एक बहस-समवर्ती सूची में पानी

19 May 2016
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प्यास किसी की प्रतीक्षा नहीं करती। अपने पानी के इन्तजाम के लिये हमें भी किसी की प्रतीक्षा नहीं करनी है। हमें अपनी जरूरत के पानी का इन्तजाम खुद करना है। देवउठनी ग्यारस का अबूझ सावा आये, तो नए जोहड़, कुण्ड और बावड़ियाँ बनाने का मुहूर्त करना है। आखा तीज का अबूझ सावा आये, तो समस्त पुरानी जल संरचनाओं की गाद निकालनी है; पाल और मेड़बन्दियाँ दुरुस्त करनी हैं, ताकि बारिश आये, तो पानी का कोई कटोरा खाली न रहे।

जल नीति और नेताओं के वादे ने फिलहाल इस एहसास पर धूल चाहे जो डाल दी हो, किन्तु भारत के गाँव-समाज को अपना यह दायित्व हमेशा से स्पष्ट था। जब तक हमारे शहरों में पानी की पाइप लाइन नहीं पहुँची थी, तब तक यह दायित्वपूर्ति शहरी भारतीय समुदाय को भी स्पष्ट थी, किन्तु पानी के अधिकार को लेकर अस्पष्टता हमेशा बनी रही।

याद कीजिए कि यह अस्पष्टता, प्रश्न करने वाले यक्ष और जवाब देने वाले पाण्डु पुत्रों के बीच हुई बहस का भी मुद्दा थी। सवाल आज भी कायम हैं कि कौन सा पानी किसका है? बारिश की बूँदों पर किसका हक है? नदी-समुद्र का पानी किसका है? तल, वितल, सुतल व पाताल का पानी किसका है? सरकार, पानी की मालकिन है या सिर्फ ट्रस्टी? यदि ट्रस्टी, सौंपी गई सम्पत्ति का ठीक से देखभाल न करे, तो क्या हमें हक है कि हम ट्रस्टी बदल दें?

पानी की हकदारी को लेकर मौजूँ इन सवालों में जल संसाधन सम्बन्धी संसदीय स्थायी समिति की ताजा सिफारिश ने एक नई बहस जोड़ दी है। बीती तीन मई को सामने आई रिपोर्ट ने पानी को समवर्ती सूची में शामिल करने की सिफरिश की है। स्थायी समिति की राय है कि यदि पानी पर राज्यों के बदले, केन्द्र का अधिकार हो, तो बाढ़-सुखाड़ जैसी स्थितियों से बेहतर ढंग से निपटना सम्भव होगा। क्या वाकई यह होगा?

बाढ़-सुखाड़ से निपटने में राज्य क्या वाकई बाधक हैं? पानी के प्रबन्धन का विकेन्द्रित होना अच्छा है या केन्द्रित होना? समवर्ती सूची में आने से पानी पर एकाधिकार, तानाशाही बढ़ेगी या घटेगी? बाजार का रास्ता आसान हो जाएगा या कठिन? स्थायी समिति की सिफारिश से उठे इस नई बहस में जाने के लिये जरूरी है कि हम पहले समझ लें कि पानी की वर्तमान संवैधानिक स्थिति क्या है और पानी को समवर्ती सूची में लाने का मतलब क्या है?

वर्तमान संवैधानिक स्थिति के अनुसार जमीन के नीचे का पानी उसका है, जिसकी जमीन है। सतही जल के मामले में अलग-अलग राज्यों में थोड़ी भिन्नता जरूर है, किन्तु सामान्य नियम है कि निजी भूमि पर बनी जल संरचना का मालिक, निजी भूमिधर होता है।

ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्रफल में आने वाली एक तय रकबे की सार्वजनिक जल संरचना के प्रबन्धन व उपयोग तय करने का अधिकार ग्राम पंचायत का होता है। यह अधिकतम रकबा सीमा भिन्न राज्यों में भिन्न है। भौगोलिक क्षेत्रफल के हिसाब से यही अधिकार क्रमशः जिला पंचायतों, नगर निगम/नगर पालिकाओं और राज्य सरकारों को प्राप्त है।

इस तरह आज की संवैधानिक स्थिति में पानी, राज्य का विषय है। इसका एक मतलब यह है कि केन्द्र सरकार, पानी को लेकर राज्यों को मार्गदर्शी निर्देश जारी कर सकती है; पानी को लेकर केन्द्रीय जलनीति व केन्द्रीय जल कानून बना सकती है, लेकिन उसे जैसे का तैसा मानने के लिये राज्य सरकारों को बाध्य नहीं कर सकती।

राज्य अपनी स्थानीय परिस्थितियों और जरूरतों के मुताबिक बदलाव करने के लिये संवैधानिक रूप से स्वतंत्र हैं। लेकिन राज्य का विषय होने का मतलब यह कतई नहीं है कि पानी के मामले में केन्द्र का इसमें कोई दखल नहीं है। केन्द्र को राज्यों के अधिकार में दखल देने का अधिकार है, किन्तु सिर्फ-और-सिर्फ तभी कि जब राज्यों के बीच बहने वाले कोई जल विवाद उत्पन्न हो जाये।

इस अधिकार का उपयोग करते हुए ही तो एक समय केन्द्र सरकार द्वारा जल रोकथाम एवं नियंत्रण कानून-1974 की धारा 58 के तहत केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केन्द्रीय भूजल बोर्ड और केन्द्रीय जल आयोग का गठन किया गया था। धारा 61 केन्द्र को केन्द्रीय भूजल बोर्ड आदि के पुनर्गठन का अधिकार देती है और धारा 63 जल सम्बन्धी ऐसे केन्द्रीय बोर्डों के लिये नियम-कायदे बनाने का अधिकार केन्द्र के पास सुरक्षित करती है।

पानी के समवर्ती सूची में आने से बदलाव यह होगा कि केन्द्र, पानी सम्बन्धी जो भी कानून बनाएगा, उन्हें मानना राज्य सरकारों की बाध्यता होगी। केन्द्रीय जलनीति हो या जल कानून, वे पूरे देश में एक समान लागू होंगे। पानी के समवर्ती सूची में आने के बाद केन्द्र द्वारा बनाए जल कानून के समक्ष, राज्यों के सम्बन्धित कानून स्वतः निष्प्रभावी हो जाएँगे।

जल बँटवारा विवाद में केन्द्र का निर्णय अन्तिम होगा। नदी जोड़ परियोजना के सम्बन्ध में अपनी आपत्ति को लेकर अड़ जाने को अधिकार समाप्त हो जाएगा। केन्द्र सरकार, नदी जोड़ परियोजना को बेरोक-टोक पूरा कर सकेगी। समिति के पास पानी समवर्ती सूची में लाने के पक्ष में कुल जमा तर्क यही हैं।

यह भी तर्क इसलिये हैं कि केन्द्र सरकार सम्भवतः नदी जोड़ परियोजना को भारत की बाढ़-सुखाड़ की सभी समस्याओं को एकमेव हल मानती है और समवर्ती सूची के रास्ते इस हल को अंजाम तक पहुँचाना चाहती है। क्या यह सचमुच एकमेव व सर्वश्रेष्ठ हल है? पानी को समवर्ती सूची में कितना जायज है, कितना नाजायज?

पानी कार्यकर्ता और नामचीन विशेषज्ञ की राय क्या है? जानने के लिये हिन्दी वाटर पोर्टल पर प्रकाशित लेख का भाग-दो पढ़ें।

एक बहस-समवर्ती सूची में पानी- भाग-2
 

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