गंगा: सड़क से संसद तक

21 Dec 2011
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rally for ganga
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सवाल अहम्: जवाब दुर्भाग्यपूर्ण


दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि मंत्री महोदया के उत्तर पर रेवती रमण सिंह के अलावा और किसी के प्रतिरोधी स्वर तक सुनाई नहीं दिए, जबकि जांच हो तो भारत की नदियों में 2जी से कम गंभीर घोटाले नहीं। उल्टा मंत्री महोदया के जवाब से पहले एक सांसद तो यह कहकर जवाब को अगले दिन टालना चाहते थे कि बाहर कोहरा बहुत है। सांसद भी कम हैं। सचमुच! सदन खाली ही था। सवाल पूछने तथा जवाब देने वालों के अलावा कदाचित ही किसी पार्टी का कोई राष्ट्रीय नेता सदन में मौजूद था।

18-19 दिसंबर, 2011 ये तारीखें गंगा के लिए बेहद अहम् हो सकती थी। किंतु संसद में मंत्री के जवाब और सड़क पर समाज की बेरुखी ने बेनतीजा इन्हें बना दिया। 18 दिसंबर को भारत की धर्मसत्ता के सर्वोच्च पद पर आसीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की सरपरस्ती वाले गंगा सेवा मिशन ने गंगा प्रदूषण के खिलाफ दिल्ली में रैली निकाली लेकिन परिजन की अस्थियां लेकर कई सौ किमी. दूर हरिद्वार जाने वाले दिल्लीवासियों ने उनके शहर में आये गंगासेवकों की पीठ थपथपाने की जहमत भी नहीं उठाई। माननीय शंकराचार्य खुद भी गंगा के लिए अपना मठ छोड़कर सड़क पर उतरने नहीं आये, जैसे कभी वह गंगा पुत्रों के आग्रह पर गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कराने की मांग को लेकर प्रधानमंत्री से मिलने गये थे। सच्चाई यह है कि यदि संत, समाज और सरकारों में से किसी एक ने भी गंगा की अविरलता और निर्मलता के प्रति दृढ. संकल्प दिखाया होता, तो निश्चय ही आज इसका नतीजा दूसरा होता।

सरकार के संकल्प में कमी का नमूना एक बार फिर इस 19 दिसंबर को दिखाई दिया। इस दिन दोपहर बाद धारा 193 के तहत् लोकसभा में हिमालय तथा गंगा में अतिदोहन पर गंभीर बहस हुई। काफी अहम् सवाल उठे। गंगा प्रवाह मार्ग के पांचों प्रदेशों के अलावा असम, सिक्किम, तमिलनाडु तथा उड़ीसा के सांसदों ने भी इसमें शिरकत की। सर्वश्री सतपालजी महाराज, प्रदीप टम्टा, रेवती रमण सिंह, बलिराम, अन्नू टंडन, शरद यादव, हुकुमदेव नारायण सिंह, लालू यादव, रवींद्र कुमार सिंह, रवींद्र कुमार पांडे, सईद उल हक, प्रशांत कुमार मजूमदार, तरुण मंडल, सनासूरन, प्रेमदास राय, जी शिवस्वामी, पी लिंगम, थिरुन्ना वालवन और भृतहरि महताब।

उत्तर प्रदेश से समाजवादी सांसद श्री रेवती रमण सिंह ने बड़े दिल से शुरुआत की। बहस के दौरान जहां गंगा के प्रदूषण, शोषण, कटाव, बांध, बैराज, अवैध खनन और पैसे की बर्बादी के साथ-साथ राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण की कार्यप्रणाली को लेकर तल्ख आवाजें सुनाई दीं; वहीं दूसरी ओर “गंगा मैया तोहे पियरे चढ़इबे’’ और “गंगा मे जब तक पानी रहेगा, सैंया तोहार जिनगानी रहेगा’’ जैसे भोजपुरी लोकगीत, भूपेन हजारिका का गाया - “गंगा क्यों बहती हो तुम’’ के अलावा “हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में गंगा बहती है’’ तथा “गंगा मेरी मां का नाम, बाप का नाम हिमालय’’ जैसे सदाबहार फिल्मी नगमें भी गूंजे। तेजी से लुप्त होती धाराओं पर गंभीर चिंता जताते हुए हुकुमदेव नारायण सिंह ने नदी संरक्षण की नीति तथा नदियों का इतिहास लिखे जाने की मांग की। उड़ीसा के भृतहरि महताब ने गंगा प्रदूषण नियंत्रण हेतु सतत् तथा दूरगामी उपायों को अंजाम देने के लिए एक राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना की जरुरत बताई। श्री महताब ने राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण की सतत् बैठक न होने पर सवाल खड़ा किया, तो शरद यादव ने अथॉरिटी के दफ्तर तथा शिकायत सुनने वाले अफसर का पता पूछ अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा डाला।

असम के सनसूरना ने चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी पर बनाये जा रहे बांधों को लेकर सरकार की अनदेखी पर नाराजगी जाहिर की। उन्होंने ब्रह्मपुत्र रिवर बेसिन अथॉरिटी के साथ-साथ नदी- पहाड़ों को बचाने के लिए नेशनल फॉरेस्ट एंड इन्वायरमेंट फोर्स बनाने की मांग की। बहस तल्ख तब हो गई, जब इलाहाबाद, बनारस, पटना पहुंच रहे काले - पीले गंगाजल को लेकर वह काफी क्षुब्ध दिखे उत्तर प्रदेश तथा बिहार के सांसदों ने प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर हो रहे प्रयासों व नीयत पर ही सवाल उठा दिए। वरिष्ठ सांसद हुकुम देव नारायण सिंह ने प्रदूषण नियंत्रण उपायों की खिल्ली उड़ाते हुए बताया कि दिल्ली के ठेकेदार 20-25 रुपये प्रति ट्रक देकर दिन- दहाड़े यमुना में मलवा डालते हैं। पूछा कि सरकार ने अब तक प्रदूषण फैलाने वाली कितनी फैक्ट्रियों पर कार्रवाई की है?

लालू यादव ने कहा कि अभी प्लांटों की ठीक से जांच हो जाये, तो बड़े-बड़े जेल में चले जायेंगे। कोई और मुल्क होता तो प्रदूषकों को सख्त सजा हुई होती। पश्चिम बंगाल के सईद उल हक ने खर्च करने में आगे और प्रदूषकों पर कार्रवाई करने में पीछे रहने के तौर तरीके से नाखुशी जाहिर की। भृतहरि महताब ने भारत के महालेखाकार नियंत्रक की रिपोर्ट पर लोक लेखा समिति द्वारा की गई संस्तुति का जिक्र करते हुए कहा कि समिति ने भी माना था कि प्रदूषण नियंत्रण की सरकारी कोशिशें फेल साबित हुई हैं। सरकार यदि वाकई गंभीर है, तो कानपुर, उन्नाव के साथ-साथ जाजमऊ तथा बंथर की टेनरिज को हटाए। उन्हें प्रदूषण नियंत्रण के लिए जरुरी तकनीक का इस्तेमाल हेतु उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए आर्थिक मदद पर विचार करने को कहा।

उन्नाव की सांसद अन्नू टंडन ने कानपुर व उन्नाव के चमड़ा उद्योगों के प्रदूषण के समाधान को अपने जीवन की एक बड़ी चुनौती मानते हुए समाधान के प्रति संकल्प दिखाने की कोशिश की। उन्होंने नदियों के किनारे एक्सप्रेस वे निर्माण पर प्रतिकूल टिप्पणी तो की ही, शारदा व सरयू नहरों में पानी की कमी तथा कचरे की अधिकता की समस्या के समाधान के लिए केंद्रीय पहल की भी मांग की। झारखण्ड सांसद रवींद्र कुमार पांडे ने दामोदर में प्रदूषण नियंत्रण हेतु हो रहे खर्च को अभी तक बेनतीजा बताया। बहरहाल, प्रदूषण पर सरकार की नाकामी की चर्चा तो बहुत हुई, किंतु प्रदूषण नियंत्रण हेतु उपयोग में लाई जा रही तकनीक की नाकामी पर किसी ने सवाल नहीं उठाये। प्रदूषण को उसके स्रोत पर शोधित करने, रसायन तथा बिजली आधारित संयंत्रों के स्थान पर जैविक व बिजली रहित तकनीक या सीवर पाइप लाइनों की जगह सुलभ की तर्ज पर त्रिकुण्डीय प्रणाली अपनाने तथा मलशोधन संयंत्रों व फैक्ट्रियों को नदियों से दूर करने जैसी राय भी सदन में सुनाई नहीं दी।

गंगा भक्त गंगा प्रदूषण के खिलाफ निकालते रैलीगंगा भक्त गंगा प्रदूषण के खिलाफ निकालते रैलीइस बहस का दुर्भाग्यपूर्ण अंत तब हुआ, जब माननीय केंद्रीय वन एवम् पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन अपना जवाब देने उठीं। हालांकि उन्होने शुरुआत गंगा के मातृत्व व उसकी भारत को एकसूत्र में बांधने वाली शक्ति के बारे में मीठी-मीठी बातें करते हुए की। उन्होंने एक बार यह भी कहा ही कि सरकार प्लान बनाकर सुनिश्चित कर रही है कि 2020 तक कोई भी प्रदूषित जल बिना शोधन गंगा में नहीं जाये। फिर अंततः उन्होंने केंद्र सरकार को फंडर जैसी भूमिका में रखते हुए प्रदूषण नियंत्रण की सारी जिम्मेदारी राज्य सरकार, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों, स्थानीय निकायों तथा जनसंख्या वृद्धि पर थोप दी।

मंत्री महोदया ने कहा कि जनसंख्या बढ़ने के कारण शोधन क्षमता व कचरे के बीच का अंतर बढ़ा है। गंगा में प्रतिदिन 12 हजार मिलियन लीटर प्रदूषण जाता है; जबकि उपलब्ध शोधन क्षमता मात्र चार हजार मिलियन लीटर है। उन्होंने कहा कि राज्य प्रदूषण बोर्डों को अधिकार है कि वे कार्रवाई करें। स्थानीय निकाय शोधन संयंत्रों का पूरी क्षमता के साथ उपयोग करें। शहरों का सीवर नेटवर्क ठीक से काम करे। राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए। हमने बनारस -इलाहाबाद को पैसा दिया है। यह राज्य का दायित्व है कि उसका पूरा उपयोग हो। कानपुर में टेनरिज ठीक से काम नहीं कर रही है। यह राज्य का काम है।

मंत्री महोदया के इस जवाब ने उसके मकसद पर ही पानी फेर दिया, जिसे ध्यान में रखकर गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया था। उल्लेखनीय है कि गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित ही इसलिए किया गया था कि गंगा केंद्र और राज्य के बीच की राजनीति में न फंसे। इस बाबत् जारी अधिसूचना में इस आशय का उल्लेख भी किया गया था कि अब गंगा बेसिन में होने वाली नदी आधारित गतिविधियां सीधे प्राधिकरण के अधीन होंगी। इसी बिना पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा एक्सप्रेस वे की गतिविधियों पर रोक लगाते हुए अंतिम निर्णय प्राधिकरण पर छोड़ दिया था। मैने तभी लिखा था कि प्राधिकरण के होते हुए यदि अब भी सरकारें गंगा का दायित्व एक-दूसरे पर डालती रहीं, तो गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने की मांग करने और उसे मंजूर करने वाले..... दोनों के माथे पर वैसा ही कलंक लगेगा, जैसा अभी गंगा कार्य योजना के कर्णधारों पर है। वजह कि अब गंगा के नाम पर ज्यादा बड़ी धनराशि होम की जा रही है।

दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि मंत्री महोदया के उत्तर पर रेवती रमण सिंह के अलावा और किसी के प्रतिरोधी स्वर तक सुनाई नहीं दिए, जबकि जांच हो तो भारत की नदियों में 2जी से कम गंभीर घोटाले नहीं। उल्टा मंत्री महोदया के जवाब से पहले एक सांसद तो यह कहकर जवाब को अगले दिन टालना चाहते थे कि बाहर कोहरा बहुत है। सांसद भी कम हैं। सचमुच! सदन खाली ही था। सवाल पूछने तथा जवाब देने वालों के अलावा कदाचित ही किसी पार्टी का कोई राष्ट्रीय नेता सदन में मौजूद था। बहरहाल, इस बहस को बेनतीजा तो नहीं, किंतु दुर्भाग्यपूर्ण जरुर उठा सकते हैं। इसने गंगा के प्रति सरकार तथा सदन....दोनों की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। समाज को कम से कम अब तो सोच ही लेना चाहिए कि उसकी पहल के बगैर गंगा प्रदूषण मुक्ति का सपना लेना बेकार है।

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