गंगा की सफाई के लिये राज्य करें सहयोग


गोमुख से गंगा सागर तक 2525 किलोमीटर तक के प्रवाह क्षेत्र में गंगा का नाता पाँच राज्यों उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड व पश्चिम बंगाल से है। गंगा बेसिन की करीब 45 करोड़ की आबादी पीने, नहाने और कृषि से जुड़े पानी के लिये गंगा पर निर्भर है किन्तु गंगा प्रदूषण का बोझ ढोने को विवश है। गंगा की मौजूदा दशा व भविष्य की अपेक्षाओं पर राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के संस्थापक विशेषज्ञ सदस्य प्रो. बीडी त्रिपाठी व महामना मालवीय इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी फॉर गंगा मैनेजमेंट, बनारस के संस्थापक निदेशक प्रो. यूके चौधरी ने दैनिक जागरण के मुख्य संवाददाता राकेश पांडेय से अपनी राय रखी। प्रस्तुत है प्रमुख अंश-

प्रश्न जो पूछे गये


.- गंगा की प्रमुख समस्याएँ क्या हैं।

- गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत 14 जून 1985 को वाराणसी में हुई लेकिन समाधान नहीं निकला, क्यों।

- गंगा के प्रदूषण नियंत्रण हेतु क्या उपाय होने चाहिए।

- अविरलता के लिये क्या होना चाहिए।

- नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुआ क्या।

- सम्बन्धित पाँचों राज्यों की क्या भूमिका होनी चाहिए।

- क्या गंगा की सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त किए बिना गंगा प्रदूषण नियंत्रण संभव है।

- वाराणसी में प्रदूषण नियंत्रण के लिये क्या हो।

- राष्ट्रीय नदी घोषित करने के बावजूद गंगा का संरक्षण नहीं हो पाया, क्यों।

- क्या सफाई परियोजनाएँ सफल नहीं हो रही।

- नमामि गंगे का भविष्य क्या है।

राज्य बिल्कुल उदासीन


- गंगा की तीन प्रमुख समस्याएँ हैं। प्रवाह का कम होना, प्रवाह क्षेत्र कम होना और प्रदूषण।

- अभी तक गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का ही कार्यक्रम चलाया गया जबकि गंगा का पूरा पारिस्थितिकीय तंत्र प्रभावित हो चुका है।

- प्रदूषण का प्रमुख कारण मलजल और कारखानों से निकलने वाले विषाक्त कारक हैं। इन कारकों में लेड, कैडमियम, क्रोमियम, निकिल, कॉपर आदि जहरीली धातुएँ होती हैं। वर्तमान ट्रीटमेंट प्लांटों में इन्हें दूर करने की व्यवस्था नहीं, इसलिए एसटीपी की शोधन क्षमता को फौरन बढ़ाना होगा। गंगा किनारे के प्रमुख शहरों से 3000 एमएलडी सीवेज प्रतिदिन निकलता है जबकि मात्र 1000 एमएलडी तक शोधन एसटीपी हैं।

- अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी पर बाँध नहीं बनने चाहिए। भीमगौड़ा व अन्य नहरों के माध्यम से गंगा जल दूसरे प्रदेशों को भेजा जा रहा है, इस पर रोक लगनी चाहिए। लिफ्ट कैनाल से गंगा जल खेतों को भेजा जाता है पर ‘फ्लड एरिगेशन टेक्नीक’ की वजह से उसका 85 फीसद व्यर्थ जाता है। गंगा बेसिन में वर्षाजल संचयन व भूजल पुनर्भरण योजनाओं को कड़ाई से लागू करना होगा।

- प्रधानमंत्री ने अलग से गंगा मंत्रालय बनाया। पूर्व की जो योजनाएँ बजट के अभाव में मृतप्राय थीं, उनके लिये 20 हजार करोड़ रुपये दिलाए। पहली बार इंटीग्रेटेड योजनाएँ केंद्र द्वारा बनाई जा रही हैं। बावजूद इसके ये सिर्फ प्रदूषण नियंत्रण पर केंद्रित हैं जबकि जरूरत गंगा में अविरलता की अधिक है।

- केंद्र सरकार योजनाएँ बनाती है लेकिन उन्हें मूर्त रूप राज्यों को देना है। राज्य सरकारें सहयोग नहीं करेंगी तो योजनाएँ सफल नहीं होंगी।

- गंगा की सहायक नदियों का प्रदूषण दूर करें।

- वरुणा और असि बनारस में गंगा की सहायक नदी हैं। असि अप स्ट्रीम में है जिसे पुनर्जीवित करना होगा। आज तक असि के लिये कोई योजना नहीं बनी।

- गंगा को राष्ट्रीय स्वरूप नहीं प्राप्त हुआ। केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय का घोर अभाव है। गंगा पर पाँचों राज्य उदासीन है।

- पारिस्थितिकीय आँकड़े नहीं हैं, इस वजह से प्रदूषण नियंत्रण उपाय कारगर नहीं हो रहे। इनके लिये राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण ने निर्णय लिया था कि वाराणसी में गंगा बेसिन शोध संस्थान की स्थापना होगी, जो अब तक नहीं हुई।

- सतत प्रवाह की योजनाएँ यदि लागू नहीं की जाती तो नमामि गंगे सफल नहीं होगी।

सिंचाई के तरीके बदलें


- नदी के शरीर ज्ञान का अभाव, अत्यधिक जल दोहन और अनियंत्रित प्रदूषक तत्वों का प्रवाह।

- परियोजनाओं में व्यावहारिक पक्ष पर ध्यान नहीं दिया गया।

- जो भी लोग और संस्थाएँ परियोजनाओं से जुड़ी हैं, उन्हें प्रशिक्षित किया जाए। चीन में नदियों के अध्ययन के लिये तीन विश्वविद्यालय व कई संस्थाएँ हैं लेकिन, ऐसा कोई प्रयास भारत में नहीं दिखता। रिवर इंजीनियरिंग की पढ़ाई होनी चाहिए तभी तो समाधान तलाशे जा सकेंगे।

- 30 फीसद से अधिक जल दोहन न हो। अभी यह 95 फीसद है। अविरलता के लिये भूजल भंडार भरना जरूरी है।

आसान रास्ता है कि खेतों की मेड़ की ऊँचाई कम से कम 50 सेंटीमीटर हो।

- योजनाएँ तो खूब सुनने को मिल रही है लेकिन धरातल पर कुछ होता नहीं दिख रहा जिससे लगे कि वाकई में सरकारें कुछ कर भी रही हैं। फिर भी उम्मीद है केंद्र सरकार कुछ बढ़िया करेगी।

- जिन पाँच राज्यों से गंगा गुजरती हैं, वहाँ सिंचाई के तौर-तरीको को बदलने की जरूरत है। कम पानी खपत करने वाली सिंचाई नीति व तकनीक अपनानी चाहिए।

- सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त किया जाए।

- काशी में गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिये यहाँ एसटीपी बालू क्षेत्र में बनाया जाए। जहाँ कहीं भी सीवेज और प्रदूषक सीधे गंगा में जा रहे हैं, उन्हें रोकना होगा। पर्याप्त एसटीपी होने चाहिए।

- न कोई अध्ययन हुआ, न मैनेजमेंट हो रहा नदी विशेषज्ञों की सुनी नहीं जा रही।

- बिना आँकड़े के गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने का सपना देखा जा रहा है। मसलन, घाट कहाँ बनने चाहिए, इसका अध्ययन नहीं है। नदी की गहराई और वेग, प्रदूषण लोड का भी अध्ययन नहीं है। भूजल स्तर कितना गिर रहा है और बालू क्षेत्र कितना विस्तारित हुआ, किसी चीज का कोई आँकड़ा नहीं।

- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आशा तो है लेकिन अभी तक तो धरातल पर कुछ खास नजर होता नहीं आ रहा।

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