गलत नीतियों से किसान हुए बदहाल 

31 Aug 2019
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गलत नीतियों से किसान हुए बदहाल। फोटो स्त्रोत-डाउन टू अर्थ
गलत नीतियों से किसान हुए बदहाल। फोटो स्त्रोत-डाउन टू अर्थ

पिछले कुछ महीनों से भारत के किसानों ने अपने हाल की तरफ राजनेताओं का ध्यान आकर्षित करने की हर तरह से कोशिश की है। तमिलनाडु के किसान दिल्ली के जंतर मंतर पहुंचे और कई दिनों तक वहां अजीब अजीब तरह से प्रदर्शन करते रहे। बड़े-बड़े राजनेता उनसे मिलने आए, जिनमें राहुल गांधी भी थे, पर प्रधानमंत्री से भेंट नहीं हुई। आखिर में तमिलनाडु के कुछ राजनेताओं ने उन्हें आश्वासन दिया और वह घर चले गए। इसके बाद महाराष्ट्र में कर्ज माफी की मांग को लेकर किसानों का एक बड़ा जत्था मुंबई पहुंचा। यह सिलसिला चल ही रहा था कि मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन इतना हिंसक हो गया कि पुलिस की गोलियों से 6 किसानों की मौत हो गई। विपक्ष के नेताओं ने फिर से किसानों के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकीं।

प्रधानमंत्री मोदी अगर वास्तव में कृषि क्षेत्र में परिवर्तन और विकास लाना चाहते हैं तो उन्हें अपने मुख्यमंत्रियों को आदेश देना होगा कि कर्ज माफ करने के बदले उसी पैसे को उन सुविधाओं में निवेश करें, जिनका कृषि क्षेत्र में गंभीर अभाव है। इस निवेश के बिना भारत के किसान उस गुरबत में फंसे रहेंगे, जिस गुरबत में वे सदियों से फंसे रहे हैं।

मध्यप्रदेश में किसानों के आक्रोश की बात करते समय याद रखना चाहिए कि जितना निवेश कृषि क्षेत्र में शिवराज सिंह चैहान की सरकार ने किया, शायद ही पहले कभी किसी दूसरी सरकार ने किया होगा। तो सवाल यह उठता है कि क्या ग्रामीण भारत में कुछ ऐसी चीज हो रही है जिसका असली विश्लेषण अभी तक हुआ नहीं है ? मेरा ऐसा मानना है। ऐसा नहीं है कि मुझे कृषि क्षेत्र की समस्याओं की कोई विशेष जानकारी है। सिर्फ इसलिए कि मेरा भाई किसान है सो मुझे किसानों के हाल की थोड़ी बहुत समझ है। अपने भाई से जब मैंने मध्य प्रदेश की हिंसा के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि ऐसा तब तक होता रहेगा जब तक दिल्ली में बैठे कृषि विशेषज्ञ स्वीकार नहीं करेंगे कि देश के ज्यादातर किसानों के पास अब इतने छोटे खेत रह गए हैं कि साल भर में उनकी कमाई महानगरों के घरेलू नौकरों से कम है। सोचिए 1 एकड़ जमीन से साल भर में वह करीब 40 हजार रुपये ही कमा पाता है, तो कैसे गुजारा होगा ?

इस बात को हमारे राजनेता अच्छी तरह जानते हैं लेकिन समाधान ढूंढते हैं वही पुराने बक्शीश वाले-बिजली मुफ्त में दे दो, पानी मुफ्त में दे दो, कर्ज माफ कर दो। यथार्थ यह है कि किसानों को सड़कें, सिंचाई और कोल्ड स्टोरेज चाहिए, जिनके अभाव में देश में आधी सब्जी और फल मंडी में पहुंचने से पहले ही बर्बाद हो जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक जितनी सब्जी और फल ब्रिटेन के लोग 1 साल में खाते हैं, उससे ज्यादा भारत के खेतों में सड़ जाते हैं। सवाल है कि ग्रामीण सड़कों और कोल्ड स्टोरेज चेन में निवेश क्यों नहीं हुआ ? कर्ज माफ करवाने के बदले किसान इन चीजों के लिए आंदोलन क्यों नहीं करते हैं ? इसलिए कि ज्यादातर किसान अनपढ़ हैं और इसका फायदा राजनेता उठाते हैं। राजनेता जानते हैं कि जब तक भारत कृषि प्रधान देश रहेगा, तब तक विकास और रोजगार के बदले में खैरत बांटकर किसानों का वोट हासिल कर सकते हैं। अमेरिका में 2 फीसदी से कम आबादी कृषि पर निर्भर है और चीन में इतनी तेजी से शहरीकरण हुआ है कि अब मात्र 30 करोड लोग ही खेतीबाड़ी से गुजारा करने के लिए बचे हैं। अब समय आ गया है कि हमारे राजनेता स्वीकार करें कि देश के किसानों की समस्याओं की जड़ है उनकी गलत नीतियां। प्रधानमंत्री मोदी अगर वास्तव में कृषि क्षेत्र में परिवर्तन और विकास लाना चाहते हैं तो उन्हें अपने मुख्यमंत्रियों को आदेश देना होगा कि कर्ज माफ करने के बदले उसी पैसे को उन सुविधाओं में निवेश करें, जिनका कृषि क्षेत्र में गंभीर अभाव है। इस निवेश के बिना भारत के किसान उस गुरबत में फंसे रहेंगे, जिस गुरबत में वे सदियों से फंसे रहे हैं।

 

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