कोविड-19 के दौर में पानी की उपलब्धता पर गहराता संकट

कोरोना और जलसंकट
कोरोना और जलसंकट

कोविड-19 के जिस दौर में ध्वस्त होती अर्थ-व्यवस्था, श्रमिकों का पलायन और कोरोना के इलाज के लिए उपयुक्त दवा के अभाव में मरते लोगों का मुद्दा पूरी दुनिया के सामने मुख्य धारा में हो; उस दौर में राजस्थान के एक छोटे से गांव के पेयजल संकट की बात अनेक लोगों को अटपटी लग सकती है। पर जब दिनांक 25 मई 2020 को उपेन्द्र शंकरजी ने जयपुर जिले की बस्सी तहसील के दनऊँ खुर्द ग्राम के पप्पू लाल शर्मा का पत्र वाट्सअप पर मुझे भेजा तो लगा कि यह समस्या, किसी भी कसौटी पर कम महत्वपूर्ण नहीं है। कोरोना तो साल दो साल की आपदा है पर गर्मी के मौसम का जल संकट तो सुरसा के मुँह की तरह लगातार बढ़ने वाला संकट है। इस पत्र में पप्पूलालजी ने अवगत कराया है कि उनके गांव में अलग-अलग मकानों में एक ही परिवार के 120 लोग रहते हैं। यह गांव जयपुर जिले के मुख्यालय से 48 किलोमीटर दूर स्थित है। गांव में पशुओं की संख्या 150 है। इस गांव की पानी की मांग की पूर्ति बीसलपुर से आने वाले पानी से होती है। गांव को पानी की सप्लाई एक दिन के अन्तराल से होती है। पानी का वितरण केवल एक प्वाईट से होता है। सप्लाई होने वाले पानी की मात्रा के अपर्याप्त होने के कारण पानी की प्राप्ति के लिए होड़ लगती है। उसे पाने के लिए गांव के लोग एक दिन पहले से ही सप्लाई प्वाइंट पर बर्तनों की लाईन लगा देते हैं। गांव में पानी की यह किल्लत पिछले एक माह से चल रही है। पानी की कमी के कारण लोगों के बीच अक्सर झगड़ा होता है। गांव में कुआं भी है। पानी निकालने के लिए उसमें बिजली की मोटर भी लगी है पर इन दिनों उस कुएं ने भी जबाब दे दिया है। पानी खींचने वाली मोटर बामुश्किल तीन मिनिट चलती है। उल्लेखनीय है कि देश में ऐसे अनेक ग्राम, कस्बे और नगर हैं, जहाँ गर्मी के दिनों में एक दिन, दो दिन या तीन दिन छोड़कर पानी की सप्लाई की जाती है। देश में कुछ ऐसी बसाहटें भी हैं जहाँ सप्ताह में एक बार पानी मिलता है। यह कहानी हर साल थोड़ी-बहुत कमी-वेशी के साथ देश की अनेक बसाहटों में हर साल दोहराई जाती है। पानी की कमी के कारण होने वाला कष्ट वही समझता है, जिसने उसे भोगा हो। सभी जानते हैं कि जीवन के लिए हवा के बाद पानी दूसरी आवश्यकता है। औद्योगिक उन्नति या उत्पादन पानी का स्थान नही ले सकते। लाक-डाउन ने आवश्यकता के ग्राफ को  काफी हद तक बदला है। 

पप्पू लाल शर्मा के वाट्सअप से मुझे एक पुरानी घटना की बरबस याद आई। घटना के अनुसार कुछ साल पहले एक मेरी बड़ी बहिन ने टेलीफोन पर मेरे घर पर जलप्रदाय की स्थिति की जानकारी ली और दूसरे दिन अचानक, बिना सूचना के, वे मेरे घर आ गईं। सामान्य चर्चा के उपरान्त, उन्होंने बताया कि उनकी बहू भी अपने दोनों बच्चों को लेकर अपने मायके चली गई है। कुछ समय बाद उन्होंने बताया कि उनके आने का कारण उनके गांव का जल कष्ट है। इन दिनों उनके गांव में सात दिन में बामुश्किल आधा घंटे के लिए ही पानी की सप्लाई हो रही है। नल ग्राउन्ड फ्लोर पर है और उनका आवास पहली मंजिल पर है। उनको पानी ढोकर पहली मंजिल पर ले जाना होता है। आधा घंटे में उनका परिवार बामुश्किल पांच छः बाल्टी पानी ही चढ़ा पाता है। इसलिए वे जल कष्ट खत्म होने तक की अवधि के लिए मेरे घर आ गई हैं। नौकरी के कारण उनका बेटा वहीं है। इस दौरान वह खाना होटल में खा लेगा और जैसे भी बनेगा, अपना काम निकाल लेगा। लगभग एक माह के बाद बरसात चालू हो जावेगी। स्थिति सामान्य हो जावेगी। हम लोग अपने घर वापिस चले जावेंगे।  

मौजूदा समय में लाक-डाउन के कारण पानी की कमी से प्रभावित लोग कष्ट भोगने के लिए अभिशप्त हैं। उनके पास पलायन का विकल्प भी नहीं है। उपेन्द्र शंकर बताते हैं कि लोगों ने समस्या का इलाज खोज लिया है। इस इलाज के अनुसार कुछ दिनों के लिए कुछ कम आवश्यक काम, जैसे रोज स्नान करना, ठीक से हाथ-पैर धोना इत्यादि छोड़ा जा सकता है। उनका कहना था कि अनेक बसाहटों में लोग इन तरीकों को अपनाने के लिए मजबूर है। मौजूदा समय में यह संकट उन बसाहटों में अधिक है जहाँ की पानी की उपलब्धता बेहद कम है या जलसंचय के लिए माकूल प्रयास नहीं हुए हैं या बसाहट अतिदोहित या क्रिटिकल जोन में स्थित है।

कोविद 19 और स्वच्छ भारत अभियान के कारण हर परिवार में पानी की खपत लगभग 20 प्रतिशत बढ़ गई है। अनुमान है कि पूरे देश में प्रति वर्ष यह मात्रा लगभग 19 लाख करोड़ लीटर के आसपास हो सकती है। हमे जल्दी ही इस अतिरिक्त खपत के लिए इन्तजाम करना होगा। वह इन्तजाम आबादी की कमी-वेशी और पलायन से भी प्रभावित और नियंत्रित होगा। इस संभावना को ध्यान में रखकर एक ओर नगरीय और ग्रामीण बसाहटों में जलसंचय, जल सम्बर्धन और जलसंरक्षण के लिए कुछ अधिक कारगर विकल्पों को अपनाने की आवश्यकता होगी तो दूसरी ओर परिवार स्तर पर कुछ अतिरिक्त प्रयास करने पड सकते हैं। 

सरकार के स्तर पर प्रयास

सबसे पहले भारत सरकार को प्रति व्यक्ति पानी की खपत के मानक बदलना होगा। खपत में कोविद 19 और स्वच्छ भारत अभियान की पानी की प्रति व्यक्ति अनिवार्य आवश्यकता को जोड़ना होगा। इस हेतु जल प्रदाय करने वाले निकायों को तदानुसार आवश्यक निर्देश जारी करना होगा और सम्बन्धित विभाग, संशोधित मानकों के आधार पर जल-प्रदाय करना प्रारंभ करेंगे। 

पुख्ता इंतज़ामों की कड़ी में मौजूदा जल स्रोतों के स्थायित्व और क्षमता को कारगर बनाए रखने के लिए निकायों को प्रयास करना होगा। नए स्रोत विकसित करना होगा। बसाहट के कैचमेंट में समानुपातिक जलसंचय और भूजल रीचार्ज करना होगा। यदि संभव हो तो निकटस्थ कैचमेंट से पानी डायवर्ट करना होगा। अन्य विकल्प, यदि उपलब्ध हैं तो उन्हें लागू करना होगा। बसाहटों के कैचमेंट नदी-नाले पर गली-प्लग, नाला बन्ड, गेबियन स्ट्रक्टचर, चेक-डेम, रीचार्ज के लिए खड़ी शाफ्ट, बन्धारा जैसी जल संरचनाओं में चूँकि बहुत कम पानी जमा होता है अतः उनका निर्माण फायदे का सौदा नहीं है।   

समाज के स्तर पर प्रयास

अनेक लोग रूफवाटर हारवेस्टिंग को कारगर उपाय मानते हैं लेकिन इस मामले में चेन्नई नगर का उदाहरण आंख खोलने वाला है। विदित हो कि इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ तक चेन्नई नगर के लगभग 95 प्रतिशत भवनों में रूफवाटर हारवेस्टिंग का काम किया जा चुका था। प्रारंभ में, उस काम ने चेन्नई के जल संकट को कम भी किया पर सन 2019 की गर्मी में चेन्नई नगर को भीषण जल संकट से गुजरना पड़ा था। यह उदाहरण इंगित करता है कि रूफवाटर हारवेस्टिंग टिकाऊ विकल्प नही है। इसी प्रकार, नलकूपों तथा सोक-पिट के माध्यम से किया रीचार्ज भी टिकाऊ विकल्प नही है। बसाहटों में वाटरषेड या कैचमेंट ट्रीटमेंट जैसे कार्यक्रमों के स्थान पर अधिक कारगर कार्यक्रमों को संचालित करने की आवश्यकता है। संक्षेप में, बसाहटों की चुनौतियाँ अलग किस्म की होती हैं। उन चुनौतियों से निपटने के लिए नए सिरे से सोचने की आवश्यकता है। 

पहला सुझाव ग्रामीण बसाहटों में आंगनबाडी, प्राइमरी हेल्थ सेंटर, स्कूल, गोशाला और पंचायत भवन इत्यादि की सरकारी जमीन पर चार माह की मांग के बराबर पानी का धरती की सतह के ऊपर बनाये टांकों में पानी का संचय किया जाना चाहिए। इनके पानी का स्रोत छत का पानी होगा। कैचमेंट नही। कैचमेंट से आने वाले पानी में बड़ी मात्रा में गाद, मिट्टी और गंदगी मिली होती है। इसलिए टांके को सतह के ऊपर बनना चाहिए। उसकी ड्राईंग और संचित जल की शुद्धता के लिए वही मानक और तौर-तरीके अपनाना चाहिए जो राजस्थान के परम्परागत टांको में अपनाए जाते हैं। 

नगरीय बसाहटों में खेल मैदान, मल्टी-स्टोरी बिल्डिंगों की खाली जमीन, सरकारी भवनों की खाली जमीन का उपयोग टांके बनाने में किया जाना चाहिए। टांकों में जमा पानी फिक्स डिपाजिट की तरह है। समय आ गया है जब  हमें टिकाऊ विकल्पों को अपनाने की दिशा में काम करना होगा। आने वाला कल मांग और पूर्ति के बीच सन्तुलन बनाकर काम करने का है। अनदेखी का नहीं। 

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