गुना जिले में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी मनरेगा

जिन जॉबकार्डधारी मजदूरों के नाम पोस्टऑफिस में पंचायतें राशि जमा करती हैं वे मजदूर कागजों में ही होते हैं और काम को मशीनों से कराया जाता है। इस हालत में कार्य कराने वाले व्यक्ति पोस्टऑफिस से मजदूरों के खातों से भुगतान लेते हैं। मजदूरों का भुगतान अन्य व्यक्तियों को करने के नाम पर पोस्टऑफिसों में पांच फीसदी कमीशन लगना चर्चित है।

गुना, (म.प्र.), 21 मई। केंद्र सरकार की निधी से राज्यों को मालामाल करने वाली महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) गुना जिले में निर्धारित प्रावधानों के विपरीत चलने के साथ-साथ भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित कर रही है। बल्कि उक्त योजना का माध्यम बने डाकघरों ने भी भ्रष्टाचार को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा दे दिया है। मनरेगा के कार्यक्रम समन्वयक कलेक्टर रामीकालीन ग्रामीण चौपालों में योजना के संदर्भ में चाहे जैसी दलीलें दे रही हों लेकिन वास्तविकता यह है कि कलक्टर, प्रावधानों के तहत मैदानी स्तर पर दस फीसदी कार्यों का निरीक्षण नहीं कर सके हैं। और सूचना अधिकार के तहत भी कलक्टर मनरेगा के कार्यों की जानकारी देने के नाम पर टाल-मटोल कर रहे हैं। विस्तृत जानकारी के अनुसार मनरेगा में प्रतिवर्ष गुना जिले में करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं। जिला मुख्यालय से जिले की जनपद व ग्राम पंचायतों तक यह राशि तय हो चुकी कमीशन की दर मिलने पर ही पहुंचती है। कमीशन की राशि में जिले के सुप्रीमों से लेकर लिपिक तक की दर तय बताई जाती है।

मनरेगा में मजदूरों को भुगतान पोस्टऑफिसों में खुले बचत खातों के माध्यम से मिलना भले ही कागजी कार्रवाई में साबित होता हो लेकिन असलियत बिल्कुल विपरीत है। जिन जॉबकार्डधारी मजदूरों के नाम पोस्टऑफिस में पंचायतें राशि जमा करती हैं वे मजदूर कागजों में ही होते हैं और काम को मशीनों से कराया जाता है। इस हालत में कार्य कराने वाले व्यक्ति पोस्टऑफिस से मजदूरों के खातों से भुगतान लेते हैं। मजदूरों का भुगतान अन्य व्यक्तियों को करने के नाम पर पोस्टऑफिसों में पांच फीसदी कमीशन लगना चर्चित है।

बात की जाए मजदूरों और मांग आधारित काम की। गुना जिले में जो जॉबकार्डधारी मजदूर हैं वे अधिकांश निरक्षर हैं और इन्होंने शायद ही कभी काम की मांग की हो।

जिले में मनरेगा के काम जनप्रतिनिधि, अधिकारी व निर्माण कार्य में सक्रिय चेहरे अपनी मनमर्जी से प्रारंभ करते हैं, यह अलग बात है कि मजदूरों के काम मांगने के आवेदन (जिनसे मजदूर अनभिज्ञ रहता है) फाइलों में लग ही जाते हैं। गुना जिले में अधिकारियों की हालत यह है कि यदि किसी जनप्रतिनिधि के कहने पर कहीं भी काम करना है तो वह मनरेगा में ताबड़तोड़ मंजूर होकर पूरा हो जाता है। करीब चार महीने पूर्व प्रदेश के सामान्य प्रशासन राज्यमंत्री केएल अग्रवाल ने जलसंसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री को एक तालाब का कार्य प्रारंभ करने के लिए तकनीकी मंजूरी जारी करने के लिए पत्र लिखा। इस पत्र में माननीय मंत्रीजी ने साफ किया कि यदि इस कार्य के लिये राशि की आवश्यकता होती है तो विधायक निधि से मुहैया करा दी जाएगी। लेकिन यह कार्य एकाएक मनरेगा में 85 लाख रुपए की लागत से प्रारंभ हो गया।

इस कार्य का शुभारंभ भी राज्यमंत्री अग्रवाल से ही कराया गया। जनवरी 2011 में प्रारंभ मनरेगा के इस बडेरा तालाब के कार्य की मांग किन मजदूरों ने की थी, इसकी जानकारी निर्माण करने वाली एजंसी पर कतई नहीं है। यह भारी-भरकम तालाब लगभग पूरा हो चुका है। आज आवश्यकता इस बात की जांच की है कि इस बारी भरकम तालाब को मजदूरों ने इतनी फुर्ती में कैसे पूरा कर दिया? क्योंकि तकनीकी स्वीकृति के मुताबिक इस तालाब की स्वीकृति राशि 85 लाख में से 70 फीसद मजदूरी पर व्यय होना था। फिर क्या एजंसी को राशि के मुताबिक जॉबकार्डधारी मजदूर मिल गए। यदि इसी एकमात्र तालाब के निर्माण की विस्तृत जांच हो जाए तो मांग आधारित स्कीम मनरेगा की गुना जिले में असलियत सामने आ जाएगी।

मनरेगा में दस फीसदी निर्माण कार्यों का निरीक्षण मनरेगा के जिला कार्यक्रम समन्वयक कलक्टर को करने का प्रावधान है। गुना जिले में कलक्टर गुना के मनरेगा के कार्यक्रम का निरीक्षण शायद किया ही नहीं गया है, क्योंकि इन निरीक्षणों की जानकारी को लेकर कलक्टर कार्यालय व जिला पंचायत कार्यालय में एक-दूसरे पर टालमटोल चल रही है। जानकारी के मुताबिक कलक्टर के किए गए निरीक्षण की निरीक्षण टीम संबधी कार्य की पुस्तिका में दर्ज की जाती है। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मनरेगा में कलक्टर के निरीक्षण किए कार्यों की सूची व जिन कार्यों का निरीक्षण किया गया था उनके निरीक्षण पुस्तिका की प्रति जब जिला पंचायत से मांगी गई तो जिला पंचायत ने निरीक्षण पुस्तिका की प्रति के लिये आवेदन जिले की जनपदों में अंतरित कर दिया, जबकि कलक्टर द्वारा निरीक्षण किए गए कार्यों की सूची के लिए आवेदन कलक्टर कार्यालय को अंतरित कर दिया गया है। जाहिर है जिला पंचायत के पास निरीक्षण और निरीक्षण पुस्तिका संबंधी जानकारी नहीं है। हद तो तब हो गई जब कलक्टर कार्यालय के लोकसूचना अधिकारी ने कलक्टर द्वारा निरीक्षण किए गए कार्यों की सूची की जानकारी लेने के लिए जिला पंचायत को पत्र लिख दिया। जाहिर है कलक्टर कार्यालय में भी कलक्टर द्वारा निरीक्षण किए गए कार्यो की जानकारी नहीं है। हालात साफ है कि कलक्टर गुना ने शायद मनरेगा में कार्यों का निरीक्षण किया ही नहीं है। जब कलक्टर एवं जिला कार्यक्रम समन्वय मनरेगा के कार्यों में मैदानी निरीक्षण कर ही नहीं रहे होंगे तो मनरेगा की अनियमितताओं को लेकर क्या कार्यवाही करेंगे? इस हालत में मनरेगा में सरकारी तंत्र की लूट-खसोट व कार्य की अनियमितताएं चलना लाजिमी है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading