को नहीं।

राज्य में ऐसे हजारों तालाब होंगे जिन पर कब्जे हो गए हैं। भू-माफिया इस खेल को गाँव के दबंगों से लेकर, पंचायत प्रमुखों, सरकारी एजेंसियों को एक साथ लेकर खेलता है। गुड़गाँव और फरीदाबाद में ऐसे कई दर्जन गाँव हैं जिनके तालाबों पर भू-माफिया ने बहुमंजिला भवन खड़े कर दिये हैं। बहरहाल, ये तालाबों पर होते कब्जे कम-से-कम हरियाणवी समाज के स्वास्थ्य के लिये बहुत बड़ा खतरा है। सरकार से किसी प्रकार की कोई उम्मीद करना बेकार है। ऐसे में जबकि हर शहर, कस्बे और गाँव की सड़क पर पानी मोल बिकने लगा है, तालाबों, जोहड़ों के संरक्षण के लिये समाज को स्वयं एक ठोस और गम्भीर पहल करनी होगी। ऐसा नहीं हुआ तो आने वाली पीढ़ियाँ आज के समृद्ध कहे जाने वाले समाज को इसके लिये गालियाँ ही देगी कि हम पानी की समृद्ध विरासत को उनके लिये नहीं सम्भाल सके।

 

नरक जीते देवसर

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें)

क्रम

अध्याय

1

भूमिका - नरक जीते देवसर

2

अरै किसा कुलदे, निरा कूड़दे सै भाई

3

पहल्यां होया करते फोड़े-फुणसी खत्म, जै आज नहावैं त होज्यां करड़े बीमार

4

और दम तोड़ दिया जानकीदास तालाब ने

5

और गंगासर बन गया अब गंदासर

6

नहीं बेरा कड़ै सै फुलुआला तालाब

7

. . .और अब न रहा नैनसुख, न बचा मीठिया

8

ओ बाब्बू कीत्तै ब्याह दे, पाऊँगी रामाणी की पाल पै

9

और रोक दिये वर्षाजल के सारे रास्ते

10

जमीन बिक्री से रुपयों में घाटा बना अमीरपुर, पानी में गरीब

11

जिब जमीन की कीमत माँ-बाप तै घणी होगी तो किसे तालाब, किसे कुएँ

12

के डले विकास है, पाणी नहीं तो विकास किसा

13

. . . और टूट गया पानी का गढ़

14

सदानीरा के साथ टूट गया पनघट का जमघट

15

बोहड़ा में थी भीमगौड़ा सी जलधारा, अब पानी का संकट

16

सबमर्सिबल के लिए मना किया तो बुढ़ापे म्ह रोटियां का खलल पड़ ज्यागो

17

किसा बाग्गां आला जुआं, जिब नहर ए पक्की कर दी तै

18

अपने पर रोता दादरी का श्यामसर तालाब

19

खापों के लोकतंत्र में मोल का पानी पीता दुजाना

20

पाणी का के तोड़ा सै,पहल्लां मोटर बंद कर द्यूं, बिजली का बिल घणो आ ज्यागो

21

देवीसर - आस्था को मुँह चिढ़ाता गन्दगी का तालाब

22

लोग बागां की आंख्यां का पाणी भी उतर गया

 

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