हरे चारे की खेती

16 Jan 2020
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हरे चारे की खेती
हरे चारे की खेती

पशुओं के भोजन में हरे चारे की एक खास भूमिका होती है। यह दुधारु पशुओं के लिए फायदेमंद भी होता है। हरे चारे के रूप में किसान अनेक फसलों को इस्तेमाल करते हैं, लेकिन कुछ फसलें ऐसी होती हैं, जो लम्बे समय तक नहीं चल पाती हैं, यहाँ कुछ खास फसलों के बारे में जानकारी दी गई है, जो सेहतमंद होने के साथ-साथ लम्बे समय तक हरा चारा मुहैया कराती हैं।

भारत के जो किसान खेती के साथ पशुपालन भी करते हैं, उनके लिए दुधारु पशुओं और पालतू पशुओं के लिए हरे चारे की समस्या से दोचार होना पड़ता है। बारिश में तो हरा चारा खेतों की मेंड़ या खाली पड़े खेतों में आसानी से मिल जाता है, परन्तु सर्दी या गरमी में पशुओं के लिए हरे चारे का इंतजाम करने में परेशानी होती है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि खेत के कुछ हिस्से में हरे चारे की बोवनी करें, जिससे अपने पालतू पशुओं को हरा चारा सालभर मिलता रहे।

पालतू पशुओं के लिए हरे चारे की बहुत कमी रहती है, जिस का दुधारु पशुओं की सेहत व दूध उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है। इस समस्या के समाधान के लिए जायद में बहु कटाई वाली ज्वार, लोबिया, मक्का और बाजरा वगैरह फसलों को चारे के लिए बोया जाता है।

हालांकि मक्का, ज्वार जैसी फसलों से केवल 4-5 माह ही हरा चारा मिल पाता है, इसलिए किसान कम पानी में 10 से 12 महीने हरा चारा देने वाली फसलों को चुन सकते हैं।

जानकार किसान बरसीम, नेपियर घास, रिजका वगैरह लगाकर हरे चारे की व्यवस्था सालभर बनाए रख सकते हैं।

बरसीम

पशुओं के लिए बरसीम बहुत ही लोकप्रिय चारा है, क्योंकि यह बहुत ही पौष्टिक व स्वादिष्ठ होता है। यह साल के पूरे शीतकालीन समय में और गरमी के शुरू तक हरा चारा मुहैया करवाती है।

पशुपालन व्यवसाय में पशुओं से बहुत ज्यादा दूध उत्पादन लेने के लिए हरे चारे का का खास महत्व है। पशुओं के आहार पर तकरीबन 70 फीसदी खर्च होता है और हराचारा उगाकर इस खर्च को कम करके ज्यादा फायदा कमाया जा सकता है।

गाडरवारा तहसील के अनुविभागीय अधिकारी केएस रघुवंशी बताते हैं कि बरसीम सर्दी के मौसम में पौष्टिक चारे का एक उत्तम जरिया है। इसमें रेशे की मात्रा कम और प्रोटीन की औसत मात्रा 20 से 22 फीसदी होती है। इसके चारे की पाचनशीलता 70 से 75 फीसदी होती है। इसके अलावा इसमें कैल्शियम और फास्फोरस भी काफी मात्रा में पाए जाते हैं। इसके चलते दुधारु पशुओं को अलग से खाली दाना वगैरह देने की जरूरत कम पड़ती है।

नेपियर घास

किसानों के बीच नेपियर घास तेजी से लोकप्रिय हो रहीहै। गन्ने की तरह दिखने वाली नेपियर घास लगाने के महज 50 दिनों में विकसित होकर अगले 4 से 5 साल तक लगातार दुधारु पशुओं के लिए पौष्टिक आहार की जरूरत को पूरी कर सकती है।

पशुपालकों को एक बार नेपियर घास लगाने पर 4-5 साल तक हरा चारा मिल सकता है। इसे मेंड़ पर लगाकर खेत में दूसरी फसलें उगा सकते हैं। 50 दिनों में फसल पूरी तरह से तैयार हो जाती है और इसमें सिंचाई की जरूरत भी नहीं पड़ती है।

पशुपालन विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि प्रोटीन और विटामिन से भरपूर नेपियर घास पशुओं के लिए एक उत्तम आहार की जरूरत को पूरा करता है। दुधारु पशुओं को लगातार यह घास खिलाने से दूध उत्पादन में भी वृद्धि के साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। खेत की जुताई और समतलीकरण यानी एकसार करने के बाद नेपियर घास की जड़ों को 3-3 फुट की दूरी पर रोपा जाता है।

नेपियर घास का उत्पादन प्रति एकड़ तकरीबन 300 से 400 क्विंटल होता है। इस घास की खूबी यह है कि इसे कहीं भी लगया जा सकता है। एक बार घास की कटाई करने के बाद उसकी शाखाएं फिर से फैलने लगती हैं और 40 दिन में वह दोबारा पशुओं के खिलाने लायक हो जाता है। प्रत्येक कटाई के बाद घास की जड़ों के आस-पास गोबर की सड़ी खाद या हल्का यूरिया का छिड़काव करने से इसमें तेजी से बढ़ोत्तरी होती है।

रिजका

यह किस्म चारे की एक अहम दलहनी फसल है, जो जून माह तक हरा चारा देती है। इसे बरसीम की अपेक्षा सिंचाई की जरूरत कम होती है। रिजका को 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 20 से 30 सेंटीमीटर के खंतर से लाइनों में बोआई करनी चाहिए।

अक्टूबर से नवम्बर माह के मध्य का समय बोआई के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।

रिजका अगर पहली बार बोया गया है, तो रिजका कल्चर का प्रयोग करना चाहिए यदि कल्चर उपलब्ध न हो तो जिस खेत में पहले रिजका बोया गया है, उसमें से ऊपरी परत से 30 से 40 किलोग्राम मिट्टी निकालकर जिस में रिजका बोना है, उसमे मिला देना चाहिए।

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