समुद्र और जलाशयों तक पहुंचा कोविड-19 का कचरा

28 May 2020
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समुद्र और जलाशयों तक पहुंचा कोविड-19 का कचरा
समुद्र और जलाशयों तक पहुंचा कोविड-19 का कचरा

कोरोना वायरस के कारण जब से विभिन्न देशों में लाॅकडाउन हुआ है, तभी से पर्यावरण खिल उठा है। समुद्र, नदी सहित विभिन्न जलाशयों का पानी साफ हुआ है। प्रकृति की इन धरोहरों में साॅलिड और लिक्विड वेस्ट कम फेंके जाने के कारण जीव-जंतुओं ने राहत की सांस ली है। जलीय जीवन में नई जान आई है, लेकिन इन सबसे हमने सबक नहीं लिया और पृथ्वी को प्रदूषित करना फिर शुरू कर दिया है। हमारे द्वारा उपयोग कोविड-19 का कचरा न केवल सार्वजनिक स्थानों पर फेंका हुआ दिख रहा है, बल्कि नदियों और समुद्र तक पहुंच गया है, जो कि भविष्य में जल प्रदूषण के गंभीर समस्या के संकेत दे रहा है। इससे जलीय जीवन और मानव जीवन, दोनों ही प्रभावित होंगे।

दुनियाभर में जल प्रदूषण और जल संकट की विकरालता जगजाहिर है। दुनिया के कई शहरों में जल संकट इतना बढ़ गया है कि सीवेज के पानी को ट्रीट करके पीने योग्य बनाया जाता है। इसके बावजूद भी दुनिया के दो बिलियन लोग गंदा पानी पीते हैं। भारत में भी स्थिति गंभीर है। यहां 60 करोड़ लोग जल संकट का सामना कर रहे हैं। भारत के गांव से लेकर शहर तक शायद ही कोई ऐसा स्थान होगा, जो जल संकट का सामना न कर रहा हो। आलम ये है कि आजादी के 72 साल बाद भी देश के हर घर में पानी के नल नहीं लगा पाया है। अब जब ‘हर घर नल से जल’ देने की योजना बनी है, तब पानी समाप्त होने की कगार पर पहुंच चुका है। नदिया, झील और विभिन्न प्राकृतिक स्रोत या तो सूख चुके हैं, या सूखने की कगार पर हैं। समुद्र को हमने डंपिंग जोन बना दिया है। बड़े शहरों या महानगरों में भूजल वेंटिलेटर पर अंतिम सांस ले रहा है और खत्म होने की कगार पर है। दुनिया के कई देशों में जल की स्थिति ऐसी ही है। कहीं आर्सेनिक और फ्लोराइड से जल प्रदूषित है, तो कहीं सीवेज और कैमिकल वेस्ट से। स्वच्छता के मामले में भी भारत को हाल कुछ ऐसा ही है।

स्वच्छता आज तक भारतीयों के जीवन या दिनचर्या का हिस्सा नहीं बन सकी है। जिन देशों में स्वच्छता अपने चरम पर है, वहां भी जलस्रोत प्रदूषित हैं और जल संकट गहरा रहा है। ऐसे में कोरोना ने सभी को बड़ी राहत दी थी। नदियों में साफ पानी और समुद्र किनारे कछुओं को लौटना देख सभी काफी खुश थे और ‘थैंक्स टू कोरोना’ कह रहे थे, लेकिन इंसान इस बीच खुद को कोरोना के प्रकोप से बचाने में भी लगा हुआ था। कोरोना से बचने के लिए मास्क अनिवार्य किया गया था। डाॅक्टरों के लिए पीपीई किट सहित दस्ताने आदि बेहद जरूरी हैं, लेकिन विभिन्न विभागों के अधिकारी सहित आम नागरिक भी एहतियात के तौर पर इन वस्तुओं का उपयोग कर रहे हैं। ये भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी होता देखा गया है। वैसे तो दस्ताने लेटेक्स रबड़ से बनते हैं, जिसे आमतौर पर एक नेचुरल प्रोडक्ट माना जाता है, लेकिन ये हमेशा इको-प्रेंडली नहीं रहता है। डाॅक्टरों द्वारा उपयोग किए जाने वाले इन दस्तानों का इको-प्रेंडली रहना इस बात पर निर्भर करता है कि ‘इनके उत्पादन में कैमिकल का उपयोग कितना किया गया है। इसलिए इनमे से कुछ डिकंपोज करने के दौरान पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं।’’ ऐसा ही कुछ पीपीई किट के साथ होता है।

पीपीई किट को न तो पुनःउपयोग किया जा सकता है और न ही पुनर्चक्रण। एक बार उपयोग के बाद पीपीई किट को जलाया जाता है। यदि प्रक्रिया सर्जिकल मास्क के साथ भी अपनाई जाती है। एक प्रकार से वर्तमान में कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए जो भी किट उपयोग में लाई जा रही है, वो प्लास्टिक से बनी है। इसलिए इसे खुले में फेंकने का खतरा भी बड़ा है। अमर उजाला से बातचीत में आईएमए के प्रदेश अध्यक्ष डाॅ. अशोक राय ने कहा था कि ‘‘स्वास्थ्य विभाग की गाइडलाइन के अनुसार प्लास्टिक पर सबसे ज्यादा कोरोना वायरस का प्रभाव रहता है। इस पर वायरस सात दिन तक जिंदा रहता है। इसके अलावा कपड़े, मेटल पर तीन से चार दिन असर रहता है। दरवाजों पर भी तीन से चार दिन तक वायरस प्रभावी रहता है।’’ इन विकट परिस्थितियों में भी लोग मास्क और दस्ताने आदि उपयोग के बाद, केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के विभिन्न स्थानों में जहां तहां फेंक रहे हैं। कई जगह तो बीच पर भी इन्हें फेंका गया है।

सार्वजनिक स्थानों या विभिन्न जल स्रोतों के पास फेंका गया ये कूड़ा बारिश के बाद जलाशयों से होता हुआ समुद्र तक जा रहा है। समुद्र के किनारे कोविड-19 के कूड़े के साथ इंटरनेट पर वायरल हो रही हैं। इससे समुद्र जीवन को खतरा पहुंचने की आशंका जताई जा रही है। ईको-वाॅच में प्रकाशित खबर के मुताबिक ‘कई पर्यावरणविदों का मानना है कि वन्यजीवों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।’’ नकरात्मक प्रभाव कोरोना जैसी विभिन्न बीमारियों की दृष्टि से भी पड़ सकता है, क्योंकि अमेरिका में बाघ भी कोरोना संक्रमित पाया गया था, जिसके बाद दुनिया के वन विभागों को अलर्ट किया गया है। ऐसे में हम सुरक्षा की दृष्टि से इन वस्तुओं का उपयोग करें, लेकिन इन्हें सार्वजनिक स्थानों पर न फेंके। कोशिश करें कि कपड़े से बने मास्क ही पहने। इसके अलावा सरकार द्वारा सिंगल यूज प्लास्टिक से हटाया गया प्रतिबंध भी भविष्य में बड़ी समस्या बन सकता है। इन परिस्थितियों के आधार पर हम कह सकते हैं कि ‘‘हमें भविष्य में इस प्रकार की महामारी के लिए तैयार रहना चाहिए, लेकिन ये तैयारी पर्यावरणीय आधार पर होनी चाहिए।’’ हमें पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली पर जोर देने की जरूरत है।


हिमांशु भट्ट (8057170025)

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