देखो! मैं आ रहा हूं!

12 Oct 2011
0 mins read

अर्चना बाली
अर्चना बाली ने प्रकृति अध्ययन के एक शिविर में भाग लेकर संरक्षण के पेशे में अपना पहला कदम रखा। उन्होंने अपनी इस गहरी रुचि का उच्च शिक्षा के साथ भी संबंध जोड़ा है। वो भोपाल के ग्रीनहार्टस नेचर क्लब की एक संस्थापक सदस्या हैं। यह क्लब स्थानीय स्कूलों और कालेजों में बड़ी सक्रियता से पर्यावरण गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है। यह क्लब वनविहार राष्ट्रीय उद्यान में भी सक्रिय है। यहां पर क्लब के सदस्य, आने वाले दर्शकों से बातचीत कर उन्हें उद्यान और उसके प्राणियों के संबंध् में जानकारी देते हैं। अर्चना एक अन्य श्रोत समूह की भी सदस्य हैं। यह समूह रीजनल म्यूजियम ऑफ नैचुरल हिस्ट्री में आने वाले बच्चों के लिये पर्यावरण संबंधी गतिविधियां और शैक्षणिक सामग्री विकसित करता है। वो म्यूजियम में आने वाले दर्शकों के व्यवहार और बर्ताव का अध्ययन भी करती हैं। वो भविष्य में अपने आपको इस प्रकार की अन्य गतिविधियों के साथ जोड़ना चाहती हैं।

मुझमें हमेशा कुछ अलग करने की इच्छा थी। जब मैं बहुत छोटी थी तब मैं एक वकील बनना चाहती थी। परंतु क्योंकि मेरे झूठ पर कभी कोई यकीन नहीं करता था इसलिये मैंने फिर डॉक्टर बनने की सोची! वो भी साधारण डॉक्टर नहीं। मैं कैंसर या अनुवांशिकी के क्षेत्र में कोई नया शोधकार्य करना चाहती थी (वैसे इनके बारे में मुझे कुछ अधिक पता नहीं था।) इन उम्मीदों के साथ एक और रोचक तथ्य जुड़ा था - मुझे जीवविज्ञान से सख्त नफरत थी।

जब मैं दसवीं कक्षा में थी तब मैं एक प्रकृति क्लब की सदस्य बनी। इसका नाम था 4एफ फोरम जिसका पूरा नाम था ‘फोरम फॉर फॉरेस्ट्री फरदरेंस’ यानि जंगलों को बढ़ावा देने वाला समूह। इसी क्लब के कारण मैं अपने पहले प्रकृति शिविर में जा पायी। सर्दियों के मौसम में, पांच दिनों का यह शिविर बड़वानी के जंगलों में लगा। यह दिन मेरे जीवन में सबसे अविस्मरणीय दिन साबित हुये। जंगल ने मेरा मन मोह लिया और मेरा हमेशा-हमेशा के लिये वहां रहने का मन करने लगा।

इस शिविर के बाद मेरा व्यवहार बदला। उसके बाद प्रकृति मेरे लिये सिर्फ मनोरंजन की चीज ही नहीं रह गयी। मुझे लगा कि उसके रखरखाव के लिये मुझे कुछ करना चाहिये। मैं जो भी कुछ करना चाहती थी उसे मैं अब खोज पायी थी। मैंने ‘पर्यावरण और वनों’ को अपना पेशा बनाने का निश्चय किया। इसका काफी श्रेय मेरी मां को भी जायेगा क्योंकि उन्होंने प्रकृति में मेरी रुचि को लगातार प्रोत्साहन दिया।

मजे की बात तो यह है कि मैंने अभी-अभी वाणिज्य और कम्पयूटर विषयों में स्नातक की डिग्री समाप्त की है और इस समय मैं सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट और इंफॉरमेशन टेक्नॉलिजी कोर्स के चौथे सत्रा की छात्रा हूं। परंतु अब मैं इंडियन इंस्ट्टियूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट (आईआईएफएम) भोपाल से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करना चाहती हूं। मैं आईआईएफएम के परीक्षा फल का इंतजार कर रही हूं।

