ढहना कूड़े के पहाड़ का

18 Oct 2017
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मुसीबत बनता कूड़े का पहाड़
मुसीबत बनता कूड़े का पहाड़

यह दुखद दास्तान है सरकारी लापरवाही की। जिसके चलते देश की राजधानी में एक किनारे कचरे का पहाड़ बनता रहा। हो सकता है कि दिल्ली की कांग्रेस सरकार ने सोचा हो कि आने वाले सालों में इस कचरे के अम्बार से ऊर्जा बनाएँगे। खैर कामयाब नहीं रहा तो बाग-बगीचा बना देंगे। रोज शाम को प्रेमी जोड़े आएँगे। लेकिन यहाँ ऊर्जा की योजना नाकाम रही। कूड़े का अम्बार उठता गया। लोगों को लगा एक दिन यह आकाश छू लेगा। लेकिन इसके पहले ही यह धसक गया। चारों ओर बिखरे इसके मलबे में कई गाड़ियाँ चिपटी हो गई। हिंडन नदी की नहर में एक दो गाड़ियाँ बह भी गईं। पास के नाले में कूड़ा भर गया। कई लोग दबे। कइयों का अब भी पता नहीं।

वह साल 1984 का था जब दिल्ली के - उत्तरपूर्व गाजीपुर में कूड़े का यह पहाड़ बनाया जाना शुरू हुआ था। इसका इंचार्ज था ईडीएमसी।

इसका जिम्मा है कि पूरी दिल्ली का कूड़ा निपटाने के लिये उपयुक्त जमीन दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों में ढूँढो और वहाँ के गड्ढों को पाटते हुए कूड़े का पहाड़ बनाते जाओ। कूड़ा जमा करने के स्थल के लिये बनी ईडीएमसी दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी (डीडीए) के तहत आती है जो केन्द्र सरकार के अन्तर्गत है। ईडीएमसी ने इस दुर्घटना से अपना पल्ला झाड़ लिया है। इस संस्थान के अधिकारियों का कहना है कि यह सही है कि हमारा काम जमीन के गड्ढों को भरना है लेकिन डीडीए से हम पन्द्रह साल से कूड़ा डालने के लिये स्थल तलाशने को कहते रहे। उन्होंने जो जमीनें सुझाई वे या तो पर्यावरण विशेषज्ञ खारिज कर देते या फिर अदालतों या फिर आस-पास रहने वाले लोग। ऐसे में अब वजीराबाद में घोंडा गुजरान में जगह ली गई।

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एजेंसी दिल्ली पॅल्यूशन कंट्रोल कमेटी ने ईडीएमसी को ढेरों नोटिस भेजे। इसमें अभी हाल की एक नोटिस नवम्बर 2016 का है। उस पर किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। यह जगह कूड़े के अम्बार से पटती गई। तमाम तरह का कूड़ा भी बारिश में सॉलिड होता गया। अब इस कूड़े को जमाना और उसे बगीचे में बदलने का काम भी ईडीएमसी के पास था। यानी (ईडीएमसी) (डिपार्टमेंट ऑफ एनवायरनमेंट मैनेजमेंट सर्विसेज) के ही पास यहाँ का पूरे प्रबन्धन और निगरानी का काम भी था। जब उन लोगों के अधिकारियों से जानकारी चाही गई तो वहाँ के मुख्य इंजीनियर ने साफ किया कि उन्हें कुछ भी बोलने से मना किया गया था।

डीईएमएस के अधिकारी कहते हैं कि इस इलाके में कूड़ा भरने (लैंडफिल) का काम बीस मीटर तक ही होना था क्योंकि उसके बाद यह असुरक्षित रहता। हमने 2002 में ही चेतावनी डीडीए को दे दी थी। लेकिन वह अनसुनी रही। कोशिश की जाती रही कि हम इस स्थल के सुन्दरीकरण से जुटे रहे और वे वैकल्पिक जगह की तलाश की बात कहते रहे।

डीडीए के उपाध्यक्ष उदय प्रताप सिंह ने बताया कि नई जगह घोंडा गुजरान में है जहाँ कूड़े का निपटान सम्भव है। इसके बारे में आखिरी फैसला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को लेना है।

हर रोज स्मार्ट सिटी दिल्ली से दस हजार टन कूड़ा निकलता है। इससे 250 टन पूर्व से होता है जो गाजीपुर में डाला जाता है। हालांकि यह लैंडफिल उसके लिये बना ही नहीं था। जबकि इसे म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट रूल्स 2000 के तहत होना था। जिसके तहत इको-फ्रेंडली वेस्ट मैनेजमेंट फैसिलिटी को मानना अनिवार्य है।

ईडीएमसी के मेयर नीमा भगत का कहना है कि दिल्ली में 2007 के मास्टर प्लान के तहत हमने पाया कि तकरीबन 1500 एकड़ की भूमि (लैंडफिल) के लिये चाहिए। लेकिन डीडीए के पास हमारे लिये उपयुक्त जमीन नहीं थी। पिछले 15 साल में डीडीए ने 14 स्थल ढूँढे जो सभी हमारे लिये अनुपयुक्त थे। हमें इस हादसे के लिये जिम्मेदार ठहराने वाले क्यों इस तथ्य को भूल जाते हैं कि बरसों से हम जमीन माँगते रहे हैं पर अनसुनी होती रही। हम तरह-तरह के उपाय करके गाजीपुर में दबाव कम करते रहे।

नेशनल हाइवे पर स्थित दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस वे पर हमने सॉलिड वेस्ट का इस्तेमाल शुरू किया। इस बारे में 2013 में बातचीत हुई और मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर 2016 में दस्तखत भी हो गए और टेंडर अगस्त 2017 में आमंत्रित किये गए।

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