घोषणाओं का नहीं समीक्षा का वक्त

2 Jul 2016
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फरक्का में मौजूद 2100 मेगावाट का एनटीपीसी का प्लांट फरवरी से मई तक बीच-बीच में कई दिन बन्द रहा। 2100 मेगावाट के पावर प्‍लांट में पूरी क्षमता से उत्‍पादन के लिये प्रति घंटे 225000 क्‍यूबिक मीटर पानी की जरूरत होती है और नहर में इसकी गहराई करीब 20 मीटर होनी चाहिए। इस नहर में पानी लगातार कम होता गया, पहले पाँच इकाईयाँ बन्द हो गईं और उसके बाद पूरा प्लांट ही बैठ गया। अगले कुछ दिनों में जब प्रधानमंत्री राष्ट्रीय नदी गंगा को लेकर महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ करने वाले हैं, तब यह बेहद जरूरी हो जाता है कि वे वर्तमान में जारी पनबिजली परियोजनाओं की समीक्षा भी करें। हमारी अमूमन सभी नदियाँ अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में मिलती हैं। इन दोनों स्थानों यानी नर्मदा और गंगा के अन्तिम पड़ाव पर मौजूद पनबिजली परियोजनाओं ने दम तोड़ दिया है, वे पानी की भारी कमी के चलते पूरी तरह ठप हो गई। संयंत्र को ठंडा करने के लिये पानी का उपयोग बड़ी मात्रा में किया जाता है।

संयंत्रों के बन्द होने से अब तक अरबों रुपए का नुकसान हो चुका है। सबसे ज्यादा नुकसान एनटीपीसी को हुआ है। लेकिन ये कहना समस्या का सरलीकरण है कि हर साल इस मौसम में नदियों में पानी कम हो जाता है जिसके चलते प्लांट को पानी नहीं मिल पाता। इसके और भी कारण हैं जो सीधे नदी नीति और समझौतों में कमी की ओर इशारा करते हैं।

फरक्का में मौजूद 2100 मेगावाट का एनटीपीसी का प्लांट फरवरी से मई तक बीच-बीच में कई दिन बन्द रहा। 2100 मेगावाट के पावर प्‍लांट में पूरी क्षमता से उत्‍पादन के लिये प्रति घंटे 225000 क्‍यूबिक मीटर पानी की जरूरत होती है और नहर में इसकी गहराई करीब 20 मीटर होनी चाहिए। इस नहर में पानी लगातार कम होता गया, पहले पाँच इकाईयाँ बन्द हो गईं और उसके बाद पूरा प्लांट ही बैठ गया। जबकि फरक्का बाँध में पर्याप्त पानी मौजूद था लेकिन बांग्लादेश के साथ समझौते के चलते जनवरी से मई तक बांग्लादेश को पानी की आपूर्ति करनी होती है।

इन पाँच महीनों में बांग्लादेश के पाँच अधिकारी पूरे समय भारत सरकार के मेहमान बने फरक्का बैराज पर डटे रहते हैं और पानी की निकासी पर कड़ी नजर रखते हैं। बाँध में मौजूद पानी का एक बड़ा हिस्सा बांग्लादेश के लिये छोड़ना होता है। सरकारी आँकड़ा देखें तो इस प्लांट के बन्द होने से एनटीपीसी को करोड़ों का नुकसान हुआ लेकिन उस नुकसान की गणना करने का कोई तरीका ही नहीं है जो बिजली सप्लाई बन्द होने के कारण उद्योगों को उठाना पड़ा। इसके कारण पाँच राज्यों में बिजली की आपूर्ति प्रभावित हुई और 38 हजार परिवारों को बिजली की किल्लत झेलनी पड़ी। वहीं फरक्का शहर में भी पेयजल की समस्या भी खड़ी हो गई।

गंगा में नावों के संचालन को स्‍थगित करना पड़ा, जबकि कोयले से लदी 13 नौकाएँ गंगा में कम पानी में धँस गईं। कोलकाता से आने वाले पर्यटक जहाजों ने अपनी बुकिंग कैंसिल कर दी और कई मालवाहक भी लॉक गेट ना खुल सकने की वजह से मुख्य धारा में नहीं आ सके। ये सारा माल पटना और उसके आगे तक सड़क मार्ग से पहुँचाया गया।

बांग्लादेश के साथ इस समझौते को 1996 में नया रूप दिया गया था जिसमें हर पाँच साल में समझौते की समीक्षा का प्रावधान है लेकिन आश्चर्यजनक रूप से हर साल भारी नुकसान झेलने के बाद भी भारत सरकार ने एक बार भी इस समझौते की समीक्षा की माँग नहीं रखी।

ठीक इसी तरह सरदार सरोवर बाँध भी अपने निर्धारित उद्देश्यों में फेल साबित हो रहा है। नर्मदा बाँध प्राधिकरण ने केवड़िया में अपनी छह 250 मेगावाट पनबिजली टर्बाइनों को पिछले छह महीने से बन्द किया हुआ है। जबकि इन्हीं प्लांट में दो साल पहले रिकॉर्ड बिजली उत्पादन हुआ था। नर्मदा की धारा में मौजूद करीब–करीब सभी प्लांट अपनी आधी से भी कम क्षमता से काम कर रहे हैं। बिजली उत्पादन की ये अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है।

ऊर्जा मंत्री पियूष गोयल स्वयं स्वीकार कर चुके हैं कि कई पावर प्लांट पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं और इनकी कई यूनिटों को अस्थायी रूप से बन्द करना पड़ा है। कई यूनिटें तो गत साल जुलाई से बन्द पड़ी हैं। देश भर के कुल 2,88,700 मेगावाट क्षमता वाले पावर प्लांट में से करीब 70 प्रतिशत कोयला, गैस और डीजल से चलने वाले थर्मल से चलते हैं।

बिजली उत्पादन के लिये इन्हें ताजा पानी की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा पर्यावरण मंत्रालय अब भी नारे लगाने वाले मोड में ही काम कर रहा है, उसने हास्यास्पद तरीके से 2017 तक जीरो वेस्ट वाटर मैनेजमेंट हासिल करने का लक्ष्य रखा है। इससे साफ जाहिर की समस्या की विकरालता का उन्हें अन्दाजा ही नहीं है।

सरकार के दो साल पूरे होने के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री जब नदियों को लेकर घोषणाएँ कर रहे होंगे तो उनके जहन में यह सवाल भी होगा कि भारी विरोध के बावजूद गाजे-बाजे के साथ शुरू की गई पनबिजली परियोजनाएँ फेल क्यों हो रही हैं। गंगा पर घोषणाएँ नारे, संकल्पों और वादों से मुक्त स्पष्ट और दूरगामी परिणाम देने वाली होनी चाहिए।

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