एमएसपी नहीं कृषि संकट का समाधान


50 प्रतिशत मूल्य तय कर देने से लागत पर किसानों का मुनाफा निर्धारित हो जाएगा। अगर लागत में 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़ भी दिया जाता है तब भी अधिकांश फसलों का थोक भाव और किसानों के मिलने वाले मूल्य में भारी अन्तर रहेगा। किसी भी उत्पाद का मूल्य निर्धारित करते वक्त इस तथ्य को ध्यान में रखना जरूरी है। इसका लाभ किसानों को मिलना चाहिए। अभी बाजार आधारित विक्रय पर जोर दिया गया है। इस मानसिकता में बदलाव की जरूरत है।पिछले एक महीने से राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बीच केन्द्र सरकार एक अन्य संकट से गुजर रही है। इस संकट के लक्षण बहुत पहले से दिखाई दे रहे थे लेकिन अब लग रहा है कि सरकार की चुनावी महत्त्वाकांक्षा पर यह असर डालेगा। वह संकट कृषि का है। सरकार के सामने बम्पर उत्पादन के वक्त किसानों को कृषि उत्पादों की सही कीमत देने की चुनौती है। उम्मीद जताई जा रही है कि इस संकट से निपटने के लिये उच्च स्तर पर बातचीत चल रही है। आगे चुनावों को देखते हुए किसानों के लिये किसी बड़ी राहत की घोषणा की जा सकती है।

यह जरूरी भी है। दरअसल मई 2019 में नई सरकार बनने तक भारत में बुआई के दो मौसम ही बचे हैं। प्रधानमंत्री ने विशेषज्ञों से मुलाकात की है और एक प्रतिष्ठित कृषि संस्थान में एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम का उद्घाटन किया है। उधर, नीति आयोग भी 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की जुगत में है।

जानकार बताते हैं कि सरकार फिलहाल इस लक्ष्य के प्रति गम्भीर नहीं है बल्कि सरकार कुछ उपायों द्वारा यह सन्देश देना चाहती है कि वह कृषि संकट के प्रति गम्भीर है। ऐसे में किसान एक बार फिर छले जाएँगे और ये उपाय राजनीतिक केन्द्रित होने के कारण कृषि के लिये लाभकारी नहीं होंगे।

बजट में किसानों को लागत का 50 प्रतिशत अतिरिक्त न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने की घोषणा की गई है। लगता है कृषि संकट से निपटने के लिये सरकार के पास केवल यही आधारभूत रणनीति है। मोदी ने पिछले कुछ सप्ताहों के इस पर खासा जोर भी दिया है। माना जा रहा है कि उच्च एमएसपी घोषित कर नाराज किसानों को शान्त करने की कोशिश की जाएगी। बुआई के अगले दो मौसमों में इसकी घोषणा की जा सकती है।

लेकिन इस तथ्य पर गौर करने की जरूरत है कि ऊँची एमएसपी कृषि के गम्भीर संकट का समाधान नहीं है। किसानों की अनेक समस्याओं का इससे समाधान भी नहीं होने वाला। किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिये बनी सरकार की खुद की समिति आमदनी बढ़ाने के लिये एमएसपी के असर को नकार चुकी है। समिति का मानना है “एमएसपी सरकार की महत्त्वपूर्ण पहल जरूर है लेकिन यह खुद में पर्याप्त नहीं है। एमएसपी के जरिए खरीद इसके तंत्र को प्रभावी बनाने की मूलभूत स्थिति है। इसलिये खरीद के तमाम साधनों की जरूरत है जिसे तमाम वस्तुओं पर लागू किया जा सके।”

यह भी तथ्य है कि मुश्किल से 10 प्रतिशत किसान ही एमएसपी के दायरे में आते हैं। सभी फसलें भी एमएसपी के जरिए नहीं खरीदी जातीं। बुआई से पहले अधिकांश किसान एमएसपी से अनभिज्ञ रहते हैं। 14 राज्यों के 36 जिलों में किये गए नीति आयोग के अध्ययन के अनुसार, बुआई से पहले केवल 10 प्रतिशत किसानों को ही एमएसपी की जानकारी रहती है जबकि 62 प्रतिशत को बुआई के बाद इसकी जानकारी मिलती है। समिति का कहना है “मूल्य नीति तभी कारगर तरीके से लागू होगी जब किसानों को फसलों की बुआई के वक्त इसके बारे में जानकारी हो।”

एक अन्य कारण है जो बताता है कि एमएसपी पर एकतरफा ध्यान किसानों की स्थिति में बदलाव लाने के लिये पर्याप्त नहीं है। इसकी गलत व्याख्या की जाती है। समिति इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि लागत के अतिरिक्त 50 प्रतिशत अधिक एमएसपी कर देने से कृषि के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव नहीं आएगा। इससे परम्परागत कृषि के तरीकों में बदलाव नहीं आएगा और न ही कृषि उद्यम का रूप लेगी।

लागत के अलावा 50 प्रतिशत मूल्य तय कर देने से लागत पर किसानों का मुनाफा निर्धारित हो जाएगा। अगर लागत में 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़ भी दिया जाता है तब भी अधिकांश फसलों का थोक भाव और किसानों के मिलने वाले मूल्य में भारी अन्तर रहेगा। किसी भी उत्पाद का मूल्य निर्धारित करते वक्त इस तथ्य को ध्यान में रखना जरूरी है। इसका लाभ किसानों को मिलना चाहिए। अभी बाजार आधारित विक्रय पर जोर दिया गया है। इस मानसिकता में बदलाव की जरूरत है। कृषि को एक उद्यम के रूप में सफल बनाने के लिये जरूरी है कि किसानों को प्रशासित लाभ मिले। मानसिकता में यह बदलाव ही किसानों का भला कर सकती है।

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