गंगा के साथ ही सुधारनी होगी यमुना की दशा

यमुना की सभी सहायक नदियां बुरी तरह हो चुकी हैं प्रदूषित


यमुना गंगा की सहायक नदी है। वैसे तो गंगा को करीब-करीब 900 से ज्यादा नदियों का पानी मिलता है। लेकिन यमुना उनमें से सबसे बड़ी सहायक नदी है, जो करीब सौ नदियों का पानी लेकर गंगा में मिलती है। नई सरकार नदियों के दशा-दिशा को लेकर काफी संवेदनशील है। गंगा के लिए एक अलग मंत्रालय का भी गठन किया गया है। उम्मीद है कि गंगा की दशा-दिशा में सुधार के साथ यमुना की दशा भी सुधरेगी।

दिल्ली में प्रवेश करते समय पल्ला गांव में यमुना में पश्चिमी यमुना नहर से दिल्ली का तय अंश इसमें मिलता है जिसके चलते वजीराबाद बैराज पर यमुना की हालत कुछ बेहतर है। दिल्ली के 22 किलोमीटर के यमुना के हिस्से में राजधानी के छोटे-बड़े 22 नाले यमुना को मैला करने में अहम भूमिका निभाते हैं। यमुना को सबसे अधिक प्रदूषित करने वाला नजफगढ़ नाला भी कभी साहिबी नदी के नाम से जाना जाता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा सफाई एवं नदी विकास मंत्रालय गठित कर गंगा को लेकर अपनी संजीदगी जता दी है, लेकिन जब तक गंगा की सफाई की योजना में यमुना की सफाई को भी शामिल नहीं किया जाता, गंगा की दशा में सुधार की कल्पना करना बेमानी होगा। गंगा को साफ करने से पहले यमुना को साफ करना जरूरी है, क्योंकि यमुना, गंगा की प्रमुख सहयोगी नदी है। दरअसल, हर नदी की दुर्दशा की एक वजह इसकी सहायक नदियों की हालत भी होती है।

यमुना की दुर्दशा की भी प्रमुख वजह इसकी सहायक नदियां हैं। बीते दो दशकों में यमुना में प्रदूषण कम करने के लिए दो बार एक्शन प्लान बने, लागू हुए और तीसरे एक्शन प्लान की तैयारी है लेकिन इन एक्शन प्लान में से एक पैसा भी इसकी सहायक नदियों के स्वास्थ्य को सुधारने पर नहीं खर्च किया गया। यमुनोत्री से संगम तक यमुना की यात्रा में 30 सहायक नदियां इसमें मिलती हैं। लेकिन उत्तराखंड से यमुना में मिलने वाली 10 सहायक नदियों में से टोंस को छोड़कर बाकी सभी नदियों का स्वास्थ्य ठीक है। इसीलिए हथिनीकुंड बैराज तक यमुना की हालत अपेक्षाकृत बेहतर है।

इसके बाद हरियाणा सीमा में प्रदेश की दो मौसमी नदियां सोंब व पथराला इसमें मिलती हैं। विडंबना यह है कि जो प्रदेश यमुना का सर्वाधिक दोहन करता है उस प्रदेश से यमुना नदी में योगदान सबसे कम है। इन नदियों में केवल बरसात के दिनों में पानी रहता है बाकी समय यह नदी सूखी रहती है।

दिल्ली में प्रवेश करते समय पल्ला गांव में यमुना में पश्चिमी यमुना नहर से दिल्ली का तय अंश इसमें मिलता है जिसके चलते वजीराबाद बैराज पर यमुना की हालत कुछ बेहतर है। दिल्ली के 22 किलोमीटर के यमुना के हिस्से में राजधानी के छोटे-बड़े 22 नाले यमुना को मैला करने में अहम भूमिका निभाते हैं।

यमुना को सबसे अधिक प्रदूषित करने वाला नजफगढ़ नाला भी कभी साहिबी नदी के नाम से जाना जाता था। इस नदी का उद्गम राजस्थान में था और हरियाणा के कुछ हिस्सों से गुजरती हुई दिल्ली में यमुना में मिलती थी। दिल्ली की सीमा से आगे बढ़ते ही यमुना में हिंडन नदी आकर मिलती है जिसकी खुद दो प्रमुख सहायक नदियां पश्चिमी काली और कृष्णा हैं। ये सभी नदियां बुरी तरह से प्रदूषित हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए जरूरी है कि इसकी सहायक नदियों की हालत भी ठीक हो। पर्यावरणविद मनोज मिश्र कहते हैं कि जब तक सहायक नदियां प्रदूषित हैं, तब तक यमुना के प्रदूषणमुक्त नहीं हो सकती।

यमुना की दुर्दशा केंद्र या राज्य सरकारों के साथ-साथ न्यायपालिका की असफलता भी है। अदालत में मामला चलते हुए दो दशक हो गए, लेकिन यमुना की दशा में एक फीसदी भी अंतर नहीं आया है। यमुना एक्शन प्लान का काम ‘नेशनल यमुना कंजर्वेशन अथॉरिटी’ के निर्देश पर होता है जिसका चेयरमैन प्रधानमंत्री है। जब बुनियादी ढांचे की, पैसों की, तकनीकी व जानकारी की कमी नहीं है तो फिर स्थिति क्यों नहीं बदलती? दरअसल, राजनीतिक इच्छाशक्ति व दूरदृष्टि की कमी है।
हिमांशु ठक्कर
संयोजक, साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपुल


हम एक नदी की सोच को भूल गए हैं। हम उसे पानी के लिए एक स्रोत या रियल एस्टेट की तरह मानते हैं। हम जब तक नदी के अस्तित्व को शहर की सोच के साथ नहीं जोड़ेंगे, सरकार व समाज यह नहीं समझेगा कि जीवन में नदी का महत्व कितना है, तब तक बदलाव नहीं आएगा।
रवि अग्रवाल,
निदेशक, टॉक्सिक लिंक


यमुना जल बंटवारे पर राज्यों के करार की हो समीक्षा


साढ़े चार हजार करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी यमुना नदी की हालत बीते दो दशकों में ज्यादा खराब हुई है। विशेषज्ञ व पर्यावरणविदों का मानना है कि यमुना की दुर्दशा की असल वजह यमुना बेसिन के राज्यों के बीच नदी जल बंटवारे का वह करार है जो 1994 में हुआ था।

इस करार के तहत पांच राज्यों- हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान व दिल्ली ने तय किया कि वे अपनी सिंचाई पेयजल जरूरतों के लिए यमुना नदी के पानी का इस्तेमाल करेंगे और नदी में पानी कम होने पर यदि उसकी जैविक दशा बिगड़ती है तो सरप्लस पानी को नदी में छोड़ने की व्यवस्था करेंगे। बंटवारा ऐसा किया गया कि नदी का करीब-करीब 100 फीसदी पानी आपस में बांट लिया गया और यमुना को मरने के लिए छोड़ दिया गया।

करार के मुताबिक हथिनीकुंड बैराज पर उपलब्ध जल का करीब 80 फीसदी हरियाणा निकाल लेता है और 15 फीसदी उत्तर प्रदेश निकाल लेता है। उसके बाद यमुना में करीब 5 फीसदी पानी बचता है जो बैराज से आगे बहता है। इसकी गैर-मानसून समय में औसत मात्रा करीब 160 क्यूसेक (कागजी रिकॉर्ड में यही मात्रा दर्ज है) होती है जो दिल्ली तक शायद ही पहुंच पाती है।

लेकिन दिल्ली की सीमा छूने के ठीक पहले पल्ला गांव के पास पश्चिमी यमुना नहर का पानी दोबारा यमुना में मिलने से इसकी कुछ दशा सुधरने लगती है लेकिन वह पानी वजीराबाद बैराज में रोक लिया जाता है और उसके आगे यमुना का मौलिक जल शून्य स्तर पर पहुंच जाता है। ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक गैरी जॉन्स के नदियों पर किए गए विश्व मान्य शोध के मुताबिक, ‘किसी भी नदी को स्वस्थ रहने के लिए उसके 75 फीसदी जल का अविरल बहना जरूरी है।

नदी से केवल 25 फीसदी जल ही निकाला जा सकता है। उन्होेंने आगे यह भी कहा है कि किसी नदी से ज्यादा मांग व दबाव है तो उससे अधिकतम 50 फीसदी पानी निकाला जा सकता है और 50 फीसदी जल के साथ नदी ठीक ठाक हालत में रह सकती है।’

यमुना जिए अभियान के संयोजक व पर्यावरणविद मनोज मिश्र का कहना है कि 1994 में जल बंटवारे का करार ही यमुना के लिए मृत्युदंड था। नदी को एक बार मारने के बाद भला करोड़ों करोड़ खर्च करके भी उसे पुनर्जीवित कर पाना असंभव है। वह कहते हैं कि जब तक इस करार की समीक्षा नहीं की जाएगी, तब तक यमुना को प्रदूषण मुक्त करने का सपना देखना भ्रम है।

यमुना

साबरमती नहीं बन सकती यमुना के लिए मॉडल


अहमदाबाद में बह रही साबरमती नदी के रिवर फ्रंट विकास को मॉडल की तरह बताया जाता है। लेकिन पर्यावरणविद व नदी विशेषज्ञों का कहना है कि साबरमती नदी यमुना के लिए मॉडल नहीं बन सकती। साबरमती महज साढ़े तीन सौ किलोमीटर लंबी है, जबकि यमुना की लंबाई 1370 किलोमीटर है।

अहमदाबाद में साबरमती का महज साढ़े ग्यारह किलोमीटर का हिस्सा है, जबकि अकेले दिल्ली में यमुना की लंबाई 48 किलोमीटर है। तीसरी बात अहमदाबाद में साबरमती के प्रवेश करने के ठीक पहले नर्मदा से एक नहर आकर मिलती है। अहमदाबाद से पहले और बाद में साबरमती में खास पानी नहीं है। साबरमती में नदी के तटों को न केवल सजा-संवार दिया गया है, बल्कि ऊंची-ऊंची इमारतें विकसित हो रही हैं। मनोज मिश्र कहते हैं कि साबरमती में पानी का निरंतर प्रवाह नहीं है, इसलिए वह कोई मॉडल नहीं है।

टेम्स सफाई से लें सबक


यमुना के मैली होने की सबसे बड़ी वजह है दिल्ली के 22 नालों का यमुना में मिलना और वजीराबाद से आगे नाम मात्र के लिए भी ताजा पानी का न बहना। जानकारों का मानना है कि यमुना को साफ करने के लिए लंदन की टेम्स नदी प्रोजेक्ट से कुछ सबक लिए जा सकते हैं। हालांकि यमुना और टेम्स दोनों नदियों में कई बड़ी असमानताएं हैं लेकिन टेम्स की तर्ज पर यमुना में सीवर को रोककर इसे जीवन दिया जा सकता है।

यमुना की आज जो दशा है, वही हालत 1950 के दशक में लंदन में टेम्स नदी की थी। लेकिन छह दशक बाद आज टेम्स इंग्लैंड की सबसे स्वच्छ नदियों में से एक है। अब इसमें डॉल्फिन और सी हॉर्स मछलियां नजर आ रही हैं। इसके लिए ब्रिटेन ने 824 करोड़ रुपए खर्च किए।

बिना अधिकार के बेदम हैं यमुना से जुड़ी सभी एजेंसियां


यमुना में जल की गुणवत्ता बेहतर हो, उस पर निगरानी रखने और उसकी सेहत में सुधार के लिए सिफारिश करने के लिए कई बोर्ड, कमीशन, कमेटी, अथॉरिटी व एजेंसी हैं लेकिन इनमें से किसी के पास यमुना के बारे में निर्णायक फैसला लेने का कोई अधिकार नहीं है। यमुना कई प्रदेशों से गुजरती है।

हर प्रदेश अपने-अपने तरीके से यमुना की दशा सुधारने के लिए प्रयास करने का दावा करते हैं और कई मौकों पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल चलता है। केंद्र पानी को राज्य का मुद्दा बताकर पल्ला झाड़ लेते हैं। जानकारों का कहना है कि बिना प्रभावी एजेंसी के यमुना में सुधार हो पाना मुश्किल है।

क्या कर रही हैं सरकारी एजेंसियां


अपर यमुना रिवर बोर्ड नामक संस्था का जिम्मा केवल यह है कि विभिन्न राज्यों के बीच तय करार के मुताबिक ही जल का बंटवारा हो। इस बोर्ड की भूमिका महज मध्यस्थ की तरह है लेकिन यह किसी राज्य को आदेश देने की स्थिति में नहीं है। यमुना स्टैंडिंग कमेटी केवल यह देखती है कि बाढ़ क्षेत्र में कोई भी निर्माण न हो और यदि हो तो सुरक्षित हो लेकिन कुछ कर नहीं सकती।

दिल्ली अर्बन आर्ट कमीशन (डीयूएसी) केवल परामर्श देने तक सीमित है। हालांकि उसने स्वत: संज्ञान लेकर यमुना किनारे बने मिलेनियम डिपो हटाने के लिए डीडीए व डीटीसी को निर्देश दिए लेकिन दोनों ने डीयूएसी का ही मखौल बनाया। अदालत के आदेश पर सरकार डिपो हटाने का फैसला कर चुकी है लेकिन डिपो आज भी अपनी जगह है।

सेंट्रल ग्राउंड वाटर अथॉरिटी ने यमुना बाढ़ क्षेत्र को सुरक्षित घोषित कर रखा है। अथॉरिटी का जिम्मा यह देखना है कि यमुना बाढ़ क्षेत्र में कोई पानी निकालकर उसका व्यावसायिक इस्तेमाल न करे।

रोजाना 325 एमजीडी पानी हो रहा शोधित, महज 142 एमजीडी का उपयोग


बलिराम सिंह


दिल्ली में जल संकट जबरदस्त है लेकिन 200 एमजीडी (मिलियन गैलन डेली) पानी नालियों में बह जा रहा है। यदि इस पानी का उपयोग हो तो काफी हद तक यमुना का प्रदूषण खत्म हो जाएगा और दिल्ली में पानी की किल्लत भी दूर हो जाएगी। दिल्ली जल बोर्ड के लगभग 19 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से रोजाना लगभग 325 एमजीडी गंदे पानी का संशोधन हो रहा है, लेकिन इसमें से केवल 142 एमजीडी पानी का ही उपयोग हो पा रहा है, शेष पानी नालियों में बहा दिया जा रहा है।

ओखला एसटीपी कारगर हालांकि ओखला एसटीपी फिलहाल अपनी क्षमता (170 एमजीडी) के अनुरूप कार्य नहीं कर रहा है। लेकिन अन्य एसटीपी के अपेक्षा यह प्लांट अधिक कारगर साबित हो रहा है। फिलहाल यहां पर रोजाना 124 एमजीडी गंदे पानी का शोधन किया जा रहा है। इसमें से लगभग 63 एमजीडी पानी का उपयोग बागवानी जैसे कार्यों में किया जा रहा है।

जल बोर्ड से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक बागवानी के लिए केंद्रीय लोक निर्माण विभाग को 13 एमजीडी, 2 एमजीडी सीआरआरआई को, सिंचाई के लिए जैतपुर गांव में 10 एमजीडी और ओखला स्थित कचरा आधारित बिजली संयंत्र को भी 5.50 एमजीडी पानी की आपूर्ति की जा रही है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading