हिमालय नीति जन संवाद

8 Oct 2012
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जन संवाद के प्रथम दिवस के अवसर पर देश और दुनिया के परिदृश्य में हिमालय की भूमिका के विषय पर विचारकों ने प्रतिभागियों के मन और बुद्धि को झकझोरने वाले विचार व्यक्त कर बहुत गंभीरतापूर्वक आज की परिस्थिति को समझकर दिशा तय करने में सावधानी बरतने की ओर इशारा किया है। उन्होंने आज की वैश्विक साम्राज्यवादी ताकतों के बल पर नीति-नियन्ताओं की कमजोरी को भी उजागर किया है। 27-28 सितम्बर 2012 को उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून में हिमालय नीति जन संवाद का आयोजन किया गया है। इस अवसर पर हिमालय लोक नीति विषय पर चर्चा केन्द्रित रही है। इसमें लगभग 75 लोगों ने भाग लिया है। जन संवाद में अधिकांश वही लोग उपस्थित रहे जिन्होंने सन 2010 से हिमालय लोकनीति के मसौदे को तैयार किया था। गौरतलब है कि हिमालय राज्यों में विशेषकर उत्तराखंड ने चिपको, रक्षासूत्र, नदी बचाओ, हिमालय बचाओ के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का उदाहरण जो देश और दुनिया के सामने प्रस्तुत किया है उसी के अनुरुप उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, हिमांचल के सामाजिक कार्यकर्ताओं, महिलाओं, किसानों, पंचायत प्रतिनिधियों ने मिलकर नवम्बर 2010 में एक हिमालय नीति की कल्पना की थी।इसके बाद सभी के सुझावों को शामिल करते हुये हिमालय लोक नीति का मसौदा तैयार किया गया था। इस दौरान इस लोकनीति के मसौदे पर केवल हिमालय राज्यों में ही हस्ताक्षर अभियान नहीं चलाया गया है, बल्कि गांधी, विनोबा, जय प्रकाश, के कदमों पर चलने वाले राष्ट्रीय युवा संगठन से जुड़े युवाओं ने जाने माने लेखक व गांधी विचारक कुमार प्रशान्त जी के मार्गदर्शन में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, असम, मणिपुर, झारखण्ड, राजस्थान, मुम्बई आदि राज्यों में हस्ताक्षर अभियान चलाकर हिमालय लोक नीति पर जन समर्थन हासिल किया है।

जन संवाद में चर्चा की गई है कि उतराखण्ड, हिमांचल, जम्मू कश्मीर एवं दिल्ली में कई बैठकों के माध्यम से हिमालय के लिये विभिन्न समय में एक समग्र हिमालय नीति बनाने को पैरवी कई संगठन करते रहे हैं। हिमालय नीति का मोटा-मोटी स्वरुप क्या हो, उसका अब एक लिखित दस्तावेज जिसे हिमालय लोकनीति का मसौदा नाम दिया गया है, इसे प्रधानमंत्री जी तक पहुंचाने के लिये ही देहरादून में बैठक आयोजित की गई है। इस अवसर पर कई लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं। लेकिन इस जन संवाद की सफलता ही कही जायेगी कि इसमें उपस्थित वक्ताओं ने कहा है कि इसको किसी उचित माध्यम के द्वारा प्रधानमंत्री जी तक पहुंचाना आवश्यक हो गया है।

जन संवाद के प्रथम दिवस के अवसर पर देश और दुनिया के परिदृश्य में हिमालय की भूमिका के विषय पर प्रख्यात गांधी विचारक कुमार प्रशान्त ने प्रतिभागियों के मन और बुद्धि को झकझोरने वाले विचार व्यक्त कर बहुत गंभीरतापूर्वक आज की परिस्थिति को समझकर दिशा तय करने में सावधानी बरतने की ओर इशारा किया है। उन्होंने आज की वैश्विक साम्राज्यवादी ताकतों के बल पर नीति-नियन्ताओं की कमजोरी को भी उजागर किया है। इसे चुनौति देने वाले आम जनता के प्रयासों को भी खुलकर सामने रखा है। उन्होंने कहा कि हिमालय की नीति बनाना देश को बचाना है।

दूसरे दिन के मुख्य वक्ता पूर्व कुलपति प्रो. एसपी सिंह ने भारतीय हिमालय क्षेत्र पर एक आकर्षक प्रस्तुतिकरण किया है। उन्होंने इस क्षेत्र में आ रहे जलवायु परिवर्तन पर चिंता व्यक्त की, साथ ही उन्होंने कहा कि हिमालय के विकास के प्रति जबावदेही को बढ़ाना समय की मांग है। लखनऊ से फारुख रहमान ने हिमालय लोकनीति के मसौदे केा जन-जन तक पहुंचाने का आह्वान किया, उन्होंने इसके लिये जन-जागरुकता बढ़ाने का सुझाव दिया है।

इस जन संवाद में डॉ. वीपी मैठाणी, ने हिमालय लोक नीति को पूरे हिमालय के परिदृश्य में रखने की बात कही है। प्रसिद्ध पर्यावरण प्रेमी जगत सिंह जंगली ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को देखते हुये हिमालय नीति बनाये जाने की आवश्यकता पर बल दिया है। सर्वोदय विचारक बिहारी लाल जी ने हिमालय लोक नीति को जल, जंगल, जमीन के संरक्षण में लगे कार्यकर्ताओं की मेहनत का फल बताया। प्रो. वीरेन्द्र पैन्यूली ने कहा कि हिमालय बचाना, देश बचाना है, इसको ध्यान में रखकर एक समग्र हिमालय नीति बनाने की ओर उन्होंने ध्यानाकर्षित किया है। उन्होंने कहा कि हिमालय लोक नीति इसी दिशा में इशारा करती है। गोविन्दानंद सेमवाल ने हिमालय को आर्थिक उपयोग की वस्तु न बनाकर आध्यात्मिक दिशा में हिमालय बचाने की पहल पर जोर दिया है। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता इस्लाम हुसैन ने हिमालय को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिये पैसों के पलायन को रोकने की बात कही है। उन्होंने ग्राम स्वराज की दिशा में हिमालय नीति को आत्म निर्भर बनाने की आवश्यकता की पैरवी की है। बीजू नेगी ने हिमालय के संदर्भ में उन तमाम संगठनों को एक साथ रहने का आह्वान किया है, जो वर्षों से हिमालय बचाने के लिये संवाद करते रहे हैं, उनका कहना था कि चिपको, बीज बचाओ, पानी बचाओ, सभी हिमालय के गंभीर सवाल रहे हैं। इस संवाद में देहरादून सर्वोदय मंडल ने सर्वोदय साहित्यों का प्रचार भी किया है। पुराने सर्वोदय कार्यकर्ता चिन्मय व्यास, तेज सिंह भण्डारी गीता गैरोला, तरुण जोशी, डॉ. शोवा नंद, रुपल अजवे, प्रसिद्ध महिला नेत्री कमला पंत, डॉ. बीपी नौटियाल, इन्दर सिंह नेगी, सिद्वार्थ नेगी, शैलेन्द्र भण्डारी, डॉ. विजय शंकर शुक्ल, पी.सी. तिवारी, अजय प्रकाश, पूर्व डीजी चमन लाल प्रद्योत, हेमलता खण्डूरी, आशूतोष कण्डवाल, शत्रुघ्न भण्डारी, कुंवर सिंह सजवाण, देवेन्द्र दत, कमलेश्वर आदि कई लोगों ने विचार रखे हैं। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अरविन्द दरमोड़ा, प्रेम पंचोली व सुरेश भाई ने किया।

28 सितम्बर को अन्तिम दिन के हिमालय नीति जन संवाद में हिमालय लोकनीति मसौदा प्रधानमंत्री जी को सौंपे जाने के सम्बध में निर्णय हुआ। इसकी अवधि दिसम्बर 2012 तक रखी गयी है। दिल्ली में प्रधानमंत्री जी तक इसको सौंपने की जिम्मेदारी बैठक में उपस्थित प्रतिनिधियों ने कुमार प्रशान्त जी को दी है। वे राष्ट्रीय युवा संगठन व उपस्थित रहे कोर ग्रुप के सदस्यों के माध्यम से हिमालय लोकनीति का मसौदा प्रधानमंत्री को सौंपने के लिये आवश्यक लोगों को जोड़ने की कार्यवाही करेंगे। इस मसौदे को प्रधानमंत्री जी तक सौंपने के दौरान कुछ चुनिंदा सांसदों के साथ एक बैठक आयोजित की जायेगी। इस संबंध में संसद को भी पत्र जारी किया जायेगा। इसके अलावा हिमालयी राज्यों की विधान सभाओं को भी खुला पत्र जारी किया जायेगा। इन सभी गतिविधियों के लिये आर्थिक संसाधन जुटाने हेतु सम्मिलित प्रयास करने होंगे। प्रतिभागियों ने निर्णय लिया कि हिमालय नीति पर व्यापक समर्थन हेतु हस्ताक्षर अभियान, मीडिया, सोशल मीडिया, वेबसाइट आदि का उपयोग किया जायेगा। इस जन संवाद में निर्णय हुआ है कि विभिन्न वक्ताओं द्वारा दिये गये नये सुझावों को हिमालय लोक नीति में अक्टूबर माह तक शामिल किया जायेगा।

हिमालय नीति का मसौदा यहां संलग्न है

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