गांवों में पाइप से जलापूर्ति संरक्षण के प्रयासों को प्रभावित कर सकती है: विशेषज्ञ

2 Dec 2020
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गांवों में पाइप से जलापूर्ति संरक्षण के प्रयासों को प्रभावित कर सकती है
गांवों में पाइप से जलापूर्ति संरक्षण के प्रयासों को प्रभावित कर सकती है

जल जीवन मिशन के तहत उत्तराखण्ड सरकार ने राज्य के  हर घर तक पाइपलाइन के जरिये पानी पहुचानें का लक्ष्य रखा है लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में पानी और पर्यावरण पर काम करने वाले विशेषज्ञ इसे हिमालय के पंरपरागत पानी के स्त्रोतो के संरक्षण के लिए खतरा मान रहे है ।

पानी पर जमीनीस्तर  पर काम करने वाले  विशेषज्ञों का कहना है कि अगर पाईप लाइन के जरिये घरों में पानी पहुँचाया जाता है तो इससे पानी को संरक्षित करने में कई समस्या उत्पन्न हो सकती है,जैसे लोग प्राकृतिक पानी के स्त्रोतों की देखभाल करना छोड़ देंगे जो कि अप्रत्यक्ष रूप से पाइप कनेक्शन के लिये पानी का मुख्य स्रोत है ।

वही हिमालय एनवायरनमेंट स्टडीज एंड कंजरवेशन आर्गेनाइजेशन के संस्थापक अनिल प्रकाश जोशी का कहना है कि "हर घर तक पानी की आपूर्ति पाइप के जरिये पहुँचने से  भले ही जीवन आसन हो जाये। लेकिन अधिकारियों और ग्रामीणों को यह याद रखना होगा की प्राकृतिक झरनों और धाराओं को संरक्षित करना जरूरी है क्योंकि यह पाइप से पानी की आपूर्ति का मुख्य  स्रोत है।"

"पहले के समय मे सभ्यताओं  को पानी के स्रोतों के आस पास स्थापित किया जाता था। लेकिन अब पानी को मानव की बस्तियों तक लाया जाता है। सरकार को भी पहाड़ी क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता को लेकर ध्यान देने की आवश्यकता है, वही जबसे लोगों के घरो में पाइप कनेक्टिविटी पहुँची है तब से वह अपने गांव के वास्तिविक पानी के स्त्रोतो को भूलने लगे है ।"

उन्होंने कहा कि "लोगों को यह मसहूस होना  चाहिए कि जब तक स्थानीय स्त्रोत संरक्षित नही किए जाते तब तक वह पाइप से पानी का इस्तेमाल नही करेंगे। जैसा की आज भी अधिकांश पहाड़ी इलाकों मे पानी के कनेक्शन में  भूमिगत पानी का उपयोग किया जाता है। जो विभिन्न पुनर्जीवित प्रक्रिया जैसे ट्रेंचर्स,कुएं, तालाब और दूसरे अन्य प्रकार के संसाधन से रिचार्ज हो जाता है |"

"दूरदराज क्षेत्रों से एक बार पहाड़ी इलाकों में पाइपलाइन से पानी पहुंचाया जा सकता है  लेकिन वास्तविकता यह है की उसके बावजूद लोगों को पानी नहीं मिल सकेगा। क्योंकि इसके पीछे कई  कारण है। जैसे कई बार स्थानीय लोग पानी के आसान पहुँच के लिये पाइपो को तोड़ देते है वही जंगली जानवरों द्वारा भी पाइपों को क्षतिग्रस्त किया जाता है।  इसीलिए जरूरी है कि जो पानी के स्त्रोत है उन्हें हम पुनर्जीवित  करें।"

राज्य के पहाडी क्षेत्रों में जल स्रोतों को सामुदायिक पुनर्जीवित काम करने वाली संस्था , नौला फाउंडेशन  के सदस्य संदीप मनराल का कहना है की  वर्ष 1980 तक राज्य में  गैर ग्लेशियर धाराएं की बारहमासी नदी का उत्पन्न पूरे वर्ष मिश्रित वनों से होता था।  लेकिन अब ये नदियॉ सिर्फ मानसून में ही दिखती है. जबसे पाइपलाइनें गाँवों तक पहुँची हैं, तब से कोसी और गंगा जैसी महत्वपूर्ण नदियाँ मौसमी और परम्परागत तरीके से बन रही हैं। अब उनके जलग्रहण का क्षेत्र भी समाप्त हो रहा है।

उन्होंने कहा की पानी की गंभीर स्थिति को देखते हुए उन्होंने  नैनीताल भीमताल जैसी जगहों से महिलाओं के साथ काम करना शुरू कर दिया है और वह पानी के स्रोतों को पुनर्जीवित करने के लिये स्थानीय महिलाओं को परीक्षण भी दे रहे है ।

करीब 2  सालों तक स्थानीय लोगों के साथ काम करने के बाद  परंपरागत पानी के स्त्रोत अब अपने आप रिचार्ज हो रहे है । इसके साथ ही स्थानीय महिलाओं को पानी के लिये कई किलोमीटर का सफर भी तय नही करना पड़ेगा। 

खीर गंगा नदी को पुनर्जीवित करने में जुटे अल्मोड़ा निवासी  सुमित भानीशी  का कहना है की हमारा लक्ष्य है की पानी को संरक्षित करने के लिये लोगो को स्थानीय स्त्रोत की  आवश्यकता के बारे में जागरूक किया जाए । जब तक लोग पानी के स्रोतों के महत्व को नहीं समझेंगे, तब तक कोई भी सरकारी योजना उनकी  मदद नहीं कर पाएगी । अगर प्राकृतिक स्त्रोत सुख जाते है तो निश्चित ही उससे भूमिगत जल पर  भी असर पड़ेगा और अधिकतर मामलों में पानी के कनेक्शन में तकीनीक का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें पम्पिंग और बोर वाटर जैसी तकनीक शामिल है।

पेयजल उत्तराखण्ड के निदेशक विपिनचन्द्र पुरोहित ने भी इसी चिंता को दोहराते हुए कहते है की  " घरो तक  पाइपलाइन से पानी पहुँचने से लोगों की  प्राकृतिक स्रोतों के बजाय घर के नलो पर  निर्भरता बढ़ जाएगी । पहाड़ी क्षेत्रों में  हम घर तक पानी लाएंगे और यह भी सुनिश्चित करेंगे कि सबको पानी की आपूर्ति हो सके। लेकिन इसके लिए हमे हिमालयन पानी स्त्रोतों को पुनर्जीवित करना होगा "

पेयजल निगम के साथ उत्तराखंड जल संस्थान भी  स्कूल,घरों और  आंगनबाड़ियों तक पाइप कनेक्शन देने का काम कर रहे है ।

"जल जीवन मिशन के तहत हम उन जगहों में लोगों को पानी का कनेक्शन देंगे जहाँ पानी और उसके स्रोत  उपलब्ध है । जब तक ये कनेक्शन दिए जाते है तब तक हम एक ऐसी रणनीति तैयार करेगें जिससे स्थानीय पानी के स्रोतों को मजबूती मिल सके और इसी हिसाब से ये परियोजना भी चलती रहे।" 

29 सितंबर को नमामि गंगे मिशन के तहत उत्तराखंड में छह मेगा परियोजनाओं का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया था की  02 अक्टूबर से जलजीवन मिशन के तहत  देश के सभी स्कूल और आगनबाड़ीयो में 100 दिनों में पाइप के जरिये पानी पहुँचाया जाएगा। 

पीएम मोदी ने कहा कि देश के कई हिस्सों में पानी की कमी की चुनौतियों से लड़ने के  लिए जल जीवन मिशन के तहत पाइप के जरिए देश  के सभी ग्रामीण इलाको में  पानी पहुँचा जाएगा साथ ही ग्राम स्वराज्य को बढ़ावा और गांवों को सशक्त बनाया जाएगा।

नवंबर के पहले सप्ताह के दौरान उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने  जल जीवन मिशन को अमल में लाने के अधिकारियों के साथ एक समीक्षा बैठक की थी । जिसमें  उन्होंने अधिकारियों को दिसंबर के आखरी तक सभी स्कूलों और आंगनबाड़ियों तक पानी पहुँचाने का निर्देश दिया है।

मुख्यमंत्री ने कहा  "जल जीवन मिशन के तहत  सभी ग्रामीण इलाको में उचित पानी पहुँचाने के लिए सभी मापदंडों का पालन किया जाएगा। क्षेत्र के जिलाधिकारी  नियमित रूप से इस परियोजना की देखारेख करेंगे। तो वही समय पर लक्ष्य को पूरा करने के लिए जल संस्थान और जल निगम  प्रतिदिन नए लक्ष्य रखेंगे। हर घर नल और शुद्ध पानी के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी विभागों को आपसी तालमेल बनाकर काम करना होगा।"

राज्य के सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार जल जीवन मिशन के तहत  प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रो को करीब 14.26 लाख पानी के  कनेक्शन दिए जाने है जिसमें अब तक करीब  3.53 लाख कनेक्शन दिए जा चुके है। और 1.36 लाख कनेक्शन पिछले 6 महीनों में दिये गए है।। राज्य सरकार ने साल के अंत तक लक्ष्य रखा है की  चमोली, देहरादून और बागेश्वर  के हर घर तक पाइप से पानी पहुँचे।

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