
पेयजल की बढ़ती किल्लत से अब प्रदेश की जनता परेशान होने लग गई है। जलदाय विभाग के लिये मार्च से जून के महीने चुनौती वाले साबित होंगे। इस बार प्रदेश में मानसून की अच्छी वर्षा नहीं होने से बाँधों में पानी की आवक नहीं हो पाई। प्रदेश के ज्यादातर हिस्से में भूजल का स्तर डार्कजोन में है, इसलिये पेयजल के लिये जनता को बाँधों के पानी पर ही निर्भर रहना पड़ता है। सीमित संसाधन होने के कारण जलदाय विभाग अब जागरुकता अभियान भी चलाएगा। इससे पानी के दुरुपयोग को रोककर उसे संरक्षित किया जा सकेगा। विभाग ने प्रदेश में प्रति व्यक्ति 275 लीटर पानी रोजाना बचाने पर ध्यान केन्द्रित किया है।
प्रदेश में सरकार बदलने के साथ ही मौजूदा कांग्रेस सरकार ने भरोसा दिया है कि पेयजल संकट का सामना कारगर योजना बना कर किया जाएगा। दूसरी तरफ पानी आपूर्ति की परियोजनाओं में पाँच साल सरकार ने कोई ध्यान ही नहीं दिया। इसके कारण इनमें अनावश्यक देरी हुई और अब खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। कैग की रिपोर्ट के अनुसार अधिकारियों की लापरवाही के कारण राज्य मेें 54 में से 37 बड़ी परियोजनाएँ और 437 में से 119 ग्रामीण परियोजनाएँ समय पर पूरी नहीं हो सकी। राज्य में 2010 में जल नीति लागू की गई थी। इसके बाद प्रदेश में पाँच साल में कोई भी बड़ी परियोजना नहीं बनाई गई। इसके साथ ही जलदाय विभाग 2014-17 तक वित्तीय प्रबन्धन में भी फेल रहा। इसके कारण पानी आपूर्ति योजनाओं के 1 हजार 271 करोड़ रुपए का भी कोई उपयोग नहीं हो पाया।
कैग की रिपोर्ट के अनुसार जल वितरण पर खर्च का सिर्फ 20 फीसद ही वापस आ पाया और सिर्फ 40 फीसद मीटर ही क्रियाशील रहे। इसके साथ ही विभाग ने पानी की गुणवत्ता भी तय नहीं की। वर्ष 2014-17 तक गुणवत्ता प्रभावित बस्तियों में सिर्फ 13 फीसद की कमी दर्ज की गई। इसके कारण ही कोटा, भरतपुर और नागौर जिलों में फ्लोरािड युक्त पानी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई। लापरवाही के कारण 66 फीसद बस्तियों में तो जल परीक्षण ही नहीं करवाया गया। प्रदेश में लोगों को पीने का साफ पानी दिलाने की मुहिम में लगे सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष बाफना का कहना है कि सरकार को सबसे ज्यादा ध्यान पेयजल की गुणवत्ता पर देना चाहिए। प्रदेश में आधी से ज्यादा आबादी अभी भी फ्लोराइड और अन्य रसायन युक्त पानी ही पी रही है। इससे लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। बाफना का कहना है कि इस बार कम बारिश से भी पेयजल संकट होना तय है।
दूसरी तरफ प्रदेश के जलदाय मंत्री डॉक्टर बीडी कल्ला का कहना है कि विभाग युद्ध-स्तर पर पेयजल की कमी को दूर करने के उपाय खोजने में जुटा है। प्रदेश में पीने के पानी की कमी निश्चित तौर पर है लोगों को परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा, इसके लिये कारगर तरीके से काम किया जा रहा है। पेयजल के संसाधन सीमित हैं, इसलिये सभी को जागरुकता के साथ पानी बचाने में जुटना होगा। सरकार सभी की भागीदारी से पेयजल के संकट से निजात पाने का काम करेगी। इसके अलावा पिछले पाँच साल में नई पेयजल परियोजनाओं पर जो धीमा काम हुआ है, उसमें तेजी लाई जाएगी। भविष्य में पानी संकट नहीं हो, इसका पूरा ध्यान रखा जाएगा।