गाँव को काटती नदी


नदी कटान से प्रभावित लोगों की माँग है कि उन्हें बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में न बसाया जाए। मौजूदा समय में विस्थापितों को बसाने के लिये जिला प्रशासन ने जो जमीन खरीदी है वह बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में आती हैं। इसलिये वहाँ के लोग नाराज हैं। गाँव बचाओ आन्दोलन समिति की माँग है कि विस्थापित परिवार को राहत दीजाए और उनके पुर्नवास की व्यवस्था हो।

गंगा की गोद में उत्तर का मैदान फला-फूला है। इसका पानी यहाँ की जीवन रेखा है। लेकिन यही पानी गाजीपुर के कुछ गाँवों के लिये अभिशाप बन गया है। इसमें गलती किसकी है? गंगा नदी की या फिर इंसान की। आखिर जीवनदायनी गंगा गाजीपुर के तकरीबन पचास गाँवों के लिये पतन का सबब क्यों बन गई? प्रेमनाथ गुप्ता इस बारे में बहुत विस्तार से बताते हैं। वे गाँव बचाओ आन्दोलन समिति के संयोजक हैं। यह समिति संकट ग्रस्त पचास गाँवों को बचाने के लिये संघर्षरत है। प्रेमनाथ बताते हैं कि पहले सबकुछ ठीक था। गंगा की धारा हमारे लिये भी सुख और संपन्नता का प्रतीक थी। पर 1978 के बाद सब बदल गया।

गंगा हमारे गाँव को लीलने लगी। वे कहते हैं कि 1978 में गाजीपुर जिला मुख्यालय में गंगा पर एक पुल बना। इससे नदी के बहाव की दिशा बदल गई। इसके साथ ही शिवपुर समेरा समेत नदी के आस-पास बसे गाँवों का भाग्य भी बदल गया। हालाँकि तब वहाँ के लोगों को इस बात का इल्म नहीं था कि भविष्य में गंगा उनके लिये परेशानी का कारण बन जाएगी। समय गुजरता गया और समस्या दिखने लगी। नदी ने गाँव को काटना शुरू कर दिया। पिछले दो- तीन दशक में हालात ये हो गयी है कि कुछ गाँवों का तो अस्तित्व ही खत्म हो चुका है। और कुछ उसके कगार पर है। सैकड़ों लोग विस्थापन का दंश झेल रहे हैं।

जो लोग सम्पन्न हैं वो तो अपने खेतों में अस्थाई निवास बनाकर रह रहे हैं। लेकिन जो गरीब हैं और जिनकी आजीविका का साधन खेतों में मजदूरी है उनकी स्थिति बहुत खराब है। कोई सड़क के किनारे प्लास्टिक डालकर रह रहा है तो कोई खुले आसमान के नीचे रहने के लिये मजबूर है। विस्थापितों के लिये जो राहत शिविर बनाए गए हैं उसकी स्थिति भी बहुत बेहतर नहीं है। राहत के नाम पर विस्थापितों के साथ बस खिलवाड़ हो रहा है। इन लोगों का दर्द बाँटने सियासत की आला कुर्सी पर बैठे लोग आते तो हैं लेकिन जमीन पर कोई कुछ करने के लिये तैयार नजर नहीं आता। आश्वासन बस जुबानी है।

कोई 15 साल पहले गाँव आन्दोलन बचाओ समिति के लोगों ने 20 दिन का क्रमिक अनशन और पाँच दिन का आमरण अनशन किया था। उस समय हर दल के नेता यहाँ पर आए थे। उसमें कांग्रेस, भाजपा, सपा और बसपा के कई बड़े नेता भी शामिल थे। उनमें से कुछ तो मौजूदा केन्द्र और राज्य सरकार में मन्त्री भी हैं। हालाँकि इस दिशा में किसी ने अभी तक कोई सार्थक प्रयास नहीं किया है। प्रेमनाथ गुप्ता कहते हैं कि पिछले 25 साल से हम लोग यह संघर्ष चला रहे हैं। संत्री से लेकर मन्त्री तक हर जगह गुहार लगाई। सभी ने कहा समस्या का निराकण किया जाएगा। लेकिन वास्तव में अभी तक कुछ हुआ नहीं। राज्य सरकार का रवैया भी इस मसले पर बहुत उत्साहजनक नहीं है।

2012 में विधान सभा चुनाव के दौरान अखिलेश यादव गाजीपुर गए थे। उन्होंने वादा किया था कि नदी के कटान से गाँव को बचाने के लिये पुख्ता इंतजाम किया जाएगा। 31 जुलाई 2012 को प्रदेश सरकार ने इस बाबत शासनादेश जारी किया। उसमें साफ तौर पर लिखा था कि किसी भी नदी के कटान से यदि कोई विस्थापित होता है तो उसे 250 वर्ग मी. जमीन दी जाएगी। इसके लिये राज्य सरकार ने जिला मुख्यालय को 2.14 करोड़ रुपया भी आवंटित किया। जमीन भी खरीद ली गई है लेकिन अभी तक किसी को दी नहीं गई है। इसकी वजह क्या है? यह अभी तक साफ नहीं हो पाया है। मसला बस इतना ही नहीं है। प्रभावित लोगों के आँकड़ों में भी हेर-फेर किया गया है। प्रेमनाथ गुप्ता के मुताबिक सरकारी आँकड़ों के अनुसार विस्थापित परिवार की संख्या 558 हैं। उनका दावा है कि ये आँकड़े सही नहीं हैं। वास्तव में 1000 परिवार विस्थापित है। उनकी मानें तो जो सरकारी आँकड़े हैं उसमें भी हेर-फेर किया जा रहा है। खबर के मुताबिक 558 परिवारों में 377 को ही भूमि आवंटित की जा रही है। शेष 181 परिवारों का कोई माई-बाप नहीं है।

नदी कटान से प्रभावित लोगों की माँग है कि उन्हें बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में न बसाया जाए। मौजूदा समय में विस्थापितों को बसाने के लिये जिला प्रशासन ने जो जमीन खरीदी है वह बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में आती हैं। इसलिये वहाँ के लोग नाराज हैं। गाँव बचाओ आन्दोलन समिति की माँग है कि विस्थापित परिवार को राहत दी जाए और उनके पुनर्वास की व्यवस्था हो। साथ ही बीपीएल कार्ड भी जारी किया जाए। इन लोगों की माँग पर सरकार क्या रूख अपनाती हैं यह देखने वाली बात होगी।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading