गोमती-गंगा यात्रा

गोमती पुनरुद्धार का ऐतिहासिक संकल्प


लोक भारती उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित गोमती-गंगा यात्रा 27 मार्च को प्रातः माधौटाण्डा पीलीभीत से निकल कर शाहजहांपुर, लखीमपुर, हरदोई, सीतापुर आदि 13 जिलों से होते हुए 960 कि.मी. की यात्रा के बाद वराणसी के पास कैथीघाट के मार्कण्डेश्वर महादेव आश्रम के निकट गोमती-गंगा संगम पर 3 अप्रैल को सम्पन्न हुई। यात्रा के दौरान गोमती व गोमती में मिलने वाली 22 से अधिक नदियों व धाराओं के संगमों पर विशेष रूप से सघन संपर्क, विविध पहलुओं के अध्ययन व जागरूकता के कार्यक्रम आयोजित किए गये, जिनके माध्यम से 250 से अधिक गावों के लगभग 10,000 जागरूक गणमान्य नागरिकों, इन्जीनियरों, शिक्षकों, महिलाओं एवं महाविद्यालयीन छात्रों नें बड़े उत्साह से भाग लिया, जिसमें 45 से अधिक स्थानों पर श्रमदान, सभाएं एवं गोष्ठियां आयोजित कर स्थानीय लोगों के सहयोग से 30 गोमती मित्र मण्डलों का गठन किया गया। इनमें 350 से अधिक लोगों नें स्वेच्छा से अपने सहयोग द्वारा गोमती पुनरुद्धार का निर्णय लिया।

यात्रा के दौरान देखने में आया कि पीलीभीत जिले के लगभग 25 कि.मी. क्षेत्र में गोमती का प्रवाह अनेक स्थानों पर खेतों में विलीन होकर अन्तर-भूधारा के रूप में बह रहा है। पीलीभीत के एकोत्तरनाथ से गोमती की धारा में जहां निरन्तरता आती है, वहां गोमती धारा के निकटवर्ती जंगल समाप्त हो गये हैं तथा उसके किनारे तक धान और गन्ने की अधिक पानी वाली खेती व अत्यधिक जल दोहन के कारण भूजल स्तर 20 से 30 फुट तक गिर गया है, जिससे गोमती जल के मूलस्रोत सूखने लगे हैं या उनका जल प्रवाह कम हो गया है। भूगर्भ-जल स्रोतों की यही स्थिति कमोबेस सम्पूर्ण गोमती प्रवाह क्षेत्र में है।

लोकभारती के संगठन सचिव ब्रजेन्द्र पाल सिंह ने कहा कि अभी तक प्रस्तुत किए गये आंकड़ों के अनुसार गोमती में जल की मात्रा घटकर 35 प्रतिशत मात्र रह गई है और नाइट्रेट की मात्रा भी बढ़ी है। यदि इस ओर शीघ्र ध्यान न दिया गया तो आने वाले समय में गोमती भी उसी प्रकार सूख जायेगी, जैसे सदाबहार उसकी सहायक नदियां आज सूखी हुई हैं। इस भयावह समस्या से यदि निजात पानी है और गोमती को सजला रखना है, तो गोमती व उसकी समस्त सहायक नदियों के जल-क्षेत्र (वाटर कैचमेन्ट एरिया) में जल प्रबन्धन, सघन वृक्षारोपण व जैविक कृषि पर विशेष ध्यान देना होगा। इस कार्य हेतु सामजिक जागृति व जन सहयोग के साथ-साथ प्रधानों के प्रशिक्षण की भी आवश्यकता है, जिसमें यात्रा के सह संयोजक श्री कृष्ण चौधरी महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे। इससे भूगर्भ जल विभाग व मनरेगा के माध्यम से भी जल प्रबन्धन व वृक्षरोपण के कार्य पूरे कराये जा सकते हैं।

यात्रा के सहयोगी विनोबा सेवाआश्रम के रमेश भैया के अनुसार जिन क्षेत्रों में गाद के कारण गोमती की गहराई कम हो गई है, उन क्षेत्रों में वर्षाकाल में गोमती की बाढ़ से आस-पास की खेती प्रति वर्ष डूबने से किसानों को भारी हानि उठानी पड़ती है। इसका निराकरण उसी प्रकार संभव है, जैसे पंजाब में कालीबेई नदी पर संत सींचेवाल ने नदी तलछट की खुदाई व सफाई करके किया है। रमेश भैया के अनुसार क्षेत्र के किसान मानसिक रूप से इस कार्य हेतु तैयार भी हो रहे हैं, आवश्यकता उपयुक्त माहौल बनाने की है।

गोमती व उसकी सहायक नदियों के जल की गुणवत्ता व उसमें प्रदूषण की जांच के लिए यात्रा के दौरान यात्रा के सहसंयोजक व अध्ययन दल प्रमुख, अंबेडकर विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्राध्यापक डा॰ वेंकटेश दत्त के नेतृत्व में 30 स्थानों पर नदी व भू-जल के 60 से अधिक नमूनों का न केवल तत्काल परीक्षण किए वरन् उस पर अन्य परीक्षण बाद में प्रयोगशाला में भी किए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त नदी के जलीय जीवों व वनस्पतियों की स्थित से भी गोमती की दशा का अध्ययन किया गया है।

गोमती में सर्वाधिक प्रदूषण लखनऊ में होता है जहां फैक्ट्रियों के अतिरिक्त 22 नालों का पानी व ठोस अपशिष्ट अभी भी नदी में डाला जा रहा है। इसके अतिरिक्त गोमती बैराज द्वारा जल रोकने के फलस्वरूप हुए ठहराव से नदी के अन्दरूनी जलस्रोत भी बन्द हो गये हैं व उसमें भर गई गाद के कारण नदी की नैसर्गिक शोधन शक्ति समाप्तप्राय हो गई है। डा॰ वेंकटेश के अनुसार गोमती जल को प्रदूषण मुक्त करने के लिए नगरीय सीवर को रीवर से अलग करने के लिए नालों व सीवर पर सरल व कम लागत वाले विकेन्द्रित उपाय करने होंगे तथा उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषित प्रवाह से नदी को मुक्त करने के लिए उसकी जांच में प्रदूषण नियन्त्रण विभाग के साथ-साथ सामाजिक भागीदारी भी आवश्यक है। ऐसा होने पर जल की गुणवत्ता ठीक रखने के लिए नदी में कछुआ, मछली व अन्य जलीय-जीव वृद्धि व संरक्षण के उपाय भी करने होंगे।

यात्रा के संयोजक डा॰ नरेन्द्र मेहरोत्रा ने बताया कि लखीमपुर, सीतापुर क्षेत्र में बड़ी संख्या में चीनी मिलों, प्लाईवुड, कागज आदि फक्ट्रियों द्वारा बड़ी मात्रा में प्रदूषण सीधे गोमती व उसकी सहायक नदियों में डाला जाता है। साथ ही कस्बों व शहरों के नालों द्वारा मानव अपशिष्ट भी सीधे गोमती में पहुंचता है। यद्यपि अपनी सहायक नदियों के जल से नैमिशारण्य के पास नदी में जल स्तर में कुछ सुधार हुआ है पर क्षेत्र में वनों की अन्धा-धुन्ध कटान के कारण भूजल स्तर में कमी आई है। स्थानीय सन्तों के साथ जन सहयोग से नैमिश के चैरासी कोस परिक्रमा क्षेत्र के गावों में जलाशयों के निर्माण के साथ ही चैरासी हजार से अधिक पंचवटी के वृक्ष लगाने का संकल्प लिया गया है।

सुल्तानपुर एवं जौनपुर में भी नगरीय प्रदूषण की मात्रा अत्यधिक है अतः यात्रियों एवं स्थानीय लोगों के द्वारा नदी पर स्वच्छता श्रमदान एवं सभाओं द्वारा संकल्प किया गया कि गोमती में किसी भी प्रकार का अपशिष्ट डालना रोकना होगा। लागों नें सुल्तानपुर में एक भू-विसर्जन कुण्ड का निर्माण भी किया गया तथा जौनपुर में हनुमान घाट को आदर्ष रूप में विकसित करने का संकल्प भी लिया गया है।

यात्रा के सह संयोजक गोपाल मोहन उपाध्याय ने बताया कि यात्रा के दौरान अनेक सकारात्मक संकल्प लेने के लिए लोग उत्साह से आगे आये, जिससे इस अभियान में लगे सभी लोगों को उत्साह व प्रेरणा मिलती है। वे संकल्प सभी को आगे बढ़ने की शक्ति देंगे जो गोमती संरक्षण के कार्य में मील का पत्थर साबित होगे।

गोमती-गंगा यात्रा गोमती संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है। उनके अनुसार यात्रा में जगह-जगह अनेक संस्थाओं ने सक्रिय रूप से सहकार किया है और आगे भी सभी सहयोगी मिलकर शीघ्र ही आगे की क्रमशः कार्य योजना बना रहे हैं, जिससे 2020 तक गोमती को निर्मल, अविरल व नैसर्गिक स्वरूप में लाया जा सके।

यात्रा के संकल्प -


यात्रियो व समाज द्वारा संकल्प
1. पंचवटी लगाने का अभियान - नैमिश-मिश्रिख क्षेत्र, सीतापुर में 84 कोसी परिक्रमा क्षेत्र में 88 हजार ऋषियों की स्मृति में पंचवटी के पौधों का रोपण तथा प्रत्येक गांव में पवित्र ऋषि-स्मृति सरोवर का निर्माण का संकल्प लिया गया है व उसकी कार्य योजना पर कार्य भी प्रारम्भ हो गया है, जो वनविभाग के अधिकारी राधेकृष्ण दुबे, आचार्य चन्द्र भूषण तिवारी एवं दधीचि आश्रम के महन्त देवदत्त गिरि के संयोजन में पूरा होगा।

2. सुनासीरनाथ घाट व देवस्थान को पर्यावरण के अनुरूप स्वच्छ व सुन्दर बनाने का संकल्प- शाहजहांपुर में बण्डा के निकट गोमती तट पर स्थित सुनासीरनाथ घाट व देवस्थान को आदर्ष तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करने हेतु मास में दो बार क्षेत्रीय जनसहभागिता से कारसेवा (श्रमदान) व वृक्षारोपण की योजना बनी है, जिसके क्रियान्वयन हेतु स्वयं डा॰ नरेन्द्र मेहरोत्रा वहां जाकर स्थानीय डा॰संजय अवस्थी, विश्राम सिंह व कृपाल सिंह के संयोजन में कार्य को मूर्तरूप देंगे।

3. गोमती संरक्षण व ग्राम विकास केंद्र विकास का संकल्प - बाराबंकी जिले के हैदरगढ़ नगर मे स्थित विजई हनुमान मन्दिर को गोमती संरक्षण, ग्राम स्वावलम्बन, गोसेवा एवं शिक्षा के मॉडल के रूप में विकसित करने का संकल्प लिया गया, जिसके संयोजन में महन्त रामसेवक दास, श्रीकृष्ण चौधरी, नरेन्द्र टण्डन की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।

4. मूर्ति विसर्जन कुण्ड की योजना - सुल्तानपुर के सीताकुण्ड पर 30.10 मी॰ का मूर्ति विसर्जन कुण्ड निर्माण करने का संकल्प लिया गया, जो प्रभाकर सक्सेना, अरविन्द चतुर्वेदी एवं प्रवीण अग्रवाल (नगर पालिका अध्यक्ष) के संयोजन में पूर्ण होगा।

5. जौनपुर में हनुमान घाट को स्वच्छ एवं आदर्श बनाने हेतु साप्ताहिक श्रमदान। संयोजन-शशीकान्त वर्मा एवं वेदप्रकाश सेठ।

6. नदी की खुदाई हेतु श्रमदान- गुरूद्वारा सहबाजपुर (पीलीभीत) एवं गुटैया घाट (शहजहांपुर) में किसानों, झालों एवं संगतों की योजना द्वारा स्थानीय नदी में कारसेवा द्वारा नदी के बहाव में सुधार। संयोजन-लाहोरी सिंह (प्रधान, सहवाजपुर) ऋशिपाल सिंह (प्रधान, घाटमपुर), सरदार मिल्कियत सिंह, गुटैयाघाट।

7. पंचवटी लगवाना तथा अंधराछोहा संरक्षण - अजवापुर क्षेत्र के गांवों में कार्य में प्राथमिकता। संयोजन- रमेश भैया विनोबा सेवा आश्रम, सरदार सिंह प्रधान एवं ए॰ए॰ बेग, प्रबन्धक सुगर मिल।

8. आने वाले नवरात्रों की पूजन सामग्री के भूविसर्जन हेतु प्रयास- लखनऊ व अन्य शहरों में मित्रमण्डलों द्वारा समन्वित प्रयास।

शासन से अपेक्षा -


1. गोमती को राज्य नदी घोषित किया जाय।

2. गोमती का उद्गम एवं गंगा में संगम स्थल को पर्यावरण की दृष्टि से अतिसंवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जाये।

3. नदी का क्षेत्र घोषित किया जाये व उसका भूलेखों में स्पष्ट उल्लेख हो। न्यायालयों के आदेशानुसार नदियों के दोनो ओर 500 मी॰ तक किसी भी पक्के निर्माण को रोकना व वर्तमान निर्माणों को नियमानुसार हटवाना शीघ्र सुनिश्चित किया जाये।

4. नदी में किसी भी प्रकार का अपशिष्ट डालने को रोकने हेतु सन् 1873 के कानून को लागूकर कार्यवाही सुनिश्चित की जाय।

5. रीवर एवं सीवर को किसी भी स्थिति में मिलने से रोका जाय।

यात्रा में चले प्रमुख यात्री -


पूज्य स्वामी विज्ञानानन्द सरस्वती जी: फतेहपुर, गंगा शुद्धि अभियान, प्रमुख विभिन्न संतों, पुरोहितों एवं मूर्ति-पूजा समितियों से संपर्क कर उनको गंगा में विसर्जन के बजाय भू-कुण्डों में विसर्जन करने हेतु प्रेरित किया एवं आश्रम के द्वारा ही स्थान-स्थान पर विसर्जन कुण्ड बनवाकर 80 प्रतिशत नदी विसर्जन रोकने में सफलता प्राप्त की।

रमेश भैया:, विनोबा सेवा आश्रम, शाहजहांपुर। सन्त विनोवाभावे के परमशिष्य उनके निर्देश पर देश भर में 35 हजार कि॰मी॰ की पदयात्रा की और ग्राम स्वावलम्बन का मॉडल विनोबा सेवा आश्रम की, शाहजहांपुर में स्थापना की।

डा॰ नरेन्द्र मेहरोत्रा: सी॰डी॰आर॰आई॰, लखनऊ से अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक, यात्रा संयोजक। विज्ञान नीति, परंपरागत ज्ञान, कारीगरी व्यवस्था, कृषि, स्वास्थ्य एवं जड़ी-बूटी विकास आदि के लिए राष्ट्रीय अभियान।

महन्त रामसेवक दास: गोमती वाले बाबा। लखनऊ में गोमती के तटपर आश्रम, 2020 तक स्वच्छ, निर्मल, नैसर्गिक गोमती बनाने का संकल्प।

आचार्य चन्द्र भूषण तिवारी- एक लाख पौधा लगाने का संकल्प, 58 हजार लगा चुके हैं। यात्रा के उपरान्त एक लाख लोग पौधा लगाने वाले तैयार करने का संकल्प। ब्रजेन्द्र पाल सिंह: यात्रा समन्वयक व आयोजक संस्था लोकभारती के संगठन मंत्री।

जितेन्द्र मोहन गुप्ता-यात्रा व्यवस्था प्रमुख।सिंचाई विभाग से अवकाश प्राप्त इन्जीनियर।

राधेकृष्ण दुबे: समन्वयक नैमिश ऋषि अरण्य योजना। अधिकारी, वनविभाग, परंपरागत वृक्षारोपण के लिए समर्पित।

डा॰ व्यंकटेश दत्त:यात्रा अध्ययन दल प्रमुख, अम्वेडकर विश्वविद्यालय में असिस्टेन्ट प्रोफेसर।

गोपाल मोहन उपाध्याय: यात्रा सहसंयोजक, गोमती मित्र मण्डल गठन द्वारा अभियान को आगे बढ़ाना।

श्रीकृष्ण चैधरी: यात्रा सहसंयोजक एवं मीडि़या प्रबन्धन, जैविक कृषि विशेषज्ञ। अध्ययन टीम: चार विद्यार्थी, डा. भीमराव अम्वेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ।

डाक्यूमेन्ट्री टीम: चार विद्यार्थी जहांगीराबाद, मीडिया इन्स्टीट्युट।

अजय शुक्ला: प्रतिनिधि हिन्दुस्तान दैनिक समाचार पत्र।

साहित्य एवं स्टाल: विनोबा सेवा आश्रम के 2 कार्यकर्ता।

योजना के आधार स्तम्भ - किसी भी कार्य की सफलता उस कार्य को जमीन पर उतारने वाले वह साधक होते हैं, जिनकी तपस्या से ही कोई भी लक्ष्य प्राप्त होता है। हमारे वे साधक हैं - सर्वश्री तपन अधिकारी, प्यारेलाल पाल, राजेष सिंह, करूणा शंकर शुक्ल, बाबा संन्तोश सिंह, निर्भय सिंह, गुरूभाग सिंह पीलीभीत, विश्राम सिंह, राजीव सिंह, सरदार मिल्कियत सिंह शाहजहांपुर, तपन सरकार, प्रेमशंकर शुक्ल, अनिल पाण्डे, रामजी रस्तोगी, विशम्भर सिंह, जयमुखर्जी, राजेन्द्र सिंह, विजय तिवारी लखीमपुर, सोम दीक्षित, जै-जै राम, नीरज सिंह, रामनाराणण सिंह, क्षमाकर शुक्ल सीतापुर, बैद्य बाल शास्त्री हरदोई, अरूण पाण्डे लखनऊ, रिद्धी गौढ़, डा॰ प्रशान्त नाटू, नीलकंठ लखनऊ, अजीत सिंह, नरेन्द्र टण्डन हैदरगढ़, डा॰अरविन्द चतुर्वेदी, प्रभाकर सक्शेना, वंसराज सिंह, हनूमान सिंह सुल्तानपुर, श्रीकान्त त्रिगुणायत प्रतापगढ़, हरीश कुमार, अंजूरानी सिंह, शषीकान्त वर्मा, सी0डी0 सिंह, नितिन सिंह, अरविन्द सेठ, शम्भूनाथ सिंह, श्यामाचरण पाण्डे, परमेश्वर सिंह, आचार्य जितेन्द्र (गंगा महासभा) आदि वाराणसी।

निवेदन


गंगा को यदि अविरल, निर्मल व अपने नैसर्गिक स्वरूप में रखना है तो समस्त नदियों पर कार्य करना होगा और उन नदियों के जल-ग्र्रहण क्षेत्र में जल-प्रबन्धन,, जल-भूसंभरण, वृक्षारोपण, जैवकि कृषि आदि पर कार्य करते हुए जल संस्कृति का विकास करना होगा। गोमती-गंगा यात्रा उस दिशा में एक कदम है, जिसके अगले कदम के रूप में जो जहां है, वह वहीं पर अपनी नदी/जल-स्रोत के लिए कार्य प्रारम्भ करदे तो गंगा के प्रति अपना कर्तव्य निभाने की दिशा में हम सभी एक कदम आगे बढ़ सकेंगे।







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