गर्मी की दस्तक, मध्य प्रदेश में जल संकट शुरू

19 Mar 2017
0 mins read
water crisis MP
water crisis MP

निमाड़ के खंडवा, बड़वानी और खरगोन में भी गर्मी बढ़ने के साथ जल संकट पड़ने लगा है। खंडवा में जलापूर्ति का प्रमुख स्रोत नर्मदा जल योजना है। इसके अलावा सुक्ता बैराज से भी पानी मिलता है। बीते साल यहाँ पानी को लेकर किया गया निजीकरण का फार्मूला फेल साबित हुआ है। इसी कारण कई बार पानी के लियेे प्रदर्शन और चक्का जाम हुए। यहाँ तक कि महापौर और आयुक्त का घेराव भी किया गया। फिलहाल यहाँ 35 एमएलडी पानी की दरकार है और करीब इतना ही पानी अभी उपलब्ध भी है। एक तरफ समृद्ध प्राकृतिक संसाधन, अथाह जैवविविधता, सोना उगलते खेत और उद्योगों की बड़ी फेहरिस्त से मध्य प्रदेश विकसित राज्यों की दौड़ में खड़ा नजर आता है, लेकिन दूसरी तरफ इससे ठीक उलट प्रदेश में हर साल गर्मियों की दस्तक के साथ ही लोग बाल्टी-बाल्टी पानी को मोहताज होने लगते हैं। खासकर मालवा, निमाड़, बुन्देलखण्ड और विंध्य इलाकों में पानी का संकट भयावह होता जा रहा है।

दर्जन भर से ज्यादा बड़े शहरों में अभी से पानी को लेकर कोहराम शुरू हो गया है। कई शहरों में एक से चार दिन छोड़कर जल प्रदाय करना पड़ रहा है। अधिकांश शहर नर्मदा के पानी पर ही निर्भर हैं सूबे की सरकार ने सात शहरों में पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिये दो सौ करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।

प्रदेश के सबसे बड़े शहर इन्दौर में भी मार्च शुरू होने के साथ ही पीने के पानी का संकट खड़ा हो गया है। नगर निगम फिलहाल डेढ़ सौ वर्ग किलोमीटर हिस्से में ही पानी पहुँचा रहा है, इनमें भी कहीं दो दिन तो कहीं चार दिन में पानी मिल पा रहा है। यहाँ हर दिन करीब 40 से 50 करोड़ लीटर पानी की जरूरत होती है, लेकिन अभी 410 एमएलडी पानी ही प्रतिदिन दिया जा रहा है। इसमें से सबसे ज्यादा पानी नर्मदा के तीसरे चरण से मिल रहा है।

नर्मदा तृतीय चरण से 360 एमएलडी पानी, यशवंत सागर तालाब से 30 एमएलडी और बिलावली तालाब से 3 एमएलडी पानी ही मिल पा रहा है। नगर निगम सीमा के अन्तर्गत शामिल 29 गाँवों में से 27 गाँव में अब तक पेयजल के लिये कोई लाइन नहीं डाली गई है। यहाँ पानी अब तक टैंकरों या बोरिंग के माध्यम से ही दिया जा रहा है। इंदौर में गर्मियों के दौरान हर दिन करीब 380 एमएलडी पानी पहुँचने का अनुमान निगम को है। इंदौर हर साल गर्मियों में पानी पर सिर फुटौव्वल की स्थिति बन जाती है। कई जगह निगम के खिलाफ प्रदर्शन किये जाते हैं। बीते साल भी कई जगह ऐसे प्रदर्शन और चक्काजाम हो चुके हैं।

नगर निगम के जलकार्य प्रभारी बलराम वर्मा कहते हैं- 'हमारे पास नर्मदा का पानी पर्याप्त मात्रा में है। लेकिन गर्मियों में पानी की कमी हो जाने से बोरिंग और नलकूपों की मरम्मत सहित टैंकरों की व्यवस्था भी की जा रही है। नर्मदा के तृतीय चरण आ जाने के बाद इस बार पानी की किल्लत बीते सालों की तुलना में काफी कम होगी।'

