गंगाभक्त डॉ. दीनानाथ शुक्ल

16 Sep 2008
0 mins read
अमृतसलिला गंगा
अमृतसलिला गंगा


'गंगा दर्शन ही गंगा स्नान है', और 'गंगा में पाप धोएं न कि गन्दगी' जैसे नारों को जन-जन तक पहुंचाने तथा अमृतसलिला गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने के बाद ही गंगा में स्नान करने का संकल्प लेने वाले केन्द्रीय विश्वविद्यालय इलाहाबाद के वनस्पति विज्ञान विभाग के वरिष्ठ आचार्य डा. दीनानाथ शुक्ल 'दीन' गंगा को प्रदूषणमुक्त करने के लिए पूरी तरह समर्पित हैं। उन्होंने पिछले सत्ताइस वर्षों से तीर्थराज प्रयाग में परंपरागत रूप से लगने वाले माघ, अर्धकुम्भ व कुम्भ के सबसे विराट धार्मिक, आध्यात्मिक व सामाजिक मेलों में लगातार गंगा व यमुना जल प्रदूषण निवारण प्रदर्शनी, प्रकृति संरक्षण एवं पर्यावरण जनजागरण अभियान चला रखा है। इस अभियान में अभी तक बीस करोड़ से भी अधिक लोगों ने भागीदारी निभाई है और अनेकों ने इससे प्रेरणा प्राप्त की है। इस प्रकार यह अभियान बड़े जनजागरण का रूप ले चुका है। इस अभियान में एक विशाल व भव्य प्रदर्शनी के आयोजन के साथ-साथ गंगा व पर्यावरण् से संबंधिात विचार गोष्ठियां, संत सम्मेलन, निबंधा, चित्रकला, वाद-विवाद तथा गायन प्रतियोगिताएं व कवि सम्मेलन तथा रैलियां निकाली जाती हैं। इसके अतिरिक्त आचार्य शुक्ल ने 'गंगाजल प्रदूषण एवं निदान' पत्रिका का वितरण व उत्तर भारत के कई नगरों मे दीवारों पर भी इससे संबंधित सारगर्भित नारों को लिखवा कर जनजागरण अभियान को पूरे जोर-शोर के साथ चला रखा है। गंगा प्रदर्शनी का आयोजन हर की पौड़ी हरिद्वार, गंगा तट-कालाकांकर, प्रतापगढ़ तथा हिन्दुस्तानी अकादमी एवं स्वतन्त्रता सेनानी सम्मेलन परेड ग्राऊन्ड प्रयाग में भी अनेक संगठनों के सहयोग से किया गया है।

आचार्य शुक्ल की ओर से प्रयोगशाला से गांवों तक चल रहे इस अभियान की चर्चा आम लोगों में भी देखी जा सकती है। इलाहाबाद के रिक्शे चालक भी यात्रियों को यह समझाने में तनिक भी नहीं हिचकते कि गंगा दर्शन ही गंगा स्नान है। बच्चों से लेकर साधु-संतों धनवानों से लेकर भिखारियों में भी इस अभियान की चर्चा है और इसका व्यापक प्रचार-प्रसार है। डा. शुक्ल का यह मानना है कि गंगा केवल एक नदी नहीं है और इनका जल केवल जल नहीं है, बल्कि यह तो हम सब की माता है और इसका जल भी अमृत है। उनका कथन है कि गंगा न केवल भारतीय संस्कृति दर्शन व आध्यात्म की आधार शिला है, बल्कि यह विश्व की अमूल्य धरोहर है। यदि जल ही जीवन कहा जा सकता है, तो गंगा अमृतजल की प्रतीक है। उनका यह मानना है कि जैसे गंगा जल पीने का अधिकार प्रत्येक धरती वालों को है, ठीक वैसे ही इनकी रक्षा करने का दायित्व भी सम्पूर्ण विश्व का है। उन्होंने गंगा महाफराण, गंगा मईया, गीतगंगा, अक्षयवट, गंगा दर्शन, गंगा दर्पण जैसे काव्यों के साथ-साथ गंगा पर 'अमृत धारा' नामक एक महाउपन्यास लिखकर तथा गंगा घड़ी व गंगा यन्त्रम् की परिकल्पना करके अपने गंगा सफाई अभियान को गति देनी चाही है। गंगा के अतिरिक्त आचार्य शुक्ल ने कई अन्य धार्मिक-सामाजिक विषयों पर भी पुस्तकें लिखीं हैं। आचार्य शुक्ल ने अभी तक 40 से अधिक छात्र-छात्रओं को डी. फिल. की उपाधि दिलाई है। जिसमें लगभग 12 ने केवल गंगा, यमुना व गोमती तथा पर्यावरण पर अपना शोध प्रस्तुत किया है। पर्यावरण के क्षेत्र में पर्यावरण अध्ययन समस्या एवं निदान इनकी दो पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं और 'लाइफ लाइन आफ इण्डिया- द होली गंगा' का भी प्रकाशन शीघ्र होने जा रहा है।

उन्होंने पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से तथा अपने साक्षात्कारों में यह बताया है कि गंगा में बढ़ते प्रदूषण का मुख्य कारण देश की बढ़ती आबादी, महानगरों तथ नगरों का विकास तथा गंगा की धारा पर बनाए गए बांध हैं। गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिलाने की मांग करने वाले आचार्य शुक्ल ने इसके जल के पूर्ण सरंक्षण की मांग की है। डा. शुक्ल द्वारा 28 वर्षों से लगातार आयोजित हो रही गंगा व यमुना जल प्रदूषण निवारण प्रदर्शनी पर्यावरण व गंगा प्रदूषण निवारण की दिशा में मील का पत्थर सिध्द हो रही है। इसमें समाज के सभी तबकों की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। साथ ही चार्ट, माडल व साहित्य के माध्यम से गंगा के पौराणिक, धार्मिक, भौतिक, रासायनिक, सामाजिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक व व्यावहारिक पहलुओं को दर्शाया जाता है। गंगा के साथ-साथ प्रदर्शनी में वायु, मृदा, परमाणु, रसायन व सामाजिक प्रदूषणों की विभीषिका पर भी प्रकाश डाला जाता है।


आचार्य शुक्ल बताते हैं कि गंगा 'भगवान' का निराकार रूप है। गंगा की स्वच्छ धारा सम्पूर्ण विश्व की खुशहाली का आधार है अत: देश में जन-जन को गंगा की रक्षा के लिए आगे आना होगा। श्रध्दालुओं को भी चाहिए कि वे ऐसा कुछ भी न करें जिससे कि गंगा का अमृत प्रदूषित हो। उन्होंने यह प्रतिज्ञा कर रखी है कि जब तक गंगा को प्रदूषण मुक्त नहीं कर लेंगे वह गंगा स्नान नहीं करेंगे।

संपर्क: तिवारीपुर (नूरफर), पो. गोकुल, सरायभीमसेन मण्डवा, जनपद प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

“भारतीय पक्ष” भारतीय मूल्यों पर आधारित वैकल्पिक व्यवस्था की पक्षधर हिन्दी मासिक पत्रिका है। प्रिंट संस्करण के साथ-साथ इन्टरनेट पर भी आप इस पत्रिका को पढ़ सकते हैं। पत्रिका और वेबसाइट की ज्यादातर सामग्री ज्ञानपरक होती है। “भारतीय पक्ष” के दोनों संस्करणों के संपादक विमल कुमार सिंह हैं।

इन्टरनेट संस्करण का पता है
http://www.bhartiyapaksha.com
 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading