दम तोड़ रही है बेतवा की धार

29 Jul 2011
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बेतवा नदी का धारा अब नल के धार से भी कम है
बेतवा नदी का धारा अब नल के धार से भी कम है

ओरछा अप्रैल। बुंदेलखंड की जीवन रेखा बेतवा नदी की धार दम तोड़ती नजर आ रही है। नदी की धार टूटना शुभ संकेत नहीं है। बुंदेलखंड के लिए यह खतरे की घंटी है। महोबा से ओरछा पहुंचे तो बेतवा को देखकर हैरान रह गए। यही बेतवा हमीरपुर तक बुंदेलखंड में लोगों की जीवन रेखा का काम करती है। सामने बिना पत्तियों वाले पेड़ों का सूखा जंगल है तो दाएं-बाएं सिर्फ बड़े-बड़े पत्थर। कहीं कोई धारा या प्रवाह दिखाई नहीं पड़ता। कंचना घाट पर बेतवा एक तालाब के रूप में नजर आती है। कुछ साल पहले तक यहां हरे-भरे जंगलों के बीच बेतवा का प्रवाह डरा देता था। बुंदेलखंड में पानी के सारे स्रोत धीरे-धीरे सूखते जा रहे हैं। समूचे बुंदेलखंड में चंदेलों ने 68 बड़े जलाशय बनाए थे। जिनमें कई बांध में भी बदल दिए गए पर ज्यादातर तालाब सूख चुके हैं। तालाबों का रखरखाव न होने से पानी संकट और गहरा रहा है। दूसरी तरफ ललितपुर, ओरछा, मऊरानी पुर, झांसी, महोबा, कालपी और हमीरपुर जैसे इलाकों में भूजल का स्तर 30 से 50 फीट और नीचे चला गया है। अब हैंडपंप या बोरिंग के लिए डेढ़ सौ से दो फीट तक खुदाई की जा रही है। यह बात अलग है कि नदी, तालाब और पहाड़ बुंदेलखंड के नेताओं की कमाई का बड़ा जरिया बन चुके हैं। नदी से बालू का ठेका हो, तालाब की गहराई बढ़ाने के लिए खुदाई का ठेका हो या फिर पहाड़ खनन का। सभी पर विधायक, सांसद और मंत्री के नाते-रिश्तेदारों का कब्जा है।

यहां के सारे बाहुबली विधायक, सांसद, मंत्री इन ठेकों से करोड़ों रुपए महीने कमा रहे हैं। दूसरी तरफ हमीरपुर के जुगनी गांव की बच्ची प्रभा दो-तीन दिन में एक बार खाना खा पाती है और इसी इलाके में कर्ज, सूखे और भुखमरी चलते दजर्नों किसान खुदकुशी कर चुके हैं। बुंदेलखंड के दोहन में राजनैतिक नेताओं की भूमिका पूरा अलग विषय है। बुंदेलखंड में बेतवा, केन, धसान, उरमिल और यमुना नदी हैं। इनमें धसान और यमुना को छोड़ कर सभी का हाल बेहाल है। ओरछा में तो भगवान राम के चरणों में ही बेतवा की धार टूट रही है। पूरे इलाके में सूखे का असर है। बबूल, नीम और सूखे बांसों के बीच अचानक दहकते हुए सुर्ख पलाश जरूर सुखद लगते हैं। पर गांव के भीतर जाते ही हालात भयावह नजर आते हैं। उत्तर प्रदेश-मध्यप्रदेश सीमा पर बेतवा के आसपास पिपरा, बमरौली शीतल, बिल्ट, रजपुरा और बागन गांव के बाद झांसी की तरफ गोपालपुर, गणोशगढ़, सरमउ और हस्तिनापुर जसे गांव में पानी को लेकर जगरूकता अभियान चलाया जा रहा है। इस इलाके में भूजल स्तर काफी नीचे जा चुका है। कई गांवों में एक हैंडपंप है जहां देर रात तक महिलाओं की लाइन लगी रहती है।

तारा गांव में डवलपमेंट अल्टरनेटिव संस्था के पर्यावरणविद् सोनल कुलस्रेष्ठ ने कहा, ‘पानी के मौजूदा संकट के पीछे जंगलों की अधाधुंध कटाई है। जंगल कटे तो मिट्टी भी नहीं रूकी और बरसात का पानी संचय नहीं हो पाया। इस क्षेत्र में बड़ी-बड़ी चट्टाने हैं। चट्टाने यदि टूटी हों या दरक जाएं तो पानी नीचे जा सकता है। पर सॉलिड रॉक (ठोस चट्टान) के चलते यहां पानी संचय नहीं हो पा रहा है। पिछले छह साल में सिर्फ दो बार बारिश हुई है। इससे भूजल स्तर डेढ़ सौ से दो फीट नीचे जा चुका है।’ बुंदेलखंड में अब पानी समाज का मुख्य मुद्दा बन रहा है। तालाब और पोखरों की फिर याद आ रही है। हमीरपुर में मौदहा बांध से नहर के जरिए जो तालाब-पोखर और गड्ढे भरवाए गए थे वह सात दिन में सूख गए। गर्मी में बुंदेलखंड और तप जाता है। सिर्फ पथरीले बुंदेलखंड में बजरी-पत्थर की गर्म भभक और कहर ढाती है। ऐसे में मवेशियों के लिए पानी का इंतजाम भी जरूरी है। महोबा में प्रशासन ने मवेशियों के लिए 375 चिरहई (मवेशियों के लिए पानी का हौद) बनवाए थे पर ज्यादातर कागजों में ही हैं। अब ललितपुर से लेकर हमीरपुर तक मवेशियों के चारे-पानी के लिए प्रशासन कुछ पहल करता नजर आ रहा है पर प्रशासन की दिक्कत यह है कि पानी ला सकता है पानी बना नहीं सकता।

बड़े ट्यूबवेल से पानी का संकट और बढ़ रहा है। जहां सरकारी ट्यूबवेल से पानी भरा जाता है वहां के आसपास के गांव में कई हैंडपंपों से पानी निकलना बंद हो जा रहा है। बुंदेलखंड में महोबा के बाद सूखे का ज्यादा असर हमीरपुर में बढ़ता नजर आ रहा है। हमीरपुर के कलेक्टर समीर वर्मा के मुताबिक कई जगहों पर पानी व सूखा की स्थिति गंभीर है। तो कुछ गांव में अति गंभीर है। रांठ में दस गांव गंभीर स्थिति में हैं तो मौदहा में 29 गांव गंभीर स्थिति में हैं। सरीला क्षेत्र में 30 गांव गंभीर स्थिति में हैं तो पांच गांव अतिगंभीर स्थिति में। हमीरपुर में सौ लोगों पर एक हैंडपंप का मानक है। कई जगहों पर एक से ज्यादा हैंडपंप लगाए गए हैं। फिर भी पानी का संकट कम नहीं हो पा रहा है। पानी की गंभीर स्थिति का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि सूखा राहत की बैठक में हमीरपुर के कलेक्टर ने इजराइल का उदाहरण देते हुए कहा, ‘बुंदेलखंड से भी कम पानी इजराइल में बरसता है। बावजूद उसके वहां की पैदावार बुंदेलखंड से आठ गुना है। क्योंकि लोग वहां पानी संचय करते हैं और ड्रिप इरीगेशन (बूंद-बूंद से सिंचाई) की प्रणाली वहां इस्तेमाल की जाती है।’ हालांकि एक तथ्य और यह भी है कि इजराइल में विधायक, सांसद और मंत्री नदी, तालाब और पहाड़ों का इतनी बेदर्दी से दोहन भी नहीं करते। जैसा बुंदेलखंड में हो रहा है।

बेतवा नदी करीब सवा सौ किलोमीटर की सफर तय कर जब हमीरपुर पहुँचती है तो उसकी धार नल के धार जैसी हो जाती है। कुछ साल पहले तक यही बेतवा नदी ओरछा से लेकर हमीरपुर तक उफनाती नजर आती थी। हमीरपुर के किसान नेता प्रीतम सिंह ने कहा, ‘यहां तो बेतवा नदी नल की धारा से भी कमजोर हो चुकी है। यह हाल अप्रैल के पहले हफ्ते का है। गर्मी और बढ़ी तो बेतवा की धार टूट भी सकती है। नदी की धार टूट जाए तो जीवन कैसे चलेगा।’ इस जिले में सूखे और अकाल का बुरा हाल है। टेढ़ा गांव, पचकरा, ममना, धौल, बंगरा, रहटिया और जिगनी में दाने-दाने के लिए किसान मोहताज है। कर्ज में डूबे किसानों को रोज भरपेट खाने को नहीं मिल पाता। गांव-गांव के खाली होते जा रहे हैं। पीने का पानी नहीं और खाने को अन्न नहीं है। रहटिया गांव के पास मिले जगदम्बा ने कहा, ‘भइया भूख बर्दाश्त नहीं होती है। बच्चा जब खाली पेट सोता है तो जिंदा रहने का मन नहीं करता। दो-तीन में कहीं मजदूरी मिल जाती है तो रोटी नसीब हो पाती है।’

(साभार- जनसत्ता)
 

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