गुलमर्ग और सोनमर्ग जैसे चारागाह इटावा में बने कौतूहल का विषय

31 Dec 2013
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चंबल के बीहड़ में हरी-भरी हरियालीकश्मीर के गुलमर्ग और सोनमर्ग जैसे चारागाह अगर देश के किसी दूसरे हिस्से में देखने को मिल जाए तो इसे बहुत बड़ी बात मानी जाएगी। भले ही चारागाह देखे जाने के इस हिस्से का कश्मीर से कोई लेना देना नहीं हो लेकिन फिर भी इन चारागाहों को लेकर कौतूहल जरूर है। हम जिस इलाके में कश्मीर के गुलमर्ग और सोनमर्ग जैसे चारागाह की बात कर रहे हैं यह इलाक़ा है कुख्यात डाकुओं की शरणस्थली के तौर पर बदनाम रही यमुना पट्टी की। यह चारागाह उत्तर प्रदेश के इटावा मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर आसई गांव में मौजूद है। इन चारागाह को देखे जाने के बाद कई पर्यावरणविदों के लिए शोध का विषय बन गया है।

चंबल घाटी से जुड़ी यमुना नदी की घाटियां अपने आप में बहुत कुछ समेंटे हुए हैं जो हमारे लिए बेहद अहम माने जाते हैं ऐसे में अगर कोई कहे कि कश्मीर जैसे गुलमर्ग और सोनमर्ग जैसे चारागाह यमुना नदी के किनारे देखने को मिल जाएंगे तो इसे बहुत बड़ी बात मानी ही जाएगी।

कश्मीर में बर्फ से लदी पहाड़ियों के बीच हरे-भरे चारागाह देख मन बाग-बाग हो उठता है। जिन्होंने सोनमर्ग व गुलमर्ग के चारागाह केवल तस्वीरों में देखे वे यमुना के बीहड़ में बने चारागाह देखने आ सकते हैं। यह चारागाह सोनमर्ग व गुलमर्ग की तरह विशाल भूभाग में तो नहीं फैले हैं पर ये किसी से कम नहीं। यहां जगह-जगह फूटे जलस्रोत और हरी घास किसी मानव की देन नहीं बल्कि प्रकृति का अनमोल खजाना है। इसको पर्यटन केंद्र की शक्ल दी जा सकती है, कारण इस चारागाह से महज एक किमी. पर बसा आसई गांव ऐतिहासिक स्थल है, जहां 10वीं व 11वीं शताब्दी के दौरान मूर्तिकला के बड़े केंद्र के रूप में विख्यात रहा। यहां प्रतिमाओं के अवशेष आज भी घर-घर में सुरक्षित हैं। जिस बीहड़ में पानी की तलाश में ग्रामीण दूर-दूर तक भटकते हैं उसी बीहड़ में यहां फूटे जलस्रोतों से निकलते पानी का बंध बना उसे तालाब की शक्ल किसी और ने नहीं ग्रामीणों ने दी है।

चंबल के बीहड़ में हरी-भरी हरियालीशहर से महज 12 किमी. दूर बसे आसई गांव से नीचे बीहड़ में एक किमी. की दूरी पर स्थित इस चारागाह के तीन ओर पहाड़ी हैं। गर्मी के मौसम में बीहड़ की हरियाली सूख जाती है, वहीं यहां वर्ष भर हरियाली रहती है। तीनों ओर से घिरी पहाड़ियों पर बिलायती बबूल ओर झाड़ियां भी हरी-भरी रहती हैं। कारण यहां फूटे जलस्रोतों से यहां की जमीन में नमी रहता है। यहां ग्रामीण मवेशी चराते समय एक फीट का गढ्डा खोदकर पानी निकाल लेते हैं, जो वे बड़े चाव से पीते हैं। प्रधान संगठन के जिलाध्यक्ष रवींद्र दीक्षित बताते हैं कि बीहड़ में एक किमी. के दायरे में ये स्रोत फूटे हैं। इस स्थान के एक किमी. के बाद सूखी घास व मुरझाए पेड़ मिलना शुरू हो जाता है। यहां पानी कहां से आता है यह नहीं कहा जा सकता है। पर इन स्रोतों से निकलने वाले पानी को रोकने के लिए बंध बनाया गया है। पानी इतना स्वच्छ है कि ग्रामीण नहाने व कपड़े धोने यहां तक आते हैं और मवेशी साल भर पानी पीते हैं।

जिला मनरेगा निगरानी समिति के अध्यक्ष आशुतोष दीक्षित बताते हैं कि आसई प्रागैतिहासिक स्थल है। इस क्षेत्र को पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है।

गांव के 80 वर्षीय बुजुर्ग रामदीन सिंह बताते हैं कि उसके बाबा और पिता इन जलस्रोतों व हरे-भरे मैदानों के बारे में बताते थे। यहां पर मूर्तिकला का बड़ा केंद्र रहा है। इसके अवशेष आज भी आसई में खंडित प्रतिमाओं के जरिए मिलते हैं। चारागाह की जो घास है वह मखमली के साथ दूब मिली हुई है। चारागाह में घास के अलावा कोई खरपतवार नहीं होता। यमुना के बीहड़ में इस चारागाह को बीहड़ के पर्यटन के रूप में विकासित किया जा सकता है।

चंबल के बीहड़ में हरी-भरी हरियालीवन विभाग व जल निगम के अधिकारियों को आसई भेजा जाएगा। इस क्षेत्र में अगर इस प्रकार के चारागाह और जलस्रोत हैं तो उसके विकास के लिए योजना बनाई जानी चाहिए ऐसा कहते है पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के सचिव डा.राजीव चौहान।

चंबल के बीहड़ में हरी-भरी हरियाली

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