दवाओं से बेफिक्र एक बैक्टीरिया

आम लोग खुद इसके लिए जागरूक हो जाएं तथा अपने-अपने कार्य को सही ढंग से समझें। आसपास की गंदगी, टूटी हुई पाइप लाइनें यानी कुछ मूल भूत समस्याओं का समाधान उन्हें खुद ही खोजना चाहिए ताकि भविष्य में सुपरबग जैसे बैक्टीरिया पनप न सके।

पिछले दिनों राजधानी दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में एक बार फिर सुर्खियों में आ गयी जब फ्रांस के मेडिकल जर्नल लासेंट में छपी एक रिपोर्ट के हवाले से ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने यह घोषणा कर दी कि राजधानी दिल्ली का पानी जानलेवा हो चुका है। दरअसल पुरानी दिल्ली के कुछ इलाकों के पानी में सुपरबग नामक बैक्टीरिया पाया गया है और इससे बीमार होने वाले लोग भी पाए गए। लेकिन दिल्ली जल बोर्ड यह कहने से नहीं चूका कि दिल्ली के पीने के पानी में सुपरबग बैक्टीरिया उत्पन्न या विकसित ही नहीं हो सकता। इससे पहले कि हम आगे बढ़ें यह जान लेना आवश्यक है कि सुपरबग नामक बैक्टीरिया को जानलेवा क्यों कहा जाता है? वास्तव में सुपरबग मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्राय: खत्म कर देता है। कहने का मतलब यह है कि यदि किसी के शरीर में सुपरबग नामक बैक्टीरिया पहुंच जाए तो वह कभी किसी रोग से उबर नहीं सकता। इतना ही नहीं छोटी सी बीमारी के चलते ऐसे व्यक्ति की जान भी जा सकती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि यह बैक्टीरिया लगभग तमाम मौजूदा एंटीबायोटिक्स को बेअसर कर देता है। सुपरबग बैक्टीरिया आमतौर पर वातावरण में मौजूद रहता है। यह मुख्य रूप से एनडीएम-1 जीन के कारण फैलता है।

बहरहाल मुख्य प्रश्न यह है कि आखिर यह जानलेवा बैक्टीरिया हमारे यहां पानी में कैसे आया? इसकी कई वजह मानी जा रही हैं। दिल्ली जलबोर्ड सहित आम नागरिक भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। असल में हमारे यहां 100 फीसदी सीवेज और ड्रेन सिस्टम नहीं है। यही नहीं लोग आनलाइन बूस्टर का इस्तेमाल करते हैं और सर्विस पाइप लाइन बहुत पुरानी हो चुकी है। आम नागरिकों की यह जिम्मेदारी होती है कि वह खुद उसे बदले लेकिन ऐसा होता नहीं है। खैर, पुरानी पाइप लाइन होने के कारण उनमें लीकेज हो जाती है जिसके चलते नाले का पानी पीने के पानी में मिल जाता है और वह दूषित हो जाता है। ऐसे में स्वाभाविक है कि पानी में कोई गम्भीर बैक्टीरिया उत्पन्न हो जाए। मगर लासेंट में छपी रिपोर्ट से यह सिद्ध हुआ है कि पीने के पानी में सुपरबग उत्पन्न नहीं हो सकता है। इसकी मुख्य वजह है पानी में क्लोरीन की मौजूदगी। पानी में यदि क्लोरीन मिला दिया जाए तो उसमें सुपरबग जिंदा नहीं रह सकता। यही कारण है कि दिल्ली के पीने का पानी को साफ बताया जा रहा है।

यहां यह बताना आवश्यक है कि सुपरबग से छुटकारा पाने का कोई तरीका अब तक नहीं खोजा जा सका है। यही कारण है कि पानी में सुपरबग की खबर मंत्रियों सहित आम नागरिकों के भी होश उड़ा देती है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में तेजी से फैल रहा यह बैक्टीरिया जल्द ही समूचे विश्व को अपनी चपेट में ले सकता है। गौरतलब है कि पिछले साल ब्रिटिश वैज्ञानिकों द्वारा इस बैक्टीरिया को नई दिल्ली मेटालो। यानी एनडीएम-1 नाम दिये जाने पर कड़ा ऐतराज जताया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक एनडीएम-1 जीन ने बैक्टीरिया में बदलाव लाकर उसमें एंटीबायोटिक्स के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर दी है। यह बदलाव ई. कोली बैक्टीरिया में दिख रहा है जो मूत्राशय के संक्रमण का सबसे आम कारण है। हैरानी की बात यह है कि अपने डीएनए स्ट्रक्चर के कारण यह किसी भी बैक्टीरिया के आकार में खुद को बदल सकता है। इतना ही नहीं उनके हिसाब से खुद को बदल भी सकता है।

डायरेक्टर जनरल आफ इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च में डॉ. वी.एम. कोटाच कहते हैं, ‘वैज्ञानिकों ने जिस प्रकार टेस्ट के लिए हमारे यहां से पानी के सैम्पल लिये थे इससे वैज्ञानिकों का मूल मकसद साफ नहीं होता। असल में यह गैर कानूनी तरीका है।’ लेकिन यह कहने की बात नहीं है कि ऐसी भयावह रिपोर्ट आने के बाद दिल्ली जल बोर्ड पर सवालों की झड़ी लग गयी है। जल बोर्ड के सीईओ रमेश नेगी कहते हैं, ‘रिपोर्ट के आधार पर 50 सैंपलों में से 2 दूषित पाए गए हैं। दोनों एक ही इलाके के हैं।’ वह साफ शब्दों में कहते हैं कि दिल्ली का पानी सेफ है। इसके लिए किसी को चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। उनके मुताबिक दिल्ली जल बोर्ड पानी की जांच अपनी लैब में करवाती है और साथ ही नेशनल एन्वायरन्मेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट से भी जांच करवायी जाती है।

डा. कोका कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि स्थिति बहुत गम्भीर नहीं हुई है। इसलिए आम लोगों को इससे ज्यादा भयभीत होने की जरूरत नहीं है। बेहतर है यदि आपको अपने पीने के पानी में सुपरबग होने की आशंका हो तो उसे उबाल कर ही पीए। उबला हुआ पानी सुरक्षित होता है।’ अध्ययनकर्ता डा. तिमोथी के मुताबिक, ‘राजधानी दिल्ली के पानी में एनडीएम-1 जीन की मौजूदगी यह दर्शाती है कि तकरीबन 10 फीसदी भारतीयों में एनडीएम-1 है। अत: हम यह कह सकते हैं कि यह कम्युनिटी आधारित संक्रमण है।’ शायद सुपरबग दिल्ली की सीमाएं क्रॉस कर चुका है। समय-समय पर देश के अलग-अलग हिस्सों पर किये गये अध्ययनों से यह साफ हुआ कई मरीज इसकी चपेट में आ चुके हैं। इतना ही नहीं कुछ अध्ययनों से यह भी पता चला है कि सिर्फ यूरोपीय देशों के मरीज ही नहीं बल्कि उत्तरी अमेरिका, एशिया और आस्ट्रेलिया में कई मरीज एनडीएम-1 से ग्रस्त थे। कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि स्थिति गम्भीर रूप ले भी सकती है। इसके लिए जरूरी है कि आम लोग खुद इसके लिए जागरूक हो जाएं तथा अपने-अपने कार्य को सही ढंग से समझें। आसपास की गंदगी, टूटी हुई पाइप लाइनें यानी कुछ मूल भूत समस्याओं का समाधान उन्हें खुद ही खोजना चाहिए ताकि भविष्य में सुपरबग जैसे बैक्टीरिया पनप न सके।
 

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