गर्म टापुओं में बदल रहे भारत के शहर

गर्म टापुओं में बदल रहे भारत के शहर
गर्म टापुओं में बदल रहे भारत के शहर

फोटो - Amar Ujala

हाल ही में आईआईटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं का एक अध्ययन प्रकाशित हुआ है, इसमें कहा गया है कि उपनगरों की तुलना में शहरों का तापमान अधिक रहता है, जिससे प्रदूषण के अलावा गर्म हवा के थपेड़ों (लू) से भी स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। अध्ययन के एक लेखक अरुण चक्रवर्ती बताते हैं कि “हमारा शोध भारत के गर्म शहरी टापुओं का एक विस्तृत और सावधानीपूर्वक किया गया विश्लेषण है। हमने अपने अध्ययन में 2001 से 2017 तक सभी मौसमों के दौरान भारत के 44 प्रमुख शहरों और उनके आसपास के ग्रामीण इलाकों की भू-सतह के तापमान में अंतर का अध्ययन किया है।” वे आगे बताते हैं कि “पहली बार हमें इस बात के प्रमाण मिले हैं कि मानसून के दौरान और मानसून के बाद अधिकतर शहरों का दिन का सतही तापमान आसपास के उपनगरों की अपेक्षा औसतन 2 डिग्री सेल्सियस तक ज़्यादा होता है। इस अध्ययन के लिए आंकड़े उपग्रहों द्वारा प्राप्त हुए हैं।” अन्य शोधकर्ताओं द्वारा भी दिल्ली, मुंबई, बैंगलुरू, हैदराबाद और चेन्नई जैसे शहरों के दिन के तापमान में इसी तरह की वृद्धि देखी गई है।

हम भोपाल, हैदराबाद, बैंगलुरू या श्रीनगर स्थित शहरी झीलों के बारे में तो जानते हैं, जो शहरों को खुशनुमा माहौल और शीतलता प्रदान करती हैं, लेकिन शहरी गर्म टापू क्या चीज़ है ? शहरी गर्म टापू (urban heat island या UHI) यानी घनी आबादी वाले ऐसे शहर जिनका तापमान अपने आसपास के उपनगर या ग्रामीण इलाकों की तुलना में 2 डिग्री तक अधिक होता है। लेकिन ऐसा क्यों होता है ? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अधिक खुली जगह, पेड़-पौधों और अधिक घास से परिपूर्ण गांवों की तुलना में शहरों में फुटपाथ, सड़क और छत बनाने में कॉन्क्रीट, डामर (टार) और ईंट जैसी सामग्रियों का उपयोग होता है, जो अपारदर्शी होती हैं और अपने से प्रकाश को गुज़रने नहीं देती, लेकिन इनकी ऊष्मा धारिता और ऊष्मा चालकता अधिक होती है।

पेड़-पौधों का एक गुण है वाष्पोत्सर्जन। वाष्पोत्सर्जन का मतलब है पौधों में से पानी का वाष्प बनकर आसपास के वायुमंडल में निकास। उपनगरों और ग्रामीण इलाकों में घास और पेड़-पौधे यह कार्य करते हैं और तापमान को कम करते हैं। लेकिन शहरों में वाष्पोत्सर्जन कम होता है जिसके कारण शहर का तापमान, आसपास के इलाकों के तापमान की तुलना में अधिक हो जाता है। शहरी गर्म टापुओं में उद्योगों और वाहनों से होने वाले प्रदूषण वहां की हवा की गुणवत्ता भी कम करते हैं और उपनगरों की तुलना में यहां पदार्थों के महीन कण और धूल भी अधिक होती है। शहरी गर्म टापुओं का अधिक तापमान गर्म स्थानों में रहना पसंद करने वाली प्रजातियों, जैसे छिपकली और गेको की आबादी में इजाफा करता है। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में यहां चींटियों जैसे कीट अधिक पाए जाते हैं। ये ऐसे जीव हैं जिनके शरीर का तापमान वातावरण के साथ घटता-बढ़ता है। इन्हें एक्टोथर्म कहते हैं।

इसके अलावा, शहरों में गर्म हवा के थपेड़े (लू) अधिक चलते हैं जो मानव और पशु स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, जिससे ऊष्मा-जनित मरोड़, नींद ना आना और मृत्यु दर में वृद्धि होती है। छक्तक्ष् आसपास के जल स्रोतों को भी प्रभावित करता है। शहर के नाले-नालियों के ज़रिए शहर का गर्म पानी पास की झीलों और नदियों में छोड़ा जाता है, जो पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। यह सोचकर तकलीफ होती है कि बैंगलुरू जैसे शहर में आज कई शहरी गर्म टापू हैं जबकि यह कभी अपनी स्वस्थ जलवायु के लिए जाना जाता था। यहां तक कि कोरामंडल और जयनगर जैसी जगहों में भी गर्मी के टापू बन गए हैं। इमारतें, औद्योगिक क्षेत्र और उनसे लगे हुए उपनगरों में गगनचुंबी इमारतों (जैसे इलेक्ट्रॉनिक सिटी और व्हाइटफील्ड) के तेज़ी से होते विस्तार ने शहर को अस्वस्थ बना दिया है। शहर की कुछ साफ-सुथरी झीलें अब गंदी और रूग्ण हो गई हैं।

औद्योगीकरण और आर्थिक विकास देश के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन शहरी गर्म टापुओं को नियंत्रित करना और उनमें कमी लाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इसके लिए कई तरीके अपनाए जा रहे हैं और अपनाए जा सकते हैं। इनमें से एक है छतों पर हरियाली बनाना, हल्के रंग के कन्क्रीट उपयोग करना (जैसे डामर या टार के साथ चूना पत्थर का उपयोग करके सड़क की सतह का रंग भूरा या गुलाबी किया जा सकता है जैसा कि अमेरिका के कुछ स्थानों पर किया गया है); चूंकि हल्के रंग कम ऊष्मा अवशोषित करते हैं और अधिक प्रकाश परावर्तित कर देते हैं इसलिए काले रंग की तुलना में हल्के रंग के कन्क्रीट 50 प्रतिशत तक बेहतर हैं। इसी तरह हमें छतों पर हरियाली लगानी चाहिए, और इस हरी पृष्ठभूमि में सौर पैनल लगाने चाहिए। 

इसके अलावा अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाना चाहिए। यह समझना काफी दिलचस्प होगा कि पेड़ हमारे लिए कितने फायदेमंद हैं। ट्रीपीपल नामक संस्था ने पेड़-पौधों से होने वाले ऐसे 22 फायदे गिनाए हैं (Tree people.org/tree-benefits)। मौजूदा समय की बात करें तो पेड़: जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करते हैं; नाइट्रोजन ऑक्साइड्स, ओज़ोन, अमोनिया, सल्फर ऑक्साइड्स जैसी प्रदूषक गैसों को सोखते हैं और अपने पत्तों और छाल पर महीन कणों को जमा कर हमारे आसपास का वातावरण स्वच्छ बनाते हैं; शहरों और सड़कों को ठंडा रखते हैं; ऊर्जा की बचत करते हैं (एयर कंडीशनिंग के खर्चे में 50 प्रतिशत तक कटौती करके); पानी बचाते हैं और जल प्रदूषण रोकने में मदद करते हैं; मिट्टी के कटाव को रोकते हैं; लोगों और बच्चों का अल्ट्रावॉयलेट किरणों से बचाव करते हैं; आर्थिक लाभ के मौके देते हैं; विभिन्न समूह के लोगों को साथ लाते हैं; बस्तियों को एक नई पहचान देकर नागरिक गौरव को प्रोत्साहित करते हैं; कन्क्रीट की दीवारों को ढंक देते हैं और इस तरह ये सड़कों  और राजमार्गों से आने वाले शोर को भी कम कर देते हैं और आंखों को सुकूनदायक हरा-भरा नज़ारा देते हैं; व्यापारिक जगहों पर जितने अधिक पेड़ होंगे उतना अधिक व्यवसाय होगा। इसलिए भवनों, स्कूलों, घरों और परिसरों में और उनके आसपास अधिक से पेड़-पौधे लगाएं।


लेखक

डाॅ. दीपक कोहली, उपसचिव

वन एवं वन्य जीव विभाग, उत्तर प्रदेश

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