गंगा मैली करने वाले प्रतिष्ठानों पर नरमी क्यों

1 Jul 2014
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Polluted Ganga
Polluted Ganga
गंगा में बढ़ते प्रदूषण को लेकर न्यायालय ने भी कई बार चिंता जताई है। साथ ही गंगा में सीधे जहर उगलने वाले उद्योगों एवं टेनरियों तथा चीनी मिलों पर नकेल का भी आदेश जारी हो चुका है, इसके बावजूद इसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। इसी की देन है कि गंगा का मैली होना निर्बाध रूप से बना हुआ है। औद्योगिक घराने गंगा के अस्तित्व और लोगों की आस्था पर गंभीर चोट कर रहे हैं।गंगा के उद्धार को लेकर इन दिनों काफी चर्चाएं देखने-सुनने को मिल रही हैं। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से तो इस मुद्दे को मानों पर सा लग गया है।

गंगा को चर्चा-ए-आम बनाने में विभिन्न न्यूज चैनलों में अजब-गजब होड़ देखने को मिल रही है। गंगा की दयनीय हालत को जनमानस तक पहुंचाने व उसे निर्मल स्वरूप दिलाने के उद्घोष संग एक के बाद एक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा जोर-शोर से अभियान शुरू किया जा रहा है।

इसमें हर कोई गंगा के उद्गम स्थल से लेकर उसके अंतिम सफर तक की यात्रा करने का दावा कर रहा है। अब इन अभियानों से गंगा की हालत में कितना सुधार होगा यह तो आने वाले वक्त बताएगा, लेकिन गंगा को अगर वाकई निर्मल स्वरूप देना है तो इसके लिए केंद्र ही नहीं प्रदेश सरकारों, जनप्रतिनिधियों व आम जनमानस को अपने-अपने स्तर से अपना सौ प्रतिशत का योगदान देना होगा। बिना इसके गंगा का भला होना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है।

गंगा-यमुना व अदृश्य सरस्वती की संगम स्थली प्रयाग में हर वर्ष लगने वाले माघ मेला, छह साल पर लगने वाले अर्ध-कुंभ व 12 वर्ष पर पड़ने वाले कुंभ मेले में गंगा स्वच्छता का गुब्बारा बेहिसाब फूलता है और फिर मेला समाप्त होते ही वह जादुई अंदाज में पिचक जाता है।

इलाहाबाद के संगम तीरे लगने वाले अर्ध-कुंभ व कुंभ मेले में साधु-संतों से लेकर सामाजिक व राजनीतिक संगठनों द्वारा गंगा की निर्मलता व इसके निर्विघ्न प्रवाह को लेकर तमाम तरह के आंदोलन क्षेत्रीय, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मुद्दों में शामिल होते हैं लेकिन बाद में इसका कोई नामलेवा तक नहीं रह जाता है।

गंगा का विषय ठंडा पड़ते ही सरकारें व सरकारी तंत्र बार-बार चादर ओढ़कर सो जाती हैं और गंगा हर बार की तरह वेंटीलेटर पर ही छूट जाती है। अब तो इसकी हालत और भी दयनीय हो गयी है।

महाकुंभ 2013 के दौरान प्रदेश सरकार के लिए गंगा एक बार फिर बड़ी चुनौती बनकर सामने खड़ी थी। कुंभ के दौरान प्रयाग पहुंचने वाले करोड़ों राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्नानार्थियों, श्रद्धालुओं तथा साधु-संतों को शुद्ध व निर्मल गंगा जल मुहैया कराना सरकार के लिए किसी कड़ी परीक्षा से कम नहीं थी।

इसके लिए शासन से लेकर जनपद स्तर तक खूब माथापच्ची के दौर चले। जमकर लिखा-पढ़ी हुई। गंगा में बढ़ते प्रदूषण के स्थायी समाधान की रणनीति बनी और इसे अमली जामा पहनाने पर जोर दिया गया, लेकिन सारी कवायद मेला बीतने के साथ ही औंधे मुंह हो गई।

स्थाई समाधान की बात अस्थाई वाक्य में उलझ गई। इसी की देन है कि गंगा नदी का लगातार प्रदूषित होना जारी है।

सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक सैकड़ों प्रतिष्ठान बिना एसटीपी के धड़ल्ले से संचालित हो रहे हैं, जिसके चलते समस्या विकराल रूप लेती जा रही है। सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट एवं टेनरीज द्वारा हो रहे प्रदूषण से तब कुंभ के दौरान प्रदेश सरकार की चिंता सरकारी रिपोर्टों में उफान पर थी।

प्रदेश के पर्यावरण विभाग द्वारा सरकार को उपलब्ध कराई गई रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 600 प्रतिष्ठान ऐसे हैं, जो बिना एसटीपी के संचालित हो रहे हैं। यही वजह है कि सरकार ने पर्यावरण विभाग को अपस्ट्रीम में पड़ने वाली डिस्टलरी, चीनी मिलों, टेनरीज आदि की कुंडली तैयार करने का निर्देश दिया था।

साथ ही कौन-कौन सी व्यवस्था किन-किन तिथियों में की जाएगी, इसका भी विस्तृत कार्यक्रम पर्यावरण विभाग द्वारा तैयार कराया गया था। खुद मुख्यमंत्री गंगा को प्रदूषित करने वाली इकाइयों को लेकर गंभीर थे और उन्होंने मेला अवधि में जल प्रदूषण करने वाली ऐसी इकाइयों को चिन्हित करने का निर्देश दिया था। उक्त समस्या के स्थायी समाधान की जगह तब इन इकाइयों को तत्समय बंद करने का फरमान जारी हुआ था, लेकिन गंगा की कमर तोड़ने वाली ये समस्याएं आज भी मुंह बाएं खड़ी हैं।

ज्ञातव्य हो कि गंगा में बढ़ते प्रदूषण को लेकर न्यायालय ने भी कई बार चिंता जताई है। साथ ही गंगा में सीधे जहर उगलने वाले उद्योगों एवं टेनरियों तथा चीनी मिलों पर नकेल का भी आदेश जारी हो चुका है, इसके बावजूद इसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। इसी की देन है कि गंगा का मैली होना निर्बाध रूप से बना हुआ है। औद्योगिक घराने गंगा के अस्तित्व और लोगों की आस्था पर गंभीर चोट कर रहे हैं।

अपने फायदे के लिए गंगा की निर्मलता से खिलवाड़ हो रहा है। जून माह 2012 में भी शासन स्तर पर गंगा प्रदूषण के मुद्दे पर मंथन हुआ था, आज भी बैठकें हो रही हैं, लेकिन सार्थक परिणाम नहीं निकल रहा है।

हद यह है कि माघ मेला, अर्ध-कुंभ व कुंभ मेले के दौरान संगम पहुंचने वालों को नहरों के पानी में आस्था की डुबकी लगाने के लिए विवश किया जाता रहा है। इसका खुलासा वर्ष 2012 में शासन स्तर पर हुई उच्चस्तरीय बैठक में उपाध्यक्ष, राज्य योजना आयोग ने किया था।

उन्होंने विगत कुंभ मेला में नरौरा डैम, शारदा नहर आदि से पानी की आपूर्ति सुनिश्चित किए जाने का प्रकरण संज्ञान में लाया था, जिस पर तत्कालीन प्रमुख सचिव सिंचाई को कुंभ मेला से संबंधित पत्रावलियों का अध्ययन कर कार्रवाई सुनिश्चित कराने को कहा गया था।

स्नानार्थियों व श्रद्धालुओं को प्रदूषण रहित गंगाजल मुहैया कराना सरकारों की जिम्मेदारी है, लेकिन ऐसा करने में सरकारें लगातार विफल होती आ रही हैं। जहर उगलने वाले प्रतिष्ठानों पर नकेल लगाने में कदम-कदम पर लापरवाही व ढिलाई सामने आ रही है। ऐसे में केंद्र की नई सरकार से गंगा को कितनी राहत मिलती है, यह देखने वाली होगी।

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