चीन के बाँध से तिब्बत को होगा अधिक नुकसान

3 Oct 2016
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138 करोड़ आबादी वाले देश चीन की जरूरतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। चीन अपने हर नदी पर सिंचाई और बिजली की जरूरतों के लिये बाँध बना रहा है। यह काम वह पिछले दो दशक से कर रहा है। चीन की तेरहवीं पंचवर्षीय योजना में भी ब्रह्मपुत्र की मुख्यधारा पर कई बड़ी पनबिजली परियोजनाएँ बननी हैं। चीन ने सफाई दी है कि इससे भारत के हित प्रभावित नहीं होंगे। एक बात याद कर लेने की है कि चीन अपनी जरूरतों के लिये ब्रह्मपुत्र का अधिकतम इस्तेमाल करेगा। लेकिन सिक्किम, आसाम और अरुणाचल से आने वाली नदियों के कारण अभी फिलहाल तो ब्रह्मपुत्र नदी कोई सूखने नहीं जा रही है- कार्यकारी सम्पादक।
ब्रह्मपुत्र नदीब्रह्मपुत्र नदीउरी हमले में 18 सैनिकों की शहादत के बाद भारत की ओर से संकेत दिये गए कि वह पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौता रद्द करने पर गम्भीरता से विचार कर रहा है। ऐसा संकेत मिलते ही सिंधु जल समझौते को लेकर तरह-तरह की व्याख्या की जाने लगी। चीन भी इस बहस में कूद पड़ा और सिंधु समझौता रद्द किये जाने की सूरत में पाकिस्तान का साथ देने की बात कही।

पिछले दिनों चीन ने तिब्बत में लाल्हो हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिये ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक नदी जियाबुकु पर पनबिजली के लिये बाँध का काम पूरा कर लेने की घोषणा कर अप्रत्यक्ष तौर पर अपनी मंशा जाहिर कर दी।

गौरतलब है कि लाल्हो प्रोजेक्ट के लिये कुल 740 मिलियन अमेरिकी डालर खर्च होंगे। प्रोजेक्ट के एडमिनिस्ट्रेशन ब्यूरो के प्रमुख जांग युनबाओ के अनुसार यह सबसे महंगी परियोजना है। वर्ष 2014 में इस परियोजना का काम शुरू हुआ था। पिछले दिनों नदी के पानी की दिशा बदलने वाले बाँध का काम पूरा करने की घोषणा की गई। प्रोजेक्ट 2019 तक पूरा हो जाएगा।

तिब्बत पर पड़ेगा असर


चीन की घोषणा के बाद आशंका जताई जा रही है कि ब्रह्मपुत्र में पानी की कमी हो जाएगी जिससे भारत पर बुरा प्रभाव पड़ेगा लेकिन ऐसा नहीं है। चीन ने तिब्बत के लाल्हो में जो बाँध बनाया है उससे उक्त सहायक नदी का पानी सुरंग की ओर मुड़ जाएगा। इससे ब्रह्मपुत्र को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि यह सहायक नदी जिस जगह पर ब्रह्मपुत्र में शामिल होती है उसी जगह के आसपास कई और सहायक नदियाँ ब्रह्मपुत्र में समा जाती हैं जिससे ब्रह्मपुत्र को दोगुना पानी मिल जाता है, वह भी अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश से पहले। यही नहीं, ब्रह्मपुत्र जब भारत में प्रवेश करती है तो कई बड़ी सहायक नदियाँ इसमें शामिल हो जाती हैं। कहने का मतलब है कि ब्रह्मपुत्र को पानी केवल जियाबुकु नदी से नहीं मिलता है बल्कि कई दूसरी नदियों से भी मिलता है।

लाल्हो हाइड्रो प्रोजेक्ट से सबसे बड़ा नुकसान जियाबुकु नदी को ही होगा। इस प्रोजेक्ट से उक्त नदी लगभग सूख जाएगी क्योंकि यह नदी पहले से ही सूखने की कगार पर है। असल में कई जगहों पर बाँध बनाकर पहले से इस नदी के पानी को अलग-अलग दिशाओं मे मोड़ दिया गया है, जिससे नदी के आसपास रहने वाले लोगों के सामने जल संकट उत्पन्न हो गया है। इस प्रोजेक्ट से इनकी समस्या और विकराल रूप ले लेगी।

चीन के जिगेज क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी के दोनों तरफ की जमीन मरुस्थल में तब्दील हो रही है। चीन सरकार इसके लिये सूखे और अधिक चराई को जिम्मेदार ठहरा रही है लेकिन इसके पीछे बड़ा कारण ब्रह्मपुत्र नदी की विभिन्न नदियों पर बाँध बनाकर पानी के बहाव को रोकना है। बाँध बनने से दक्षिण एशियाई मैदानों की मिट्टियों की उपजाऊ क्षमता पर भी असर पड़ेगा क्योंकि नदी का बहाव उस तरफ कम हो जाएगा।

अतिरिक्त बिजली भारत को बेचने की तैयारी


नदियों पर भारी संख्या में बाँध बनाकर पनबिजली तैयार करने के पीछे चीनी सरकार का तर्क है कि तिब्बत में बिजली की कमी के कारण ऐसा किया जा रहा है। चीनी सरकार का यह तर्क सही है लेकिन सरकार की 13वीं पंचवर्षीय योजना के तहत अगले 4 वर्षों में कई बड़ी बिजली परियोजनाएँ पूरी करने का लक्ष्य है जिससे तिब्बत में जरूरत से बहुत अधिक बिजली का उत्पादन होगा। चीन सरकार का यह भी कहना है कि अतिरिक्त बिजली को चीन के दूर-दराज के कल-कारखानों तक पहुँचाया जाएगा ताकि कोयले पर निर्भरता खत्म हो।

बताया जा रहा है कि चीन अतिरिक्त बिजली भारत को भी बेचने को इच्छुक है। यही कारण है कि चीन ने भारत के साथ अक्टूबर 2013 में ब्रह्मपुत्र को लेकर एक समझौता किया था और बाढ़ के समय ब्रह्मपुत्र से बहने वाले पानी के आँकड़ों को साझा करने पर राजी हुआ था। वर्ष 2015 से चीन ने 1.5 बिलियन डॉलर की लागत वाले तिब्बत के सबसे बड़े हाइड्रो प्लांट से बिजली का उत्पादन शुरू कर दिया है।

भारत बिजली खरीदने को इच्छुक नहीं


सिंधु जल समझौते को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच जारी खींचतान और चीन द्वारा पाकिस्तान को समर्थन किये जाने के बाद भारत चीन से भविष्य में बिजली खरीदेगा, इसकी सम्भावना नहीं के बराबर है।

भारत ने सिंधु नदी समझौता लागू करने के लिये भारत और पाकिस्तान के आयुक्तों के बीच होने वाली नियमित बैठकों को अनिश्चितकाल के लिये रद्द कर दिया है।

कहा जा रहा है कि लाल्हो प्रोजेक्ट की घोषणा कर चीन ने सिंधु जल समझौते को लेकर भारत को एक तरह से चेतावनी देने की कोशिश की है लेकिन सच यही है कि भारत को इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।


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