ए-1 तथा ए-2 दूध पर विवाद


दूध में अक्सर दो प्रकार का बीटा केसीन, ए-1 तथा ए-2 पाया जाता है। बीटा केसीनयुक्त दूध केवल उन्हीं चयनित गायों से प्राप्त होता है जो प्राकृतिक रूप से ए-2 बीटा केसीन बनाती हैं। दूध में पाये जाने वाले सकल प्रोटीन में से लगभग एक तिहाई भाग बीटा केसीन का होता है। यह उच्च कोटि का वह प्रोटीन है जिससे न केवल अमीनो अम्लों की आपूर्ति होती है बल्कि यह पशुओं के कैल्शियम अवशोषण में भी सहायक होता है। दूध में अक्सर दो प्रकार का बीटा केसीन, ए-1 तथा ए-2 पाया जाता है। बीटा केसीनयुक्त दूध केवल उन्हीं चयनित गायों से प्राप्त होता है जो प्राकृतिक रूप से ए-2 बीटा केसीन बनाती हैं। दूध में पाये जाने वाले सकल प्रोटीन में से लगभग एक तिहाई भाग बीटा केसीन का होता है। यह उच्च कोटि का वह प्रोटीन है जिससे न केवल अमीनो अम्लों की आपूर्ति होती है बल्कि यह पशुओं के कैल्शियम अवशोषण में भी सहायक होता है। कुछ लोग लैक्टोज के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं तथा दूध को पचा नहीं सकते। ऐसे लोगों को ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध देने से भी कोई लाभ नहीं होता।

विभिन्न प्रकार की गाएँ विभिन्न प्रकार के प्रोटीन उत्पन्न करने में सक्षम होती हैं। डेयरी गायों में अब तक लगभग 15 प्रकार के बीटा केसीन की खोज हुई है जिनमें ए-1 तथा ए-2 बीटा केसीन प्रमुख हैं। गाय के दूध में ये दोनों ही प्रकार के बीटा केसीन हो सकते हैं। आजकल अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड जैसे कई देशों में ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध एक अलग ब्रांड के नाम से बेचा जाता है जो सामान्य दूध की तुलना में कुछ अधिक दाम पर बिकता है। इस दूध को बेचने वाली कम्पनी ए-2 बीटा केसीन को ए-1 बीटा केसीनयुक्त दूध से बेहतर बताती है, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। जो लोग ए-1 बीटा केसीनयुक्त दूध पचाने में असमर्थ हैं वे अवश्य ही ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध से लाभान्वित हो सकते हैं।

इन देशों में किसान भी ए-2 बीटा केसीन उत्पन्न करने वाली गायों को पालने में अधिक रुचि लेने लगे हैं क्योंकि उन्हें इनके दूध से अपेक्षाकृत अधिक आय होती है। ए-1 बीटा केसीनयुक्त दूध को आँतों की सूजन के लिये उत्तरदायी माना गया है। इससे भोजन नली की सामान्य कार्य प्रणाली पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शायद इसीलिये इन देशों में ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध को एक बेहतर विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।

ए-1 तथा ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध


भारत में ए-1 तथा ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध में कोई भेदभाव नहीं किया जाता क्योंकि यहाँ दूध की माँग आपूर्ति से कहीं अधिक रहती है।

पशु आनुवंशिकी संसाधन को राष्ट्रीय ब्यूरो के अनुसार भारत की 98% गोवंश नस्लें ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध उत्पन्न करने का सामर्थ्य रखती हैं जबकि भैंसों की शत-प्रतिशत नस्लें केवल ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध उत्पादित करती हैं। भारत में पाई जाने वाली होल्सटीन, जर्सी तथा संकर नस्लों में भी अधिकतर ए-2 बीटा केसीन के जीन ही पाये गए हैं, अतः यहाँ ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध के अलग बाजार की सम्भावना नगण्य ही दिखाई देती है।

ए-1 व ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध में क्या अन्तर है?


किसी भी प्रोटीन का निर्माण अमीनो अम्लों की एक लम्बी शृंखला से होता है। बीटा केसीन प्रोटीन की शृंखला 229 अमीनो अम्लों से बनी होती है। जिन गायों में ए-2 बीटा केसीन के जीन पाये जाते हैं उनमें केसीन प्रोटीन शृंखला का 67वाँ अमीनो अम्ल ‘प्रोलीन’ होता है जबकि ए-1 बीटा केसीन उत्पन्न करने वाली गायों में प्रोलीन के स्थान पर ‘हिस्टीडीन’ होता है। प्रोटीन शृंखला में यह परिवर्तन आज से लगभग पाँच हजार साल पहले हुए एक ‘म्यूटेशन’ या आनुवंशिक परिवर्तन के कारण हुआ है।

ए-2 बीटा केसीन वाली गायों में प्रोलीन तथा बी.सी.एम.7 नामक प्रोटीन के मध्य मजबूत ‘बोंड’ या ‘जोड़’ होता है जिससे बी.सी.एम.7 प्रोटीन पशु की भोजन नली, रक्त या मूत्र तक नहीं पहुँच पाता जबकि ‘हिस्टीडीन’ तथा बी.सी.एम.7 के मध्य एक कमजोर ‘बोंड’ होता है तथा यह ए-1 बीटा केसीनयुक्त दूध पीने वाले पशुओं एवं मनुष्यों की भोजन नली में आसानी से पहुँच जाता है।

बी.सी.एम.7 प्रोटीन को कुछ स्नायु रोगों के लिये भी जिम्मेदार बताया गया है। बी.सी.एम.7 प्रोटीन हमारी रोग प्रतिरोधक प्रणाली को प्रभावित करता है जिससे टाइप-1 का मधुमेह रोग हो सकता है। अनुसन्धान द्वारा ज्ञात हुआ है कि ए-1 बीटा केसीनयुक्त दूध पीने तथा हृदय रोग, मधुमेह एवं स्नायु तंत्र से सम्बन्धित रोगों के मध्य गहरा सम्बन्ध है। कहा जाता है कि ऐसे रोगियों का इलाज केवल दूध में पाये जाने वाले प्रोटीन के बदलने से ही हो जाता है।

ए-1 व ए-2 बीटा केसीन की पहचान कैसे हो?


दूध में पाये जाने वाले 80% प्रोटीन केसीन होते हैं जबकि 20% भाग व्हे प्रोटीनों का होता है। दूध के सकल प्रोटीन का 30% भाग बीटा केसीन प्रोटीन होते हैं। गायों द्वारा आरम्भ से ही दूध में ए-2 बीटा केसीन का निर्माण होता आया है तथा इसे स्वास्थ्य हेतु बेहतर भी माना जाता है। यूरोप की गायों में एक प्राकृतिक ‘म्यूटेशन’ होने के कारण दूध की ए-2 बीटा केसीन के गुण बदल गए। ए-2 बीटा केसीन के जीन में परिवर्तन आने से 229 अमीनो अम्लों की शृंखला में 67वाँ अमीनो अम्ल प्रोलीन के स्थान पर हिस्टीडीन हो गया जिसके फलस्वरूप ए-1 बीटा केसीन का निर्माण हुआ।

दूध को देखकर इसके ए-1 तथा ए-2 बीटा केसीनयुक्त होने का अनुमान नहीं लगाया जा सकता परन्तु ‘पीसीआर’ अर्थात पॉलीमरेज चेन रीएक्शन आधारित परीक्षण द्वारा इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। इस विधि में दूध के नमूनों से डीएनए या डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड निकाला जाता है तथा ए-1 या ए-2 ‘प्रोब’ द्वारा उपयुक्त जीन की पहचान की जाती है। यह परीक्षण महंगा होने के कारण आसानी से सुलभ नहीं है।

जब तक देश में ए-1 तथा ए-2 दूध को प्रमाणित करने हेतु कोई संस्था नहीं बनती तब तक लोग इस विषय में जागरूक नहीं हो सकते। यह दुग्ध व्यवसायियों के विवेक पर ही निर्भर करता है कि वे किस दूध को ए-1 या ए-2 बताकर बेचें! पाचन क्रिया से सम्बन्धित एंजाइम 7 अमीनो अम्लों की शृंखला को ए-1 दूध में हिस्टीडीन की उपस्थिति के कारण अलग करने में सफल रहते हैं परन्तु ए-2 दूध में प्रोलीन होने के कारण वे ऐसा नहीं कर पाते। 7 अमीनो अम्लों की यह शृंखला बीटा केसोमॉर्फिन-7 या बीसीएम-7 कहलाती है जिसकी संरचना ‘मोर्फीन’ जैसी होती है। यह मादक पदार्थ प्राकृतिक रूप से नहीं मिलता तथा पाचन तंत्र को प्रभावित करने में सक्षम होता है।

पश्चिमी देशों में रहने वाले कई लोगों को ए-1 दूध हजम नहीं होता परन्तु ए-2 दूध आसानी से पचा लेते हैं। इसके बावजूद भी ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड के बहुत से गो पालक अपनी गायों को केवल ए-2 दूध उत्पादित करते हुए नहीं देखना चाहते क्योंकि इससे यह सिद्ध हो जाएगा कि ए-1 दूध स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। प्रत्येक गाय में बीटा केसीन के कोड की दो प्रतियाँ होती हैं जो ए-1/ए-1, ए-1/ए-2 अथवा ए-2/ए-2 प्रकार की हो सकती हैं परन्तु इन दोनों में से कोई भी जीन ‘डोमिनेट’ नहीं कर सकता। अतः ए-1/ए-2 दूध उत्पन्न करने वाली होल्स्टीन गाय में ए-1 तथा ए-2 बीटा केसीन बराबर मात्रा में पाई जाती है जबकि जर्सी गायों में एक तिहाई जीन ए-1 तथा दो तिहाई जीन ए-2 हो सकते हैं।

ए-1/ए-2 दूध पर गहराता विवाद


ए-1/ए-2 दूध के विषय में सर्वप्रथम विवाद तब हुआ जब वर्ष 1993 में ऑकलैंड विश्वविद्यालय के बॉब इलियट ने बताया कि ए-1 दूध से बच्चों को टाइप-1 का मधुमेह रोग हो सकता है। ऐसे ही अनेक अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि स्नायु तंत्र से सम्बन्धित विकारों से ग्रस्त बच्चों के रक्त में बीटा केसोमॉर्फिन-7 या बीसीएम-7 की औसत से अधिक मात्रा पाई गई है जो ए-1 दूध ग्रहण करने से सम्भव है।

परखनली आधारित परीक्षणों से पता चलता है कि पाचन क्रिया के दौरान बीसीएम-7 केवल ए-1 दूध से ही बन सकता है, परन्तु ए-2 दूध से ऐसा सम्भव नहीं है। बोस्टन के एक विश्वविद्यालय ने पाया है कि पाचन नली की कोशिकाओं में बीसीएम-7 की अधिक मात्रा होने से स्नायु कोशिकाओं में ‘एंटी-ऑक्सीडेंट’ की कमी हो जाती है जिसे ऑटिज्म जैसे विकारों से जोड़कर देखा जाता है परन्तु इस दिशा में अधिक अनुसन्धान करने की आवश्यकता है।

कहा जाता है कि ए-1 दूध से प्राप्त बीटा केसोमॉर्फिन-7 रोग प्रतिरोधक क्षमता कम करती है जिससे टाइप-1 का मधुमेह रोग हो सकता है। राष्ट्रीय डेयरी अनुसन्धान संस्थान के एक अध्ययन के अनुसार चूहों को ए-1 बीटा केसीन खिलाने से ऐसे एंजाइम एवं प्रतिरक्षी नियंत्रकों की मात्रा बढ़ गई जो हृदय रोग एवं दमे से सम्बन्धित हैं। नवजात शिशुओं में बीसीएम-7 की अपेक्षाकृत अधिक मात्रा उनकी अचानक मृत्यु का कारण बन सकती है। ऐसे ही कुछ अनुसन्धानों से प्रेरित होकर न्यूजीलैंड की एक कम्पनी ने ए-2 दूध से निर्मित ‘इन्फेंट फूड’ बाजार में बेचना शुरू कर दिया। उल्लेखनीय है कि बीसीएम-7 प्रोटीन की अमीनो अम्ल शृंखला मानव दूध में पाई जाने वाली बीटा केसीन से मिलती जुलती है तथा इसमें केवल एक ही अमीनो अम्ल का अन्तर है।

कई अन्य अध्ययनों के अनुसार माँ के दूध तथा टाइप-1 के मधुमेह रोग में कोई परस्पर सम्बन्ध नहीं है हालांकि अपरिपक्व भोजन नली के कारण शिशु बीसीएम-7 प्रोटीन अवशोषित कर सकते हैं। बीसीएम-7 स्नायु, अन्तः स्रावी एवं प्रतिरक्षा तंत्र की अनेकों ग्राहियों को प्रभावित कर सकता है परन्तु ए-2 दूध के लाभकारी होने के विषय में अभी और अनुसन्धान करने की आवश्यकता है। अभी यह ज्ञात नहीं है कि बीसीएम-7 कितनी मात्रा में पाचन तंत्र द्वारा अवशोषित हो सकता है। कुछ परीक्षणों में तो ए-1/ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध में कोई अन्तर नहीं पाया गया है।

अभी तक मनुष्य में ए-1 बीटा केसीन के मधुमेह पर पड़ने वाले प्रभाव का कोई अध्ययन नहीं किया गया है। केवल एक परीक्षण किया गया है जिसमें ए-1 बीटा केसीन के कारण हृदय रोग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। ए-1 तथा ए-2 बीटा केसीन का रक्त-चाप, धमनियों एवं अन्य रक्त-प्राचलों पर लगभग एक जैसा प्रभाव ही देखा गया है। अतः यह नहीं कहा जा सकता कि ए-1 बीटा केसीन के सेवन से हृदय रोग होने का खतरा होता है। हालांकि ऑटिज्म जैसे रोगों में बीसीएम-7 जैसे पेप्टाइड की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता परन्तु अधिकतर अध्ययनों में निकले परिणामों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इस दिशा में अभी बहुत से अनुसन्धान करने की आवश्यकता है ताकि किसी तर्कसंगत परिणाम तक पहुँचा जा सके।

निष्कर्ष


दूध में पाये जाने वाले कुछ प्रोटीन मनुष्यों के लिये अधिक असहनीय हो सकते हैं। शायद इसीलिये कुछ लोगों को ए-1 दूध की जगह ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध अधिक रास आता है। आजकल ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध का बाजार बड़ी तेजी से बढ़ रहा है जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। अभी तक ए-1 टाइप दूध तथा खराब स्वास्थ्य के मध्य कोई सम्बन्ध नहीं पाया गया है। न्यूजीलैंड की ए-2 कॉरपोरेशन ने ए-1 व ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध में भेद करने वाले आनुवंशिकी आधारित परीक्षण का पेटेंट करवा लिया है जिससे उनके वाणिज्यिक हित जुड़े हुए हैं।

इस दिशा में होने वाले अधिकतर अनुसन्धानों को मिलने वाली वित्तीय सहायता भी इसी कम्पनी द्वारा दी जाती है। ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड स्वास्थ्य विभाग ने तो इन पर एक बार ए-2 टाइप दूध के तथाकथित लाभों के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर प्रचार करने पर जुर्माना भी लगाया है। ऐसे सभी विरोधों के बावजूद यह कम्पनी अपने उत्पादों का विपणन कई देशों में कर रही है। यह तो अब उपभोक्ता पर ही निर्भर करता है कि वह अपने विवेक से काम लेते हुए किसी भी प्रकार के दूध का सेवन करें क्योंकि दूध एक स्वास्थ्यवर्धक पेय पदार्थ है।

भारत की अधिकतर गाएँ केवल ए-2 टाइप दूध उत्पादित करती हैं जबकि सभी भैंसों का दूध प्राकृतिक रूप से ए-2 ही होता है। ए-2 दूध उत्पन्न करने वाली सभी देशी नस्लें अपने वातावरण के अनुरूप ढली हुई हैं। इनका दूध उत्पादन विदेशी नस्लों की तुलना में कुछ कम हो सकता है जिसे आजकल चयनित प्रजनन द्वारा बढ़ाना सम्भव है। अन्त में यही कहा जा सकता है कि ए-1 व ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध के विषय में छिड़ी बहस तब तक जारी रहने की सम्भावना है जब तक हमें इस दिशा में कोई ठोस वैज्ञानिक परिणाम न प्राप्त हो जाएँ।

लेखक परिचय


श्री अश्विनी कुमार रॉयवरिष्ठ वैज्ञानिक, पशु शरीर-क्रिया विज्ञान विभाग, राष्ट्रीय डेयरी अनुसन्धान संस्थान, करनाल 132 001 (हरियाणा)


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