गंगा सेवा मिशन संकल्प और लक्ष्य

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आनंद स्वरूप
गंगा भारतीय सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है। यह पतितपाविनी है। प्रतिवर्ष करोड़ों लोग इसके विभिन्न घाटों पर पवित्र जल में डुबकी लगाकर अपने आपको धन्य मानते हैं। इसके जल का आचमन करने से हमें पापों से मुक्ति का एहसास होता है। इसके तट पर सदियों से ऋषियों-मुनियों ने मानव जाति को विश्व बंधुत्व का संदेश दिया। आज इसी गंगा को हमने मैली कर दिया है। गंगा में प्रतिदिन हजारों टन कूडे़ कचरे डाले जा रहे हैं। हरिद्वार से लेकर गंगासागर तक छोटे-बडे़ कस्बों और महानगरों का सीवर का पानी बहाया जाता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के कडे़ निर्देश के बावजूद इसमें कानपुर में बड़े पैमाने पर चमड़ा उद्योगों का बगैर शोधित पानी बहाया जा रहा है। केंद्र और राज्य सरकारें भी इसकी पवित्रता की रक्षा के लिए ठोस कदम नहीं उठा रही हैं।

जब कभी कोई दबाव पड़ता है, तात्कालिक तौर पर कुछ कदम उठाये जाते हैं। गंदे पानी को शोधित करने के लिए बजट की व्यवस्था की जाती है, परंतु उसका परिणाम वही ढाक के तीन पात हो जाता है। यही कारण है कि राजीव गांधी से लेकर अब तक जितने प्रधानमंत्रियों ने गंगा को पवित्र रखने के लिए बजट पास किए, अधिकांश नौकरशाहों की भेंट चढ़ गए। गंगा सेवा मिशन जीवनदायिनी गंगा की पवित्रता के लिए कृतसंकल्प है। इसका लक्ष्य है कि यह अविरल और निर्मल रहे और इसी रूप में इसका हर घर में प्रवेश हो। गंगा सेवा मिशन के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप जी कहते हैं कि यह मिशन तभी स्थायी रूप से सफल माना जाएगा, जब गंगोत्री से गंगासागर तक जहां कहीं जाएं, हम इसके जल को समान भाव से पी सकें।

आनंद स्वरूपआनंद स्वरूपवे कहते हैं कि इसी उद्देश्य से उन्होंने जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की प्रेरणा से हजारों लोगों के बीच हरिद्वार के काली मंदिर में 23 मार्च 2009 को गंगा सेवा मिशन की स्थापना की। तब से लेकर जब तक जगह-जगह धरना-प्रदर्शन किए जा रहे हैं। सेमिनार आयोजित किए जा रहे हैं। उत्तराखंड में सेवा मिशन के कार्यकर्ता जगमोहन, सुशीला भंडारी और जिमक्वान गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए। ये लोग काफी दिनों तक फुरसारी और पौड़ी जेलों में रहे। कुमायूं और गढ़वाल मंडलों में बड़े-बड़े सम्मेलन आयोजित किए गए। स्वामी आंनद स्वरूप जी कहते हैं गंगा सिर्फ नदी नहीं एक संस्कृति है। गंगा से लगाव उनका बचपन से है। गंगा की लहरों ने उन्हें सदैव आकर्षित किया है।

यही कारण है कि उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश गिरिधर मालवीय के साथ इलाहाबाद में वर्ष 1998 में गंगा समर्पण संस्थान के माध्यम से गंगा की पवित्रता के लिए काम शुरू किया। मालवीय इसके अध्यक्ष थे। इसके पूर्व महामंडलेश्वर स्वामी महेश्वरानंद ने हरिद्वार कुंभ 1998 में जब गंगा में कुत्ते की लाश देखी तो आहत होकर कहा, गंगा के लिए कुछ करो। बाद में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की प्रेरणा से तो इस संकल्प ने अभियान का रूप ले लिया। शुरू में गंगा सेवा अभियान के माध्यम से इलाहाबाद, पटना, हरिद्वार, रामपुर आदि स्थानों पर सम्मेलन आयोजित किए गए। गंगा सेवा मिशन की स्थापना के बाद अभियान में तेजी आई। 26 दिसंबर 2010 को काशी से गंगा की पवित्रता के लिए एक बड़ी यात्रा शुरू हुई। इसमें बड़ी संख्या में संत और गृहस्थ शामिल हुए। इस यात्रा की समाप्ति मथुरा में हुई। वहां गोवर्धन पीठ में स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती की अध्यक्षता में बड़ा सम्मेलन हुआ। इसके बाद हरियाणा के परहवा में शिवशक्ति महायज्ञ हुआ।

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