गंगा गाद - बिहार में बाढ़ की आशंका

10 Mar 2018
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गंगा
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गंगा की पेट में इकट्ठा गाद को हटाने का इन्तजाम शीघ्र नहीं किया गया तो बिहार में बाढ़ की विभीषिका अधिक भयावह हो सकती है। यह चेतावनी गंगा की गाद की समस्या का अध्ययन करने के लिये केन्द्र सरकार द्वारा बनाई गई एक उच्चस्तरीय समिति की है जिसकी रिपोर्ट अगले महीने सौंपी जानी है।

इस ग्यारह सदस्यीय समिति के सदस्य राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना के प्राध्यापक डॉ. रामाकांत झा ने कहा कि गाद को हटाने के लिये पहली बार बड़ा प्रयास करना होगा, फिर ऐसे इन्तजाम करने होंगे कि गाद जमा होने के बजाय प्रवाहित हो जाये। अभी बिहार में गंगा की धारा में गाद के बड़े जमाव वाले ग्यारह स्थल चिन्हित किये गए हैं, जहाँ से गाद हटाने का प्रभाव समूचे बिहार पर होगा और जल-निकासी में आसानी होगी। साथ ही गंगा में राह बदलने और कई धाराओं में बँट जाने की प्रवृत्ति में कमी आएगी।

गंगा में एकत्र गाद की भयावह समस्या का अध्ययन करने के लिये हाल के वर्षों में चार समितियाँ बनीं। लेकिन डॉ. झा बताते हैं कि सभी समितियों ने राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के उन्हीं आँकड़ों के आधार पर अध्ययन किया जिसका संकलन बाढ़ आयोग ने 1980 में किया था।

इसरो की सहायता से अद्यतन आँकड़ा संकलित करने का काम अभी चल रहा है। इसके लिये केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय जल आयोग के पूर्व अध्यक्ष ए.बी. पंड्या के नेतृत्व में ग्यारह सदस्यीय समिति का गठन किया है। इस समिति में एनआईटी पटना के डॉ. रमाकर झा भी एक सदस्य हैं। समिति एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट देने वाली है।

इसरो से मिले आँकड़ों के साथ ही डॉ. झा की टीम ने गंगा की धारा का सरजमीनी सर्वेक्षण भी किया है। उनके अध्ययन के दायरे में बक्सर से लेकर फरक्का तक की गंगा की धारा समेटी गई है। इस सर्वेक्षण में ग्यारह ऐसे स्थल चिन्हित किए गए हैं जहाँ सर्वाधिक गाद जमा है और उसे हटाया जा सकता है।

मोटे तौर पर उन स्थलों पर अधिक गाद एकत्र है जहाँ गंगा से कोई सहायक नदी मिलती है। इनमें घाघरा, सोन, गंडक, कोसी और बुढ़ी गंडक के अलावा कई छोटी नदियों के संगम स्थल शामिल हैं। सबसे अधिक गाद घाघरा के गंगा से मिलन स्थल डोरीगंज-बबुरा और गंडक नदी के मिलन स्थल सोनपुर के पास जमा है।

बड़ी मात्रा में गाद जमाव के अन्य स्थल मनेर, माहुली, राघोपुर दियरा, रानीतोल-मेकरा, सिमरिया-बरौनी, मुंगेर, भागलपुर के पहले नरकटिया-मकंदपुर, कहलगाँव के पास अंभिया-घोघा, कोसी के मिलन-स्थल बरारी और साहेबगंज के निकट मनिहारी आदि हैं।

उल्लेखनीय है कि जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय ने जुलाई 2016 में गंगा के गाद विमुक्तिकरण के उपाय सुझाने के लिये चितले समिति का गठन किया था और भीमगौड़ा (उत्तराखण्ड) से फरक्का तक गंगा के गाद विमुक्तिकरण के लिये दिशा-निर्देश तैयार करने का जिम्मा सौंपा था।

इस मसले पर हाल के दिनों में इस समिति ने सबसे विस्तृत अध्ययन किया था तथा गाद और बालू में अन्तर स्पष्ट करते हुए नदी की पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय प्रवाह के लिये गाद विमुक्तिकरण की भूमिका पर विचार किया है।

समिति ने इस मसले को विस्तृत अध्ययन के लिये किसी तकनीकी संस्थान को सौंप देने का सुझाव दिया था जो आकृति वैज्ञानिक (मॉरफोलॉजिकल) अध्ययन कर ठोस सुझाव दे सके। चितले समिति ने निर्धारित तीन महीने के समय के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी।

