गिरता भूजल स्तर और रिचार्ज

छत के पानी से भूगर्भ रिचार्ज करें। फोटो: needpix.com
छत के पानी से भूगर्भ रिचार्ज करें। फोटो: needpix.com

हर साल 22 मार्च को हम विश्व जल दिवस मनाते हैं। इसलिए यह देखना महत्वपूर्ण हो जाता है कि दुनिया जल दिवस तो मना रही है, पर क्या उसके उपयोग को लेकर वो गंभीर, संयमित व सचेत हैं या नहीं? आज जिस तरह से मानवीय ज़रूरतों की पूर्ति के लिए निरंतर व अनवरत भूगर्भ जल का दोहन किया जा रहा है, उससे साल दर साल भूगर्भ जल का स्तर गिरता जा रहा है। भूगर्भ जल उस जल को कहा जाता है जो वर्षा और अन्य स्रोतों के कारण जमीन में चला जाता है और जमा होता रहता है।

पिछले एक दशक के भीतर भूगर्भ जल स्तर में आई गिरावट को अगर इस आंकड़े के जरिये समझने का प्रयास करें तो अब से दस वर्ष पहले तक जहां 30 मीटर की खुदाई पर पानी मिल जाता था वहां अब पानी के लिए 60 से 80 मीटर तक की खुदाई करनी पड़ती है। साफ है कि बीते दस वर्षों में दुनिया का भूगर्भ जल स्तर बड़ी तेजी से घटा है और अब भी बदस्तूर जल स्तर का घटना जारी है। यह बड़ी चिंता का विषय है। अगर केवल भारत की बात करें तो भारतीय केंद्रीय जल आयोग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार देश के बड़े जलाशयों का जलस्तर 2015 के मुकाबले 2016 में और अधिक घट गया है। 

आयोग के अनुसार देश के 12 राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, त्रिपुरा, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के जलाशयों के जलस्तर में काफी गिरावट पाई गई। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत 2025 तक जल संकट वाला देश बन जाएगा।

देश की सिंचाई का करीब 70 प्रतिशत और घरेलू जल खपत का 80 प्रतिशत हिस्सा भूमिगत जल से पूरा होता है, जिसका स्तर तेजी से घट रहा है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर भू-जल स्तर के इस तरह निरंतर रूप से गिरते जाने का मुख्य कारण क्या है? अगर इस सवाल की तह में जाते हुए हम घटते भू-जल स्तर के कारणों को समझने का प्रयास करें तो कई बातें सामने आती हैं।

घटते भूगर्भ जल के लिए सबसे प्रमुख कारण ताे उसका अनियंत्रित और अनवरत दोहन ही है। आज दुनिया अपनी जल जरूरतों की पूर्ति के लिए सर्वाधिक रूप से भूगर्भ जल पर ही निर्भर है। लिहाजा, अब एक तरफ तो भूगर्भ जल का अनवरत दोहन हो रहा है तो वहीं दूसरी ओर तेज औद्योगीकरण के चलते प्रकृति को हो रहे नुकसान और पेड़-पौधों के अनियंत्रित दोहन के कारण बरसात में भी काफी कमी आ गई है। परिणामतः धरती को भूगर्भ जल दोहन के अनुपात में जल की प्राप्ति नहीं हो पा रही है।

सीधे शब्दों में कहें तो धरती जितना जल दे रही है, उसे उसके अनुपात में बेहद कम जल मिल रहा है। बस यही वाे प्रमुख कारण हैं जिससे कि दुनिया का भूगर्भ-जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। दुखद और चिंताजनक बात ये है कि कम हो रहे भूगर्भजल की इस विकट समस्या से निपटने के लिए अब तक वैश्विक स्तर पर कोई भी ठोस पहल होती नहीं दिखी है। हालांकि ऐसा कतई नहीं है कि कम हो रहे पानी की इस समस्या का हमारे पास कोई समाधान नहीं है। इस समस्या से निपटने के लिए सबसे बेहतर समाधान तो यही है कि वर्षा के पानी का समुचित संरक्षण किया जाए और उसी पानी के जरिए अपनी अधिकाधिक जल जरूरताें की पूर्ति की जाए। वर्षा के पानी के संरक्षण के लिए उसके संरक्षण माध्यमों को विकसित करने की आवश्यकता है, जो कि सरकार के साथ-साथ प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का भी दायित्व है।

अभी स्थिति यह है कि समुचित संरक्षण माध्यमों के अभाव में वर्षा का बहुत ज्यादा जल, जो लोगों की तमाम जल जरूरतों को पूरा करने में काम आ सकता है, खराब और बर्बाद हो जाता है।

अगर प्रत्येक घर की छत पर वर्षा जल के संरक्षण के लिए एक दो टंकियां लग जाएं व घर के आस-पास कुएं आदि की व्यवस्था हो जाए तो वर्षा जल का समुचित संरक्षण हो सकेगा। जल संरक्षण की यह व्यवस्थाएं हमारे पुरातन समाज में थीं, पर विडंबना यह है कि आज के इस आधुनिक युग में हम उन व्यवस्थाओं को लेकर बहुत गंभीर नहीं हैं। जल संरक्षण की व्यवस्थाओं के अलावा अपने दैनिक कार्यों में सजगता और समझदारी से पानी का उपयोग करके भी जल संरक्षण किया जा सकता है। जैसे, घर का नल खुला न छोड़ना, साफ-सफाई आदि कार्यांे के लिए खारे जल का उपयोग करना, नहाने के लिए उपकरणों की बजाय साधारण बाल्टी आदि का इस्तेमाल करना आदि ऐसे सरल उपाय हैं, जिन्हें अपनाकर प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन काफी पानी की बचत कर सकता है।

