बिंदाल नदी क्षेत्र में पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित किए जाने के लिए शोध परियोजना

16 Apr 2022
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बाढ़ की आपदा पर पूर्व चेतावनी प्रणाली के लिए कार्यशाला का आयोजन

देहरादून की रिस्पना और बिंदाल नदी बरसात में कभी भी कहर बरपाने लगती हैं। इन नदियों में किनारे पर बसी लगभग 30-40 बस्तियां खतरे की जद में आ जाती हैं। एक्सट्रीम वेदर कंडीशन अब ‘न्यू नार्मल’ है। बादल फटना यानी भारी बरसात की वजह से ये नदियां कब उफान पर आ जाएं कहना मुश्किल होता है। इसके अलावा शहर के ज्यादातर नालों पर भी अतिक्रमण व अवैध कब्जे हैं।  ऐसे में नदी के बहाव की वजह से यहां कब कोई बड़ा हादसा हो जाए, ये चिंता का विषय है।

बरसात के मौसम के दौरान लगातार अत्यधिक बारिश से उफान पर आई बिंदाल नदी से आसपास के क्षेत्र में खतरा बढ़ जाता है।”अत्यधिक वर्षा और बाढ़ के लिए संवेदनशील हिमालयी समुदायों की बाढ़ अनुकूलन क्षमताओं और बाढ़ के प्रभाव सहनशीलता हेतु लचीलेपन में सुधार के लिए एक पूर्व चेतावनी प्रणाली” की जरूरत अब निहायत जरूरी बात हो गई है। 

ऐसे में बिन्दाल के किनारे के इलाके में ”अत्यधिक वर्षा और बाढ़ के लिए संवेदनशील हिमालयी समुदायों की बाढ़ अनुकूलन क्षमताओं और बाढ़ के प्रभाव सहनशीलता हेतु लचीलेपन में सुधार के लिए एक पूर्व चेतावनी प्रणाली” पर काम करने की कोशिश हो रही है। एक शोध परियोजना की कोशिश हो रही है, ताकि प्रभावित लोगों को समय पर सूचना दी जा सके। प्रस्तावित शोध परियोजना में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) रूड़की, पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट (PSI) देहरादून, बर्मिघम  विश्वविद्यालय, और इंपीरियल कॉलेज लंदन,(ब्रिटेन) यूके रिसर्च एंड इनोवेशन नेचुरल एनवायरमैंट रिसर्च काउंसिल (यू.के. आर. आई. एन. ई. आर.सी.) आदि की भागीदारी है। 

इस शोध परियोजना की मुख्य प्रेरणा हिमालयी क्षेत्र में अचानक आ रही भीषण बाढ़ की बढ़ती आवृत्ति है जो बाढ़ नदियों के निकट रहने वाले समुदायों के जीवन और आजीविका को प्रभावित करती है। बाढ़ दोनों निजी और सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुचाती है। हालांकि  आपदा एक छोटी अवधि के लिए जारी रहती है परन्तु इसके परिणाम लघु एवं मध्यम अवधि में आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करते है। यह परियोजना अनुठी है क्योंकि यह उन नदियों पर केंद्रित है जो बाकी महीनों लगभग शुष्क रहती है लेकिन जिनमें मानसून के महीनों के दौरान या किसी अचानक अवसाद के दौरान अचानक बाढ़ आने की संभावना बढ़ जाती है। चूंकि नदियां ज्यादातर सूखी है, इसलिए मानव धारणा ऐसी नदियों को कम हानिकारक मान रही है और इसलिए समय की अवधि में नदी के किनारों पर अतिक्रमण देखा गया है। ऐसी नदियों के तट पर वसने वाली बस्तियों में कम आय के साथ-साथ सीमित कमाई क्षमता वाले समुदाय शामिल हैं। इन बस्तियों में  कम अनुकूलन और पूर्व तैयारी से संवेदंशीलता बढ़ जाती है। इस परियोजना के माध्यम से उत्तराखण्ड राज्य के देहरादून शहर में बिन्दाल राव नदी के तट पर रहने वाले निवासियों को एक पूर्व चेतावनी ढ़ाचे के माध्यम से त्वरित बाढ़ से सुरक्षा प्रदान की जायेगी। पूर्व चिन्हित स्थानो पर सेंसर लगाने के माध्यम से बाढ़ के जोखिम को कम करने के लिए ढ़ाचा विकसित किया जाएगा ताकि कमजोर समुदायों को उनके जीवन और आजीविका की रक्षा के लिए पर्याप्त एवं उपयोगी समय उपलब्ध हो सके। 

विभिन्न स्थानों पर पी.एस.आई.तथा आई.आई.टी. की टीमों द्वारा फील्ड भ्रमण, समुदायों के साथ सहभागी मूल्यांकन अभ्यास तथा सर्वेक्षण के पश्चात् 21 दिसम्बर 2021 को पूर्व चेतावनी व्यवस्था की आवश्यकता को समझन हेतु प्रथम हितधारकों की कार्यशाला का आयोजन किया गया। आवश्यकता के आधार पर तीन चिन्हित स्थानों पर लाइडर जल स्तर सेंसर स्थापित किये गये हैं। सेंसरों से प्राप्त आंकड़ों एवं सूचनाओं को विशेषतौर पर डिजाइन किये गये। साइन बोर्डों के माध्यम से प्रदर्शित किया जायेगा।

इसके अलावा यह परियोजना स्थानीय स्तर पर विकास एवं नियोजन से जुडे़ अधिकारियो द्वारा किये जा रहे प्रयासों के साथ पूरक/सहयोगी की भूमिका निभा कर इसे आपदा रेजिलेंंट (आपदाओं के प्रति लचीलापन) शहर बनाने का इरादा रखती है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, शहरी विकास विभाग, देहरादून नगर निगम, देहरादून र्स्माट सिटी लिमिटेड, आदि  अन्य प्रमुख हितधारक हैं जो लक्षित आबादी की संवेदनशीलता को बढ़ाने वाली नीतियों को समझने और उनको सुधारने  में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके अलावा परियोजना के उद्देश्यों में किसी भी मौजूदा कमी और उद्देश्यों को पूरा करने की दिशा में पहचानी गई क्रियाविधि को अपनाने के लिए सरकारी विभागों और नागरिक समाज संगठनों के पास उपलब्ध ज्ञान को शामिल करने की आवश्यकता है। अन्त में हितधारको की इस बैठक से कुछ संस्तुतियों सिफारिशों की उम्मीद है जो बिन्दाल राव में बाढ़ के कारण होने वाले नुकसान को सीमित करेगी। प्रस्तावित परियोजना से बिन्दाल-राव के जल ग्रहण क्षेत्र में आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु एक समन्वित सोच तैयार करने की है।

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