हिवरे बाजार : पानी की पैठ का एक आदर्श गांव

19 Sep 2019
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हिवरे बाजार : पानी की पैठ का एक आदर्श गांव।
हिवरे बाजार : पानी की पैठ का एक आदर्श गांव।

दो दशक तक सूखे की मार झेलने वाले गाँव हिवरे बाजार में आज कोई गरीब नहीं है। वर्षा पर निर्भर इस गाँव ने यह दिखा दिया जहाँ चाह है, वहीं राह है। इस मॉडल को महाराष्ट्र के 1000 गाँवों में अपनाया जा रहा है।

महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित हिवरे बाजार एक समृद्ध गाँव है। 1989 तक इस गाँव की पहाड़ियाँ व खेत बंजर हो चुके थे। लोगों के पास रोजगार नहीं था। गाँव में कच्ची शराब बनती थी। लिहाजा लोग पलायन करने लगे। तब गाँव के कुछ युवकों ने सुधार का बीड़ा उठाया और अपने एक साथी पोपटराव पंवार को सरपंच बना दिया। पोपटराव ने सात सूत्री एजेंडा तैयार किया, जिसमें पेड़ कटाई पर रोक, परिवार नियोजन, नशाबंदी, श्रमदान, लोटाबंदी (खुले में शौच रोकना), हर घर में शौचालय व भूजल प्रबन्धन शामिल थे।

उन्होंने गाँव और इसके आस-पास वर्षा जल संरक्षण के लिए बड़ी संख्या में वाटरशेड बनवाए व कुएँ खुदवाए। नतीजा गाँव में भूजल स्तर बढ़ गया। पानी आया तो खेतों में फसलें लहलहाने लगीं, हरियाली भी आई। आज 315 परिवारों वाले इस गाँव के मॉडल को राज्य के 1000 से अधिक गाँवों में भी अपनाया जा रहा है। पोपटराव की मदद से राज्य सरकार इसे हर जिले के पाँच गाँवों में लागू करना चाहती है, जिसमें से 100 में आशातीत सफलता मिली है। पंवार बताते हैं कि उनके गाँव की औसत आय 30000 से 35,000 रुपए है, जो 1995 के पहले 830 रुपए थी। 1990 के दशक में जो लोग यह कहकर चले गए थे कि गाँव में कुछ भी नहीं बचा है, उनमें से 70 परिवार वर्ष 2000 के बाद वापस लौट आए। गाँव में 50-60 लोगों की सालाना आय 10 लाख रुपए से अधिक है। यहाँ एक भी व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे नहीं है। यहाँ ढूँढने से भी मच्छर नहीं मिलेंगे।

पोपटराव पंवार।पोपटराव पंवार।

पोपटराव बताते हैं कि यह गाँव ‘रेन शैडो’ क्षेत्र में आता है। यहाँ सालाना औसतन 200-300 मिली और कभी-कभी 100 मिली बारिश होती है। इसलिए हमने भूजल और कृषि प्रबन्धन पर जोर दिया। हम पानी का बजट तैयार कर उसी के आधार पर खेती करते हैं। 300 मिली तक बारिश होने पर खरीफ की फसल सौ प्रतिशत, रबी की 70 व 30 प्रतिशत होती हैं। यदि बारिश 100 मिली हुई तो हम केवल भूजल रिचार्ज करते हैं, कोई फसल नहीं उगाते। हमारे यहाँ गन्ना और केले की फसल पूरी तरह प्रतिबन्धित है। हम केवल ज्वार, बाजरा, सब्जियाँ और फूल की खेती ही करते हैं।

वे बताते हैं कि जब गाँव में हरियाली आई तो पशुधन भी बढ़ा और डेयरी (मुंबा देवी मिल्क सोसायटी) का सहयोग भी मिलने लगा। स्वच्छता के साथ पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। इस गाँव के लोग पूर्णतः साक्षर हैं और 79 प्रतिशत परिवारों के लोग सरकारी नौकरी करते हैं। गाँव में 38 प्राथमिक शिक्षक, 50 से अधिक ग्रामीण सेना में हैं। कुल मिलाकर गाँव की समृद्धि में कृषि, डेयरी के साथ नौकरीपेशा लोगों का भी योगदान है।
 

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