भूजल रिचार्ज एक जलवैज्ञानिक तकनीकी प्रक्रिया है जिसमें वर्षा जल काे सतह से गहरायी में ले जाया जाता है। रिचार्ज का कार्य बहुत सीमा तक प्राकृतिक रूप से होता है किन्तु आधुनिक जीवन को ध्यान में रखते हुए अब इसे कृत्रिम रूप से करने की महती आवश्यकता महसूस की जा रही है।

बोरिंग अथवा नलकूपों के माध्यम से अत्यधिक पानी निकालकर हम कुदरती भूगर्भ जल भण्डार को लगातार खाली कर रहे हैं। शहरों में कंक्रीट का जाल बिछ जाने के कारण बारिश के पानी में रिसकर भूगर्भ में पहुंचने की संभावना कम होती जा रही है। इन परिस्थितियों में हम वर्षा के जल को भूगर्भ जल स्रोतों में पहुंचाकर जल की भूमिगत रिचार्जिंग कर सकते हैं। वर्षा जल को एकत्रित करने की प्रणाली चार हजार वर्ष पुरानी है। इस तकनीक को आज वैज्ञानिक मापदंडों के आधार पर फिर पुनर्जीवित किया जा सकता है।

भूगर्भ जल रिचार्जिंग की कई विधियां हैं जैसे, रिचार्ज पिट, रिचार्ज ट्रेंच, रिचार्ज बोरवेल, तालाब/पोखर/बावड़ी, सतही जल संग्रहण व छोटे-छोटे चेक डेम बनवाया जाना।

यह तकनीक स्थानीय हाइड्रोजियाेलॉजी पर निर्भर करती है। भूगर्भ जल रिचार्जिंग की कोई भी विधि अपनाने के लिए निर्माण कार्य महीने से सवा-महीने में पूरा हो जाता है। छोटे अथवा मध्यम वर्ग के घरों की छत पर गिरने वाले बारिश के पानी को सिर्फ कुछ हजार रूपये खर्च करके भूगर्भीय जल स्रोतों में पहुंचाया जा सकता है। इस कार्य को करने के लिए यह जानकारी होना आवश्यक है कि किस इलाके में कौन सी विधि वैज्ञानिक पैमाने पर उपयुक्त रहेगी।

वर्षा जल संचयन विधि (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) को अपनाकर इसमें से 80 हजार लीटर पानी को भू-जल भण्डारों में जल की भावी पूँजी के रूप में जमा किया जा सकता है। यदि घर ऐसे क्षेत्र में है जहां सतह से थोड़ी गहराई पर ही बालू का संस्तर मौजूद है अर्थात उथले संस्तर वाले क्षेत्र हैं, तो रिचार्ज पिट फिल्टर मीडिया से भरा 02 से 03 मीटर गहरा गड्ढा बनाकर छतों पर गिरने वाले वर्षा जल को जमीन के भीतर डायवर्ट किया जा सकता है।

यदि छत का क्षेत्रफल 200 वर्गमीटर हो तो रिचार्ज पिट के बजाय बगीचे के किनारे ट्रेंच बनाकर बारिश के पानी को रिचार्ज किया जा सकता है। जिन इलाकों में बालू का संस्तर 10 से 15 मीटर या अधिक गहराई पर मौजूद है अर्थात गहरे संस्तर वाले क्षेत्रा में वर्षा जल संरक्षण के लिए एक रिचार्ज चैम्बर बनाकर बोरवेल के जरिए रिचार्जिंग कराई जा सकती है।

भूगर्भ जल रिचार्ज के अनेक लाभ हैं

  • (1) भू-जल स्तर गिरावट की वार्षिक दर को कम किया जा सकता है।
  • (2) भूगर्भ जल उपलब्धता व पेयजल आपूर्ति की मांग के अंतर को कम किया जा सकता है।
  • (3) भूगर्भ जल संस्तर को पुनः जीवित किया जा सकता है। 
  • (4) भूगर्भ जल गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
  • (5) सड़कों पर जल प्लावन की समस्या से निजात मिल सकती है।
  • (6) वृक्षों को पर्याप्त जल की आपूर्ति स्वतः संभव हो सकेगी। 

जल संरक्षण हेतु हमारी सरकार ने भी अनेक प्रयास किये हैं

  • (1) 300 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्राफल के निजी मकानों एवं 200 वर्गमीटर से अधिक क्षेत्राफल के सरकारी/गैर सरकारी ग्रुप हाउसिंग मकानों, सभी सरकारी इमारतों में रूफ रेन हार्वेस्टिंग की व्यवस्था अनिवार्य की गयी है।
  • (2) जहां-जहां पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था की गयी है उनके प्रभावी अनुरक्षण का कार्य भी किया जा रहा है।
  • (3) तालाबाें और पाेखराें की नियमित डिसिल्टिंग का कार्य किया जाता है।
  • (4) कक्षा 5-6 व अन्य कक्षाओं में रेन वाटर हार्वेस्टिंग विषय काे पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना। जल सरंक्षण के प्रति सरकारी प्रयासों एवं हमारी जागरूकता ही भूगर्भ जल के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं एवं विलुप्त होते भूगर्भ जल स्तर को पुनर्जीवित कर सकते हैं।

(डाॅ. दीपक कोहली, 5/104, विपुल खंड, गोमती नगर, लखनऊ-226 010, उत्तर प्रदेश, मो.नं. 09454410037, ईमेलः  deepakkohli64@yahoo.in)

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