छत्तीसगढ़ में धान होगा कम

19 Sep 2015
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खेत-खलिहानों में पड़ रही सूखे की स्थिति ने कृषि विभाग से संचालित सिंचाई योजनाओं की पोल खुलने लगी है। सिंचाई योजनाओं को आम कृषकों तक पहुँचाने में नाकाम रहे कृषि विभाग की अब फसल नुकसान को कम करने के लिये अल्पकालिक फसलों की बुआई के लिये पहल की जा रही है। शाकंभरी नलकूप या मनरेगा कूप निर्माण योजना के अलावा, जल संग्रहण के लिये लघु जलाशय योजना व सब्सिडी में डीजल पम्प वितरण जैसी योजनाओं के बाद भी मैदानी स्तर अब पानी की त्राहि-त्राहि मची हुई है।

धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में इस बार 30 फीसदी पैदावार कम होने की आशंका है। कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यदि राज्य में अगले 15 दिनों में अच्छी बारिश नहीं हुई तो धान उत्पादन में 30 फीसदी से अधिक की गिरावट आ सकती है।

वहीं, विश्लेषकों का मानना है कि भले ही राज्य में एक पखवाड़े के अन्दर अच्छी बारिश हो जाये, फिर भी नुकसान की भरपाई नहीं हो सकेगी। छत्तीसगढ़ में 93 तहसीलों में हालात खराब हैं। छत्तीसगढ़ के वर्षा आधारित कृषि पर बुरा प्रभाव पड़ने जा रहा है।

एक तरफ आम इंसान प्याज तथा दाल की बढ़ी हुई कीमत को अदा करने में आधा हुआ जा रहा है ऐसे में यदि धान की पैदावार भी कम हो तो इसका नकारात्मक प्रभाव भी जल्द सामने आने लगेगा। देश में शीर्ष 10 चावल उत्पादक राज्यों में शुमार छत्तीसगढ़ में खरीफ सत्र 2015 में राज्य शासन कृषि विभाग द्वारा 36 लाख 45 हजार हेक्टेयर में धान की खेती करने का लक्ष्य रखा गया है।

कृषि विभाग के अनुसार प्रदेश के किसानों के हित में बड़े, मंझोले और छोटे जलाशयों से लगभग तीन लाख 64 हजार हेक्टेयर में खरीफ फसलों की सिंचाई के लिये पानी दिया जा रहा है। ऐसे जलाशयों जहाँ-जहाँ पेयजल और निस्तारी की आवश्यकता से अधिक पानी भरा है, वहाँ सिंचाई के लिये पानी उपलब्ध कराया जा रहा है।

इससे मोटे तौर पर माना जा सकता है कि महज 10 फीसदी इलाकों में ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करवाई जा सकती है। जाहिर है कि कम वर्षा से छत्तीसगढ़ के अन्य उत्पादों को अपने लिये नया बाजार तलाशना होगा।

आधे से कम बाँधों से नहीं होगी सिंचाई


मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की अध्यक्षता में राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में फैसला किया गया है कि राज्य में जो बाँध 50 प्रतिशत से अधिक भरे हैं, उन्हीं से पानी दिया जाएगा। प्रदेश में लगातार बारिश की कमी और सूखे की आशंका के बीच सरकार ने अभी राज्य को सूखाग्रस्त घोषित नहीं किया है। सरकार का कहना है कि सूखे के सम्बन्ध में जिलों से विस्तृत रिपोर्ट आने के बाद ही सूखाग्रस्त घोषित किये जाने के बारे में कार्रवाई की जाएगी।

सूखे ने खोली पोल


कोरबा जिले में खेत-खलिहानों में पड़ रही सूखे की स्थिति ने कृषि विभाग से संचालित सिंचाई योजनाओं की पोल खुलने लगी है। सिंचाई योजनाओं को आम कृषकों तक पहुँचाने में नाकाम रहे कृषि विभाग की अब फसल नुकसान को कम करने के लिये अल्पकालिक फसलों की बुआई के लिये पहल की जा रही है।

शाकंभरी नलकूप या मनरेगा कूप निर्माण योजना के अलावा, जल संग्रहण के लिये लघु जलाशय योजना व सब्सिडी में डीजल पम्प वितरण जैसी योजनाओं के बाद भी मैदानी स्तर अब पानी की त्राहि-त्राहि मची हुई है। सूखे की स्थिति ने पखवाड़े भर पहले से ही अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। खार मैदानी खेतों में फसलों के झुलसने के बाद अब बहरा खेतों में भी पानी की कमी दिखाई देने लगी है।

किसानों ने अब बेहतर फसल उत्पादन की आस छोड़ दी है। किसानों का कहना है कि अब यदि बारिश हुई तो भी सूखे खेतों की फसल का सम्भलना मुश्किल है।

'भागीरथी' भी नाकाम


रायगढ़ में गरीबों को पानी मुहैया कराने नगर निगम में भागीरथी नल जल योजना की शुरुआत हुई। लेकिन यह योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती जा रही है। बावजूद निगम दावा कर रहा है कि उसने अब तक 3 हजार से ज्यादा नल जल कनेक्शन दिये हैं। लेकिन ये कनेक्शन कहाँ-कहाँ दिये गए, यह निगम अधिकारियों को नहीं पता है।

कहाँ से लाएँ पानी


राजनांदगाँव जिले में सावन में नहीं भर पाने वाली नदियाँ और बाँध भादो में भी खाली ही हैं। यह जाड़े के ही दिनों में जलसंकट की ओर इशारा कर रहा है क्योंकि शिवनाथ नदी के मोहारा एनीकट में मात्र 120 दिनों का यानी दिसम्बर तक के लिये ही पानी बचा है।

हर साल मटियामोती जलाशय से पानी लेकर शहर में पेयजल आपूर्ति की जाती है, लेकिन इस बार न तो बाँध भर पाया है और न नगर निगम ने वहाँ पानी रिजर्व कराया है। ऐसे में गर्मी के दिनों में शहर के लोगों को नाप-तौलकर ही पीने के लिये पानी मिल पाएगा। हालांकि अम्बागढ़ चौकी के पास वाले मोंगरा बैराज से पानी मँगाया जा सकता है, लेकिन निगम प्रशासन ने अभी वहाँ के लिये भी कोई कागजी कार्रवाई नहीं की है।

धमतरी जिले में बीते साल की तुलना में 335.6 मिमी औसत वर्षा कम हुई है। जिसके कारण खरीफ फसल की स्थिति खराब है। खेतों की सिंचाई के लिये किसानों को पानी नहीं मिल पा रहा है। गंगरेल बाँध, मुरुमसिल्ली, दुधावा बाँध की स्थिति खराब होने के कारण इन बाँधों से सिंचाई पानी नहीं दिया जा रहा है।

किसानों को सोंढूर बाँध और कम सिंचाई क्षमता वाले छोटे बाँधों से पानी देकर फसल बचाने की कोशिश की जा रही हैं। छोटे जलाशयों का पानी भी खत्म होने वाला है। छोटे जलाशयों से बमुश्किल 200 हेक्टेयर रकबे की सिंचाई हो पाई है।

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