चितले समिति ने कहा है कि कटाव, गाद संवहन और गादजमाव बेहद जटिल परिघटनाएँ हैं। गाद प्रबन्धन और नियंत्रण के लिये हर जगह एक ही उपाय नहीं किया जा सकता क्योंकि इस पर क्षेत्रीयता का प्रभाव बहुत अधिक होता है। स्थानीय कारण जैसे टोपोग्रॉफी, नदी नियंत्रण संरचनाएँ, मिट्टी व जल संरक्षण उपाय, वृक्षाच्छादन और तटीय क्षेत्र में भूमि के उपयोग के तौर-तरीकों का नदी के गाद पर अत्यधिक प्रभाव होता है।

नदी नियंत्रण संरचनाएँ (जैसे जलाशय, बैराज और पुल आदि), भूमि संरक्षण उपायों और गाद नियंत्रण कार्यक्रमों से निम्न प्रवाह क्षेत्र में गाद का बहाव कम होता है और वह गाद उक्त संरचना के आसपास एकत्र हो जाता है। लेकिन अनियंत्रित ढंग से गाद निकालने से पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है। इसलिये गाद विमुक्तिकरण कार्यों की योजना बनाने और निष्पादित करने में बेहतर सिद्धान्तों और दिशा-निर्देशों का पालन करना आवश्यक है।

रिपोर्ट के अनुसार गंगा मुख्य नदी का गूगल अर्थ मानचित्र पर पैमाइश करने से पता चला कि नदी के दोनों पाट गतिशील सन्तुलन की स्थिति में हैं। गाद का जमाव मुख्य तौर पर भीमगौड़ा बैराज के नीचे और गंगा से विभिन्न सहायक नदियों के मिलन स्थल के आसपास है। निकासी मार्ग का संकरापन, बड़े पैमाने पर गाद का जमाव और इसके नकारात्मक प्रभाव मुख्य तौर पर घाघरा के संगम और उसके आगे के बहाव क्षेत्र में देखा गया। घाघरा के संगम के बाद नदी के बाढ़ क्षेत्र की चौड़ाई लगभग 12 से 15 किलोमीटर तक फैल जाती है।

नदी में गाद संवहन के महत्त्व को स्वीकार करते हुए समिति ने कहा है कि गाद विमुक्तिकरण के लिये जलग्रहण क्षेत्र का उपचार और जल छाजन विकास के साथ-साथ कृषि की बेहतर पद्धतियों को अपनाना जरूरी है और नदी तट संरक्षण, कटावरोधक कार्य इत्यादि नदी में गाद का प्रवाह कम करते हैं और इन्हें समेकित ढंग से कराया जाना चाहिए। कटाव, गाद का स्थानान्तरण और गाद जमाव नदी की प्राकृतिक व्यवस्थाएँ हैं और नदी की गाद सन्तुलन की अवस्था को बनाए रखा जाना चाहिए।

नदी की बाढ़ को फैलने के लिये पर्याप्त जगह मिलनी चाहिए, जिसमें वह बिना किसी अड़चन के प्रवाहित हो सके। गाद को दूर करने के बजाय गाद को बहने का रास्ता देना बेहतर उपाय है।

बालू खनन के मामले में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के दिशा-निर्देशों का उल्लेख करते हुए समिति ने गंगा नदी के गाद विमुक्तिकरण के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रस्तावित किये। उसने कहा कि गंगा नदी अपने जलविज्ञान, गाद और प्राकृतिक तल और तट के अनुरूप सन्तुलन हासिल करने का प्रयास करती है।

बाढ़ को नियंत्रित करने के लिये पर्याप्त बाढ़ क्षेत्र और झीलें उपलब्ध होना आवश्यक है। बाढ़ क्षेत्र में किसी भी प्रकार का अतिक्रमण, झीलों के भरने या नदी से सम्पर्क टूटने से बचाना चाहिए बल्कि निकट की झीलों से गाद हटाकर उनकी भण्डारण क्षमता बढ़ानी चाहिए। झीलों से गाद हटाने में भी यह ध्यान रखना चाहिए कि गाद प्रवाह की निरन्तरता कायम रहे।

चितले समिति ने स्पष्ट कहा कि ऊपरी बहाव क्षेत्र में बैराज, पुल जैसे निर्माण कार्यों के कारण गाद भरने लगता है और नदी रास्ता भटक जाती है। नदी प्रशिक्षण करना और निर्माण स्थल के पास बहाव के अतिरिक्त मार्ग बनाने का कार्य इस तरह से कराया जाना चाहिए जिसका अन्यत्र नदी की आकारिकी पर प्रभाव नहीं पड़े।

ऑक्सबो झीलों के रूप में खाली हुए इलाके को भरने के बजाय इसका इस्तेमाल बाढ़ नियंत्रण के लिये किया जाना चाहिए। प्रवाह के संकुचन के कारण बड़ी मात्रा में गाद जमा हो रही हो तो चयनित धारा से गाद निकालकर उसे गहरा किया जा सकता है ताकि जल प्रवाह उससे होकर हो।

निकाली गई गाद को ऐसे वैकल्पिक जगहों पर रखा जा सकता है जिससे तटों के कटाव रोकने में मदद मिलने वाली हो। ऐसे स्थिर प्रवाह के विकास पर ध्यान देना चाहिए जिससे ऊपरी प्रवाह या निम्न प्रवाह में प्रतिकूल प्रभाव नहीं हो। बैराज और वीयर के पास गाद की निरन्तरता बनाए रखने पर ध्यान देना चाहिए। तटबन्ध, ठोकर और नदी प्रशिक्षण कार्यों को बाढ़ क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं करना चाहिए या झीलों और दूसरे पर्यावरणीय क्षेत्र को नदी से अलग नहीं करना चाहिए।

सहायक नदियों के संगम के पास, खासकर अत्यधिक गाद लाने वाली नदियों के संगम क्षेत्र में गाद निकालना आवश्यक हो सकता है जिससे नदी के जल प्रवाह की कुशलता में बढ़ोत्तरी हो।

फरक्का बैराज के सामने इकट्ठा गाद के बारे बार बार उठने वाले मुद्दों को ध्यान में रखते हुए समिति ने यह सुझाव दिया कि वहाँ बनी उथली जगहों के आसपास नदी प्रशिक्षण कार्य का ध्यान रखते हुए गाद हटाई जा सकती है। इस गाद से फरक्का फीडर नहर की फिर से ग्रेडिंग और बैराज के जलाशय तटबन्धों को मजबूत किया जा सकता है।

आवश्यक अध्ययन के बाद सेडिमेंट स्लूइसिंग की पद्धति अपनाई जा सकती है ताकि ऊपरी प्रवाह और निम्न प्रवाह के बीच गाद के संवहन की निरन्तरता बनी रहे और बरसात के समय गाद अपने आप बहकर निकल जाये। गाद निकालने की प्रक्रिया में इसका खासतौर पर ध्यान रखना होगा कि बैराज की वर्तमान संरचना को कोई नुकसान न पहुँचे।

ऊपरी प्रवाह क्षेत्र से आने वाली गाद के सुरक्षित ढंग से निम्न प्रवाह क्षेत्र में चले जाने के लिये बैराज में आवश्यक इन्तजाम करने के लिये समुचित अध्ययन कराना चाहिए। यह भी ध्यान रखना होगा कि इस तरह बैराज से आगे निकला गाद निम्न प्रवाह क्षेत्र में अत्यधिक कटाव या दूसरे आकारिक समस्या पैदा नहीं करे।

चितले समिति ने यह चेतावनी भी दी कि गाद हटाने के लिये खनन गतिविधियों के कई प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं जैसे कि नदी तल का नीचे जाना, तटों का कटाव, धारा का चौड़ा होना, नदी की धारा के जल के सतह की प्रवणता कम होना, नदी के आसपास भूजल की प्रवणता का कम होना, पुलों, पाइपलाइनों, जेटी, बैराज, वीयर, जैसे मानव निर्मित संरचनाओं की नींव कमजोर होना और इन सबका पर्यावरणीय प्रभाव।

गाद निकालने की कोई योजना बनाने या कार्य निष्पादन करने में एहतियात बरतने के लिये समिति ने खासतौर से हिदायत दी और एहतियाती उपायों को सूचीबद्ध किया है। उसने कहा कि गंगा के गाद प्रबन्धन का अध्ययन करने का जिम्मा किसी एक संस्थान को दी जा सकती है जो गंगा के साथ ही उसकी सहायक नदियों के गाद प्रबन्धन का अध्ययन करेगी। इस अध्ययन रिपोर्ट को गंगा से जुड़ी किसी परियोजना के पर्यावरणीय मंजूरी के समय आधार दस्तावेज के तौर पर उपयोग किया जाएगा।

बहरहाल, चितले समिति की सिफारिशों पर वर्तमान में कार्यरत ग्यारह सदस्यीय समिति क्या रूप अपनाती है, यह तो उसकी आखिरी रिपोर्ट आने के बाद पता चलेगा।
 

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