बचपन में मुझे याद है कि जब कभी भी हमारे घर में, बाहर किसी शहर से मेहमान आते थे तो, अन्य दर्शनीय स्थलों के साथ-साथ हम उन्हें वनविहार दिखाने अवश्य ले जाते थे। एक बार मैं अपने चचेरे भाई-बहनों के साथ वनविहार गयी थी। इतवार का दिन था और वहां कई अन्य परिवार भी मौजूद थे। एक बड़े परिवार के बच्चे आपस में स्पर्ध में लगे थे जिसे ‘भालू को निशाना बनाओ’ ही कहना उचित होगा। वो पूरा दम लगाकर उस निरीह प्राणी पर पत्थरों की बौछार कर रहे थे। मैं एक बच्चे के पास गयी और मैंने उसे ऐसा करने से रोका। वो इस तरह से रोने और चीखने लगा जैसे मैंने उसे कत्ल करने की कोशिश की हो। उसके बाद उसकी मां मुझ पर आकर चीखने-चिल्लाने लगी। इस बेइज्जती को मैं सह न सकी और मैंने भी उनकी ओर पत्थर फेंकने शुरू कर दिये। अंत में हम लोगों के बीच में ‘महाभारत’ छिड़ गयी। मेरे भाई ने बीच-बचाव करके उन्हें बचाया। मुझे इस युद्ध में जीत की खुशी मिली। परंतु बाद में इसके लिये मेरी मां ने मेरी खूब पिटायी लगायी। यह एक ऐसी घटना है जिसे मैं अभी तक नहीं भूल पायी हूं।

वैसे तो मैं अपने परिवार के साथ वनविहार जाती ही रहती थी परंतु 1993 की गर्मियों के बाद से मैंने वहां पर नियमित रूप से जाना शुरू कर दिया। शुरू में मैं वहां सुबह के समय अपने तीन अन्य मित्रों के साथ जाती थी - नारायण जो अब आईआईटी मुंबई में है, अवि जो अब इंजिनियरिंग कर रहा है और कौस्तुभ जिसे पक्षी-निरीक्षण में गहरी रुचि है। उस समय हम चारों ही 4 फोरम के सदस्य थे।

पिछले एक साल से मैं वनविहार में, सप्ताह के अंत में दो दिनों के लिये, स्वयंसेवी के रूप में काम करती हूं। इस काम में ग्रीनहार्टस नेचर क्लब के अन्य सदस्य भी भाग लेते हैं।

जंगलों ने मुझे हमेशा से आकर्षित किया है। वनविहार केवल एक चिडि़यांघर नहीं है, यह एक राष्ट्रीय अभयारण्य के समान है। यह शहर के मध्य में स्थित है परंतु यहां पर आप असली जंगल में वन्य प्राणियों और पक्षियों का आनंद ले सकते हैं। मुझे वनविहार से न जाने क्यों गहरा लगाव हो गया है। इसे मैं समझा पाने में असमर्थ हूं। जैसे जब आप अपने से कुछ फीट की दूरी पर एक बाघ को बैठे हुये देखते हैं तब आप खुद ही इस सुंदर प्राणी के मोहजाल में फंस जाते हैं। अन्य जीवों के साथ भी यही है।

हम ग्रीनहार्टस नेचर क्लब की साप्ताहिक बैठक भी वनविहार में ही करते हैं। सदस्यों के नाते हम लोग वन्यजीवों से संबंधित ही कुछ काम करना चाहते थे। परंतु साथ में हम यह भी चाहते थे कि हमारा काम सार्थक हो और सही दिशा में हो। हमारे क्लब के सलाहकार सोमित देव बर्मन और जाई शर्मा ने ही ग्रीनहार्टस के सदस्यों को वनविहार में स्वयंसेवियों के रूप में काम करने का योजना सुझायी।

इसमें स्वयंसेवियों को, सामान्य दर्शकों और साधरण लोगों को, प्राकृतिक संसाधनों के बारे में इस तरह समझाना था जिससे कि वे उसके महत्व को समझ जायें। इसके अलावा स्वयंसेवियों को उद्यान के ‘करो’ और ‘निषेध्’ नियमों के क्रियान्वन की देखरेख भी करनी थी। वनविहार के निदेशक श्री अमिताभ अग्निहोत्री को यह योजना पसंद आयी। इस प्रकार बात आगे बढ़ी और ग्रीनहार्टस के सदस्य वनविहार में स्वयंसेवी कार्य करने लगे।

हमारा काम आगन्तुकों से, जो अक्सर अजनबी ही होते थे से बातचीत करना होता था। लोगों की प्रतिक्रियायें अक्सर काफी रोचक और कभी-कभी मजेदार भी होती थी।

एक बार एक आदमी बाड़ पर चढ़ कर शेर को बुलाने लगा। वो शेर को इस तरह बुला रहा था जैसे वो उस आदमी का कोई पुराना मित्र हो। अचानक उसी समय शेर वहां आ गया। मैंने उस आदमी के पास जाकर उससे तुरंत चुप रहने और नीचे उतरने को कहा। उस आदमी ने उत्तर दिया, “मैडम, मैं उस शेर को पिछले दस मिनटों से बुला रहा हूं। और मेरे बुलाने के कारण ही वो मुझ से मिलने के लिये आया है। और अब आप चाहती हैं कि मैं उससे बात भी न करूं?”

मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया। परंतु उसका उत्तर सुनने के बाद मैं अपनी हंसी को भी नहीं रोक पायी। इन मजेदार और रोचक अनुभवों के साथ-साथ कुछ निराशाजनक अनुभव भी हुये। एक रविवार वाले दिन लड़के और लड़कियों का एक ग्रुप उद्यान में आया। उनको देखकर साफ लगा कि वो यहां प्रकृति का आनंद लेने के लिये नहीं आये थे। वो लगातार चीखते-चिल्लाते रहे, कान फोड़ने वाला संगीत बजाते रहे और कार का हार्न बजाते रहे। पार्क में इस सबको करने पर निषेध है।

मैं वहां दो अन्य मित्रों के साथ मौजूद थी। मैंने बड़े शिष्टाचार के साथ एक लड़के से हार्न और संगीत बंद करने के लिये कहा, क्योंकि उद्यान में ऐसा करने की सख्त मनाही थी। उसने जिस बदतमीजी से जवाब दिया उससे मुझे बहुत गुस्सा आया। वो हमें गालियां देने लगा जिसे मेरे लिये बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया। मैंने भी बदले में वही किया जो मैंने एक बार बचपन में किया था और जल्दी एक और ‘महाभारत’ छिड़ गया। एक चौकीदार ने जब यह नजारा देखा तो वो गेट बंद करने गया। लड़के को समस्या गंभीर होती दिखी और वो तुरंत अपनी कार लेकर वहां से खिसक लिया।

उस दिन मुझे बहुत बुरा लगा और बेहद बेबसी भी महसूस हुई। परंतु इसी का नाम जिंदगी है। मैं अब इस प्रकार की समस्याओं और चुनौतियों को झेलने के लिये मानसिक रूप से तैयार हूं। ऐसी परिस्थितियों में अपने दिमाग को ठंडा रखना चाहिये, यह महत्वपूर्ण सबक मैंने सीखा है।

चिडि़याघर में मेरे जैसे स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं की क्या जिम्मेदारियां हैं? पहली बात तो आने वाले दर्शकों को उद्यान और उसके प्राणियों से संबंधित सही जानकारी देना, जिससे लोग बाघ को बाघ ही बुलायें और न कि चीता! साथ में उद्यान के प्रशासन की ‘करो’ और ‘निषेध्’ नियमों के पालन में सहायता देना। यह देखना कि दर्शक जानवरों को परेशान न करें और न ही पार्क में कोई अन्य गलत काम करें। मेरे काम में दर्शकों को पर्यावरण संबंधी जानकारी देना और शिक्षण भी शामिल है। साथ में मैं पार्क के अन्य कर्मचारियों को सही प्रकार काम करने में मदद देती हूं।

चिडि़याघर के स्वयंसेवी के जीवन का एक दिन रोचक, निराशा, थकान से भरा हो सकता है परंतु उसमें भरपूर आनंद भी होता है।

जैसा कि मैंने पहले कहा है, मैं अपनी लक्ष्य तय कर चुकी हूं। मैं फॉरेस्ट मैनेजमेंट में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात औपचारिक रूप से पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उतरूंगी। मेरा नाम “अर्चना बाली” को आप जरूर याद रखें क्योंकि किसी दिन आप पायेंगे कि यह नाम किसी अभयारण्य के निदेशक या प्रसिद्ध पर्यावरणविद के नाम से जुड़ा होगा!

अर्चना बाली, ग्रीनहार्टस नेचर क्लब, 146/4 प्रीमियम सेंटर, एम पी नगर, जोन-1, भोपाल - 462 011, टेलीः (0755) 553011

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading