दिल्ली के तालाबों में कंक्रीट के जंगल

3 Sep 2015
0 mins read
construction
construction
दिल्ली में पानी की कमी है। दूसरे राज्यों से आने वाला पानी दिल्ली की प्यास बुझाता है। एक समय था जब दिल्ली में पानी की कोई कमी नहीं थी। दिल्ली के शासकों ने भी शहर में बड़े-बड़े तालाब और झील बनवाए थे। नीला हौज, हौज खास, भलस्वा और दक्षिणी दिल्ली रिज में कई बड़े झील थे। तब दिल्ली के तालाबों और झीलों में लबालब पानी भरा होता था जो पीने और सिंचाई के काम आता था। लेकिन आज अधिकांश झील सूखे और गन्दगी के शिकार हैं।

नीला हौज झील कभी दक्षिणी दिल्ली की प्यास बुझाने के काम आता था लेकिन अब यह खुद ही प्यासी है। झील में स्वच्छ पानी के जगह कूड़े और गन्दगी का अम्बार है। झील में गिरने वाली कॉलोनियों का सीवर पानी को दूषित कर चुका है। वसंत कुंज स्थित इस झील की गिनती कभी दिल्ली के प्राकृतिक झीलों में हुआ करती थी। हरियाली से भरे इस क्षेत्र में झील की स्थिति दयनीय है। इसमें तैरते थर्माकोल और प्लास्टिक के टुकड़े झील के सौंदर्य और अस्तित्व पर ग्रहण लगा रहे हैं।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने झील को संरक्षित करने का आदेश दिया है। लेकिन दिल्ली विकास प्राधिकरण और सार्वजनिक निर्माण विभाग की आपसी खींचतान की वजह से इसके स्वरूप में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है। झील सरकारी अतिक्रमण और गन्दगी का शिकार है। झील के किनारे बने सड़क ने पहले इसके क्षेत्र को सीमित किया। अब फ्लाईओवर ने रही सही कसर पूरी कर दी है। झील को बचाने के लिये स्थानीय नागरिक अदालत की शरण में हैं।

यह किसी एक झील की कहानी नहीं है। बल्कि राजधानी के अधिकांश झीलों एवं तालाबों का यही हाल है। जलाशयों को पाटकर बड़े-बड़े बिल्डिंग और शॉपिंग मॉल बनाए जा रहे हैं। शहरीकरण के शोर में दिल्ली के तालाब धीरे-धीरे अपना वजूद खोते जा रहे हैं। कुछ सालों पहले तक जिन तालाबों, पोखरों और बावड़ियों में लबालब पानी भरा होता था आज उनमें से अधिकांश सूखे पड़े हैं।

सूखे तालाबों पर बिल्डर और भूमाफियाओं के साथ ही दिल्ली विकास प्राधिकरण और अन्य सरकारी एजेंसियाँ अतिक्रमण करके कंक्रीट के जंगल उगा रही हैं, जिसके कारण दिल्ली में तालाबों की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही है। दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग के दस्तावेज़ों के अनुसार राजधानी में कुल 1012 तालाब हैं। लेकिन उच्च न्यायालय में दिये हलफनामें में राज्य सरकार ने स्वीकार किया है कि राजधानी में अब केवल 629 तालाब ही सही सलामत हैं।

सैकड़ों तालाब अतिक्रमण के शिकार हैं। कई तालाब तो अपना वजूद ही खो चुके हैं, जिसके कारण उन्हें चिन्हित ही नहीं किया जा सकता है। पर्यावरण विभाग के 'पार्क एंड गार्डेन सोसायटी' के आँकड़ों पर विश्वास करें तो तालाबों पर अतिक्रमण की यह तस्वीर बहुत भयावह है। राजस्व विभाग के दस्तावेजों को आधार बनाकर जब इस विभाग ने सर्वेक्षण किया तो पाया कि अधिकांश तालाब बदहाल हैं। सोसायटी अपने सर्वे में 905 तालाबों का ही भौतिक सत्यापन कर सकी।

107 तालाबों को चिन्हित नहीं किया जा सका, क्योंकि उन तालाबों पर अब कॉलोनियाँ बसा दी गईं हैं। जबकि 70 तालाबों पर आंशिक रूप से अतिक्रमण तो 98 तालाबों पर पूरी तरह से अतिक्रमण किया जा चुका है। वहीं पर विभिन्न सरकारी विभागों ने अतिक्रमण को कानूनी जामा पहनाते हुए 78 तालाबों पर निर्माण करके उनके अस्तित्व पर कंक्रीट का आलीशान जंगल खड़ा कर दिया है तो 39 तालाबों पर अवैध रूप से निर्माण किया गया है।

दिल्ली में तालाब, बावड़ी, कुएँ, और नहरों का जाल बिछा था। दिल्ली में पहली नहर 1860 में बनी थी। तब यह पंजाब राज्य का एक सूबा हुआ करता था। तालाबों के पानी का उपयोग सिचाईं में होता था। तालाबों में इकट्ठा वर्षाजल यमुना के पानी को रिचार्ज करता था। लेकिन सरकार की उदासीनता ने तालाबों को गन्दगी इकट्ठा करने का केन्द्र बना दिया है। अतिक्रमण को बढ़ावा दिया है। आज दिल्ली पेयजल के लिये दूसरे राज्यों पर निर्भर है।राजधानी में तालाबों की स्थिति का जिलेवार विश्लेषण करने पर पता चलता है कि आधुनिक और पॉश कहे जाने वाले इलाकों में तालाबों पर अधिक अतिक्रमण हुआ है। 'पार्क एंड गार्डेन' विभाग के आँकड़ों के मुताबिक यमुनापार के पूर्वी जिले में कुल 54 तालाब राजस्व दस्तावेज़ में दर्ज हैं, लेकिन भौतिक सत्यापन में दो तालाबों का पता नहीं किया जा सका है। जबकि 25 तालाब सूखे, 3 पर अतिक्रमण और 19 तालाबों पर वैध और अवैध निर्माण हो चुका है।

उत्तरी पूर्वी जिले के 49 तालाबों में से 2 की निशानदेही नहीं की जा सकी। जबकि 2 तालाब पर अतिक्रमण और 9 पर निर्माण किया जा चुका हैं। उत्तरी जिले में कुल 156 तालाब दर्ज हैं जिनमें से 7 अस्तित्व विहीन हो चुके हैं। पार्क एंड गार्डेन विभाग की टीम कड़ी मशक्कत के बाद भी उन तालाबों को नहीं तलाश सकी। जिले के 49 तालाबों पर अतिक्रमण होता रहा और प्रशासन की नींद नहीं टूटी। 8 तालाबों पर बस्तियाँ बसा दी गईं हैं जिनमें तीन अवैध और 5 वैध की श्रेणी में शामिल हैं।

इसी तरह से उत्तरी-पश्चिमी जिले के सरकारी रिकॉर्ड में 166 तालाब दर्ज हैं जिनमें 7 तालाबों को खोजा नहीं जा सका। यानी अब उन पर बस्तियाँ बस गई हैं। 23 तालाबों पर अतिक्रमण और 11 पर निर्माण हो चुका है। दक्षिणी दिल्ली का नाम राजधानी के पॉश इलाकों में शामिल है। पॉश कॉलोनियों के बाशिंदे भी जलाशयों पर कब्जा करने से नहीं चूके। जिसके कारण 120 तालाबों में से 12 का अस्तित्व ही मिट गया है।

इस क्षेत्र में 29 तालाबों पर अतिक्रमण और 28 तालाबों पर वैध और अवैध निर्माण करके उनको सदा के लिये कंक्रीट के जंगल में बदल दिया गया। दक्षिणी पूर्वी जिले के 39 तालाबों में से 28 तालाबों का अस्तित्व मिट चुका है। जबकि 2 पर अतिक्रमण और 5 पर कॉलोनियों के बस जाने के बाद अब सिर्फ 4 तालाब ही बचे हैं। दक्षिणी पश्चिमी दिल्ली में तालाबों की संख्या सबसे अधिक 266 है। जिनमें 21 तालाब अस्तित्वहीन, 36 पर अतिक्रमण और 16 पर बस्तियाँ बस गई हैं।

पश्चिमी जिले के 75 तालाबों में से 5 का कोई पता नहीं चल सका है जबकि 21 अतिक्रमण की शिकार हैं। 5 तालाबों पर प्रशासन ने कानून का सहारा लेते हुए कब्जा कर लिया और 5 पर भूमाफियाओं ने अवैध कब्जा करके कॉलोनियाँ बसा दी हैं। मध्य दिल्ली के 25 तालाबों में से 4 लुप्त हो चुके हैं। नई दिल्ली क्षेत्र के राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक तालाबों की संख्या 62 है।

इनमें से 17 तालाबों का पता नहीं है। 8 तालाबों पर अतिक्रमण और 7 तालाबों पर निर्माण हुआ है। लेकिन सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि दिल्ली सरकार के पार्क एंड गार्डेन विभाग के सर्वेक्षण में इसका कहीं जिक्र नहीं है कि जिन सात तालाबों पर निर्माण बताया जा रहा है, वे वैध हैं या अवैध। जबकि अन्य जिलों में जिन तालाबों पर वैध या अवैध निर्माण हुआ है, सरकारी दस्तावेज में उसका उल्लेख किया गया है।

राजधानी में तालाबों को उनके मूल स्वरूप में वापस लाने के लिये संघर्ष कर रहे विनोद कुमार जैन कहते हैं, ''राजधानी के अधिकांश तालाब गन्दगी, कूड़ा, अतिक्रमण और निर्माण के कारण धीमी मौत मर रहे हैं। यदि तालाबों के संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया गया तो एक दिन दिल्ली को भयावह रूप से जल संकट का सामना करना पड़ेगा। यमुना की दुर्दशा पर तो बात होती है लेकिन अधिकांश लोगों को पता ही नहीं है कि शहर के तालाबों, झीलों और बावड़ियों की दशा क्या है?''

जैन ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका करके राजधानी के तालाबों को संरक्षित करने की फरियाद की है। न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद सरकारी अमला तालाबों को संरक्षित करने में लगा है। लेकिन सरकार के संरक्षण के तरीके पर पर्यावरणविद सवाल उठाने लगे हैं। जैन कहते हैं, ''डीडीए जैसी संस्थाएँ तालाबों को बचाने के लिये जिस नीति पर काम कर रही हैं वह और खतरनाक है। तालाबों और झीलों के किनारे पार्क बनाने से वे सूख रहे हैं। मसूदपुर का तालाब इसका उदाहरण है। जिसके किनारे पार्क बनाने के बाद वह सूख गया। क्योंकि किनारे पक्का निर्माण करने से पानी के स्रोत सूख गए।''

.राजधानी के सीवेज और कूड़ा के लिये सही व्यवस्था न होने का ख़ामियाज़ा भलस्वा झील भुगत रही है। इस झील का क्षेत्रफल 50 हेक्टेयर था लेकिन आज वह गन्दगी से भर गई है। दिल्ली नगर निगम का कूड़ा वहाँ डम्प होता रहा है। ऐतिहासिक हौजखास तालाब जलकुम्भी से भर गई है तो नीला हौजखास झील भी उपेक्षा और बदहाली के कारण धीमी मौत मरने को अभिशप्त है।

कड़कड़डूमा झील से यमुना का पानी रिचार्ज होता रहा है लेकिन प्रशासन ने इस झील को अम्बेडकर पार्क में बदल दिया है। इसी तरह से पूर्वी दिल्ली के खिचड़ीपुर में 1875 वर्गमीटर का एक तालाब राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज है। दिल्ली विकास प्राधिकरण का उस पर मालिकाना हक है लेकिन यह तालाब भी अतिक्रमण की चपेट में है। तालाब के बगल से गुजरने वाली सड़क और नगर निगम के स्कूल ने इसके क्षेत्रफल को काफी कम कर दिया है।

अब डीडीए यहाँ पर स्मृति वन बनाने की घोषणा की है। राजधानी में तालाबों पर बिल्डर और भूमाफिया की ही वक्र दृष्टि नहीं है। डीडीए, एमसीडी और अन्य सरकारी संस्थाएँ भी तालाबों की ज़मीन हड़पने की नीति पर चल रहे हैं। कल्याणपुरी में तो एक तालाब के अन्दर से ही मेट्रो लाइन गुजर रही है। तालाब में मेट्रो पिलर बन रहा है।

स्थानीय नागरिकों और पर्यावरणविदों के विरोध के बावजूद डीएमआरसी पर कोई असर नहीं हुआ। तालाबों के लिये कानूनी लड़ाईं लड़ रहे वकील अरविंद साह कहते हैं कि 1990 के बाद दिल्ली में आवासीय क्षेत्र बढ़ता जा रहा है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में तालाब गन्दगी और अतिक्रमण के शिकार हो रहे हैं।

हाल ही में दिल्ली के तालाबों पर एक अध्ययन गैर सरकारी संस्था 'फोरम फॉर ऑर्गनाइज्ड रिसोर्स कंजरवेशन एंड इन्हेंसमेंट' (फोर्स) ने किया है। 'सेनिटेशन वीआंड सीवर्स एंड मैपिंग ऑफ वाटर बॉडीज' प्रोजेक्ट के तहत हुए इस अध्ययन में यह पता लगाने की कोशिश की गई है कि दिल्ली के तालाबों और पुनर्वास कॉलोनियों में क्या कोई सम्बन्ध है? जर्मन संस्था 'जीआईजेड' के सहयोग से संस्था ने यह काम किया है।

संकट में दिल्ली के तालाबफोर्स की अध्यक्ष ज्योति शर्मा कहती हैं कि हमें ऐसा महसूस होता था कि दिल्ली की पुनर्वास कॉलोनियाँ तालाबों या उसके आसपास बसाई गई हैं। दूसरा, लम्बे समय से पानी पर काम करते हुए मैं यह जानना चाहती थी कि क्या आज भी तालाबों का उद्देश्य बचा है? वह कहती हैं कि दरअसल, तालाबों का उद्देश्य वर्षाजल को इकट्ठा करना था। जिससे भूजल का स्तर बना रहे और पानी रिचार्ज होता रहे। तालाबों और बावड़ियों का पानी ही पहले पीने और सिचाईं के काम आता था।

आधुनिक विकास के मॉडल में तालाब और पानी के परम्परागत स्रोत उपेक्षित हो गए। विकास की अन्धी दौड़ में महानगर, शहर और गाँव परम्परागत चीजों को हेय दृष्टि से देखने लगे। जिसके कारण दिल्ली ही नहीं पूरे देश में तालाब, कुएँ, बावड़ी और झील बेकार हो गए। शहरों में तालाबों का इस्तेमाल कॉलोनियों से निकलने वाले गन्दे पानी को इकट्ठा करने में किया जाने लगा। कॉलोनियों के सीवेज और कूड़ा तालाबों में जाने लगा। धीरे-धीरे तालाब गन्दगी के केन्द्र बन गए। जिसे हर कोई हटाने के लिये सोचने लगा।

इसके बाद फोर्स ने दिल्ली में जितने भी तालाब और पुनर्वास कॉलोनियाँ हैं सबकी ज्योग्राफिक इंफारमेशन सिस्टम (जीआईएस) मैपिंग कराई। शुभम मिश्र ने 629 तालाबों को चिंहित करके जीआईएस मैपिंग की। संस्था ने राजधानी के छह कॉलोनियों का चयन करके अध्ययन किया। जिसमें मंगोलपुरी, मंगलापुरी, साबदा घेवड़ा, कल्याणपुरी, मदनपुर खादर और जहांगीरपुरी को अध्ययन के लिये चयनित किया गया। गौरतलब है कि ये सब अनधिकृत कॉलोनियाँ है।

ज्योति कहती हैं कि आवासीय योजना के अनुसार किसी भी कॉलोनी के बसने के पहले वहाँ पर पीने का पानी, सीवर और बिजली की व्यवस्था उपलब्ध होनी चाहिए। लेकिन दिल्ली के अधिकांश अनधिकृत कॉलोनियों के अस्तित्व में आने के 10 से 26 साल बाद सीवरलाइन पड़ा। जिसके कारण उस क्षेत्र के अधिकांश तालाब सीवर के पानी डम्प करने के लिये इस्तेमाल किये जाने लगे। इन सब क्षेत्रों में तालाब सीवेज और कूड़ा डालने के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा।

संकट में दिल्ली के तालाबसंस्था ने अपने सर्वेक्षण में पाया कि अधिकांश पुनर्वास एवं अनधिकृत कॉलोनियाँ तालाबों या उसके आसपास ही बसाए गए हैं। कुछ कॉलोनियाँ तो तालाबों में ही बसी हैं। जिसके कारण वहाँ आज भी सीवेज की समस्या बनी हुई है। सीवर हमेशा ऊपर से नीचे की तरफ जाता है। लेकिन अनधिकृत कॉलोनियाँ पहले से ही नीची ज़मीन पर बसी हैं। इसलिये वहाँ पर आज भी सीवरलाइन बिछाना काफी मुश्किल काम साबित हो रहा है। ज्योति शर्मा कहती हैं कि दिल्ली के अधिकांश तालाब सूखे या अतिक्रमण के शिकार हैं। दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग के अधीन तालाबों की स्थिति सही है। क्योंकि वे सब गाँव में स्थित हैं। डीडीए के अधीन तालाब दुर्दशाग्रस्त है।

नदी बचाओ आन्दोलन से जुड़े कपूर सिंह छिकारा कहते हैं कि दिल्ली में तालाब, बावड़ी, कुएँ, और नहरों का जाल बिछा था। दिल्ली में पहली नहर 1860 में बनी थी। तब यह पंजाब राज्य का एक सूबा हुआ करता था। तालाबों के पानी का उपयोग सिचाईं में होता था। तालाबों में इकट्ठा वर्षाजल यमुना के पानी को रिचार्ज करता था। लेकिन सरकार की उदासीनता ने तालाबों को गन्दगी इकट्ठा करने का केन्द्र बना दिया है। अतिक्रमण को बढ़ावा दिया है। आज दिल्ली पेयजल के लिये दूसरे राज्यों पर निर्भर है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सीमा में पानी के परम्परागत स्रोत सूख रहे हैं। जिसके कारण राजधानी के कई इलाकों में भूजल का स्तर गिरता जा रहा है। समय रहते यदि दिल्ली में पानी के परम्परागत स्रोतों को बचाया नहीं गया तो स्थिति गम्भीर हो सकती है।

दिल्ली सरकार के राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक राजधानी में तालाबों की कुल संख्या 1012 है। जो विभिन्न सरकारी विभागों के अन्तर्गत हैं।
 

 

 

बीडीओ

629

दिल्ली विकास प्राधिकरण

315

दिल्ली नगर निगम

25

वन विभाग

18

पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग

15

दिल्ली जल बोर्ड

4

दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन

2

लोक निर्माण विभाग

2

वक्फ बोर्ड

1

डीयूएसआईबी

1

 

दिल्ली उच्च न्यायालय के पानी के पारम्परिक स्रोतों को संरक्षित करने के आदेश के बाद राज्य की विभिन्न एजेंसियाँ 629 तालाबों को संरक्षित और विकसित करने में लगीं हैं।

 

 

दिल्ली सिचाईं एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग

476

दिल्ली विकास प्राधिकरण

118

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

15

वन विभाग

12

केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग

4

लोक निर्माण विभाग

2

दिल्ली नगर निगम

1

आईआईटी

1

 

 

 

 

 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading