धौलावीरा खनन

ईसा पूर्व तीन सहस्त्राब्दी वर्ष पहले हड़प्पा या सिंधु घाटी सभ्यता के काल के प्रसिद्ध स्थान धौलावीरा की खुदाई से हाल के वर्षों में ऐतिहासिक महत्व के प्रमाण हासिल हुए हैं। यह स्थान कच्छ के रन में खादिर द्वीप के उत्तर-पश्चिमी छोर पर है। यह हड़प्पा के पांच सबसे बड़े शहरों में एक था। साठ के दशक में जगतपति जोशी ने इसका पता लगाया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के आर.एस बिष्ट के नेतृत्व में पुरातत्वविदों का दल इसकी खुदाई करवा रहा है। इस शुष्क क्षेत्र में प्रतिवर्ष औसतन 260 मिलीमीटर बारिश होती है। झील या नदी के रूप में यहां कोई स्थायी जल-स्रोत नहीं है। भूमिगत पानी कुल मिलाकर खारा है और पीने या सिंचाई के योग्य नहीं है। मीठा, पीने योग्य पानी बहुत ही सीमित है और गिने-चुने स्थानों पर ही उपलब्ध है।

इसलिए धौलावीरा के निवासियों ने मानहर और मानसर झरनों में बरसात में बहने वाले पानी को जमा करने के लिए कई जलागार बनाए। उपयुक्त स्थानों पर पत्थर के बंध बनाए गए ताकि बहते हुए पानी को भूमिगत नालियों से कई जलाशयों में जमा किया जा सके। ये जलाशय हड़प्पा शहर की दीवार के भीतर-बाहर ढलानों पर खोदकर बनाए गए थे। जलाशयों को बंधों और जल-सेतुओं के द्वारा एक-दूसरे से अलग किया गया था जो शहर के अलग-अलग क्षेत्रों तक पहुंचने के रास्ते भी बन गए थे। वर्षा का जल इकट्ठा करने के लिए पूरे नगर दुर्ग में नालियों का जाल बिछाया गया था।

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