भूविज्ञान तथा मानव जीवन

16 Oct 2016
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जल जीवन की बुनियादी आवश्यकता है। हम देखते हैं कि दुनिया में जल की त्राहि-त्राहि चारों ओर है और दिन-प्रतिदिन जल का संकट बढ़ता ही जा रहा है। भारत कृषि प्रधान देश है इसलिए जल तथा विद्युतीकरण पर हमारी निर्भरता बढ़ जाती है। भूवैज्ञानिक भूजल संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उचित योजनाओं और शोध के द्वारा वर्षा से प्राप्त जल तथा भूमिगत जल का संरक्षण किया जा सकता है।

जब भी भूविज्ञान विषय की चर्चा होती है, हमारे जिज्ञासु मन में अनेक प्रकार के प्रश्न उभरते हैं जैसे भूवैज्ञानिक क्या करते हैं? हमारे जीवन को भूविज्ञान कैसे प्रभावित करता है? हमारे समाज में भूविज्ञान की क्या भूमिका है? आइये हम इन्हीं प्रश्नों के उत्तर ढूँढे। क्या आपको एहसास है कि हमारी सभ्यता तथा धरती के प्राकृतिक संसाधनों का कितना गहरा सम्बन्ध है? आदिकाल से ही मानव ने शिकार के लिये पत्थरों से बने हुए हथियार उपयोग किये तथा गुफाओं में शरण ली थी। इतना ही नहीं अग्नि प्रज्जवलित करने के लिये भी मानव ने विशेष प्रकार के पत्थरों जैसे फिल्ट का प्रयोग किया था। भूविज्ञान का ज्ञान प्राकृतिक वातावरण को समझने तथा मानव जीवन को सुविधाजनक बनाने के लिये आवश्यक है। भूविज्ञान विषय हमें हमारी पृथ्वी और उसके संसाधनों की बुनियादी समझ तथा उनके सतत रूप से उपयोग करने की सोच प्रदान करता है।

हम अपने दैनिक जीवन में जिन सभी प्राकृतिक संसाधन, उदाहरण के लिये जल, खनिज, धातु, जीवाश्म, ईंधन इत्यादि का प्रयोग करते हैं, हमें पृथ्वी से ही प्राप्त होती है। भूविज्ञान हमारे रोज़मर्रा जीवन में दर्जनों बार प्रवेश करता है। यदि हम इसके विषय में गहराई से सोचें तो मानव जीवन का कोई भी पहलू इससे अछूता नहीं पायेंगे।

आप की सबसे प्रिय वस्तु जिसके बगैर आप अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं, यानि नमक/कॉमन साल्ट हमें हेलाइट नामक खनिज से प्राप्त होता हैं। इसी प्रकार प्रसाधन सामग्रियों के उत्पादन में भी खनिज उपयोग होता है। टाल्क तथा क्ले (बेन्टोनाइट, क्योलिनाइट) खनिज हैं।

इसके अलावा खनिजों का उपयोग उर्वरक, रंग और वर्णक, इलेक्ट्रॉनिक्स तथा अपघर्षण (अब्रेसिव) उद्योगों में होता है। चट्टानों से फास्फोरस, पोटेशियम, सल्फर और मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। ये सभी पोषक तत्व खनिजों में होते हैं। यह पोषक तत्व विभिन्न खनिजों से चट्टानों का अपक्षयण होने के कारण मोचित (रिलीज) होते हैं, जोकि पौधों के बढ़ने के लिये अति आवश्यक हैं। रंग और वर्णक उद्योग में सल्फर वाले खनिज उपयोग में लाये जाते हैं। इलेक्ट्रिकल उपकरणों में इंसुलेटर के रूप में अबरक यानि माइका का प्रयोग किया जाता है।

अपघर्षण उद्योग में सिलिका सैंड, हीरा, कुरुण्ड इत्यादि का उपयोग होता है। पेट्रोलियम उद्योग में प्रयोग होने वाले ड्रिलिंग बिट्स में अपघर्षण के गुणों वाले खनिजों का उपयोग किया जाता है। घड़ियों, इलेक्ट्रोनिक्स तथा कम्प्यूटर उपकरणों में क्‍वार्ट्ज नामक खनिज का उपयोग होता है। शुद्ध सिलिकॉन का निर्माण बालू यानि रेत से किया जाता है। सिलिकॉन के उपयोगों से आप भली भाँति परिचित होंगे। सिलिकॉन के प्रयोग से आधुनिक विश्व की अर्थ व्यवस्था पर बहुत प्रभाव पड़ा है। मुक्त सिलिकॉन स्टील रिफाईनिंग, एल्यूमीनियिम कास्टिंग और रसायन उद्योगों में प्रयोग किया जाता है। उच्च स्तरीय शुद्धता वाला सिलिकॉन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि एकीकृत (इंटीग्रेटेड) सर्किट में इसका प्रयोग कम्प्यूटर जगत का आधार है। आधुनिक प्रौद्योगिकी इस पर काफी हद तक निर्भर करती है। बहुमूल्य तथा अर्धबहुमूल्य रत्न जैसे कि हीरा, पन्ना, पुखराज इत्यादि चट्टानों में पाये जाते हैं। यह सभी रत्न सजावटी प्रयोजनों के लिये मानव द्वारा उपयोग किए जाते हैं।

सभ्यता की शुरूआत से ही मानव चमकदार और रंगीन रत्नों से मोहित रहा है। रत्न शांति, समृद्धि और खुशी के प्रतीक माने जाते हैं। दुनिया के प्राचीन ग्रंथों में लिखा पाया गया है कि रत्न मानव के भाग्य और नियति को भी प्रभावित करते हैं। इसके अलावा धातुएं जैसे एल्यूमीनियम, जस्ता, मैग्नीज, सोना तथा चाँदी हमारी सभ्यता के विकास से अनिवार्य रूप से जुड़ी हुई हैं। इन सभी धातुओं का निष्कर्षण (एक्सट्रक्शन) इनके अयस्कों से किया जाता है। भूवैज्ञानिकों का कार्य खनिजों तथा अयस्कों की खोज तक ही निहित नहीं है। वे इनकी उत्पत्ति के कारणों का भी अध्ययन करते हैं। भूवैज्ञानिकों ने निरंतर शोध से धरती की उत्पत्ति, पृथ्वी पर जीवन के विकास की जानकारी मानव समाज को दी है। पृथ्वी पर जीवन के विकास का पता करने का आधार जीवाश्म हैं। जीवाश्मों तथा अन्य सबूतों की मदद से हम पृथ्वी पर उत्पत्ति और जीवन के विकास के बारे में समझ सकते हैं। जीवाश्म चट्टानों की उम्र, प्राचीन भूगोल तथा जलवायु के विषय में जानकारी प्रदान करते हैं। जुरैसिक पार्क नामक फिल्म डायनासोर के काल का जीवन दर्शाती है। भूवैज्ञानिकों के निरंतर शोध तथा मेहनत के फलस्वरूप ही हम उस काल के जीवन की जानकारी प्राप्त कर पाये हैं। इसलिये हम यह कह सकते हैं कि भूवैज्ञानिकों का फिल्म उद्योग में भी योगदान रहा है।

अट्टालिकाओं, भवनों, सड़कों तथा इंजीनियरिंग परियोजना के निर्माण के लिये सीमेंट, बालू/रेत तथा बिल्डिंग स्टोन्स जैसे क्वार्टजाइट, बलुआपत्थर, ग्रेनाइट इत्यादि उपयोग किया जाता है। सीमेंट उद्योग में चूना पत्थर (लाइमस्टोन) का इस्तेमाल होता है। किसी भी परियोजना के निर्माण की लागत कम करने के लिये अधिकतर स्थानीय स्तर पर उपलब्ध होने वाली निर्माण सामग्री उपयोग में लायी जाती है। इससे निर्माण सामग्री के परिवहन की लागत कम होती है।

जल जीवन की बुनियादी आवश्यकता है। हम देखते हैं कि दुनिया में जल की त्राहि-त्राहि चारों ओर है और दिन-प्रतिदिन जल का संकट बढ़ता ही जा रहा है। भारत कृषि प्रधान देश है इसलिए जल तथा विद्युतीकरण पर हमारी निर्भरता बढ़ जाती है। भूवैज्ञानिक भूजल संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उचित योजनाओं और शोध के द्वारा वर्षा से प्राप्त जल तथा भूमिगत जल का संरक्षण किया जा सकता है।

आप जानते हैं कि किसी भी समाज के विकास के लिये बिजली उत्पादन बहुत महत्त्वपूर्ण पहलू है। क्या आप अपना जीवन बिजली, पेट्रोल तथा डीजल के बिना अनुभव कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं! क्योंकि हमारी जीवन शैली इन सुविधाओं की इतनी अभ्यस्त हो चुकी है कि इन सभी के बिना हम अपने जीवन की कल्पना मात्र से ही काँप जाते हैं। ऊर्जा उत्पादन के लिये प्राकृतिक संसाधन हमें पृथ्वी से प्राप्त होते हैं जैसे कोयला, तेल तथा प्राकृतिक गैस, परमाणु खनिज तथा भूतापीय ऊर्जा इत्यादि। भूवैज्ञानिक पृथ्वी से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक संसाधन (जो ऊर्जा तथा शक्ति प्रदान करते हैं) का शोध तथा अन्वेषण करते हैं। कोयला घरेलू और औद्योगिक कार्यों के लिये आवश्यक है। कोयला विद्युत उत्पादन के लिये ताप विद्युत संयंत्रों में इस्तेमाल किया जाता है। हमारे देश में कई बिजली घरों में बिजली उत्पादन के लिये कोयले का उपयोग किया जाता है।

भूवैज्ञानिकों कोयले तथा पेट्रोलियम संसाधनों के नवीन स्रोतों की खोज में निरंतर संलग्न हैं। परमाणु खनिज से बिजली उत्पादन आजकल चर्चा में है। परमाणु ऊर्जा भी विद्युत उत्पादन और देश के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण ईंधन है। अभी हमने ऊर्जा उत्पादन में भूवैज्ञानिकों की भूमिका का वर्णन किया है।

इंजीनियरिंग परियोजनाओं जैसे कि बाँध, सुरंग, पुल, राजमार्ग इत्यादि के निर्माण की सफलता में भी भूवैज्ञानिकों की अहम भूमिका है। भूविज्ञान का ज्ञान जगह के चयन से शुरू होकर परियोजना की समाप्ति तथा रख-रखाव सभी के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भूवैज्ञानिक खोज तथा अध्ययन से मानव जाति को प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले खतरों से बचा सकते हैं। क्षेत्रीय भूविज्ञान तथा आपदा प्रबंधन से होने वाली आपदा के नुकसान को कम किया जा सकता है। उदाहरण के लिये किसी भी विशाल संरचना के निर्माण में सर्वप्रथम यह अध्ययन किया जाता है कि किस भूकम्प प्रवण बेल्ट में पड़ता है। भूस्खलन और हिमस्खलन ग्रसित क्षेत्रों में भूविज्ञान की जानकारी बहुत महत्त्वपूर्ण है।

कृषि भूविज्ञान, भूविज्ञान की उभरती शाखा है। भूवैज्ञानिक कृषकों को मिट्टी की संरचना, भूमिगत जल संसाधनों, वर्षाजल संचयन आदि के बारे में परामर्श प्रदान कर सकते हैं।

भूविज्ञान मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ा है। जहाँ भी आप नजर दौड़ायें चाहे वह घर हो या दफ्तर आपके जीवन को सुविधाजनक बनाने के लिये भूविज्ञान आपकी सेवा में सदैव तत्पर है।

Fig-1.

सम्पर्क


मीनल मिश्रा
विज्ञान विद्यापीठ, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली


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