नगरीय क्षेत्रों में ‘केच दी रेन’ अभियान 2021

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कैच द रेन अभियान, फोटो साभार - जलशक्ति मंत्रालय   Source:   

भारत सरकार के आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs – MoHUA) ने प्रधानमंत्री जी के आव्हान पर सभी नगरीय निकायों में जल शक्ति अभियान (नगरीय) प्रारंभ करने का निर्णय लिया है। यह अभियान अमृत महोत्सव का हिस्सा होगा तथा खाली होते एक्वीफरों को रीचार्ज करना और सतही जल संरचनाओं को जिन्दा करना अर्थात बारहमासी बनाना। यह अभियान एक अप्रैल 2021 से 30 नवम्बर 2021 के बीच दक्षिण-पश्चिम मानसूनी राज्यों में संचालित होगा वहीं उत्तर-पूर्वी मानसूनी राज्यों में उसके क्रियान्वयन की अवधि एक अक्टूबर 2021 से तीस नवम्बर 2021 होगी। इस बारे में आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के सचिव द्वारा 22 मार्च, 2021 को सभी राज्यों तथा केन्द्र शासित इकाईयों के सम्बन्धित सचिवों/प्रमुख सचिवों को निर्देशित किया जा चुका है। उनसे अपेक्षा की गई है कि वे इस हेतु 22 मार्च से 30 अप्रैल के बीच सेल्फ ऑफ प्रोजेक्ट (गतिविधियों का निर्धारण) बना लेंगे। उल्लेखनीय है कि इसके पहले, विभाग ने सन 2019 में राज्यों तथा केन्द्र शासित इकाइयों के सहयोग से छः माह तक जल शक्ति अभियान (नगरीय)  संचालित किया था।

भारत सरकार के आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय की सिफारिश के अनुसार गतिविधियों की रणनीति को निम्न सात क्षेत्रों से सम्बन्धित गतिविधियों पर केन्द्रित किया जाए-

  1. बरसात के पानी को जमा करने वाली पुरानी जल संरचनाओं को उपयोगी बनाने हेतु उनकी मरम्मत ( Renovation of old Rain Water Harvesting Structures ) तथा बरसात के पानी को जमा करने वाली नई संरचनाओं का निर्माण।
  2. वृक्षारोपण।
  3. जलमार्गों की सफाई। एक्वीफरों के रीचार्ज में कुओं का उपयोग। 
  4. अनुपयोगी जल संरचनाओं को चिन्हित कर उन्हें पुनः उपयोगी बनाना। 
  5. उपचारित पानी का पुनःउपयोग। 
  6. पारगम्य हरित क्षेत्रों का निर्माण 
  7. राजधानियों और बड़े नगरों में जल शक्ति पार्क (Rain Water Harvesting Parks) निर्माण।   

आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के अनुसार मकानों की छतों, सड़कों, खुली जमीन इत्यादि पर बरसा ऐसा पानी जिसका कृत्रिम तरीके से संग्रह और संचय किया गया है और जिसका सीधा उपयोग या भूजल संसाधनों की मात्रा को बढ़ाने तथा सतही रन-आफ की मात्रा को कम करने में किया जाता है, रेन वाटर हारवेस्टिंग कहलाता है। मंत्रालय ने अपनी मार्गदर्शिका में रेन वाटर हारवेस्टिंग के विभिन्न लाभों को रेखांकित किया है। मंत्रालय ने अपेक्षा की है कि नगरीय निकाय सभी सरकारी भवनों, शैक्षणिक तथा व्यावसायिक संस्थाना, अस्पतालों इत्यादि में रेन वाटर स्ट्रक्टर्स के निर्माण, सुधार इत्यादि तथा निर्मााणाधीन भवनों में उनका बनना सुनिश्चित करेंगे इत्यादि इत्यादि। 

केन्द्र द्वारा नगरीय निकायों को जारी मार्गदर्शिका में कहा गया है कि अभियान के अन्तर्गत, नगरीय निकाय द्वारा ग्राउन्ड वाटर प्रबन्धन सेल स्थापित किया जावेगा। इस सेल की जिम्मेदारी रेन वाटर हारवेस्टिंग से सम्बन्धित कामों की मानीटरिंग, भूजल दोहन और  पुनःभरण (मांग और पूर्ति) की स्थिति से समाज को अवगत कराना तथा उसे प्रमुख स्थानों पर प्रदर्शित करने की होगी। जन जागरूकता को भी बढ़ावा देना होगा। इन कामों के लिए राज्य सरकार अपनी धनराशि, पन्द्रहवें फाईनेन्स कमीशन या राज्य के फायनेन्स कमीशन या कारपोरेट सोशल रिसपांसिबिलिटी के अन्तर्गत उपलब्ध धनराशि का उपयोग कर सकेंगे। राज्य सरकार से अनुमति लेकर, निकाय, उनके पास अमृत, पीएमएवाय-अरबन, एस.बी.एम - अरबन और स्मार्ट सिटी मिशन के प्रशासनिक मद में उपलब्ध धन का उपयोग कर सकेंगे। अभियान में मानीटरिंग, डाकुमेंटेशन इत्यादि के लिए भी पुख्ता व्यवस्था बनाई गई है। 

मंत्रालय ने नगरीय निकायों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग कार्य हेतु सात सेक्टर तय किए है। उनके अनुसार सभी सरकारी भवनों, शैक्षणिक तथा व्यावसायिक संस्थानों, अस्पतालों इत्यादि में रेनवाटर स्ट्रक्टर्स के निर्माण, उनके सुधार इत्यादि तथा निर्माणाधीन भवनों के साथ-साथ पार्कों में जलसंचय तथा रिचार्ज के लिए प्रयास करने को निर्देशित किया है तथा विस्त्रत मार्गदर्शिका जारी की है। इस मार्गदर्शिका में उन सभी संरचनाओं को उल्लेख है जो पार्क के भूगोल और स्थानीय कुदरती परिस्थितियों को ध्यान में रख बनाई जा सकती है यथा - चेकडेम, परकोलेसन पिट/ट्रेंचेज, अनप्रयुक्त कुओं/नलकूपों से रिचार्ज, डिटेंशन बेसिन, पारगम्य पेवर्स, इनफिल्ट्रेशन स्वेल्स, सेंड बेड फिल्टर इत्यादि। उम्मीद है करोना के कहर के बावजूद प्रयास होगा। अब कुछ बात चुनौतियों तथा अवसरों की।

लगातार बढ़ती नगरीय आबादी को पूरे साल निर्बाध गति से साफ पानी उपलब्ध कराना चुनौति पूर्ण कार्य है। उल्लेखनीय है कि प्रति व्यक्ति 150 लीटर के मान से एक लाख की आबादी के लिए एक साल की कुल मांग ( 150 x 365 x 1,00,000 = 5,475,000,000 लीटर या 5475 मिलियन लीटर) होती है। नगरों या बसाहटों में केपटाउन जैसी नौबत नहीं आवे, इसके लिए वांछित मात्रा से लगभग 25 प्रतिशत अधिक मात्रा में साफ पानी देने वाले विश्वसनीय स्रोत/स्रोतों की आवश्यकता होती है। यह नदी, जलाशय या भूजल भंडार या उनका मिलाजुला स्वरूप हो सकता है। पहली चुनौती उन्हें सक्षम बनाए रखने की है। 

दूसरी चुनौती नगरीय इलाके में खुली जगह की कमी की है। इस कमी को दूर करना संभव नहीं। दूसरी समस्या, अनुपचारित पानी को जल स्रोतों में छोड़ने की है। उसके जल स्त्रोत प्रदूषित होते हैं। प्छिले कुछ अरसे से नगरीय इलाकों में पानी की कमी को दूर करने के लिए कुदरती पुनर्भरण की अनदेखी कर छत के पानी को जमीन में उतारने की प्रवत्ति बढ़ रही है। मार्गदर्शिका में पार्क में जल संचय एवं रीचार्ज के लिए अनेक उपाय सुझाए गए हैं। इस अनुक्रम में यह आवश्यक है कि छत के पानी को जमीन में उतारने या पार्क में भूजल रीचार्ज का काम केवल उन स्थानों में किया जाए जहाँ सामान्य बरसात के बाद भी एक्वीफर खाली रहता है। ऐसे इलाकों में यदि पर्याप्त खुली जगह उपलब्ध हो तो गहरे परकोलेशन-कम-रीचार्ज तालाब बनाए जा सकते हैं। ऐसे इलाकों में कृत्रिम तरीकों से जमीन में उतारे पानी की मात्रा का आकलन तथा गुणवत्ता की निगरानी होना चाहिए। इससे अवैज्ञानिक प्रयासों और निर्रथक व्यय पर लगाम लगेगी। 

तीसरी चुनौती कारगर रिचार्ज हेतु सक्षम अमले की कमी की है। इस कमी के कारण जो भी काम होगा वह तकनीकी दृष्टि से आधा-अधूरा होगा। कई बार गलत भी हो सकता है। कई बार स्थानीय परिस्थितियों की अनदेखी कर नुस्खा पद्धति से भी कार्य हो सकता है। कामों में नवाचार का अभाव होगा। सफलता संदिग्ध या बौनी होगी। उल्लेखनीय है कि इन्हीं कारणों से इस सदी के प्रारंभ में चेन्नई, तमिलनाडु में सम्पन्न रूफ-वाटर हार्वेस्टिंग का बहुचर्चित कार्य, कुछ समय के बाद बौना सिद्ध हुआ था। चौथी बात अभियान की कार्य अवधि की है। यह चुनौती वाला काम है अतः न्यूनतम अवधि 10 साल होना चाहिए। 

नगरीय इलाकों में पानी की कमी का अनुभव बरसात के बाद होता है। गर्मी के मौसम में वह चरम पर होता है। मार्गदर्शिका में ऐसी जल संरचनाओं के निर्माण के कामों को जोड़ा जाना चाहिए जो गर्मी में होने वाली पानी की कमी की पूर्ति में सहायक हो। टिकाऊ तथा प्रदूषण मुक्त हों। 

जलसंचय संरचनाओं से काफी बड़ी मात्रा में वाष्पीकरण होता है। अतः उस हानि का आकलन कर प्लानिंग करना चाहिए। दूसरे, भूजल भंडारों से वाष्पीकरण नहीं होता पर उनका पानी, हमेशा ऊपर से नीचे की ओर प्रवाहित होता रहता है। अर्थात यदि हम स्थान विशेष पर भूजल की सुनिश्चित सप्लाई चाहते हैं तो उसके ऊपर की रीचार्ज जोन को टिकाऊ बनाना होगा। अर्थात छोटे तथा मंझोले नगरों की जल आपूर्ति को बेहतर बनाने के लिए बनाने के लिए उनके अपस्ट्रीम में अपेक्षित क्षमता के गहरे परकोलेशन तालाबों का निर्माण करना होगा। महानगरों के लिए अनेक उपाय लागू करना होगा।    

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