इंदौर से ही सटे महू और एशिया के डेट्रायट कहे जाने वाले पीथमपुर में भी पानी के हाल बेहाल हैं। महू में पीने के पानी को लेकर अभी से हालत गम्भीर होने से कैंटोनमेंट बोर्ड ने नर्मदा के तीसरे चरण के लिये जलापूर्ति की कोशिशें तेज कर दी है। शहर को नर्मदा के तीसरे चरण से जोड़ने वाली करीब 17 लाख की लागत की योजना का काम भी डेढ़ साल पहले ही पूरा हो चुका है। इसके बावजूद अब तक इसका कोई फायदा शहर के लोगों को नहीं मिल सका है। कैंटोनमेंट बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि तीसरे चरण का पानी उपयोग करने के लिये नर्मदा परियोजना कार्यालय से ठहराव-प्रस्ताव किया गया है। इसके लिये अब विधिवत अनुमति ली जाएगी।

बोर्ड उपाध्यक्ष रचना विजयवर्गीय कहती हैं- 'इस बार बोर्ड की बैठक में जल संकट की आशंकाओं के चलते शहर के लोगों को पीने के पानी की व्यवस्था पर चर्चा हुई है। हम पूरी तरह कटिबद्ध हैं। नर्मदा का पानी नहीं मिलने तक टैंकरों से जलप्रदाय की व्यवस्था हो रही है। पेयजल टंकियों से करीब 5000 से ज्यादा निजी और सरकारी कनेक्शन को प्रतिदिन 5 लाख गैलन पानी का वितरण नर्मदा के दूसरे चरण से मिलने वाले पानी से हो रहा है।'

उधर पीथमपुर के संजयसागर जलाशय में भी पानी लगातार कम होता जा रहा है। यहाँ भी बीते साल उद्योगों को महंगे दामों पर टैंकरों से पानी खरीदना पड़ा था। यहाँ की बड़ी आबादी के लिये भी पीने का पानी बढ़ती गर्मी के साथ परेशानियों का सबब है।

उज्जैन में पानी के सबसे बड़े स्रोत क्षिप्रा नदी के सूख जाने और इसमें नर्मदा-क्षिप्रा लिंक से पानी नहीं आ पाने के कारण पानी की त्राहि-त्राहि शुरू हो गई है। यहाँ मक्सी रोड, इंदौर रोड तथा देवास रोड इलाके की करीब 100 से ज्यादा कालोनियों में पीने के पानी की किल्लत बढ़ गई है।

बीते साल यहाँ सिंहस्थ होने से पर्याप्त मात्रा में नर्मदा लिंक से क्षिप्रा नदी के लिये पानी छोड़ा जाता रहा लेकिन इस बार शिप्रा नदी सूख चुकी है और उसमें नर्मदा से आने वाला पानी अब तक नहीं आया है। हालात इतने बुरे हैं कि स्थानीय भाजपा विधायक मोहन यादव ने नर्मदा क्षिप्रा लिंक को फ्लाप बताते हुए पानी का मामला विधानसभा में उठाने के लिये विधानसभाध्यक्ष को पत्र लिखा है। यहाँ साफ पानी नहीं मिलने से लोगों को दूषित पानी पीना पड़ रहा है इसकी वजह से कई कॉलोनियों के लोग बीमार हो रहे हैं।

जल संकट के लिये बदनाम रहने वाले देवास में इस बार भी गर्मियों की आहट आते ही पानी का संकट खड़ा हो गया है। यहाँ क्षिप्रा पर बनाए गए बाँध से पानी की आपूर्ति की जाती है लेकिन क्षिप्रा सूख चुकी है और इसमें नर्मदा का पानी लिंक योजना से नहीं आया है। क्षिप्रा बाँध में बहुत कम पानी बचा है। इसके लिये महापौर सुभाष शर्मा ने नर्मदा घाटी विकास मंत्री लालसिंह आर्य से भी मुलाकात की। शहर में हर दिन 12 से 15 एमएलडी पानी की खपत होती है हालांकि जलप्रदाय एक दिन छोड़कर किया जा रहा है। फिर भी पुराने इंटकवेल की क्षमता 10 एमएलडी है और नए इंटकवेल की क्षमता 15 एमएलडी है।

