चकराता में सूखे की कगार पर पहुंचे 15 जलस्त्रोतों पर किया अध्ययन

15 Jul 2019
0 mins read
बरसाती हैं हिमालयी स्त्रोत, बूंदे सहेजने की जरूरत।
बरसाती हैं हिमालयी स्त्रोत, बूंदे सहेजने की जरूरत।

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने हिमालयी जलस़्त्रोतों के स्त्रोत पता करने की दिशा में बड़ी सफलता हासिल की है। उत्तराखंड के चकराता जोन के सूखे की कगार पर पहुंच चुके सात गांवो के 15 जलस्त्रोतों पर किये गए अध्ययन मे पता चला है कि इनमें पानी का एकमात्र स्त्रोत बारिश है। इस नतीजे तक पहंचने के लिए वैज्ञानिकों ने जलस्त्रोतों के पानी के आइसोटोप को अध्ययन किया। इसे वैज्ञानिक हिमालय के समूचे जलस्त्रोतों के संरक्षण की नजर से भी देख रहे हैं।
 
‘रिवाइवल ऑफ नेचुरल स्प्रिंग्स इन चकराता रीजन’ नामक अध्ययन का हिस्सा बने वैज्ञानिक डा. समीर के. तिवारी के अनुसार जल स्त्रोतों के पानी के हाइड्रोजन व आॅक्सीजन के आइसोटोप (समस्थानिक) वही पाए गये, जो इस क्षेत्र के बारिश के पानी के हैं। खास बात यह है कि इन सभी आठ गांवों के स्त्रोतों के पानी के यही नतीजे रहे। इस परिणाम के बाद अब अलग विधि से यह पता किया जायेगा कि स्त्रोतों से निकलने वाला पानी कितना पुराना है। ताकि उतने ही समय तक बारिश के पानी को सहेजकर जलस्त्रोतों को पूरी तरह रिचार्ज किया जा सके। डा. तिवारी के मुताबिक, ये आइसोटोप अध्ययन को भले ही चकराता पर केंद्रित है, मगर पूरे हिमालयी क्षेत्र में यही स्थिति बनने की पूरी उम्मीद है, बारिश के पानी के संरक्षण से स्त्रोतों को पुनर्जीवित कियाजा सकता है।

जहां बांच के जंगल, वहां स्त्रोत बेहतर

चकराता के जौंदा, कनगुआ, काहा, कावी, जोगिदा, उपरौली, चिमनाउ खड गांवों में अध्ययन किया गया था। वाडिया संस्थान के वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि जिन गांवों के स्त्रोतों के आसपास बांज के जंगल हैं, वहां स्त्रोतों की दशा कुछ बेहतर है। क्योंकि बांज के जंगलों में बारिश का पानी एकदम बहने की जगह धीरे-धीरे जमीन में समाते हुए बहता है। उपरौली में खासकर यह बात पता चली। इसके अलावा वैज्ञानिकों ने पाया कि जंगलों के कटान व अनियोजित निर्माण (सड़क आदि) के कारण स्त्रोत सूख रहे हैं।

ट्रिसियम आसइसोटोप से पता चलेगी अवधि

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डा. समीर के. तिवारी बताते हैं कि जहलस्त्रोतों को रिचार्ज करने के लिए यत पता लगाना जरूरी होता है कि इनमें निकलने वाला बारिश का पानी कितना पुराना है। क्यांेकि सामान्य विधि यह कहती है कि हमें उतने ही समय तक लगातार बारिश के पानी को स्त्रोतों के ऊपर या इर्द-गिर्द एकत्रित करना होगा। वैसे सामान्य तौर पर बारिश के पानी वाले स्त्रोतों में यह पानी ढाई-तीन साल की अवधि का होता है। फिर भी ट्रिसियम आइसोटोप पर काम शुरू कर दिया गया है। वैज्ञानिक डा. तिवारी बताते हैं कि हाइड्रोजन व ऑक्सीजन के स्थायी आइसोटोप की मात्रा हर ऊंचाई पर अलग अलग होती है। समुद्र में यह शून्य होती है, और ऊंचाई पर माइनस होती चली जाती है। जिस ऊंचाई पर जो स्त्रोत होते हैं, उनके और बारिश के पानी के आइसोटोप का स्तर समान पाये जाने पर स्थिति पता चल जाती है।

बारसाती स्त्रोतों को पुनर्जीवित करना जरूरी

  • वाडिया संस्थान से प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तराखंड के गांवों में 600 स्त्रोत हैं और 65 फीसद आबादी पेयजल के लिए इनपर निभर हैं।
  • हिमालयी क्षेत्र की बात करें तो 89 हजार 172 गांवों में 18 हजार 681 स्त्रोत हैं और यहां की 24 फीसद आबादी इन पर निर्भर करती है। 

 

TAGS

spring tutorial in hindi, spring tutorial, spring in hindi, spring water in hinid, spring season months, springs water in chakrata, spring roll, spring water meaning, spring meaning, revival of spring water in chakrata, spring water, water crisis in uttarakhand, water crisis in chakrata, water crisis in dehradun.

 

Posted by
Attachment
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading