पर्यावरण दिवस से नदी दिवस तक

नदियाँ समाज का आइना होती हैं, फोटो: Needpix
नदियाँ समाज का आइना होती हैं, फोटो: Needpix

नदियाँ समाज का आइना होती हैं, फोटो: Needpix

इन दिनों बिहार राज्य में पानी और जंगल के लिए पानी रे पानी अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान के अंतर्गत 5 जून से 27 सितम्बर 2020 के बीच नदी चेतना यात्रा निकाली जावेगी। इस यात्रा का शुभारंभ एक जून 2020 अर्थात गंगा दशहरा के दिन कमला नदी के तट पर जनकपुर में हो चुका है। नदी चेतना यात्रा के पहले चरण के दौरान मिथिलांचल की कमला नदी, शाहाबाद की काव नदी, सीमांचल की सौरा नदी और चम्पारण की धनौती नदी का अध्ययन किया जावेगा। इस दौरान इन नदियों में हो रहे परिवर्तनों को चिन्हित किया जावेगा। उनका अध्ययन किया जावेगा और अन्ततः यह जानने का प्रयास किया जावेगा कि नदियों को जिन्दा करने के लिए क्या किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि यह पहला अवसर है जब नदियों की मूल समस्या को जानने का प्रयास हो रहा है। 

सभी जानते हैं कि बिहार की छोटी नदियों का अस्तित्व संकट में है। बिहार की लगभग सभी नदियाँ प्रदूषित हैं। कुछ छोटी नदियाँ मरने के कगार पर हैं। गांव, कस्बों और नगरों का कचरा जिसमें प्लास्टिक, काँच, मृत जानवरों के अवशेष शामिल है, के कारण अधिकांश छोटी नदियों की जल धारा अवरुद्ध है। यह दृश्य भले ही आम है पर वह समाज की आंखों में असहायता के भाव के साथ खटकता है। 

पिछले साल भागलपुर जिले की चम्पा और कैमूर की पहाड़ियों से निकलने वाली काव नदी की यात्रा आयोजित हुई थी। इस यात्रा में चंपा का उद्गम से संगम तक और काव नदी का आंशिक भ्रमण हुआ था। उस यात्रा में गंगा की सहायक, इन नदियों के अविरल प्रवाह और बढ़ते प्रदूषण की बेहद दर्दनाक और चिंताजनक तस्वीर देखी गई थी। उस स्थिति को देखकर प्रष्न उठता है कि नदियों की यह दुर्दशा उस संस्कारित समाज की आंखों के सामने है जो आदिकाल से नदियों को देवी मानकर कर पूजता रहा है। नदियों की यह दुर्दशा सरकार के लिए भी चुनौती है।

कोविड 19 के कारण लागू देशव्यापी लाकडाउन ने पर्यावरण से संबद्ध कुछ सवालों के उत्तर पेश किए है। इस दौर में नदियों को प्रदूषित करने वाली कतिपय गतिविधियों के बन्द होने के कारण पूरे देश में नदियों के पानी की गुणवत्ता में सुधार दिखा है। अर्थात यदि नदियों को प्रदूषित करने वाली गतिविधियों पर नकेल लगाई जाए तो पानी की निर्मलता बहाल हो सकती है। यदि छोटी नदियाँ प्रदूषित जल को बड़ी नदियों में उड़ेलना बन्द कर दें तो गंगा तक के पानी की गुणवत्ता में सुधार परिलक्षित होगा। भूजल की गुणवत्ता सुधारने के लिए पूरे बिहार में आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना आवश्यक है। 

पानी की बढ़ती मांग के कारण पानी की खपत को कम करने वाली प्रणालियों, कृषि पद्धतियों और कम पानी चाहने वाले बीजों को अपनाने की आवश्यकता है। कोविड-19 और स्वच्छ भारत अभियान के कारण पानी की खपत में लगभग बीस से पच्चीस प्रतिशत की वृद्धि होगी। इस वृद्धि को ध्यान में रख बिहार सरकार को पेयजल के लिए निर्धारित मानकों को बदलना होगा। जल प्रदाय बढ़ाना होगा। जल स्रोतों के स्थायित्व पर ध्यान देना होगा। 

बिहार की लगभग सभी छोटी नदियों में बरसात के बाद पानी की कमी देखी जा रही है। यह कमी साल-दर-साल बढ़ रही हैं। उदाहरण के लिए बरसात के बाद यदि फल्गू नदी सूखती  है तो उसका कुप्रभाव न केवल आहर-पाइन प्रणाली से सिंचित रबी की फसल पर पड़ेगा वरन स्थानीय स्तर पर जल-कष्ट बढ़ेगा। भूजल स्तर गिरेगा और गंगा तक में पानी की उपलब्धता कम होगी। नदी चेतना यात्रा में इन बिंदुओं पर राज और समाज के बीच संवाद होना चाहिए। इन संवादों से पंचायत राज संस्थानों और स्थानीय जन प्रतिनिधियों को जोड़ा जाना चाहिए। सभी जानते हैं कि सरकार का काम अविरलता और निर्मलता लौटाने का और समाज का काम कछार में पानी के उपयोग में सन्तुलन बनाए रखने का है।

भारत सरकार द्वारा 1990 में प्रकाशित नेशनल वाटरशेड एटलस के अनुसार गंगा नदी तंत्र में 836 वाटरशेड, 126 सहायक केचमेंट और 22 केचमेंट हैं। ये केचमेंट मुख्यतः हिमालय, अरावली और विन्ध्याचल पर्वतमाला में स्थित हैं तथा उनसे निकलने वाली नदियाँ अपने से बड़ी नदी से मिलकर अंततः गंगा में समा जाती हैं। हिमालयीन नदियों को बर्फ के पिघलने से गर्मी के मौसम में अतिरिक्त पानी मिलता है पर अरावली तथा विन्ध्याचल पर्वत से निकलने वाली नदियों का मुख्य स्रोत मानसूनी वर्षा है। 

1. अविरल प्रवाह तथा जलप्रवाह में वृद्धि   

उल्लेखनीय है कि बिहार सहित पूरे भारत में नदियों के गैर-मानसूनी प्रवाह की बहाली पर काम नही हुआ है। इस काम में विष्वविद्यालयों, तकनीकी संस्थानों और नोडल विभागों का योगदान भी लगभग शून्य है। नदियों के गैर-मानसूनी प्रवाह की बहाली के लिए रोडमेप और रणनीति का अभाव है। समाज के पास भी उत्तर नहीं है। सुझाव है कि नदी चेतना यात्रा निम्न बिंदुओं का संज्ञान ले और अपने इलाके में सुझावानुसार काम करावे। 

जल प्रवाह वृद्धि के लिये बिहार के लिए उसके राज्य की सीमा में आने वाले गंगा कछार में एक साथ प्रयास करना होगा। इसके लिये नेशनल वाटरशेड एटलस में दर्शाई गंगा नदी की बिहार की सभी हाइड्रालाजिकल इकाईयों के लिये कार्यक्रम बनाया जाना चाहिये। सभी वाटरशेड इकाईयों के रीचार्ज जोन और ट्रान्जीशन जोन में एक साथ समानुपातिक भूजल रीचार्ज कार्यक्रमों को प्रारंभ करना होगा। भूजल दोहन के स्तर को सुरक्षित सीमा में लाना होगा। हमे याद रखना होगा कि नदी तल को खोदकर या काई तथा जल कुंभी निकालकर गंगा के प्रवाह को नही बढ़ाया जा सकता। 

नदी तंत्रों में रेत की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। वह, बाढ़ के आंशिक पानी का संचय कर बाढ़ का नियमन करती है। रेत की परतों से पानी की लगातार पूर्ति, जलप्रवाह को टिकाऊ बनाती है। बिहार को इस नियम का पालन करना होगा। उसके बाद ही छोटी नदियों के कछार की हालत में बदलाव दिखेगा। 

2. प्रदूषित जल का उपचार, रीसाकिलिंग तथा उपयोग 

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार गंगा का प्रदूषण, हरिद्वार से लेकर डायमण्ड हारबर तक मौजूद है। गंगा के उदगम के निकट स्थित रूद्रप्रयाग तथा देवप्रयाग में भी साल दर साल प्रदूषण बढ़ रहा है। हरिद्वार, कन्नौज और कानपुर यदि प्रदूषण के हाट-स्पाट हैं तो वाराणसी की स्थिति भी बेहद चिन्ता जनक है इसलिये सम्पूर्ण गंगा नदी तंत्र के प्रदूषित पानी को साफ करने के लिये स्रोत पर सीवर ट्रीटमेंट प्लांट बनाने और सीवर ट्रीटमेंट प्लांट व्यवस्था को प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। प्रदूषित जल के उपचार, रीसाकिलिंग तथा उपयोग की कारगर व्यवस्था करने की आवश्यकता है। यही बिहार में करना होगा।

3. निगरानी व्यवस्था

नेशनल वाटरशेड एटलस के आधार पर बिहार को अपनी नदियों के उपयुक्त स्थानों पर निगरानी तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये। निगरानी तंत्र को वाटरशेड के निकास बिंदुओं पर मानकों की निगरानी/मापन करना चाहिये। इसमें समाज की भागीदारी आवश्यक है। 

4. नदी तंत्र का हेल्थ कार्ड

नदी तंत्र में मानकों की वस्तु स्थिति दर्शाने के लिये हेल्थ कार्ड व्यवस्था लागू की जाना चाहिये। परिणामों के आधार पर नदी शुद्धिकरण तथा प्रवाह बहाली अभियान की दशा तथा दिशा निर्धारित की जाना चाहिये। 

अन्त में, प्रवाह बहाली के लिए नदी विज्ञान की समझ आवश्यक है। भूजल के उपयोग से होने वाली गिरावट और नदी के प्रवाह के अन्तर्सम्बन्ध को समझना और उसके अनुकूल सन्तुलन बनाना आवश्यक है। यही समाज और सरकार की ज़िम्मेदारी है। यही नदी चेतना यात्रा का लक्ष्य होना चाहिए। 

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