अभी पुराने एमएलडी इंटकवेल की तरफ पानी करीब-करीब खत्म हो गया है। नगर निगम ने बीते साल जलप्रदाय पर करीब 10 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किये हैं। इनमें से लोगों से जलकर के रूप में उन्हें मात्र 4 करोड़ रुपए ही मिल सका है। शहर में 35156 नल कनेक्शन है और इनमें भी मात्र 20 हजार कनेक्शन का ही जलकर नगर निगम को मिल पा रहा है बाकी 15 हजार 156 लोग जलकर जमा नहीं कर पा रहे हैं। निगम के मुताबिक 15000 कनेक्शनधारियों से करीब 7 करोड़ 90 लाख रुपया बकाया है। इसके अलावा कई शहर में कई अवैध कनेक्शन भी है।

स्थानीय राजीव नगर शंकरगढ़ बालगढ़ पालनगर अनवट पुरा गिट्टी खदान और जमुनाहार कॉलोनी में ज्यादा संकट है। इन क्षेत्रों के लोग अभी से बाल्टी-बाल्टी पानी के लिये मोहताज होने लगे हैं। परेशान लोगों ने नगर निगम पर खाली मटके लेकर नारेबाजी करते हुए प्रदर्शन किया। इसी दौरान इन्हें रोकने पहुँचे पुलिस बल ने इनसे मटके छीनने की कोशिश की तो एक पुलिस इंस्पेक्टर के सिर पर मटका फूट गया, जिससे उसे चोंटे आई और अस्पताल में दाखिल करना पड़ा। यहाँ के औद्योगिक क्षेत्र के लिये भी गर्मियों में पानी की किल्लत महंगी पड़ती है। उन्हें सौ किमी दूर नेमावर से नर्मदा का पानी निजी कम्पनी से खरीदना पड़ता है।

यहाँ से चार किमी पर क्षिप्रा नदी के तट पर बसे शिप्रा गाँव में भी पीने के पानी की किल्लत होने लगी है। यह गाँव हमेशा पानी के मामले में समृद्ध रहा है लेकिन इस बार यहाँ भी पानी खत्म होने लगा है। स्थानीय विधायक और प्रदेश के मंत्री दीपक जोशी की पहल पर देवास नगर निगम ने लिंक योजना से मिलने वाले पानी में से इस गाँव को भी पानी सप्लाई करने का निर्णय किया है।

रतलाम की स्थिति भी ठीक नहीं है रतलाम की मुख्य जलस्रोत धोलावाड़ में बीते साल की तुलना में इस बार 1 मीटर पानी ज्यादा है। बावजूद इसके गर्मी में शहर को पानी की आपूर्ति करने के लिये अभी से जिला जल उपभोक्ता समिति ने धोलावाड़ से सिंचाई के लिये नहरों में पानी देने पर रोक लगा दी है। जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री एचके मालवीय बताते हैं कि यहाँ फिलहाल 16 एमसीएम पानी है और अगले मानसून सत्र तक शहर को कुल 8 एमसीएम पानी की जरूरत होगी।

इसी तरह नीमच में भी चार दिन में एक बार ही पानी की सप्लाई की जा रही है। मुख्य जलस्रोत हर्कियाखाल जलाशय से कुल क्षमता 21 फीट में फिलहाल 15.4 फीट पानी ही उपलब्ध है। इसके अलावा नगर निगम के 43 ट्यूबवेल और 14 कुएँ भी हैं जिनसे करीब डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों को पानी उपलब्ध कराया जाता है। यहाँ हर दिन करीब 24 लाख गैलन पानी की जरूरत होती है, लेकिन अभी औसत 16 लाख गैलन पानी की आपूर्ति हो रही है। इसी साल शहर में 33 करोड़ रुपए की लागत से नई पाइप लाइन भी डाली गई है।

उधर निमाड़ के खंडवा, बड़वानी और खरगोन में भी गर्मी बढ़ने के साथ जल संकट पड़ने लगा है। खंडवा में जलापूर्ति का प्रमुख स्रोत नर्मदा जल योजना है। इसके अलावा सुक्ता बैराज से भी पानी मिलता है। बीते साल यहाँ पानी को लेकर किया गया निजीकरण का फार्मूला फेल साबित हुआ है। इसी कारण कई बार पानी के लियेे प्रदर्शन और चक्का जाम हुए। यहाँ तक कि महापौर और आयुक्त का घेराव भी किया गया। फिलहाल यहाँ 35 एमएलडी पानी की दरकार है और करीब इतना ही पानी अभी उपलब्ध भी है। नर्मदा जल के साथ भगवंत सागर में करीब 400 एमसीएफटी पानी को रिजर्व कराया गया है। गर्मी में खंडवा शहर के लिये माँग 40 एमएलडी तक बढ़ जाती है फिलहाल 32 एमएलडी पानी उपलब्ध कराया जा रहा है।

छिंदवाड़ा में कन्हरगाँव बाँध और निगम के नलकूपों से पानी की आपूर्ति की जा रही है। यहाँ हर दिन जरूरी 24 एमएलडी की जगह फिलहाल 18 एमएलडी पानी ही दिया जा रहा है। कुछ क्षेत्रों में 80 टैंकरों के जरिए पानी पहुँचाया जा रहा है कन्हरगाँव में फिलहाल जलस्तर 710.60 मीटर है। यहाँ भी एक दिन छोड़कर जलप्रदाय किया जा रहा है।

सागर में राजघाट बाँध पर पुलिस की तैनाती की जा रही है। यहाँ हर दिन पानी कम होता जा रहा है और उसी अनुपात में शहर में पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है। यहाँ 60 एमएलडी पानी रोज की जरूरत है लेकिन फिलहाल 40 एमएलडी पानी ही मिल पा रहा है। इसलिये अभी से लोगों को एक दिन छोड़कर पानी दिया जा रहा है। राजघाट से सिंचाई रोकने के लिये यहाँ पर पुलिस की मदद भी लेनी पड़ रही है। नगर निगम आयुक्त कौशलेंद्र विक्रम सिंह साफ कहते हैं- 'राजघाट से अब गर्मी के दौरान केवल पीने के पानी के लिये ही लिया जाएगा। सिंचाई के लिये यदि किसी ने पानी लेने की कोशिश की तो उसके खिलाफ नियमों के मुताबिक कार्यवाही की जाएगी। इस बाबत पहले ही सभी किसानों को अवगत करा दिया है।'

सतना वही शहर है, जहाँ इस साल भारी बारिश हुई थी और इससे शहर में जबरदस्त बाढ़ का सामना लोगों को करना पड़ा था। लगा था कि अच्छी बारिश होने से इस बार पानी की किल्लत नहीं उठानी पड़ेगी लेकिन गर्मी की दस्तक के साथ ही यहाँ के करीब 1000 से ज्यादा हैण्डपम्प सूख चुके हैं। पानी को लेकर लोगों के आपसी विवाद शुरू हो चुके हैं। सतना शहर की प्यास समीप के एनिकट से पूछती है पर इसका जलस्तर भी लगातार नीचे चला जा रहा है। शहरी सीमा से लगे रामपुर और मझगवाँ क्षेत्र में भी लोगों को अभी से पीने के पानी के लिये यहाँ-वहाँ भटकना पड़ रहा है।

कई शहरों और कस्बों में लोगों को पीने का साफ पानी भी नहीं मिल पाता। मटमैला और प्रदूषित पानी पीने से हर साल गर्मियों के दौरान बड़ी संख्या में लोग बीमार पड़ते हैं। बीते साल 2016 में ही पेचिश से पाँच लाख 93हजार, टाइफाइड से 82 हजार 800 और हैजा से 4 हजार 60 लोग पीड़ित हुए हैं।

राज्य सरकार ने जल संकट से निपटने के लिये दो सौ करोड़ की राशि का प्रावधान किया है लेकिन बड़ी बात यह है कि इस राशि से भी पानी का इन्तजाम कैसे होगा। पानी है कहाँ...? वह तो लगातार पाताल में धँस रहा है। साल-दर-साल पानी का संकट और भयावह होता जा रहा है लेकिन हम अभी भी पानी के लिए गम्भीर प्रयास करने की जगह फौरी कदम ही उठा रहे हैं। इससे संकट और भी बढ़ सकता है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading