ग्रामीण क्षेत्रों में बटेर पालन से लाभ


2012 में पर्यावरण मंत्रालय ने शासनादेश से भी मुख्य वन संरक्षण अधिकारियों, प्रांत तथा केंद्र शासित राज्यों के लिये आदेश दिए कि जिनके पुराने लाइसेंस हैं, उन्हें पुन: लाइसेंस दिए जाए तथा नये लाइसेंस पर फिलहाल रोक लगी रहेगी। इसके साथ ही साथ मंत्रालय ने उच्च स्तरीय कमेटी बनाई है। करीब-करीब छ: उच्च न्यायालयों में व्यावसायिक बटेर पालन संबंधित प्रांत व केंद्र सरकार बनाम विभिन्न पार्टियों की विवादें आधीन हैं।

आजकल भारतवर्ष में 32 मिलियन जापानी बटेर का व्यावसायिक पालन हो रहा है। दुनिया में आज जापानी बटेर पालन में भारतवर्ष का मांस उत्पादन में पाँचवाँ स्थान तथा अण्डा उत्पादन में सातवाँ स्थान है। व्यावसायिक मुर्गी पालन चिकन फार्मिंग के बाद बत्तख पालन और तीसरे स्थान पर जापानी बटेर पालन का व्यवसाय आता है।

भारत वर्ष में सन 1974 में जापानी बटेर सर्वप्रथम यूएसए पशु विज्ञान विभाग कैलिफोर्निया डैविस से लाई गयी थी तथा कुछ वर्षों के बाद में जर्मनी और प्रजातांत्रिक कोरिया (साउथ कोरिया) से लाया गया था। बताते चलें कि ब्रिटेन में जितने उपनिवेश देश थे उन्हीं देशों में यूएनडीपी के सहयोग से परंपरागत चिकन फार्मिंग के लिये विकल्प के रूप में (विविधीकरण में) जापानी बटेर का जननद्रव्य उपलब्ध कराया गया जैसे कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, बांग्लादेश मैसीडोनिया, इजिप्त, सूडान इत्यादि।

भारतवर्ष में जब इन जापानी बटेर के अंडे को प्राप्त किया गया था तब इनका वजन 7-8 ग्राम तथा चूजों का शारीरिक भार 70-90 ग्राम पाँच सप्ताह में तथा प्रस्फुटन 35-40 प्रतिशत था। करीब-करीब 38 वर्षों के अंतराल के बाद सघन व वृहत रूप से शोध व उन्नयन के कार्य किये गये हैं। जिसका परिणाम यह हुआ कि आज छ: विभिन्न पंखों के रंगों के मांस व अंडा उत्पादन के लिये शारीरिक भार 130-250 ग्राम पाँच सप्ताह में तथा 240-305 अण्डे प्रतिवर्ष देने वाली प्रजातियों का विकास किया गया है। हमारा अभिप्राय है कि वैज्ञानिकों के अथक प्रयत्न के बाद इनके रख-रखाव का प्रबंधन इत्यादि का साहित्य विकसित किया गया तथा धीरे-धीरे संपूर्ण भारतवर्ष में उन्नयन जननद्रव्य पहुँचाया गया। चाहे वह निषेचित अण्डों या जिंदा बटेरों के रूप में दिया गया हो।

हम अपने कुक्कुट पालकों को बताते चलें कि बटेर पालन आजकल के परिवेश में ग्रामीण व्यवस्था में श्रेष्ठतम व्यावसायिक पालन की श्रेणी में आता है जिन्हें निम्न बिंदुओं से भली-भाँती समझा जा सकता है :

1. व्यावसायिक बटेर पालन में टीकाकरण कि आवश्यकता नहीं है तथा बीमारियाँ न के बराबर होती हैं।

2. 6 सप्ताह (42 दिनों) में अंडा उत्पादन शुरू कर देती हैं जबकि कुक्कुट पालन (अंडा उत्पादन की मुर्गी) में 18 सप्ताह (120 दिनों) के बाद अंडा उत्पादन शुरू होता है।

3. बटेरों को घर के पिछवाड़े में नहीं पाला जा सकता है। हमारा आशय है कि यह तीव्र गति से उड़ने वाला पक्षी है, अत: इसकी व्यवस्था बंद जगह में ही की जा सकती है।

4. ये तीन सप्ताह में बाजार में बेचने के योग्य हो जाते हैं।

5. जापानी बटेर के अंडो की पौष्टिकता मुर्गी के अंडों से कम नहीं होती है।

6. गाँव में बेरोजगार युवक व महिलायें घर में 100 बटेरों को एक पिंजड़े में जिसकी लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई - 2.5 × 1.5 × 0.5 मीटर हो, आसानी से रखे जा सकते हैं। अंडा उत्पादन करने वाली एक बटेर एक दिन में 18 से 20 ग्राम दाना खाती है जबकि मांस उत्पादन करने वाली एक बटेर एक दिन में 25 से 28 ग्राम दाना खाती है। पाँच सप्ताह की उम्र तक एक किलो ग्राम मांस पैदा करने के लिये 2.5 किलो ग्राम दाना कि आवश्यकता पड़ती है, साथ ही एक किलोग्राम अंडा उत्पादन के लिये करीब 2 किलो ग्राम दाना कि आवश्यकता पड़ती है।

7. बटेर का अण्डा वजन में 8-14 ग्राम में पाया जाता है जो कि 60 पैसे से लेकर 2 रुपये तक बाजार में आसानी से मिल जाता है तथा एक अंडा उत्पादन में मात्र 30 पैसे दाना खर्च तथा 10 पैसा मानव श्रम व अन्य खर्चे लगते हैं। अत: 40 पैसा प्रति अंडा उत्पादन में खर्च आता है। प्रतिदिन एक महिला आधा घंटा सुबह तथा आधा घंटा शाम को समय देकर 50-100 रुपये प्रतिदिन 100 मादा बटेरों को रखने से कमाए जा सकते हैं तथा परिवार के लिये पौष्टिक आहार व कुछ मात्रा में प्रोटीन खनिज लवण और विटामिन्स मिलते हैं।

8. प्रथम दो सप्ताह इनके लालन पालन में बहुत ध्यान देना होता है जैसे कि 24 घंटे रोशनी, उचित तापमान, बंद कमरा तथा दाना पानी इत्यादि। तीसरे सप्ताह से तंदूरी बटेर व अन्य मांस और अण्डे के उत्पाद बनाकर नकदीकरण किया जा सकता है।

9. एक ग्रामीण बेरोजगार युवक व महिला मात्र 200 बटेरों की रखने कि व्यवस्था कर लेता है तो इनके रखने के स्थान की आवश्यकता लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई 3 × 2 × 2 मीटर जगह कि आवश्यकता होती है और प्रति पक्षी 18-25 रुपये लागत आती है तथा बाजारी मूल्य 40-70 रुपये प्रति पक्षी मिल जाता है। अत: गाँव के बेरोजगार युवक और युवतियों द्वारा मात्र एक घंटा सुबह और शाम देने से 2500-4000 रुपये प्रति माह अपने खेती-वाड़ी के क्रियाकलापों के साथ-साथ जापानी बटेर का उत्पादन कर प्राप्त कर सकते हैं।

10. ग्रामीण क्षेत्रों के लिये उचित जननद्रव्य केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान में उपलब्ध है। संस्थान द्वारा विकसित विभिन्न पंखों के रंगों की बटेरों की बहुतायत मात्रा में मांग है, जैसा कि सारणी में दर्शाया गया है।

कुक्कुट पालकों को जापानी बटेर की फार्मिंग के लिये एक लाइसेंस की आवश्यकता होती है। इन सभी को मालूम है कि भारतवर्ष में सर्वप्रथम बटेरों के प्रजनन, संवर्द्धन, रख-रखाव तथा व्यावसायिक स्तर पर प्रचारित करना तथा तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराना इत्यादि केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर के सौजन्य से ही संभव हो पाया है। समय-समय पर भारत सरकार ने तथा प्रांतीय सरकारों ने व्यावसायिक बटेरों के उत्पादन के लिये लाइसेंस निर्गत किए थे। अत: 2011 सितम्बर माह में नये लाइसेंस देने के लिये पर्यावरण मंत्रालय के द्वारा शसनादेश निर्गत हुआ। साथ ही जून 2012 में पर्यावरण मंत्रालय ने शासनादेश से भी मुख्य वन संरक्षण अधिकारियों, प्रांत तथा केंद्र शासित राज्यों के लिये आदेश दिए कि जिनके पुराने लाइसेंस हैं, उन्हें पुन: लाइसेंस दिए जाए तथा नये लाइसेंस पर फिलहाल रोक लगी रहेगी। इसके साथ ही साथ मंत्रालय ने उच्च स्तरीय कमेटी बनाई है। करीब-करीब छ: उच्च न्यायालयों में व्यावसायिक बटेर पालन संबंधित प्रांत व केंद्र सरकार बनाम विभिन्न पार्टियों की विवादें आधीन हैं।

 

क्र.सं.

विकसित करने का वर्ष

प्रजातियाँ

पंखों का रंग

5 सप्‍ताह में शारीरिक भार

वार्षिक अंडा उत्‍पादन

अंडे का वजन

हैचिंग प्रतिशत

1.

1980-81

कैरी पर्ल

जंगली/फरोह

140 ग्राम

305

09 ग्राम

80

2.

1998-99

कैरी उत्‍तम

जंगली/फरोह

250 ग्राम

260

14 ग्राम

75

3.

1999-02

कैरी उज्‍जवल

सफेद गलकम्‍बल

180 ग्राम

220

12 ग्राम

70

4.

2001-02

कैरी स्‍वेता

संपूर्ण सफेद

175 ग्राम

205

10 ग्राम

72

5.

2003-04

कैरी ब्राउन

संपूर्ण ब्राउन

180 ग्राम

210

11 ग्राम

65

6.

2010-11

कैरी सुनहरी

आधी ब्राउन आधी सफेद

185 ग्राम

200

12 ग्राम

65

 
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