राजस्थानः श्रीमाली के प्रयास से सूख चुकी राजसमंद झील हुई जिंदा

26 Aug 2020
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राजस्थानः श्रीमाली के प्रयास से सूख चुकी राजसमंद झील झील हुई जिंदा
राजस्थानः श्रीमाली के प्रयास से सूख चुकी राजसमंद झील झील हुई जिंदा

रेतीली जमीन पर बसा राजस्थान जल संकट की दृष्टि से काफी संवेदनशील है। हजारों साल पहले हमारे पूर्वजों ने राजस्थान की इसी धरती पर जल संरक्षण और जल संग्रहण की विभिन्न पांरपरिक तकनीकों को अपनाया था, जिससे लोगों के सामने काफी हद तक जल की समस्या दूर हुई थी। उस दौरान नदी, तालाब और बावड़ियों सहित विभिन्न जल प्रणालियों का संरक्षण भी किया जाता था, लेकिन विकास की अंधी दौड़ की आंधी राजस्थान को भी ले उड़ी। जिससे यहां के वातावरण को काफी नुकसान पहुंचा। राजस्थान के इलाकों को सबसे बड़ा खामियाजा मार्बल के अनियमित खनन से उठाना पड़ा। मार्बल की खानों में खनन से राजसमंद जिला में नौ चैकी झील (राजसमंद झील) सूख गई। झील क्या सूखी मानों पर्यावरणप्रेमियों का दिल टूट गया। इसी झील को शिक्षक दिनेश श्रीमाली के प्रयासों से फिर से पुनर्जीवित किया गया और अब ये पानी से लबालब भरी है। 

राजस्थान में मार्बल का खनन शुरूआत से ही होता आया है। विश्वभर में राजस्थान के मार्बल की मांग है। साथ ही ये भारत में भी बड़े पैमाने पर सप्लाई किया जाता है, लेकिन तब मकराना से निकलने वाले संगमरमर से वैश्विक बाजार की मांग पूरी नहीं हो पा रही थी। एक प्रकार से जितना मार्बल राजस्थान से निकाला जा रहा था, वो बाजार की मांग को पूरा करने के लिए अपर्याप्त था। इसी कारण वर्ष 1982 में मार्बल का खनन काफी तेजी से बढ़ा। मांग को पूरा करने के लिए अनियमित तरीके से खनन किया जाने लगा। धन के लालच और मांग पूरी करने के लिए खनन करने के वैज्ञानिक तरीको का भी पालन नहीं किया गया। मार्बल के खनन में अव्यवस्था का ये दौर वर्ष 1990 तक चला। परिणामतः अवैज्ञानिक और अनियमित खनन से न तो व्यापारियों को लाभ हुआ और न ही जनता को सस्ता मार्बल मिल सका, लेकिन पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा। 

अपनी गलतियों और पर्यावरण को होने वाले नुकसान से भी किसी सरकारी विभाग ने सीख नहीं ली। इसी दौर में औद्योगिक विकास की जरूरत बताकर राजस्थान की ऐतिहासिक राजसमंद झील (जल क्षमता 3750 मीट्रिक घनफीट) को कुर्बान करने की कवायद सिंचाई विभाग ने शुरू कर दी। सिंचाई विभाग ने अनापत्ति प्रमाण पत्र के बिना ही झील के कैचमेंट क्षेत्र में खनन की खानों के प्लाॅट आवंटित कर दिए। ऐसे में अच्छी बारिश होने के बाद भी गोमती नदी का पानी झील में नहीं पहुंच पा रहा था। झील को पानी देने वाली नहरों में खनन के कारण अवरोध उत्पन्न हो गए थे। इससे पानी की मात्रा कम हो गई और फिर 324 साल पुरानी ये झील वर्ष 1999 से वर्ष 2000 में सूख गई।

दिनेश श्रीमाली ने इंडिया वाटर पोर्टल को बताया कि

मैं राजसमंद झील और गोमती नदी के जलागम क्षेत्रों के संरक्षण के लिए वर्ष 1989 से अभियान चला रहा हूं। जब झील को पानी देने वाली नहरों में रुकावट उत्पन्न होने लगी तो मुझे अंदाजा होने लगा था कि इससे झील को खतरा है और झील सूख सकती है। मेरा अंदाजा सही भी निकला। झील को बचाने के हमने कई प्रयास किए, लेकिन झील सूखते ही लगा कि अब छोटे-छोटे प्रयासों से कुछ नहीं होगा। झील को पुनर्जीवित कर पुराने स्वरूप में लाने के लिए आंदोलन करने की जरूरत है।

दिनेश श्रीमाली।

उन्होंने बताया कि मुझे पता था कि झील या तालाब की गाद काफी उपजाऊ होती है। गाद वाली मिट्टी का उपयोग खेतों में किया जा सकता है। इससे फसल काफी अच्छी होती है, लेकिन इतनी बड़ी झील से अकेले गाद निकालना संभव नहीं था। हम चाहते थे कि इस मिट्टी का उपयोग किसान अपने खेतों में करें। इसलिए गाद निकालने की इस मुहिम से किसानों को जोड़ने की योजना बनाई। इससे किसान खुद गाद निकालते और अपने खेतों में डालते। इसकी योजना बनाकर मैंने जिला प्रशासन को सौंपी। प्रशासन ने इसे गैर-व्यावहारिक बताकर पल्ला झाड़ लिया।

इसके बाद भी श्रीमाली अपने निर्णय पर अडिग रहे। उन्होंने अपने कुछ साथियों को साथ लेकर मिट्टी निकालने का निर्णय लिया और अभियान की शुरूआत की। रोज विशालकाय झील में वें अपने कुछ दोस्तों के साथ जाते और मिट्टी निकालते। उनके इस कार्य में प्रकृति और अपनी संस्कृति के प्रति प्रेम की झलक अलग ही दिखती थी। इसी प्रेम के सहारे वे अपनी संस्कृति की प्रतीक इस ऐतिहासिक झील को पुनर्जीवित करने के असंभव कार्य को संभव करने में जुटे रहे। 16वें दिन उनके कार्य पर मीडिया की नजर पड़ी। विभिन्न न्यूजल चैनल और अखबारों ने खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया। इसके बाद विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाएं और प्रशासन भी उनकी मदद में जुट गया। 16वें दिन चली खबर का असर इतना व्यापक स्तर पर हुआ कि 18वें दिन झील में 10 हजार लोग श्रमदान कर रहे थे। 

श्रीमाली ने बताया कि अभियान से बाॅलीवुड फिल्म निदेशक महेश भट्ट और अक्षय कंचन भी जुड़े। उनकी उपस्थिति में पानी पंचायत का गठन किया गया। दो महीने बाद मुझे जिला प्रशासन ने बुलाया और ऑपरेशन भागीरथी की शुरूआत की। 

हालांकि भागीरथी अभियान शुरू होने का मतलब समस्या का समाधान होना नहीं था। वर्ष 2005 में एक नई समस्या खड़ी हो गई थी। बामण टूंकड़ा (राजस्थान में एक स्थान का नाम है) में मार्बल स्लरी का पहाड़नुमा बड़ा-सा ढेर लग गया था। जिस कारण नदी का पानी झील में नहीं आ पा रहा था। लोगों ने इस मार्बल स्लरी से बने पहाड़ को हटाने की मांग की। प्रशासन लोगों की इस बात से सहमत नहीं था। क्योंकि पहाड़ को गिराने से जान-माल की हानि होने का डर था। दिनेश श्रीमाली ने पहाड़ गिराने की बजाय पहाड़ के किनारे झिरी बनाने का सुझाव दिया, ताकि झिरी से पानी निकलकर झील में आ सके। प्रशासन इस काम के लिए भी तैयार नहीं था, लेकिन लोगों के दबाव में मंजूरी मिल गई। फिर स्तरी हटाने के इस काम में प्रशासन और जनता ने तो साथ दिया है, साथ ही मार्बल खनन से जुड़े लोगों (खनन माफियाओं) ने भी पूरा सहयोग किया। क्योंकि सभी को समझ आ गया था कि खनन करना है तो पर्यावरण के साथ तालमेल बैठाकर करना पड़ेगा। 
 

राजसमंद झील।

श्रीमाली ने बताया कि एक झिरी निकालने के लिए लगभग 20 हजार टन मार्बल स्लरी को हटाना पड़ा। जिसमें तीन दिन का समय लगा। वर्ष 2006 में बारिश होते ही गोमती नदी का पानी झील में पहुंचने लगा। इस प्रयास से झील 19 फीट तक भर गई।

एक बार झिरी बना देना समस्या का स्थाई समाधान नहीं था। क्योंकि बारिश के कारण पानी के साथ आने वाली मिट्टी से या फिर किसी अन्य कारण से भी झील को पानी देने वाली नहरों के रास्ते में रुकावट उत्पन्न हो जाती थी। इससे झील में पानी की मात्रा पुनः कम होने लगती थी। इसका एक स्थायी समाधान चाहिए था, जो फिलहाल किसी के पास नहीं था। ऐसे में जलग्रहण का प्राकृतिक प्रवाह क्षेत्र मानवीय गतिविधियों के कारण अव्यवस्थित हो रहा था। परिणामतः राजमार्ग 8 पर 4 फीट तक पानी भर जाता था। सड़के टूटने से आवाजाही प्रभावित होती थी। ऐसा इससिए भी होता था, क्योंकि नदी में पानी के ज्यादा बहाव व मात्रा को नियंत्रित करने के लिए ही झील का निर्माण किया गया था। ताकि अतिरिक्त पानी झील में आए और लोगों को पानी उपलब्ध हो। ये जल संग्रहण और जल संरक्षण का अच्छा माध्यम भी है।

उन्होंने बताया कि इस समस्या से बचने के लिए पुलिया के पास विभिन्न स्थानों पर गहरे गड्ढ़े खोदे गए। बेकार पानी को जलागम क्षेत्र तक पहुंचाने के लिए पाइप डाले गए। इससे झील को पानी मिलने का रास्ता साफ हुआ। फिलहाल झील पानी से लबालब भरी है। साथ ही हमारा अभियान भी निरंतर जारी रहेगा। झील को मिलने वाले पानी के रास्ते में पुनः रुकावट उत्पन्न न हो, इसके लिए लोग अपनी अपनी सीमा में सफाई करते हैं। पत्थर और मार्बल स्लरी को हटाते हैं।


हिमांशु भट्ट (8057170025)

 

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