एक दूजे के लिये बने मछली-पानी

23 Nov 2015
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विश्व मत्स्य दिवस, 21 नवम्बर 2015 पर विशेष


हमने अपने कृत्यों से समुद्र और नदी ही नहीं, मछलियों का जीना भी मुहाल कर रखा है। मछलियों की कितनी किस्मों के दर्शन अब हमने दुर्लभ बना दिये हैं। मूर्ति विसर्जन जैसी गतिविधियों से उन्हें बीमार बना रहे हैं। दुनिया नदी व समुद्र को छोड़कर, अन्य जल ढाँचों में मछली पालने के मामले में भारत दुनिया का नम्बर एक देश है। किन्तु नदियों में पलने वाली मछलियों की भारत ने खूब उपेक्षा की है। नदी मछली जीवन प्रबन्धन पर हमारी कोई दृष्टि व ललक नहीं है। उलटे, बाँधों, बैराजों, प्रदूषकों और जल निकासी के जरिए हमने मछलियों पर बुरा असर डाला है। मछली मारना, कई के लिये एक शगल है, तो किसी के लिये पेट भरने की मज़बूरी। बिहार, बंगाल जैसे इलाकों में मछली एक ऐसा भोजन है, जिसे ग्रहण करने में ब्राह्मण वर्ण के लोगों को स्वीकार्य है। भोजन के अलावा, मछली के तेल आदि का इस्तेमाल औषधि के रूप में भी किया जाता है।

मछली से मिलने वाली पौष्टिकता भी इससे आहार के लिये स्वीकार्य बनाती है। इसके अलावा मछली का और कोई भी उपयोग है? ऐसा प्रश्न करने पर सामान्य तौर पर ‘नहीं’ में उत्तर आता है। मछली पालन करने वाले भी यही उत्तर देते हैं। “बोल मेरी मछली कित्ता पानी....’’ छुटपन से यह कविता पढ़कर बड़े हुए, फिर भी हमें याद नहीं रहता।

सिर्फ भोजन नहीं मछली


हम अक्सर भूल जाते हैं कि मछली, भोजन के अलावा भी बहुत कुछ है। कुछ नहीं, तो इस कविता से इतना तो याद रखते कि मछली, नदियों के पानी की गहराई बताने का भी काम करती हैं। किस नदी और कैसे पानी में कौन सी मछली मिलती है? इस प्रश्न का उत्तर जानने वाले मछुआरे व विज्ञानी..दोनों के लिये मछली, नदी की नाप, सेहत और दिशा का औजार भी है।

रानी भी, दासी भी


“मछली, जल की रानी है..’’ ये बचपन में पढ़ी कविता के सिर्फ बोल नहीं है, मछली, सचमुच पानी में रहने वालों की रानी है; एक ऐसी रानी, जिसे गन्दगी पसन्द नहीं; जो खुद पानी को साफ करती है। इस नाते, मछली, चाहे समुद्र में हो या फिर नदी, तालाब, झील में, वह रानी भी है और दासी भी। यूँ शैवाल व अन्य वनस्पतियाँ, मछली का भोजन होते हैं, किन्तु वह पानी में मौजूद कचरे को खाकर उसे स्वच्छ करने में हमारी मदद करती है। समुद्री कचरे पर एक ताजा शोध इस दिशा में प्रमाण देता है।

मछली, सहयोगी: इंसान, विरोधी


हमें याद करना चाहिए कि मछली की उछल-कूद और लगातार गतिमान रहने से पानी में जो हलचल होती है, वह पानी के लिये कितनी लाभदायक है? इससे पानी के भीतर ऑक्सीकरण की प्रक्रिया को कितनी मदद मिलती है? सोचिए, एक तरफ मछलियाँ हैं कि जो पानी में प्राणवायु बढ़ाने में मदद का काम करती हैं, दूसरी तरफ हम इंसान हैं कि जो नदी से प्राणवायु छीनने का काम करते हैं! मछली, कोई एक काम ऐसा नहीं करती, जिससे इंसानों का कोई नुकसान होता हो।

हम हैं कि हमने अपने कृत्यों से समुद्र और नदी ही नहीं, मछलियों का जीना भी मुहाल कर रखा है। मछलियों की कितनी किस्मों के दर्शन अब हमने दुर्लभ बना दिये हैं। मूर्ति विसर्जन जैसी गतिविधियों से उन्हें बीमार बना रहे हैं।

दुनिया नदी व समुद्र को छोड़कर, अन्य जल ढाँचों में मछली पालने के मामले में भारत दुनिया का नम्बर एक देश है। किन्तु नदियों में पलने वाली मछलियों की भारत ने खूब उपेक्षा की है। नदी मछली जीवन प्रबन्धन पर हमारी कोई दृष्टि व ललक नहीं है। उलटे, बाँधों, बैराजों, प्रदूषकों और जल निकासी के जरिए हमने मछलियों पर बुरा असर डाला है।

इसीलिये मत्स्य दिवस


हमारी इन्हीं हरकतों की वजह से आये संकट के कारण विश्व दिवसों में एक दिवस, विश्व मत्स्य दिवस के नाम से भी जुड़ गया है। 21 नवम्बर को यह दिवस मनाया जाता है। मछली की महत्ता बताने के लिये इस वर्ष भी विश्व मत्स्य दिवस के आयोजन हुए। उड़ीसा में भी एक आयोजन हुआ। लक्ष्य था: मछली संरक्षण के लिये समुद्री तट नियमन क्षेत्र (कोस्ट्रल रेगुलेशन ज़ोन ‘सीआरज़ेड’) सम्बन्धी अधिसूचना तथा समुद्र तटीय संस्थानों को शक्ति देना। कोस्ट काउंसिल एनयूएए, सीपीआर तथा उड़ीसा ट्रेडिशनल फिश वर्कर्स यूनियन के साथ मिलकर यह आयोजन किया।

अधिसूचना की पालना जरूरी


कोस्ट काउंसिल के संयोजक श्री सुदर्शन क्षोत्रय से प्राप्त ई-मेल में कहा गया है कि उड़ीसा के पास 482 लम्बे तट हैं। प्राकृतिक आपदा और जलवायु परिवर्तन ने इन पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। उड़ीसा के 12 तटीय इलाकों को खासतौर संकटग्रस्त माना गया है।

ऐसे इलाकों के पर्यावास पर आये संकट ने स्थानीय लोगों की आजीविका के परम्परागत साधनों पर संकट ला दिया है। इनमें सुधार के लिये तट नियमन के सम्बन्ध में 2011 में जारी हुई अधिसूचना की पालना जरूरी है। तटों के नियोजन व प्रबन्धन के लिये तटीय संस्थानों को जिला स्तर तक उतारने की जरूरत है, जिसमें प्रगति नहीं हुई। उन्होंने प्रभावी पालना हेतु प्रभावी तंत्र बनाने की माँग की।

आयोजन के दौरान उड़ीसा के राज्य कृषि व मत्स्य मंत्री प्रदीप मोहंती तथा स्वास्थ्य मंत्री श्री अतानू सब्यसाची नायक ने मछुआरों के घर व मुआवजा जैसी माँगों को मानने की बात तो कही, किन्तु उस व्यापक क्षति की ओर सम्भवतः उनका ध्यान भी नहीं गया, जिसकी भरपाई मछली, समन्दर, कुदरत और इंसान... सभी की के लिये हितकर है।

कौन नहीं जानता कि बदलता मौसम और समुद्री का बढ़ता तापमान सबसे पहला संकट तो समुद्री जीव व वनस्पतियों पर ही लाने वाले हैं। उनकी मौत के आँकड़े बढे़ंगे, तो उनकी हत्या का एक दोषी और उनकी हत्या से दुष्प्रभावित एक कृति, इंसान को भी माना जाएगा। क्या यह अपने पैर खुद कुल्हाड़ी मारने वाली बात नहीं हुई?

एक-दूजे के लिये


आखिरकार हम कैसे भूल सकते हैं कि प्रकृति ने अपनी रचनाओं को एक डोर में बाँधा है। सभी का अस्तित्व एक-दूसरे से जुड़ा है। एक जाएगा, तो दूसरे के जाने का समय दूर नहीं होगा। एक बचेगा, तो दूसरे का जीवन संरक्षण सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। भोजन शृंखला का सन्देश भी यही है। पानी और मछली का भी यही रिश्ता है। दोनों, एक दूजे के लिये ही बने हैं। अतः जरूरी है कि यदि हमें पानी की चिन्ता करनी है, तो मछली की चिन्ता करें और मछली की चिन्ता करनी है, तो पानी की चिन्ता करें।

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