गंगा अंतरमंत्रालयी समूह: एक परिचय

22 Apr 2013
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vishnu prayag hydro electric project
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“यह गठित समूह की नहीं, डैम लॉबी की रिपोर्ट है। यह अंतरमंत्रालयी समूह गठन के मूल उद्देश्य की पूर्ति नहीं करती। अतः मैं इसे नामंज़ूर करता हूं।”

गंगा पर गठित अंतरमंत्रालयी समूह की हाल में पेश रिपोर्ट को लेकर यह बयान राजेन्द्र सिंह का है। वह गंगा अंतर मंत्रालयी समूह एवम् उसे गठित करने वाले राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण... दोनों के सदस्य हैं। इस नामंजूरी का तर्क कितना जायज़ है? इस पर अपनी राय देने से पहले आइए! जानते हैं कि क्या और क्यों गठित किया गया था यह समूह? क्या थे इसके काम? क्या हैं इसकी सिफ़ारिशें?

 

समूह परिचय


उत्तराखंड में गंगा की धाराओं पर कार्यरत, मंजूर और प्रस्तावित.. तीनों तरह की कुल 70 पनबिजली बांध परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। इन्हें लेकर पिछले कुछ वर्षों में विवाद व विरोध काफी गहरा गए थे। गंगा को इसका पर्यावरणीय प्रवाह देने की मांग भी काफी जोर-शोर से उठाई जा रही थी। इसके मद्देनज़र राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण ने पिछले वर्ष एक अंतरमंत्रालयी समूह गठन किया था। योजना आयोग के सदस्य बी के चतुर्वेदी को इसका अध्यक्ष बनाया गया। शेष सदस्यों की संख्या 13 थी। केन्द्र सरकार के विद्युत और जल मंत्रालय के सचिव, पर्यावरण मंत्रालय के दो विशेष सचिव, केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण, केन्द्रीय जल आयोग और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष, विश्व वन्यजीव संस्थान, देहरादून तथा आई आई टी, रुड़की के निदेशक के अलावा तीन गैर सरकारी सदस्य भी शामिल थे: विज्ञान पर्यावरण केन्द्र की निदेशक सुनीता नारायण, प्रसिद्ध पानी कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह और बतौर संकटमोचन फाउंडेशन प्रमुख वाराणसी के स्वर्गीय प्रोफेसर महंत वीरभद्र मिश्र। इस समूह को अपनी रिपोर्ट नवंबर, 2012 में ही सौंपनी थी। कुंभ में रिपोर्ट को लेकर कोई बवाल न हो, अतः यह रिपोर्ट 19 मार्च को समूह की अंतिम बैठक में पेश की गई। कुछ बदलाव के बाद अंततः इसे अप्रैल के दूसरे सप्ताह में प्रधानमंत्री महोदय को सौंप दिया गया। अब प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाला राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण इस पर अंतिम निर्णय लेगा।

 

सौंपे गये काम


गंगा का निर्बाध प्रवाह सुनिश्चित करना; गंगा की मूल व सहायक धाराओं के पर्यावरणीय प्रवाह का निर्धारण करना; परियोजनाओं और आपूर्ति दरों पर पर्यावरणीय प्रवाह के प्रभाव की जांच; पर्यावरण पर प्रस्तावित परियोजनाओं के प्रभाव की समीक्षा और दुष्प्रभावों से बचाव के उपचार सुझाना। उल्लेखनीय है कि सरकारी एजेंसियाँ द्वारा आंकड़ें आदि मुहैया कराने में हीला हवाली के कारण आई आई टी संकाय तय समय बीत जाने के बावजूद गंगा नदी घाटी प्रबंधन योजना तैयार नहीं कर सका है। पांचवा कार्य इसके लिए संबंधित सरकारी एजेंसियों का सहयोग सुनिश्चित का रास्ता बताना था। बाद में दो काम और जोड़े गए: अलकनंदा बांध परियोजना के नदी और धारी देवी मंदिर पर प्रभाव की समीक्षा तथा गंगा प्रदूषण मुक्ति।

 

 

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