डेंगू खत्‍म करने में मच्‍छर ही होंगे नया हथियार

Mosquito
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डेंगू से ग्रस्‍त इलाके में हम मच्‍छरों की आबादी को वाल्‍बाकिया से संक्रमित करते हैं। इसके लिये वाल्‍बाकिया से संक्रमित मच्‍छरों को अन्‍य मच्‍छरों की आबादी के बीच छोड़ा जाता है, जहाँ वे प्रजनन करके अपनी संख्‍या में बढ़ोत्तरी करने लगते हैं। मच्‍छरों के अंडों के जरिये उनकी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचने वाला वाल्‍बाकिया मच्‍छरों की आबादी में अपनी जगह बना लेता है और डेंगू का संक्रमण इंसानों में नहीं फैलने देता।मेलबर्न/नई दिल्‍ली, 11 जुलाई (इंडिया साइंस वायर) : यह सुनकर किसी को भी हैरानी हो सकती है, मगर डेंगू के उन्‍मूलन में आखिरकार मच्‍छर ही काम आएँगे- ऐसे मच्‍छर जो डेंगू को फैलाने में सक्षम नहीं होंगे।

वैज्ञानिकों ने इस तरह के मच्‍छर की ब्रीडिंग शुरू कर दी है। ये ऐसे मच्‍छर हैं जो डेंगू के अलावा चिकनगुनिया और जिका जैसे वायरसों को भी नहीं फैला पाएँगे। इस तरह के मच्‍छरों का ऑस्‍ट्रेलिया, इं‍डोनेशिया और ब्राजील में परीक्षण हो चुका है और शीघ्र ही भारत में भी परीक्षण शुरू होंगे।

मेलबर्न स्थित मोनाश यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने वातावरण में पाए जाने वाले वल्‍बाकिया नामक बैक्‍टीरिया से डेंगू फैलाने वाले एडीस एजिप्‍टी मच्‍छरों को संक्रमित किया है, जिससे उन मच्‍छरों में डेंगू के वायरस नहीं पनप सकेंगे।

वाल्‍बाकिया कीट-पतंगों की करीब 60 प्रतिशत प्रजातियों में प्राकृतिक रूप से मौजूद रहता है। लेकिन, यह बैक्‍टीरिया एडीस एजिप्‍टी के शरीर में नहीं होता। वैज्ञानिकों ने वाल्‍बाकिया को फल की मक्खी से अलग किया है और उसका उपयोग एडीस एजिप्‍टी मच्‍छर को संक्रमित करने के लिये किया है। लेकिन, इसके लिये जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग नहीं किया गया है। एडीस एजिप्‍टी मच्‍छर के अंडों को टीके के जरिये वाल्‍बाकिया से संक्रमित जाता है। इस तरह पैदा होने वाली मच्‍छरों की नई पीढ़ी भी डेंगू का संक्रमण नहीं फैला सकती।

इस वर्ष के आरंभ में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की ओर से भारत में इस तकनीक के उपयोग को लेकर मोनाश यूनिवर्सिटी के साथ एक समझौता किया गया है। पुदुच्चेरी के वेक्‍टर कंट्रोल रिसर्च सेंटर (वीसीआरसी) में इसको लेकर शोध किया जा रहा है।

सब कुछ ठीक रहा तो वर्ष 2018 तक वाल्‍बाकिया संक्रमित मच्‍छरों का परीक्षण भारत में भी शुरू हो सकता है। ऑस्‍ट्रेलिया, वियतनाम, इंडोनेशिया, ब्राजील और कोलंबिया जैसे डेंगू से ग्रस्‍त देशों में वर्ष 2011 से ही इस इससे संबंधित परीक्षण किया जा रहा है।

वीसीआरसी के निदेशक डॉ. जंबुलिंगम पुरुषोत्‍तमन ने बताया कि “वाल्‍बाकिया से संक्रमित ऑस्‍ट्रेलियाई मूल के एडीस एजिप्‍टी मच्‍छर का उपयोग हम स्‍थानीय मच्‍छर की प्रजातियों को संक्रमित करने के लिये कर रहे हैं। लैब में यह सुनिश्चित करने के लिए परीक्षण किया जा रहा है कि यह प्रयोग स्‍थानीय एडीस एजिप्‍टी की प्रजातियों में डेंगू की प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में कितना प्रभावी हो सकता है।”

मोनाश यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता प्रोफेसर स्‍कॉट ओ. नील ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “डेंगू से ग्रस्‍त इलाके में हम मच्‍छरों की आबादी को वाल्‍बाकिया से संक्रमित करते हैं। इसके लिये वाल्‍बाकिया से संक्रमित मच्‍छरों को अन्‍य मच्‍छरों की आबादी के बीच छोड़ा जाता है, जहाँ वे प्रजनन करके अपनी संख्‍या में बढ़ोत्तरी करने लगते हैं। मच्‍छरों के अंडों के जरिये उनकी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचने वाला वाल्‍बाकिया मच्‍छरों की आबादी में अपनी जगह बना लेता है और डेंगू का संक्रमण इंसानों में नहीं फैलने देता।”

अध्‍ययनों से यह बात साबित हो चुकी है कि इस प्रक्रिया पर सफलतापूर्वक अमल किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना यह भी है कि मच्छरों की आबादी में वाल्‍बाकिया बैक्‍टीरिया आसानी से जिंदा रह सकता है और बार-बार प्रक्रिया को दोहराने की जरूरत नहीं पड़ती।

प्रोफेसर ओ. नील के मुताबिक “शहरी इलाकों में डेंगू से निपटने के लिए अब हम कम लागत वाले ऐसे तरीकों का विकास करने में जुटे में हैं। इससे संबंधित परीक्षण वर्ष 2014 में उत्‍तरी ऑस्‍ट्रेलिया के शहरी क्षेत्र में पहली बार किया गया था। ब्राजील और इं‍डोनेशिया जैसे देशों में भी हम बड़े पैमाने पर यह परीक्षण करना चाहते हैं। बड़े शहरी क्षेत्रों में वाल्‍बाकिया संक्रमित मच्‍छरों की ब्रीडिंग से हम देखना चाहते हैं कि आखिर डेंगू फैलाने वाले मच्‍छरों से लड़ने में यह प्रयोग किस हद तक कारगर हो सकता है।”

दुनिया भर के वैज्ञानिक डेंगू से निपटने के लिये नए टीके एवं दवाईयां विकसित करने के अलावा जीन संवर्द्धित मच्‍छरों की ब्रीडिंग जैसे प्रयासों में जुटे हैं, पर इसमें बहुत अधिक सफलता नहीं मिली है।

वैज्ञानिकों के अनुसार “वाल्‍बाकिया इंसानों एवं जानवरों के साथ-साथ पर्यावरण के भी अनुकूल है। यह बैक्‍टीरिया पहले से ही खाद्य श्रृंखला में मौजूद है। एडीस एजिप्‍टी को छोड़कर यह तितलियों, फलों की मक्खियों, पतंगों और मच्‍छरों में पाया जाता है। इस पद्धति में मच्‍छरों की प्राकृतिक आबादी से छेड़छाड़ नहीं की गई है, इसलिए किसी नई प्रजाति के पैदा होने का खतरा भी नहीं है।”

प्रोफेसर नील को उम्‍मीद है कि वाल्‍बाकिया का उपयोग भविष्‍य में डेंगू के अलावा जिका, चिकनगुनिया और पीत ज्‍वर जैसी कई वेक्‍टर जनित बीमारियों लड़ने में मददगार साबित हो सकता है।

भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र
Twitter handle: @dineshcsharma



TAGS

Wolbachia, dengue, zika, chikungunya, Monash University, ICMR, VCRC, vector-borne diseases, Aedes aegypti, yellow fever


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