ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षाजल संचयन व रिचार्ज तकनीक अनुरेखण की विधियां

Recharge shaft method
Recharge shaft method


ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षाजल संचयन एवं रिचार्जिंग कार्यक्रम सामान्यत: वाटरशेड को एक इकाई के रूप में मानकर लागू किया जाना चाहिए।

इस हेतु प्रत्येक विकास खण्ड/न्याय पंचायत की हाइड्रोजियोलॉजिकल परिस्थितियों का आकलन आवश्यक है।

- वर्षाजल संचयन एवं रिचार्ज प्रणाली हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में जगह की पर्याप्त उपलब्धता रहती है। अत: ग्रामीण क्षेत्रों में परम्परागत जलस्रोतों के संवर्धन पर आधारित निम्न (surface spreading technique) आसानी से अपनाई जा सकती है:-

मैदानी क्षेत्र :
I. तालाब (जीर्णोद्धार/नव निर्माण)
II. रिचार्ज शॉफ्ट (क्षेत्रीय अनुकूलता पर निर्भर)
III. चेक डैम
IV. गैबियन स्ट्रक्चर
V. नाला प्लागिंग
VI. रिचार्ज कूप
VII. फालतू जल हेतु रिचार्ज पिट

पठारी क्षेत्र
I. तालाब (जीर्णोद्धार/नव निर्माण)
II. परकोलेशन टैंक
III. चेक-डैम
IV. गैबियन स्ट्रक्चर
V. सूखे-/अबेन्डेन्ड कूप
VI. सिमेन्ट प्लग्स/गली प्लग्स
VII. सब-सरफेस डाइक्स/कन्टूर बांध

उपर्युक्त सभी विधियाँ site specific हैं। इन विधियों का चयन स्थानीय आवश्यकताओं व हाइड्रोजियोलॉजिकल परिस्थितियों के आकलन के पश्चात ही किया जाए।

तालाबों एवं पोखरों का निर्माण/जीर्णोद्धार
प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में परम्परागत जलस्रोतों के रूप में तालाब, पोखर आदि वर्षाजल संग्रहण एवं भूजल रिचार्ज के सशक्त माध्यम रहे हैं। ये तालाब लगातार सिल्ट जमा होने से उथले होते गये और इनका अतिक्रमण करके बड़ी संख्या में तालाबों को पाट दिया गया। वर्तमान में डेढ़ लाख ऐसे तालाब/पोखर हैं, जिनका जीर्णोद्धार करके जल संग्रहण एवं भूजल संवर्द्धन को बढ़ावा दिया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में नये तालाबों का निर्माण हैबीटेशन से दूर किया जाए। तालाब का आकार वर्षाजल की उपलब्धता/कैचमेंट के आधार पर तय किया जाए।

नये तालाबों/जलाशयों के निर्माण के पूर्व प्रस्तावित परियोजना स्थल के अंतर्गत वर्षाजल के प्राकृतिक 'कैचमेंट क्षेत्र' को चिन्हित करते हुए वर्षाजल के आयतन (volume) क्षेत्र की हाइड्रोजियोलॉजी, टोपोग्राफी, लीथोलॉजी, मृदा गुणों तथा प्रस्तावित तालाब/जलाशय में वर्षाजल के सम्भावित ठहराव (retentation) व (stagnation) का अध्ययन एवं तत्संबंधी फीजीबिलीटी का आकलन किया जाए तथा प्राप्त अध्ययन निष्कर्षों के अनुसार ही तालाब का गहराई निर्धारित की जाए। परन्तु तालाब/जलाशय की गहराई सामान्यत: 3 मीटर से अधिक नहीं रखी जानी चाहिए। तालाब स्थल पर मृदा की पारगम्यता (permeability) का आकलन अवश्य कर लिया जाए। तालाबों की जीर्णोद्धार योजना के अंतर्गत भी गहराई सामान्यत: 3 मी. तक रखी जाए।

सफाई के पश्चात यह अवश्य सुनिश्चित कर लिया जाए कि सम्बन्धित तालाब में प्राकृतिक एवं सुरक्षित कैचमेंट एरिया से ही वर्षाऋतु के 'सरफेस रन-ऑफ' तथा सम्बन्धित क्षेत्र से गुजरने वाले ऐसे प्राकृतिक ड्रेनेज, जिसमें किसी प्रकार का गन्दा/प्रदूषित उत्प्रवाह न आता हो, कि निस्तारण की ही व्यवस्था हो। नये एवं जीर्णोद्धार किये गये तालाबों में शासकीय प्राविधान के अनुसार चारों ओर मिट्टी का बन्धा बनाकर वृक्षारोपण किया जाए। साथ ही पक्की इनलेट व आउटलेट बनाया जाए। जानवरों को पानी पीने के लिये रैम्प तथा कपड़े धोने, नहाने के लिये पक्का घाट बनाया जा सकता है। तालाबों में भूजल रिचार्जिंग हेतु रिचार्ज वेल का निर्माण किसी भी दशा में न किया जाए।

रिचार्ज शॉफ्ट
तालाबों/जलाशयों में भूजल रिचार्ज बढ़ाने के उद्देश्य से 'रिचार्ज शॉफ्ट' के निर्माण की विधि वर्तमान में विभिन्न कार्यक्रमों के अंतर्गत यद्यपि प्रचलित है, किन्तु क्षेत्रीय विषमताओं एवं व्यावहारिक पहलुओं तथा हाइड्रोजियोलॉजिकल दृष्टि से यथासम्भव तालाबों में रिचार्ज शॉफ्ट विधा को प्रोत्साहित न किया जाए। साथ ही तालाब/जलाशय की गहराई किसी भी दशा में 03 मीटर से अधिक न रखी जाए। विशेष परिस्थतियों में तालाबों/जलाशयों में रिचार्ज शॉफ्ट यादि निर्मित किए जाएँ तो केन्द्रीय भूमि जल परिषद से परामर्श के पश्चात उनके द्वारा प्रचलित डिजाइन के अनुसार ही कार्यवाही की जाए। इसके अतिरिक्त तालाबों में प्रदूषित जल की सम्भावनाओं के दृष्टिगत रिचार्ज शॉफ्ट का निर्माण हाइड्रोजियोलॉजिकल परिस्थितियों एवं तालाब के जल व स्थानीय भूजल की गुणवत्ता के रासायनिक परीक्षण तथा सभी तकनीकी पहलुओं का समुचित आकलन करने के पश्चात ही कराया जाना उचित रहेगा।

Recharge shaft methodसामान्यत: रिचार्ज शॉफ्ट अपेक्षाकृत कम लागत की रिचार्ज संरचना होती है। इसका व्यास 2 मीटर अथवा अधिक तथा गहराई 8-10 मीटर रखी जा सकती है, जिससे जल संग्रहण की पर्याप्त क्षमता उपलब्ध रहे। अत: शॉफ्ट में परमिएबिल लाइनिंग रखना आवश्यक है। जहाँ जलस्रोत कैचमेन्ट से सिल्ट आने की सम्भावना हो, वहाँ शॉफ्ट में बोल्डर, ग्रेवल एवं मोटी बालू ग्रेडेड फिल्टर के रूप में भरा जाए। अन्य स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार संरचना की डिजाइन में अपयुक्त प्राविधान किये जा सकते हैं।

चेक डैम्स
चेक डैम, बन्धी आदि नदी, नालों में जल के प्रवाह को रोककर वर्षाजल संग्रहित करने की एक परम्परागत तकनीक है जो बुन्देलखण्ड व पठारी क्षेत्रों के लिये सर्वाधिक उपयुक्त है चेक डैम्स का निर्माण सामान्यत: स्थानीय नदियों, बरसाती नालों, जलधाराओं आदि पर किया जाना चाहिए। चेक डैम्स के लिये नदी जलधारा पर ऐसे स्थलों का चयन किया जाए जहाँ पर्याप्त मोटाई का permeable स्ट्रेटा अथवा weathered formation हो, ताकि एकत्रित जल कम समयान्तराल में रिचार्ज हो सके। चेक डेम निर्माण की अनुकूल परिस्थितियों हेतु जलधारा का कैचमेन्ट क्षेत्र 40 से 100 हेक्टेयर उपयुक्त रहता है, जबकि कैचमेन्ट में वार्षिक वर्षा 1000 मि.मी. से कम होनी चाहिए।

एक चेक डैम में सामान्यत: 2.25 हेक्टेयर मीटर तक वर्षाजल का संचय किया जा सकता है। चेक डैम संरचना के डाउनस्ट्रीम पर ऐसी मृदा नहीं होनी चाहिए, जो जल प्लावन की स्थिति पैदा करे। अत: चेकडैम निर्माण के पूर्व परियोजना स्थल का हाइड्रोजियोलॉजिकल आकलन अवश्य कर लिया जाए। जिन नदियों/ड्रेनों में औद्योगिक उत्प्रवाह निस्तारित होता हो वहाँ पर चेक डैम्स का निर्माण किसी भी दशा में न किया जाए। चेक डैम्स की डिजाइन में एकरूपता लाने के लिये कार्यदायी विभाग क्रमश: सिंचाई विभाग, लघु सिंचाई विभाग, जल निगम एवं कृषि विभाग आदि के स्तर पर प्रचलित डिजाइनों का अध्ययन कराकर प्रदेश स्तर पर तकनीकी मानक निर्धारित किये जानो चाहिए।

गेबियन स्ट्रक्चर
यह एक प्रकार का चेक डैम होता है, जिसका निर्माण छोटी-छोटी जलधाराओं पर सामान्यत: जलधाराओं के बहाव को संरक्षित करने के लिये किया जा सकता है। यह स्ट्रक्चर 10 मीटर से कम चौड़ाई वाली जलधाराओं में किया जा सकता है। छोटे बांध के रूप में इस स्ट्रक्चर का निर्माण बोल्डर को लोहे के तारों की जाली में बाँधकर एक तट से दूसरे तट किया जाता है। इसकी ऊँचाई सामान्यत: 0.50 से 1 मीटर रखी जानी चाहिए। स्थानीय हाइड्रोजियोलॉजिकल परिस्थितियों के अनुरूप इस स्ट्रक्चर के निर्माण की फीजिबिलिटी निर्धारित की जा सकती है।

Gabion Structureपरकोलेशन टैंक
परकोलेशन टैंक कृत्रिम रूप से निर्मित एक सतही जल संरचना है तथा विशेषकर पठारी क्षेत्रों के लिये यह एक उपयुक्त भूजल रिचार्ज संरचना मानी जाती है। इसका निर्माण यथा सम्भव द्वितीय चरण की जलधारा पर किया जाना चाहिए। इसका निर्माण highly permeable/weathered भूमि पर ही किया जाना उपयुक्त रहता है। एल्यूवियल क्षेत्र में बोल्डर फॉरमेशन्स, परकोलेशन टैंक निर्माण के लिये उपयुक्त रहते हैं। परकोलेशन टैंक की डिजाइन क्षमता इस प्रकार रखी जाए कि कैचमेन्ट में होने वाली कुल वर्षा के 50 प्रतिशत से अधिक जल उसमें संग्रहित हो सके। परकोलेशन टैंक के निर्माण के लिये स्थल चयन के पूर्व प्रस्तावित परियोजना क्षेत्र का हाइड्रोजियोलॉजिकल फीजिबिलिट अध्ययन अवश्य कराया जाना चाहिए।

Percolation Tankरिचार्ज कूप
वर्षाजल संचयन एवं रिजार्जिंग की दृष्टि से चिन्हित किये गये उपयुक्त क्षेत्रों में सूखे व बन्द पड़े कुओं को चिन्हित किया जाना चाहिए। बढ़ते हुए जल को कटाव वेग प्राप्त करने से पहले बंड के बीच में उचित दूरी रख कर रोक दिया जाता है। दो कन्टूर बंड के बीच की दूरी क्षेत्र के ढलान व मृदा की पारगम्यता (permeability) पर निर्भर होती है। मृदा की पारगम्यता जितनी कम होगी कन्टूर बंड के बीच दूरी उतनी कम होगी। कन्टूर बंड साधारण ढलान वाली जमीन के लिये उपयुक्त होते हैं इनमें सीढियां बनाया जाना शामिल नहीं होता।

भूमिगत जलबांध या सब-सरफेस डाइक
भूमिगत जलबांध या सब-सरफेस डाइक नदी पर एक प्रकार का सतही अवरोधक होता है। जो बहाव की गति को कम करता है। सब-सरफेस डाइक के निर्माण के लिये स्थल का चयन ऐसी जगह किया जाता है, जहाँ मपरवियस स्तर उथली गहराई में हो और सकरे निकास वाली चौड़ी खाई हो। उपयुक्त स्थल चुनाव के पश्चात नाले की पूर्ण चौड़ाई में 1-2 मीटर चौड़ी तथा कड़ी चट्टानों/अभेद सतह तक एक खाई खोदी जाती है। खाई को चिकनी मिट्टी या ईटों/कांक्रीट की दीवार से जलस्तर के आधा मीटर नीचे तक भर दिया जाता है।

पूर्ण रूप से सीपेज रोकने के लिये पी.वी.सी. चादर जिसकी टियरिंग, शक्ति 400 से 600 गज हो अथवा कम घनत्व वाली 200 गज की पॉलीथीन फिल्म का प्रयोग भी डाइक की सतहों को ढकने के लिये किया जा सकता है। चूँकि जल का संचयन एक्यूफर में होता है, इसलिये जमीन का जल प्लावन रोका जा सकता है तथा जलाशय के ऊपर की जमीन को बांध बनने के पश्चात प्रयोग में लाया जा सकता है। इससे जलाशय से वाष्पीकरण द्वारा नुकसान नहीं होता और न ही जलाशय में सिल्ट जमा हो पाती है।
 

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