एग्री-वोल्टाइक प्रणाली: एकल भूमि उपयोग तंत्र में फसल एवं बिजली उत्पादन तथा वर्षा जल संरक्षण

25 Jan 2020
0 mins read
प्रतीकात्मक एग्री-वोल्टाइक प्रणाली
प्रतीकात्मक एग्री-वोल्टाइक प्रणाली

सारांश

एग्री-वोल्टाइक प्रणाली का विचार भविष्य में खाद्य एवं ऊर्जा की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए लाया गया, जिसमें एकल भू उपयोग तंत्र में फसल एवं बिजली, दोनों का उत्पादन किया जा सकता है। राजस्थान का पश्चिमी भाग सौर ऊर्जा के लिए बहुत ही उपयुक्त जगह है, जहाँ वर्ष में तकरीबन 300 दिन प्रचुर मात्रा में सूर्य का धूप मिलता है। व्यावसायिक रूप से उपलब्ध फोटो-वोल्टाइक पैनल की दक्षता 12-15% है और यह भविष्य में संभावित ऊर्जा की जरूरत एवं पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से बहुत ही बढ़िया विकल्प है।

उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर में 105 किलोवाट क्षमता की एग्री-वोल्टाइक प्रणाली की स्थापना की गयी। समग्र प्रणाली में फोटो- वोल्टाइक सारणी के बीच जमीन में खेती के लिए परीक्षण हेतु तीन अलग-अलग ब्लॉक (36×36 मी.) में तीन प्रकार की डिजाइनों में फोटो-वोल्टाइक मॉड्यूल की स्थापना की गयी, जिसमें फोटो- वोल्टाइक सारणी की दो पंक्तियों के बीच 3 मीटर, 6 मीटर एवं 9 मीटर दूरी रखी गयी। स्थापित एग्री-वोल्टाइक में फसल एवं बिजली उत्पादन के साथ-साथ सौर पैनल के ऊपर गिरी वर्षा को एक आयताकार गटरध्चैनल के द्वारा इकठ्ठा कर 1 लाख लीटर क्षमता के एक वर्षा जल संचयन संरचना (टाँका) में संरक्षित किया गया।

फोटो- वोल्टाइक प्रणाली को इस तरह से डिजाइन किया गया कि दो सारणियों के बीच उपयुक्त फसलें ली जा सके। ऐसी प्रणाली में इस प्रकार की फसल का चुनाव किया गया जो कम ऊँचाई वाली हो तथा जिसके लिए कम जल की आवश्यकता हो। इस बात को ध्यान में रखते हुये 2017 की खरीफ फसलों के रूप में मोंठ, मूँग एवं ग्वार फसल को, जबकि 2018 की खरीफ फसलों के रूप में मोंठ, मूँग एवं लोबिया फसल को लगाया गया, जिनकी अच्छी पैदावार हुई। फोटो- वोल्टाइक सारणी की दो पंक्तियों के बीच 3 मीटर दूरी वाली सारणियों के बीच 2017 में शंखपुष्पी, घृतकुमारी एवं सोनामुखी को लगाया गया, जबकि 2018 में बैंगन एवं मिर्च की खेती की गयी।

जोधपुर में विद्युत उत्पादन के लिए प्रति दिन तकरीबन 4-5 घंटे के लिए सौर ऊर्जा उपलब्ध होती है। इस हिसाब से 1 किलोवाट फोटो- वोल्टाइक प्रणाली से 4-5 किलोवाट बिजली प्रतिदिन मिल सकता है और 105 किलोवाट क्षमता वाली एग्री-वोल्टाइक प्रणाली से एक खुले दिन में (बादल रहित) 420 किलोवाट बिजली मिल सकेगी। एग्री-वोल्टाइक प्रणाली की नेट मीटर के द्वारा ग्रिड संयोजकता की गयी है। वर्ष 2018 में प्रत्येक महीने औसतन 10,000 kWh बिजली उत्पादित की गयी।

स्थापित सौर पीवी मॉड्यूल का कुल सतही क्षेत्रफल 651 वर्ग मी. है। वर्षा जल संचयन संरचना (टाँका) का निर्माण 70% वार्षिक संभावित वर्षामान, 280 मिमी. पर किया गया। 2017 के वर्षा काल में वस्तुतः सौर पैनल के 431.4 वर्ग मी. सतही क्षेत्रफल से ही वर्षा जल को प्राप्त किया गया। 20 जुलाई - 15 सितम्बर, 2017 के दौरान कुल 202.9 मिमी. वर्षा दर्ज की गयी और इस प्रकार 62,583 लीटर वर्षा जल का संचयन किया जा सका। इस प्रकार, प्रणाली दक्षता 69.2 प्रतिशत पायी गयी। इसी प्रकार वर्ष 2018 में वर्षा संरक्षण के लिए सौर पीवी के पूरे क्षेत्रफल यानि 651 वर्ग मी. का इस्तेमाल किया गया और जून 1- अगस्त 31 तक 213.1 मिमी. प्राप्त वर्षा जल के लिए प्रणाली दक्षता 64.3% के साथ 71,300 लीटर वर्षा जल संचित किया जा सका।

Abstract

The idea of agri-voltaic system was brought in keeping with the needs of food and energy in future, in which both crop and electricity can be produced in a single land use system. The western part of Rajasthan is a very suitable place for solar energy, where there is abundant sunlight for about 300 days in a year. Commercially available photo-voltaic panels have an efficiency of 12–15% and are an excellent choice for future potential energy needs and environmental protection.

Keeping in view the above facts, a 105 kW capacity agri-voltaic system was established at Central Arid Zone Research Institute, Jodhpur. In the overall system, photo-voltaic modules were installed in three types of designs in three different blocks (36 x 36 m) for testing for field cultivation between photo-voltaic arrays, in which distance of 3, 6 and 9 meters was placed between the two photo-voltaic rows. In the established agri-voltaic system the rainwater was harvested from the solar panel top, collected through a rectangular gutter/ channel and conserved in a rainwater harvesting structure (Tanka) of 1 lakh liter capacity along with crop and electricity generation.

The agri-voltaic system was designed in such a way that suitable crops can be taken between the two solar rows. Crops were selected preferably of short height and requiring less water under this system. Keeping this in view, moth bean, moong bean and clusterbean crops were raised in kharif season of 2017, while moth bean, moongbean and cowpea crops were raised in kharif season of 2018, which yielded good yields. Shankhapushpi, Ghritkumari and Sonamukhi were raised in 2017 while brinjal and chilli were cultivated in 2018 between two rows of agri-voltaic arrays.

Solar energy is available for about 4-5 hours per day for electricity generation in Jodhpur. Accordingly, a 1 kW photo-voltaic system can provide 4-5 kW electricity per day and a 105 kW capacity agri-voltaic system will generate 420 kW of electricity in a cloudless day. The grid connectivity is done by the net meter of the agri-voltaic system. On an average 10,000 kWh of electricity was produced each month in the year 2018.

The total surface area of installed solar PV modules is 651 m2. Construction of rainwater harvesting structure (Tanka) was done on 70% annual rainfall probability of 280 mm. In the rainy season of 2017 rainwater was harvested from the actual surface area of 431.4 m2. During 20 July-15 September 2017, a total of 202.9 mm rainfall was recorded and 62,583 liters of rainwater could be collected. Thus, system efficiency was found to be 69.2%. Similarly, in the year 2018, the entire area of solar PV panel 651 m2 was used and against received rainfall of 213.1 mm, 71,300 liters of rainwater could be stored with 64.3% system efficiency during the period June 1- August 31.

परिचय

मानव सभ्यता के लिए ऊर्जा और भोजन दो मुख्य आवश्यकताएँ हैं और इन दोनों संसाधनों की माँग तेजी से बढ़ रही है। विश्व में जीवाश्म ईंधन और ईंधन के दूसरे स्रोतों का तेजी से ह्यस हो रहा है और आने वाले समय में इसके विकल्प तलाशने की आवश्यकता है। भविष्य में खाद्य एवं ऊर्जा की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एग्री-वोल्टाइक प्रणाली का विचार लाया गया, जिसमें एकल भू-इकाई में फसल एवं बिजली, दोनों का उत्पादन किया जा सकता है। साथ ही, एग्री-वोल्टाइक प्रणाली में सौर पैनल के ऊपर गिरी वर्षा को इक्ट्ठा कर संरक्षित भी किया जा सकता है। व्यावसायिक रूप से उपलब्ध फोटो-वोल्टाइक पैनल की दक्षता 12-15% है और संभावित ऊर्जा की जरूरत एवं पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से यह समयोचित विकल्प है। राजस्थान का पश्चिमी भाग सौर ऊर्जा के लिए बहुत ही उपयुक्त स्थान है, जहाँ वर्ष में तकरीबन 300 दिन प्रचुर मात्रा में सूर्य की धूप मिलती है।

2. अध्ययन क्षेत्र

शुष्क पश्चिमी भारत में मुख्य रूप से राजस्थान के पश्चिमी भाग, गुजरात के उत्तर-पश्चिमी भाग, हरियाणा के उत्तर पूर्वी भाग तथा पंजाब राज्य के पूर्वी भाग के कुछ हिस्से शामिल हैं। देश के बाकी हिस्सों की तुलना में इन क्षेत्रों में सूर्य का विकिरण अधिक है। भारत में क्षैतिज सतह पर औसत विकिरण 5.6 kWh m-2 day-1 है जबकि जोधपुर में 6.11 kWh m-2 day-1 है। पश्चिमी राजस्थान के सौर संसाधन मानचित्र से पता चलता है कि पश्चिमी भारत में सौर विकिरण की अधिकतम मात्रा प्राप्त होती है जबकि भारत का प्रमुख भाग (लगभग140 मिलियन हेक्टेयर) 5-5.5 kWh m-2 day-1 का सौर विकिरण प्राप्त कर रहा है। जोधपुर में, विकिरण की अधिकतम मात्रा अप्रैल के महीने (7.17 kWh m-2 day-1) के दौरान प्राप्त होती है, जबकि विकिरण की न्यूनतम मात्रा दिसंबर के महीने (5.12 kWh m-2 day-1) के दौरान प्राप्त होती है। कुल मिलाकर जोधपुर में एक वर्ष के दौरान 6390 kWh सौर ऊर्जा उपलब्ध है। इसके अलावा, जोधपुर में एक वर्ष में अधिकांश दिन बादल मुक्त होते हैं जहाँ वर्ष में तकरीबन 300 दिन प्रचुर मात्रा में सूर्य का धूप मिलता है।

3. एग्री-वोल्टाइक प्रणाली का प्रारूप (design) 3.1.फोटो-वोल्टाइक (पीवी) मॉड्यूल की स्थापना उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर में 105 किलोवाट क्षमता की एग्री-वोल्टाइक प्रणाली की स्थापना की गयी। समग्र प्रणाली में फोटो-वोल्टाइक सारणी के बीच जमीन में खेती के लिए परीक्षण हेतु तीन अलग-अलग ब्लॉक (36 ग 36 मी.) में तीन प्रकार की डिज़ाइनों में पीवी मॉड्यूल की स्थापना की गयी, जिसमें फोटो-वोल्टाइक सारणी की दो पंक्तियों के बीच 3 मीटर, 6 मीटर एवं 9 मीटर दूरी रखी गयी। स्थापित एग्री-वोल्टाइक प्रणाली को चित्र 1 में दिखाया गया है।

3.2. फसल विकल्प

फसलों को उगाने के लिए पीवी सारणियों और पैनल क्षेत्र के नीचे योजना तैयार की गई। फोटो-वोल्टाइक प्रणाली को इस तरह से डिज़ाइन किया गया कि दो सारणियों के बीच उपयुक्त फसलें ली जा सके। फसलों की ऊँचाई एग्री-वोल्टाइक प्रणाली के लिए फसलों के चयन के लिए एक प्रमुख प्राचल (parameter) है क्योंकि उच्च फसलें पीवी मॉड्यूल पर छाया पैदा कर सकती हैं और इस तरह पीवी उत्पादन को कम कर सकती हैं। ऐसी प्रणाली में इस प्रकार की फसल का चुनाव किया गया जो कम ऊँचाई वाली (सामान्यतः 50 सेमी से कम) हो, जिसके लिए कम जल की आवश्यकता हो और जो कुछ हद तक छाया को सहन करती हो। चित्र 2 में वर्ष 2017 के खरीफ मौसम में ली गई एक उपयुक्त फसल को दिखाया गया है।

3.3. जल संचयन प्रणाली

एग्री-वोल्टाइक प्रणाली में पीवी मॉड्यूल की ऊपरी सतह से बारिश का पानी एकत्र करना संभव है। इसलिए, एग्री-वोल्टाइक प्रणाली में वर्षा जल संचयन प्रणाली का डिजाइन विकसित किया गया। इसके लिए सौर पैनल के ठीक नीचे सपोर्ट प्रणाली देकर जीआई शीट (एक पंक्ति के लिए 29 मी. लम्बा, 4 इंच चौड़ा एवं 3-5 इंच गहरा) एक आयताकार गटर/चैनल तैयार किया गया और पानी के लगातार बहाव के लिए इसकी लंबाई में 0.5 प्रतिशत की ढाल (स्लोप) दी गयी। इसके दूसरे छोर को भूमिगत पीवीसी पाइप (3 इंच/4 इंच) से जोड़ा गया एवं जल संग्रहण के लिए 1 लाख लीटर क्षमता का एक उप-सतह वर्षाजल संग्रहण संरचना (टाँका) तैयार किया गया। सौर पैनल के ऊपर गिरी वर्षा को गटर/चैनल के द्वारा इक्ट्ठा कर टाँका में संरक्षित किया गया। जल संचयन की पूरी प्रणाली को चित्र 3 एवं 4 में दिखाया गया है।

4. एग्री-वोल्टाइक प्रणाली के लाभ

4.1.विद्युत उत्पादन

जोधपुर में विद्युत उत्पादन के लिए प्रति दिन तकरीबन 4-5 घंटे के लिए सौर ऊर्जा उपलब्ध होती है। इस हिसाब से 1 किलोवाट फोटो- वोल्टाइक प्रणाली से 4-5 किलोवाट बिजली प्रतिदिन मिल सकती है और 105 किलोवाट क्षमता वाली एग्री-वोल्टाइक प्रणाली से एक खुले दिन में (बादल रहित) 420 किलोवाट बिजली मिल सकेगी। हमारे अध्ययन में एग्री-वोल्टाइक प्रणाली की नेट मीटर के द्वारा ग्रिड संयोजकता की गयी थी। उत्पन्न बिजली को सीधे राज्य बिजली बोर्ड को एक निश्चित शुल्क/ टैरिफ पर बेची जा रही है। विद्युत शुल्क की दर भारत के विभिन्न राज्यों में भिन्न है। पीवी उत्पन्न बिजली से आय की गणना करने के लिए 5/- रूपये प्रति किलोवाट की औसत टैरिफ दर को माना जा सकता है। वर्ष 2018 में प्रत्येक महीने औसतन 10,000 kWh बिजली उत्पादित की गयी।

4.2. फसल उत्पादन

एग्री-वोल्टाइक प्रणाली में, फसलों की खेती, पीवी सारणियों के बीच और पीवी सारणियों के नीचे के क्षेत्रों में की जा सकती है। हमारे अध्ययन में फसलों की खेती के लिए सारणियों के बीच उपलब्ध क्षेत्र और नीचे पीवी मॉड्यूल का क्षेत्र कुल ब्लॉक क्षेत्र का क्रमशः 49% और 24% था। ब्लॉक के बाकी क्षेत्रों को कृषि यंत्रों के उपयोग और अन्य उद्देश्यों के लिए छोड़ दिया गया। वर्ष 2017 की खरीफ फसलों के रूप में मोंठ, मूँग एवं ग्वार फसल को, जबकि 2018 की खरीफ फसलों के रूप में मोंठ, मूँग एवं लोबिया फसल को लगाया गया, जिनकी अच्छी पैदावार हुई। फोटो-वोल्टाइक सारणी की दो पंक्तियों के बीच 3 मीटर दूरी वाली सारणियों के बीच 2017 में शंखपुष्पी, घृतकुमारी एवं सोनामुखी को लगाया गया, जबकि 2018 में बैंगन एवं मिर्च की खेती की गयी। दोनों ही वर्ष रबी फसल के तौर पर चना, ईसबगोल एवं जीरा फसलों की सफलतापूर्वक खेती की गयी।

4.3. वर्षा जल संचयन

स्थापित सौर पीवी मॉड्यूल का कुल सतही क्षेत्रफल 641.5 वर्ग मी. है। वर्षा जल संचयन संरचना (टाँका) का निर्माण 70% वार्षिक संभावित वर्षामान, 280 मिमी. पर किया गया। 2017 के वर्षा काल में वस्तुतः सौर पैनल के 431.4 वर्ग मी. सतही क्षेत्रफल से ही वर्षा जल को प्राप्त किया गया। 20 जुलाई-15 सितम्बर, 2017 के दौरान कुल 202.9 मिमी. वर्षा दर्ज़ की गयी और 62,583 लीटर वर्षा जल का संचयन किया जा सका। इस प्रकार, प्रणाली दक्षता 69.2 प्रतिशत पायी गई। इसी प्रकार वर्ष 2018 में वर्षा संरक्षण के लिए सोर पीवी के पूरे क्षेत्रफल यानि 641.5 वर्ग मी. का इस्तेमाल किया गया और जून 1 - अगस्त 31 तक 213.1 मिमी. प्राप्त वर्षा जल के लिए प्रणाली दक्षता 64.3% के साथ 87,890 लीटर वर्षा जल संचित किया जा सका। सौर प्लेट पर वर्षापात में बिखराव (splash) और जल संचारण हानि (conveyance loss) के कारक को देखते हुए, विकसित वर्षा जल संचयन प्रणाली की क्षमता लगभग 60-70% है। टाँका में संग्रहित पानी का उपयोग एग्री-वोल्टाइक प्रणाली में उगाई जाने वाली फसलों को पूरक सिंचाई प्रदान करने के साथ ही पीवी मॉड्यूल की ऊपरी सतह से जमा धूल साफ करने के लिए किया गया। संग्रहित पानी के उपयोग से फसलों की अनुपूरक सिंचाई के लिए 1 एकड़ क्षेत्र में 37.5 मिमी. सिंचाई प्रदान करने की क्षमता है।

5. एग्री-वोल्टाइक प्रणाली की लागत

हमारे अध्ययन में एग्री-वोल्टाइक प्रणाली के पीवी मॉड्यूल को 49.84 रूपये प्रति डब्ल्यूपी की कीमत दर पर स्थापित किया गया था, इस प्रकार 105 किलोवाट क्षमता वाली प्रणाली को विकसित करने में 52,33,200 रूपये की लागत आई। यदि प्रत्येक दिन न्यूनतम 4 किलोवाट इकाई बिजली उत्पन्न होती है तो जोधपुर स्थिति के लिए जहाँ वर्ष में 300 दिन प्रचुर मात्रा में धूप मिलती है, पीवी उत्पन्न बिजली की बिक्री से होने वाली प्रति वर्ष आय 105 किलोवाट क्षमता वाली प्रणाली से 5/- रूपये प्रति किलोवाट की औसत बिक्री मूल्य की दर से 6,30,000/- रूपये होगी। इस प्रकार प्रणाली की लागत 9-10 वषोर्ं में वसूल की जा सकती है। पीवी मॉड्यूल की कार्यक्षमता अवधि सामान्यतः 25 वर्ष होती है। 10 वर्ष के बाद पीवी मॉड्यूल की कार्यक्षमता 90%, 20 वर्ष के बाद 80% और जीवन चक्र के अंत में (25 वर्ष बाद) लगभग 75% होती है। इसलिए, विशेष रूप से देश के शुष्क क्षेत्रों में एग्री-वोल्टाइक प्रणाली की स्थापना भविष्य के लिए व्यवहार्य विकल्प हो सकती है।

निष्कर्ष

भा.कृ.अनु.प.- केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर में एग्री-वोल्टाइक प्रणाली को डिज़ाइन और विकसित किया गया, जिसके माध्यम से बिजली पैदा करने के साथ-साथ भूमि के एक टुकड़े से फसल का उत्पादन भी किया जा सकता है। वर्तमान अध्ययन में, भूमि आधारित सौर पीवी स्थापना में प्राप्त वर्षा जल के साथ फसल गतिविधि की व्यवहार्यता पर चर्चा की गई है। यह देखा गया है कि सौर पीवी स्थापना प्रणाली के 49% भूमि क्षेत्र का उपयोग फसलों की खेती के लिए किया जा सकता है, जिसे अन्यथा परती के रूप में छौड़ देना पड़ता। सौर प्रणाली सारणियों के बीच वाले क्षेत्रों में उगाई जाने वाली चुनिंदा फसलों में से कुछ हैं- मूँगबीन, मोथबीन, ग्वारफली (क्लस्टरबिन), इसबगोल, जीरा, चना, लोबिया, बैंगन, आदि। इनके अलावा, औषधीय पौधों में सोनामुखी, शंखपुष्पी, घृतकुमारी आदि उगाए जा सकते हैं। ये सभी फसलें आम तौर पर कम ऊँचाई वाली फसलें होती हैं और इन्हें कम मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है और इस प्रकार यह एग्री-वोल्टाइक प्रणाली के लिए उपयुक्त हैं। इसके अतिरिक्त, सौर पैनल की ऊपरी सतह पर होते वर्षापात को उचित माध्यम के द्वारा संरक्षित भी किया जा सकता है। भंडारित पानी का उपयोग रबी सीजन के दौरान फसलों के पूरक सिंचाई के रूप में किया जा सकता है। पीवी उत्पन्न बिजली से वार्षिक आय का अनुमान 6000/- रुपए प्रति किलोवाट के रूप में लगाया गया है, जबकि इस तरह की प्रणाली की स्थापना के लिए लागत 49,840/- रुपये प्रति किलोवाट है और इस प्रकार प्रणाली से 9-10 वषोर्ं के अंदर लागत वसूली की जा सकती है।

Posted by
Attachment
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading