हरकी पैड़ी पर गंगा नदी का नाम बदलने की तैयारी, ताकि हाईकोर्ट का आदेश रहे बेअसर

29 Jul 2020
0 mins read
हरकी पैड़ी पर गंगा नदी का नाम बदलने की तैयारी
हरकी पैड़ी पर गंगा नदी का नाम बदलने की तैयारी

दुनिया की सबसे पवित्रतम नदियों में से एक ‘गंगा’ भारतीयों के लिए मात्र नदी नहीं, बल्कि आस्था का केंद्र है। हिंदू धर्म में गंगा नदी को मां का दर्जा दिया गया है, जो देश के सबसे ज्यादा आबादी (कुल 40 करोड़ से ज्यादा लोगों को) वाले इलाकों को जीवन देती है। हिंदू धर्म में जन्म के वक्त नामकरण हो या मृत्यु के वक्त अंतिम संस्कार, गंगाजल की आवश्यकता पड़ती है। एक प्रकार से सनातन धर्म का कोई भी कर्मकांड और संस्कार गंगाजल के बिना अधूरा है, लेकिन भारत में गंगा का जो हाल है, उससे नहीं लगता कि भारतीयों के जीवन में गंगा नदी का इतना महत्व है। गंगा नदी के प्रति इतनी अगाध आस्था होने के बावजूद भी परिस्थिति सुधरने के बजाए बिगड़ती चली गई, जिस कारण आज गंगा का पानी जहरीला होता जा रहा है। ऐसे में गंगा अब सत्ताधारियों के लिए राजनीति का मुद्दा बन गई है, जहां गंगा की स्थिति को सुधारने के लिए अरबों रुपया खर्च किया जाता है, लेकिन गंगा के पानी में ज़हर कम नहीं हुआ है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जो बीमारी (औद्योगिक कचरा, सीवरेज व बांध) मां गंगा को लगी है, उसका इलाज ही नहीं किया जा रहा है। 

गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के बजाए गंगा को व्यापार का माध्यम बनाने की तैयारी चल रही है। राजनैतिक दल एक दूसरे पर निशाना साध रहे हैं, जिसमें हाल ही में हरिद्वार के हरकी पैड़ी पर गंगा की धारा का नाम बदलने का निर्णय सुर्खियों में है। यहां सरकार हरकी पैड़ी पर बहने वाली गंगा की धारा का नाम बदलने जा रही है। दरअसल, कुछ दिन पहले शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक की अध्यक्षता में बैठक हुई थी। इसमें तय किया गया था कि वर्ष 2016 हरीश रावत सरकार का शासनादेश पलटा जाएगा और हर की पैड़ी पर प्रवाहित हो रही मां गंगा के नाम को बदलकर ‘देवधारा’ किया जाएगा।

अब हरकी पैड़ी पर गंगा नहीं शहर बह रहा है और कुंभ 2021 की तैयारी चल रही है। सवाल यह उठ रहा है कि कुंभ कहां मथा जाए और अमृत कहां निकाला जाए - ‘नहर में या गंगा में’। शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक हरकी पैड़ी पर गंगा लाने के लिए भगीरथ बनने का प्रयास कर रहे हैं। देहरादून की बैठक में इसका उल्लेख किया गया है कि कर्नल काटले की 1940 में प्रकाशित पुस्तक में गंगा की अविरल धारा का वर्णन किया गया है। 1916 में गंगा सभा और महामना पंडित मदनमोहन मालवीय के साथ ब्रिटिश हुक्मरान ने हरकी पैड़ी पर गंगा की अविरल धारा का समझौता किया था। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है कि 80 के दशक तक हरकी पैड़ी निर्विवाद रूप से गंगा में थी। यह स्थिति ज्वालापुर से दूधाधारी चौक तक बाईपास मार्ग बनने से बदली है। पहले हरकी पैड़ी से नील धारा तक गंगा नदी ही थी। बाईपास बनाने से गंगा बंट गई और डैम का बंधा हुआ जल ही अधिक मात्रा में हरकी पैड़ी पर आता है, जिसके विरोध में ब्रिटिशों के खिलाफ धार्मिक संग्राम हुआ था।

हरिद्वार में पत्रकारिता के स्तंभ और गंगा सहित विभिन्न मुद्दों पर करीब से नजर रखने वाले रतनमणि डोभाल ने इंडिया वाटर पोर्टल को बताया कि हरकी पैड़ी क्षेत्र में गंगा को प्रदूषित किए जाने के खिलाफ उत्तर प्रदेश के एक श्रद्धालु आरके जायसवाल ने उच्च न्यायालय इलाहाबाद में जनहित याचिका दाखिल कर गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकार को आदेश देने की मांग की। उनकी याचिका पर हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव सहित गंगा नदी के किनारे के 32 शहरी क्षेत्रों से संबंधित जिलाधिकारियों को तलब किया था। वर्ष 1997 में हाईकोर्ट ने स्वतंत्र रूप से जल पुलिस का गठन करने का आदेश दिया था। जिसको गंगा को प्रदूषित करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करनी थी। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने गंगा से 200 मीटर की परिधि में किसी भी प्रकार की निर्माण गतिविधियों को अनुमन्य नहीं करने का आदेश दिया था।

गंगा से 200 मीटर की परिधि में निर्माण पर प्रतिबंध का आदेश ने हरिद्वार विकास प्राधिकरण के लिए जबरदस्त कमाई का द्वार खोला। उसने अपनी सुविधा के अनुसार कभी हरकी पैड़ी को गंगा मानकर भवन निर्माण का नक्शा पास नहीं किया और अवैध निर्माण होने पर अवैध वसूली की। अवैध निर्माणों में ध्वस्तीकरण का आदेश पारित कराने की तो बोली ही लगने लगी थी। ध्वस्तीकरण के आदेशों की संख्या हजारों में है, जिनकी फाइल बंद हो चुकी है। जब मन करा 200 मीटर गंगा नदी से नाप लिया और जब मन किया हरकी पैड़ी से नाप लिया।

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद लोकायुक्त जस्टिस रजा ने हाईकोर्ट इलाहाबाद के आदेश के अनुपालन में जल पुलिस का अलग से गठन होने तक वर्तमान पुलिस व्यवस्था में ही गंगा घाटों पर जल पुलिस नियुक्त करने का आदेश दिया था। कागजों में जल पुलिस घाटों पर आज भी तैनात है, लेकिन व्यवहार में नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट का 1997 का आदेश आज भी विद्यमान है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में ही वर्ष 2000 के बाद गंगा किनारे हुए निर्माणों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। इसके बाद एनजीटी ने भी गंगा से 200 मीटर परिधि में निर्माण न करने का आदेश दिया था। प्राधिकरण को अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चलाना था। जिससे उसके भ्रष्ट अधिकारी पसीना पसीना हो गए थे। ध्वस्तीकरण में उन्हें अपनी पोल खुलने की उम्मीद थी, इसलिए उनकी सलाह पर अवैध निर्माणकर्ताओं ने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के पास पहुंचे और उनके हित साधने के लिए हरीश रावत ने गंगा को नहर घोषित कराकर हाईकोर्ट व एनजीटी के आदेश को निष्प्रभावी बना दिया। इस प्रकार गंगा से 200 मीटर की तलवार म्यान में चली गई। 

चतुर राजनीतिक खिलाड़ी हरीश रावत अब इस पर भाजपा सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। उनका कहना कि उनसे गंगा को नहर बनाने की गलती हो गई है। जिसको भाजपा सरकार ठीक कर दे। सरकारों के निर्णय बदले भी जाते हैं। गलत है तो वह सुधार कर दें। हरीश रावत जानते हैं कि यह काम इतना आसान नहीं है क्योंकि तब उसको गंगा से 200 मीटर की परिधि से वर्ष 2000 के बाद के निर्माण हटाने होंगे। तब वह इसकी मांग को लेकर भाजपा सरकार को घेरेंगे। उन्होंने भाजपा सरकार को फंसा दिया है। अब नहर कहें तो मुश्किल, गंगा कहें तो मुश्किल। जो लोग हरकी पैड़ी पर नदी की धारा को गंगा मान रहे हैं उन्हें 200 मीटर पीछे हटकर गंगा के प्रति श्रद्धा दिखानी होगी।

हालांकि, सरकार के इस प्रस्ताव का तीर्थ पुरोहितों ने विरोध शुरू कर दिया है। पुरोहितों का कहना है गंगा नदी के नाम को गंगा ही रहने दिया जाए। तीर्थ पुरोहितों की महासभा ने चेतावनी दी है कि गंगा के नाम के साथ छेड़छाड़ करने पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन किया जाएगा। अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री श्रीकांत वशिष्ठ ने कहा कि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार ने हरकी पैड़ी पर प्रवाहित हो रही गंगा का नाम बदलकर स्कैप चैनल करने का एक शासनादेश कर दिया था। जिसके खिलाफ अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा ने अपने अधिवेशन में इस शासनादेश को निरस्त करने का प्रस्ताव वर्ष 2016 में पारित किया था।

श्री गंगा सभा के अध्यक्ष प्रदीप झा का कहना है कि हरकी पैड़ी पर गंगा की अविरल निर्मल धारा को 2016 में हरीश रावत सरकार ने इसे चैनल के रूप में तब्दील कर करोड़ों हिंदुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ किया था, लेकिन हिंदू धर्म के नाम पर राजनीति करने वाली भाजपा सरकार ने भी तीन साल में इस काले कानून को रद्द नहीं किया है।

वैसे तो सरकारों के निर्णय कुछ भी हों, हर कोई अपनी पार्टी को बचाना चाहता है, जिस कारण गंगा नदी के मूलस्वरूप और उससे जुड़ी मान्यताओं को ताक पर रख दिया गया है। गंगा का नाम बदलने के मामले में तीर्थ पुरोहित आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं, लेकिन हमें भूलना नहीं चाहिए कि ये वही तीर्थ-पुरोहित हैं, जो सिकुड़ती और प्रदूषित होती मां गंगा के अस्तित्व को बचाने के लिए आवाज नहीं उठाते हैं। ऐसे में इन पर विश्वास करना संभव नहीं है। यहां जनता को ही आगे आना होगा और न केवल गंगा के नाम को बदलने से रोकना होगा, बल्कि गंगा को उसके मूल स्वरूप में वापिस लाने के लिए भी संघर्ष करना जरूरी है। 


हिमांशु भट्ट (8057170025)

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading