गंगा प्रदूषण: मुक्ति आंदोलन की शुरुआत

कानपुर के 75 और इलाहाबाद के दर्जनों नालों का गंदा पानी सीधे गंगा में बहाया जा रहा है। नरोरा से स्वच्छ जल यहां नहीं पहुंच रहा है। स्वामी हरिचैतन्य को न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। वे कहते हैं कि कोर्ट का फैसला अभी तक संतोषजनक रहा है। उनकी मांग है कि सीवर के गंदे पानी का उपयोग असिंचित जमीन में सिंचाई के लिए किया जाए। यह पानी सिंचाई कार्य में काफी फायदेमंद साबित होगा।

घटना जनवरी वर्ष 2002 जनवरी की है। माघमेला क्षेत्र, इलाहाबाद में अमेठी टीकरमाफी आश्रम के प्रमुख स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी अपने शिविर में आए। वे अपने शिष्यों और कल्पवासियों के साथ गंगा में डुबकी लगाने के लिए रामघाट पहुंचे। रामघाट से थोड़ी दूर पहले ही दारागंज की ओर से एक बड़ा नाला गंगा में मिल रहा था। उसके गंदे पानी के दुर्गंध से वहां सांस लेना मुश्किल हो रहा था। इससे स्वामी जी का मन खिन्न हो गया। उन्होंने गंगा मैया को प्रणाम किया और बगैर स्नान किए आश्रम की ओर चल दिये। वे शिविर में चिंता की मुद्रा में बैठे ही थे कि जागरण के मुख्य संवाददाता अमर नाथ झा वहां पहुंचे। जिज्ञासावश चिंता का कारण पूछने पर स्वामी हरिचैतन्य ने कहा, भैया आज मां गंगा को प्रणाम किया, स्नान नहीं। बता दें कि स्वामी जी जिन्हें अपना स्नेह देते हैं, उन्हें आमतौर पर भैया कहकर ही संबोधित करते हैं।

लिहाजा, शिविर में ही तय हुआ कि अब मां गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए संतों व समाज के सभी वर्ग के लोगों को एकजुट कर शांतिपूर्ण आंदोलन चलाया जाएगा। इसके दूसरे ही दिन स्वामी जी के शिष्य अभय चैतन्य मौनी जी बाल ब्रह्मचारी माघमेला के प्रशासन शिविर में आमरण अनशन पर बैठे। इसके बाद माघमेला क्षेत्र में सामूहिक अनशन हुआ। जिसमें ज्योतिष व द्वारिका पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती, पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती समेत तमाम साधु-संत शामिल हुए। हालात यहां तक पहुंचे कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि यह बड़े दुख का विषय है कि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए आज साधु-संत व लाखों कल्पवासी संगम तट पर उपवास कर रहे हैं। इसके बावजूद अब तक सरकार ने गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का ठोस प्रयास नहीं किया।

गंगा के किनारे बसे सभी छोटे बड़े शहरों का गंदा और सीवर का पानी उसमें गिराया जा रहा है। यहां तक कि हाईकोर्ट के सख्त आदेश के बावजूद कानपुर के टेनरियों का प्रदूषित पानी उसमें बहाया जा रहा है। स्वामी हरिचैतन्य पूरी शिद्दत के साथ गंगा को अविरल और निर्मल बनाए जाने के लिए संघर्षरत हैं। वे इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमा भी लड़ रहे हैं। बातचीत में स्वामी हरिचैतन्य कहते हैं कि मां गंगा तो लोगों का पाप धोने के लिए धरती पर आई थीं। आज पतितपाविनी गंगा को ही मैली किया जा रहा है। अब इस समस्या ने गंभीर रूप ले लिया है। वे बताते हैं कि गंगोत्री से प्रयाग तक करीब दस विद्युत परियोजनाओं और नहरों के कारण गंगा को बांध कर सीमित कर दिया गया है। तमाम फैक्टरियों और टेनरियों का प्रदूषित पानी इसमें बहाया जा रहा है।

हरिद्वार से नरोरा तक ही सात नहरें हैं। इनके जरिए गंगाजल का दोहन जारी है। दूसरी ओर सीवर और टेनरियों का गंदा पानी इसमें मिल रहा है। वे कहते हैं कि विभिन्न शहरों में जो जलशोधन संयत्र लगाए गए हैं, वे पर्याप्त नहीं हैं। कहीं-कहीं तो बंद पड़े हैं। प्रतिदिन करीब एक हजार क्यूसेक प्रदूषित जल गंगा में मिल रहा है। कानपुर के 75 और इलाहाबाद के दर्जनों नालों का गंदा पानी सीधे गंगा में बहाया जा रहा है। नरोरा से स्वच्छ जल यहां नहीं पहुंच रहा है। स्वामी हरिचैतन्य को न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। वे कहते हैं कि कोर्ट का फैसला अभी तक संतोषजनक रहा है। उनकी मांग है कि सीवर के गंदे पानी का उपयोग असिंचित जमीन में सिंचाई के लिए किया जाए। यह पानी सिंचाई कार्य में काफी फायदेमंद साबित होगा।

गंगा का संबंध भारतीय संस्कृति से: स्वामी चिदानंद


परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ‘मुनि जी’ ने कहा कि मोक्षदायिनी मां गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाकर ही भारतीय संस्कृति को बचाया जा सकता है। यह कार्य सिर्फ बातों से नहीं होगा, हर इंसान को अपनी सामर्थ्य के अनुसार इसमें सहयोग देना होगा। हर भारतीय को समझना होगा कि मां गंगा का संबंध भारतीय संस्कृति से है। स्वामी चिदानंद सरस्वती इलाहाबाद में संगम किनारे माघमेला क्षेत्र में आये श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि संतों के प्रयास से यह मामला आज आंदोलन का रूप ले चुका है। इस आंदोलन को अब विस्तार देने की जरूरत है। अगर हर घर से एक व्यक्ति एक घंटा भी गंगा की सेवा का प्रण ले तो यह समस्या अपने आप दूर हो जाएगी। उन्होंने कहा कि गंगा की अविरलता के लिए आज संत समाज एकजुट है।

उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार


गंगा प्रदूषण मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया है। उसने उत्तर प्रदेश सरकार के असहयोगात्मक रवैये पर कड़ी फटकार लगाई है। साथ ही प्रमुख सचिव शहरी विकास से नेशनल लेदर इंस्टीट्यूट, चेन्नई की रिपोर्ट के साथ उठाए गए कदमों के ब्योरे के साथ हलफनामा दाखिल करने को कहा है। यह आदेश न्यायमूर्ति अशोक भूषण व न्यायमूर्ति अरुण टंडन की खंडपीठ ने दिया है। गंगा को प्रदूषण मुक्त रखने की मानीटरिंग कर खंडपीठ ने जब अपर महाधिवक्ता से पिछले निर्देशों के अनुपालन की जानकारी मांगी तो उचित सहयोग नहीं मिला। इस पर खंडपीठ ने नाराजगी जताई और कहा कि सरकार इस तरह के जनहित मामले में कोर्ट का समुचित सहयोग नहीं कर रही है। यह अच्छी बात नहीं है।

गंगा को बचाने के लिए इस्कॉन भी सामने


गंगा को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्री कृष्ण भावनामृत संघ, इस्कॉन भी सामने आया है। इलाहाबाद के माघ मेले में इस्कॉन ने नगर निगम के साथ सफाई अभियान को तेज करने का निर्णय लिया है। इस्कॉन गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए लोगों को जागरूक करेगा। देश-विदेश में फैले इस्कॉन के सदस्य विभिन्न स्तरों पर इसके लिए कार्य करेंगे। इस्कॉन का मानना है कि गंगा का भारतीय संस्कृति से अभिन्न संबंध है। भारतीय संस्कृति के संवर्धन के लिए जरूरी है कि गंगा को निर्मल बनाया जाए।

विश्व धरोहर की तरह हो गंगा का संरक्षण


जिस तरह विश्व धरोहर ताजमहल का संरक्षण किया जा रहा है, उसी तरह गंगा का संरक्षण किया जाना चाहिए। इसके लिए कानून बनाया जाना जरूरी है। इसके साथ ही नदी विज्ञान को पाठ्यक्रम का दर्जा मिलना चाहिए। ये विचार भारतीय प्रौधोगिकी संस्थान, आईआईटी में आयोजित सेमिनार में विद्वानों ने व्यक्त किये। सेमिनार में नदी घाटी प्रबंधन योजना के समन्वयक आईआईटी के प्रोफेसर डॉक्टर विनोद तारे ने बताया कि ग्यारह राज्यों में 9,07,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र से पावन गंगा गुजरती है। गंगा की धारा निर्मल और अविरल रहे, इसके लिए गंगा नदी घाटी प्रबंधन योजना पर सात आईआईटी मिलकर काम कर रही है। उन्होंने बताया कि गंगा में प्रदूषण खतरनाक स्थिति में पहुंच गया है। इसमें सत्तर से पचहत्तर फीसदी प्रदूषण सीवेज से होता है। वहीं पच्चीस से तीस फीसदी प्रदूषण टेनरियों, चीनी व कागज मिलों तथा अन्य औद्योगिक इकाइयों से होता है।

इस अवसर पर प्रोफेसर राजीव सिन्हा ने कहा कि गंगा सिर्फ लोगों को जल ही नहीं, अपितु जलचर को जीवन भी देती है। गंगा बेसिन में तो बड़ी आबादी बसी है। इसका जल पाइप का पानी नहीं, प्राकृतिक धरोहर है। उन्होंने कहा कि नदी का अपना विज्ञान होता है। इसका जल अमृत के समान शुद्ध रहे, इसके लिए नदी विज्ञान को पाठ्यक्रम में दर्जा मिलना चाहिए। जैव विविधता बनी रहे, इसके लिए इसे प्रदूषण मुक्त करने का प्रयास होना चाहिए। नदियों को बचाने के लिए नए विज्ञान की कल्पना करनी होगी। सेमिनार में कई अन्य विद्वानों ने भी विचार व्यक्त किए।

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